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खुद को ले कर कौंप्लैक्स क्यों फील करना

हाइट बढ़ना या न बढ़ना एक बायोलौजिकल प्रोसेस है जो 10 साल से 20 साल तक की अवस्था में अधिक से अधिक बढ़ती है. लेकिन कई बार लड़का हो या लड़की की अगर हाइट कम रह जाती है तो लोग उन्हें ताने देते हैं कि देखो कितनी कम हाइट है इस की. ये तो भीड़ में कहीं गुम ही हो जाएगी. अरे इस बेचारी को आगे रखो ये तो फोटो में नज़र ही नहीं आएगी. लड़के को तो ये बातें और भी ज्यादा सुननी पड़ती है कि इस से कौन लड़की शादी करेगी. बीवी लम्बी आ जाए तो भी ताने मारते हैं कि ये तो बीवी के आगे कुछ बोल ही नहीं सकता इस में इतनी बड़ी कमी जो है हाइट की. अकसर इस तरह की बातें सुनने को मिलती है.

इस बारें में स्वाति का कहना है कि मेरी हाइट भी कम है. लोग कहते है मुझे रस्सा कूदना चाहिए, डॉक्टर को देखना चाहिए पर भी जाने क्या क्या कहते हैं. लेकिन सच तो यह है मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. हाइट कम होना किसी की कोई कमी नहीं है, बल्कि यह सिर्फ़ हार्मोन्स और आनुवांशिक कारणों से होती है.

नवादा की श्वेता कौर का कहना है कि मेरी हाइट 4 फिट से भी कम है. मेरी हाइट छोटी थी, लोगों के ताने सुनने पड़ते थे. लोग यही बोलते थे कि मेरी हाइट छोटी है तो शादी कैसे होगी? लेकिन मेरे हौसले कभी कम नहीं हुए. दो बार असफल होने के बाद तीसरी बार परीक्षा के परिणाम आते ही मैं जिला औडिट औफिसर बन गई हूं. उन्होंने बिहार लोकसेवा आयोग यानी बीपीएससी 67वीं परीक्षा में 330वां स्थान प्राप्त किया. बीपीएससी क्वालिफाई करने के बाद अब वह जिला औडिट औफिसर बन गई हैं.

बौलीवुड एक्ट्रैस जया बचच्न का ही उदाहरण देख लें, हाईट कम हैं फिर भी भी इतने लम्बे अमिताभ से उन की शादी हुई, इस का मतलब साफ़ है कि शादी का हाइट से कोई लेनादेना नहीं है.

लेकिन हां, अगर आप चाहें तो कुछ तरीके से हाइट को बढ़ाने के तरीके आजमा सकते हैं. जैसे कि सही और पौष्टिक आहार लेना हाइट को प्रभावित कर सकता है. आहार में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन डी और जिंक होना चाहिए. इन खाद्य पदार्थों में दूध, पनीर, दही, मांस, अंडे, मछली, हरी सब्जियां, फल और अदरकलहसुन शामिल हो सकते हैं.

स्वस्थ जीवनशैली अपनाना भी आप की हाइट को प्रभावित कर सकता है. नियमित व्यायाम करें, पर्याप्त नींद लें, तंबाकू और शराब का सेवन न करें, स्ट्रेस को कम करें, और सही पोस्चर बनाए रखें. कुछ योगासन भी हाइट को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं. लेकिन फिर भी अगर हाइट नहीं बढ़ रही तो चिल करें और अपनी बाकी क्वालिटीज़ पर धयान दें ताकि लोगों के मुहं अपनेआप बंद हो जाएं.

मोटे हैं तो क्या हुआ

यह एक मिथ है कि मोटे लोग कुछ नहीं कर सकते. वह जीवन में असफल ही रहते हैं, हर जगह हंसी का पात्र होते हैं. वैसे हम यह नहीं कह रहें की मोटा होना अच्छी बात है लेकिन इस के कई अनुवांशिक कारण भी हो सकते हैं और अगर चाह कर भी व्यक्ति बहुत अधिक पतला नहीं हो पा रहा तो आप क्यों इतने परेशान हैं. ये उस का व्यक्तिगत मामला है. वैसे हम ऐसे लोगों की जानकारी के लिए बता दें कि मोटे लोग बेकार नहीं हैं और न ही किसी पर बोझ हैं.

एमानुएल यारब्राउ एक ऐसे एथलीट थे जो 600 पाउंड से ज्यादा के थे. कांलेज के बाद उन्होंने योशिसादा योनेजुका से ट्रेनिंग ली जिस ने उन्हें ब्राउन मैडल जीतने तक के भी मुकाम तक पहुंचाया. एमानुएल यारब्राउ एक फुटबौलर, ऐक्टर भी रह चुके हैं. गिनीज वर्ल्ड रिकौर्ड में उन का नाम सब से बड़े एथलीट के रूप में दर्ज है. विश्व के इस सब से बड़े एथलीट ने 21 दिसंबर साल 2015 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.

अमेरिका की भारोत्तोलक हौली मैनगोल्ड वजन वाली मशीन पर चढ़ती थी, तो कांटा सीधा डेढ़ सौ किलो पार कर जाता है. लेकिन उन्हें इस पर कोई शर्म नहीं थी, वह तो खुश थी कि वह ओलिंपिक में हिस्सा लेने वाली सब से ज्यादा वजन वाली महिला बनी. उन्हें इस बात से गुस्सा आता था कि आम जनता और मीडिया उन के जैसे खिलाड़ियों के शरीर पर नाहक चर्चा करती है.

2012 के लंदन ओलिंपिक में बहुत से एथलीट थे, जिन का वजन ज्यादा था और मीडिया ने उन्हें मोटा कह कर पुकारा है. लेकिन मैनगोल्ड के लिए तो उन का वजन खुशी की बात थी उन्होंने कहा था कि, “मेरी टीम (सारा रोबलेस) और मैं इस बात को साबित कर सकते हैं कि आप किसी भी शरीर के साथ एथलीट बन सकते हैं. मैं यह नहीं कह रही हूं कि हम में से हर कोई एथलीट है लेकिन एथलीट बनने के लिए किसी खास शरीर की जरूरत नहीं होती.

सिर्फ यही नहीं बल्कि कौमेडियन भारती सिंह ने भी कहा है कि वे मोटी है तो क्या हुआ उन्हें इस पर कोई शर्म नहीं है बल्कि वे तो खुद को खातेपीते घर की बताती है. ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने मोटा होने पर भी सफलता हासिल की है और समाज में अपना अलग मुकाम बनाया है. जहां तक मोटे लोगों की शादी की बात है तो अभी हाल ही में अनंत अम्बानी की शादी राधिका मर्चेंट से हुई है जिस ने यह साबित कर दिया कि दिल के आगे मोटा या पतला कुछ नहीं होता. इसलिए किसी को उस के मोटापे से जज करना प्लीज छोड़ दें.

काले या सांवले रंग को सुंदरता क्यों नहीं माना जाता

वह बहुत काली है, कोई भी ऐसी त्वचा के रंग वाली लड़की से शादी नहीं करेगा, उस के बच्चे भी काले रंग के होंगे; वह सौंदर्य प्रतियोगिता नहीं जीत सकती क्योंकि वह बहुत सांवली है. लेकिन ऐसा क्यों? क्या सांवली त्वचा वाली महिलाएं भी सामान्य इंसान नहीं हैं? हमारे समाज में सांवले रंग की प्रशंसा क्यों नहीं की जाती? इसे कुरूपता का प्रतीक क्यों माना जाता है? लोग “आधुनिक” होने के बावजूद भी सुंदरता को मापने के लिए त्वचा के रंग को एक पैमाना क्यों मानते हैं?

दरअसल, सदियों से हमें यह सिखाया जाता रहा है और मानने के लिए मजबूर किया जाता रहा है कि खूबसूरती गोरा रंग है. लोग इस गलत धारणा को अपनी आने वाली पीढ़ियों को विरासत में देते रहते हैं और बिना सोचेसमझे इसे उपहार में देते रहते हैं. समाज सांवली रंगत वाली महिलाओं के साथ बहुत घृणा और घृणा से पेश आता है.

भारत में लोग गोरी त्वचा को सुंदरता का मानक क्यों मानते हैं? जबकि भारतीय लोगों के त्वचा का रंग तो श्यामला होता है गोरा तो पश्चिमी देशों के लोग होते हैं? इस का जवाब शायद यह हो सकता है कि जो चीज मुश्किल से मिलती है उस की कीमत ज्यादा होती है. भारत मे भी गोरा रंग आसानी से नहीं मिलता है इसलिए जिन का रंग गोरा होता है उसे विशेष महत्व दिया जाता है.

हालांकि इस के लिए महिलाएं खुद भी जिम्मेदार हैं. वे ब्यूटी प्रोडक्ट को लगा कर गोरा होना चाहती हैं. ऐसा करना ही क्यों? अगर महिलाएं खुद अपने रंग को स्वीकार कर लें और इसे बदलने की इच्छा न रखें तो समाज के किसी भी अन्य सदस्य को उन के रंग पर टिप्पणी करने का मौका नहीं मिलेगा.

उदाहरण के लिए, टीवी शो ‘बालिका वधू’ में आनंदी का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री अविका गौर ने रंगभेद को बढ़ावा देने वाली तीन फेयरनेस क्रीम का औफर ठुकरा दिया. इस तरह के विज्ञापन लोगों और खासकर महिलाओं को गलत संदेश देते हैं. दरअसल बाजार में काले या सांवले इंसान को गोरा बनाने का दावा करने वाली तमाम चीजें बिक रही हैं.

हाल ही में, प्रसिद्ध सौंदर्य कंपनी, जिसे पहले फेयर एंड लवली कहा जाता था, ने ‘फेयर’ विशेषण के इस्तेमाल के खिलाफ आवाज उठाए गए तो उसे यह विशेषण हटाना पड़ा और कंपनी का नाम बदल कर ‘ग्लो एंड लवली’ रखना पड़ा. आप का जो भी रंग है उस में ही आत्मविश्वासी बनिए कोई क्या कह रहा है इसे जाने दीजिए. अपने गुणों को पहचानिए तन से नहीं मन से सुंदर बनें. कुकिंग, डांसिंग, खेलकूद, म्यूजिक,आप जिस में भी अच्छी हैं उस पर आप को गर्व होना चाहिए. इस से आप का कौंन्फिडेंस आप के चेहरे पर साफ झलकेगा और आप की असल खूबसूरती लोगों को खुदबखुद नजर आएगी.

अगस्त माह का दूसरा सप्ताह कैसा रहा बौलीवुड का कारोबारः सिनेमाघरों में पसरा रहा सन्नाटा

अगस्त माह का दूसरा सप्ताह बौलीवुड और सिनेमाघरों के लिए ठीक नहीं रहा. इस सप्ताह यानी कि 9 अगस्त को विनीत कुमार सिंह, अक्षय ओबेराय व उर्वशी की फिल्म ‘घुसपैठिया’ के अलावा ‘होकस फोकस’ और ‘आलिया बसु गायब है’ सहित तीन छोटे बजट की फिल्में प्रदर्शित हुईं. ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि पिछले सप्ताह की दो फिल्मों ‘उलझ’ तथा ‘औरों में कहां दम था’ को कुछ फायदा हो जाएगा, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. सिनेमाघरों में सन्नाटा छाया रहा.

अगस्त माह के पहले सप्ताह में प्रदर्शित जान्हवी कपूर की फिल्म दूसरे सप्ताह में महज दो करोड़ ही कमा सकी. दोनों सप्ताह का मिला कर इस फिल्म ने केवल 9 करोड़ रुपए ही कमाए. इस में से निर्माता की जेब में बामुश्किल 4 करोड़ ही जाएंगे. सब्सिडी मिलने के बावजूद 40 करोड़ में बनी ‘उलझ’ से निर्माता को 36 करोड़ का नुकसान हुआ. अब तो लोग खुल कर ‘उलझ’ के निर्देशक सुधांशु सरिया पर फिल्म के इस कदर नुकसान का ठीकरा फोड़ने लगे हैं.

वहीं अगस्त के प्रथम सप्ताह में प्रदर्शित अजय देवगन और तब्बू की फिल्म ‘औरों में कहां दम था’ भी दूसरे सप्ताह में महज दो करोड़ ही कमा सकी. इस तरह दो सप्ताह के अंदर इस फिल्म ने 12 करोड़ कमाए, जिस में से निर्माता की जेब में जाएंगे 5 करोड़ रुपए. जबकि फिल्म का बजट 100 करोड़ रुपए है. इस का अर्थ यह हुआ कि निर्माता को पूरे 95 करोड़ रुपए का घाटा हुआ.

अगस्त माह के दूसरे सप्ताह, 9 अगस्त को प्रदर्शित निर्देशक सुशि की विनीत कुमार सिंह, उर्वशी और अक्षय ओबेराय के अभिनय से सजी फिल्म ‘घुसपैठिया’ केवल एक लाख रुपए ही कमा सकी. इस में से निर्माता की जेब में कुछ नहीं आएगा. मतलब यह हुआ कि फिल्म की पूरी लागत डूब गई. दूसरे सप्ताह, 9 अगस्त को ही निर्देशक पैरी डुडेजा की 32 अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड जीत चुकी फिल्म ‘होकस फोकस’ प्रदर्शित हुई. इस फिल्म में सुचि कुमार, सत्येंद्र सिंह गहलोत और सोना भंडारी की अहम भूमिकाएं हैं, मगर यह फिल्म पूरे सात दिन में बौक्स औफिस पर केवल तीन लाख रुपये ही कमा सकी. इस फिल्म के निर्माता की पूरी लागत डूब गई.

दूसरे सप्ताह 9 अगस्त को ही प्रीति सिंह निर्देशित फिल्म ‘आलिया बसु गायब है’ ने पूरे सात दिन के अंदर 35 लाख रुपए ही कमाए. जबकि इस फिल्म में सलीम दीवान के साथ विनय पाठक व राइमा सेन की भी अहम भूमिकाएं हैं. इस 35 लाख रुपये में से निर्माता की जेब में चाय पीने के पैसे भी नहीं जाएंगे. लेकिन फिल्म ‘आलिया बसु गायब है’ के निर्माता की सेहत पर कोई असर नहीं होने वाला क्योंकि फिल्म का निर्माण खुद अभिनेता सलीम दीवान ने किया है. सलीम दीवान के पिता की बहुत बड़ी दवा कंपनी है और खुद सलीम दीवान ‘राजस्थान हर्बल्स इंटरनेशनल’ के प्रमोटर और सीईओ हैं, जो आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण करती है, जिस के पूरे भारत में 1400 से अधिक केंद्र हैं. सलीम दीवान ‘नशा मुक्ति केंद्र’ के प्रबंध निदेशक भी हैं.

इस तरह दूसरे सप्ताह हर सिनेमाघर में सन्नाटा ही पसरा रहा.

इस तरह शादी के बाद भी महिलाएं रख पाएंगी अपनी पुरानी दोस्ती कायम

शादी के बाद महिलाओं की जिंदगी पूरी तरह से बदल जाती है. महिलाओं के लिए उन का घरपरिवार सब से बड़ी प्रायोरिटी बन जाते हैं. मां बनने के बाद उन की जिम्मेदारियां और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं पति और परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारियां निभाने में उन का अपने पुराने दोस्तों से संपर्क टूट जाता है. न चाहते हुए भी पुराने दोस्त दूर होने लगते हैं और दोस्ती का नाम मात्र की रह जाती है. महिलाएं अपने स्कूल कालेज के पुराने दिनों और पुरानी दोस्ती को मिस करती हैं और उन्हें अकेलापन महसूस होता है. पुराने दोस्तों से कनेक्टेड नहीं रहने पर बहुत सी महिलाएं खुश नहीं रह पाती हैं और अपनी परेशानियों से अकेले जूझते हुए डिप्रेशन की शिकार हो जाती हैं. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि किसी भी इंसान की जिंदगी में दोस्त बहुत महत्वपूर्ण होते हैं.

पुराने दोस्तों के साथ समय बिताना तनाव दूर करने का एक शानदार तरीका

शादी के बाद ज़िंदगी में दोस्तों के होने से महिलाओं को न सिर्फ सपोर्ट मिलता है, बल्कि वह उन के नए परिवार के सदस्य के समान ही बन जाते हैं क्योंकि दोस्तों के साथ महिलाएं अपनी फीलिंग्स शेयर करती हैं, हंसीमजाक करती हैं और रोजमर्रा की जिंदगी के बारे में बातचीत कर के रिलैक्स्ड रहती हैं. दोस्तों के साथ बातचीत करते हुए किसी तरह की टेंशन नहीं होती और महिलाओं को अपनी कई मुश्किलों का हल भी मिल जाता है.

अगर महिलाएं अपनी दोस्ती को जीवनभर संभाल कर रखना चाहती हैं तो कुछ तरीकों को अपना कर अपनी शादी के बाद जुड़े नए रिश्तों के साथ ही दोस्ती को भी आसानी से निभा सकती हैं और पुराने दोस्तों के साथ अपने रिश्ते को मजबूत बना सकती हैं.

पतिपत्नी दोनों के दोस्त एक परिवार की तरह रहें

शादी के बाद अपने पुराने दोस्तों से मिलते समय, उन के साथ किसी भी तरह का गेट टू गेदर करते समय अपने लाइफ पार्टनर को भी साथ ले जाएं. जब भी मिलें दोनों के दोस्तों को इन्वाइट करें. उन से मिलवाएं. दोनों के दोस्त एक परिवार की तरह रहें. इस से दोनों को एकदूसरे के दोस्त से मिलने उन के साथ दोस्ती बढ़ाने में कोई आपत्ति नहीं होगी. साथ ही सब से जरूरी बात पतिपत्नी के बीच एकदूसरे के प्रति भरोसा बढ़ेगा दोनों के दोस्त एकदूसरे की कंपनी एन्जोय करेंगे.

पुराने दोस्तों से जुड़ाव बनाए रखें

शादी के बाद एक नए परिवेश में खुद को ढालने की व्यस्तता के कारण कई बार महिलाएं अपने पुराने दोस्तों से मेलजोल के लिए समय नहीं निकाल पाती हैं. ऐसे में अपने नए परिवार को समय देने के साथसाथ आप खुद को भी प्रायोरिटी दें और अपनी पुरानी सहेलियों से भी मिलती रहें. यकीन मानिए, इस से आप की पुरानी दोस्ती में जान आ जाएगी. आप शौपिंग के बहाने उन से मिल सकती हैं या फेस्टिवल के मौके पर उन्हें अपने घर पर इन्वाइट कर सकती हैं. आप अगर उन से मिल नहीं पा रही हैं तो कम से कम फोन पर या मैसेज पर आपस में बातचीत करती रहें.

पार्टनर को अपने दोस्तों की अहमियत बताएं

शादी के बाद कई बार महिलाएं पति को अपनी सहेलियों के बारे में नहीं बतातीं या उन्हें इस बात का एहसास नहीं करातीं कि आप के लिए सहेलियां भी आप के लिए खास हैं ऐसे में पतिपत्नी के दोस्तों के बारे में जान नहीं पाते और पत्नी के लिए उस के दोस्त क्या अहमियत रखते हैं, यह नहीं समझ पाते इसलिए महिलाएं शादी के बाद भी अपने पति से अपने दोस्तों के बारे में बात करती रहें. इस से पतिपत्नी के बीच दोनों के दोस्तों को ले कर जो असुरक्षा की भावना होगी, वह भी दूर हो जाएगी और आप दोनों चाहें तो दोनों एक दोस्तों के साथ कभी कोई ट्रिप भी साथ में प्लान कर सकते हैं.Community-verified icon

धार्मिक पाखंडों और कर्मकांडों में उलझे, कट्टर हो कर पिछड़ रहे कायस्थ

हिंदी भाषी राज्यों के जो तीन प्रमुख शहर सियासी तौर पर कायस्थ बाहुल्य माने जाते हैं उन में प्रयागराज और पटना से भी पहले भोपाल का नाम शुमार किया जाता है. पिछले 15 सालों से कायस्थों की धार्मिक चेतना और पहचान इतने उफान पर हैं कि देखते ही देखते दूसरे छोटेबड़े शहरों की तरह भोपाल में भी उन के आराध्य भगवान चित्रगुप्त के तीन मंदिर बन गए हैं. ये तीनों ही मंदिर टीटी मगर, 1100 क्वार्टर्स और नेवरी स्थित मंदिर हालाँकि बहुत छोटे हैं लेकिन उन में तबियत से पूजापाठ यज्ञहवन सहित दूसरे कर्मकांड भी होते हैं.

बीती 10 अगस्त को भोपाल के कायस्थों का उत्साह देखते ही बनता था क्योंकि इस दिन उन के पहले महामंडलेश्वर चित्रगुप्त पीठ वृन्दावन के संजीव सक्सेना उर्फ़ श्रीश्री 1008 सच्चिदानंद पशुपतिजी अपने लाव लश्कर सहित पधार रहे थे. मौका था उक्त चित्रगुप्त पीठ के गर्भ गृह में स्थापित होने वाली शिला चरण पादुका एवं प्रभु का विग्रह पूजन के लिए देश भर में घूम रही दिव्य यात्रा का स्वागत समारोह पूर्वक करने का. इस बाबत कोई डेढ़ दर्जन छोटेबड़े कायस्थ संगठनों ने इस यात्रा के स्वागत की अपील इन शब्दों के साथ की थी कि आइए हम सभी इस दिव्य यात्रा के सहभागी बन कर इस स्वर्णिम पल के साक्षी बनें.

बढ़चढ़ कर भोपाली कायस्थ इस यात्रा के सहभागी और साक्षी बने. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस से उन की समस्याएं हल हो जाएंगी जिन का रोना वे रोते रहते हैं. उन की संतानों को रोजगार मिलने लगेगा और खासतौर से लड़कियों की शादी वक्त पर होने लगेगी और दहेज प्रथा भी खत्म हो जाएगी. उम्मीद यह भी की जानी चाहिए कि भगवान चित्रगुप्त प्रसन्न हो कर उन्हें वह सम्मान, वैभव और संपन्नता प्रदान करेंगे जिन के किस्सेकहानी वे बड़ी कसक और चाव से सुनाते हैं कि हमारे पूर्वज राजा और जमींदार हुआ करते थे.

कायस्थों का पूजापाठी, कर्मकांडी और अंधविश्वासी होना कभी किसी सबूत का मोहताज नहीं रहा जिस का उन के तथाकथित वैभवशाली अतीत से गहरा ताल्लुक है. हर कोई मानता है कि एक दौर में कायस्थ सब से शिक्षित, बुद्धिजीवी और सत्ता की दिशा तय करने वाली जाति हुआ करती थी. मुगलों और अंगरेजों के शासन काल में हुकुमत के सब से ज्यादा नजदीक यही जाति हुआ करती थी. इस की वजह थी कायस्थों की लिखनेपढ़ने की आदत जिस के चलते समाज तो उन्हें सम्मान से देखता ही था साथ ही शासक भी आदर देते थे. मुगल काल में कायस्थों ने उर्दू और अरबी भाषाएं सीखी और मुगल शासकों के चेहते बन गए. अकबर के दरबार में जो नव रत्न थे उन में से एक कायस्थ टोडरमल भी थे उन्होंने ही मुगलों की राजस्व प्रणाली का खाका तैयार किया था. इस के बाद से बहादुरशाह जफर की हुकुमत तक कायस्थ मुग़ल शासन में अहम पदों पर रहे.

जब अंगरेज आए तो कायस्थों ने झटपट अंगरेजी सीख ली और प्रशासन का हिस्सा बन गए. राजस्व और शिक्षा के कामों में कायस्थ हमेशा आगे रहते थे इसलिए अंगरेज भी उन पर मेहरबान रहते थे. कायस्थों को राय की उपाधि उन्होंने दी और कई जगह जागीरदार, मालगुजार और जमींदार नियुक्त कर दिया.

पश्चिम बंगाल के कायस्थ खुद को भद्रलोक मानते थे. यह शब्द कुलीन और सम्मानित लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता था तब अधिकतर जमीनों के मालिक कायस्थ ही हुआ करते थे. बंगाल के मुसलिम शासकों के वजीर और राजकोषीय अधिकारी भी कायस्थ ही नियुक्त किए जाते थे.

मशहूर इतिहासकार अबू फजल के मुताबिक बंगाल में अधिकतर हिंदू जमींदार और जागीरदार कायस्थ ही थे. बंगला साहित्य को पढ़ने बाले बेहतर बता सकते हैं कि तत्कालीन कायस्थ कितने माहिर लेखक हुआ करते थे लेकिन लेखन के साथसाथ बंगाली कायस्थों ने अंगरेजों के व्यापार में भी हाथ बंटाया. 1911 में बंगाल में भारतीयों के मालिकाना हक बाली सभी मिलों कारखानों और खदानों में कायस्थों और ब्राह्मणों को कोई 40 फीसदी मालिकाना हक मिला था.

ब्रिटिश काल कायस्थों का स्वर्णिम युग था क्योंकि उन्हें रसूखदार और जिम्मेदार पदों पर नियुक्तियां मिलती थीं. सार्वजानिक प्रशासन के अलावा कायस्थों को अदालतों में भी जज और बेरिस्टर के पद मिलते थे. निचले स्तर पर शिक्षक, वैद्ध और पटवारी व तहसीलदार ज्यादातर कायस्थ ही हुआ करते थे. ऐसा इसलिए कि कायस्थ वफादार माने जाते थे लेकिन उन की निम्न वर्गों में भी पूछपरख रहती थी. क्योंकि वे ब्राह्मणों की तरह जाति को ले कर किसी पूर्वाग्रह का शिकार नहीं थे जो ब्राह्मण कायस्थ वर्चस्व की लड़ाई की वजह भी जब तब बन जाया करता था.

स्वामी विवेकानंद ने वर्ण व्यवस्था की आलोचना करते ब्राह्मणों के वर्चस्व और दुकान को चुनौती यह कहते दी थी कि मनुष्य की जाति का निर्धारण जन्म से नहीं होना चाहिए. हकीकत में विवेकानंद जातिगत छुआछुत के विरोधी थे. वे इसे दयनीय सामाजिक प्रथा करार देते थे. हिंदू धर्म का दुनिया भर में प्रचार करने वाले इस महापुरुष, जो समाज सुधारक ज्यादा था, को वो सम्मान नहीं मिला जिस के वे हकदार थे तो इस के पीछे ब्राह्मणों का गुस्सा एक बड़ी वजह थी.

कायस्थ और ब्राह्मण दोनों मुख्यधारा की जातियां रही हैं. लेकिन कायस्थों का जोर समाज सुधार पर ज्यादा रहा. यह काम कुछ धार्मिक सिद्धांतों जो मूलत पाखंड थे को नकार कर ही किया जा सकता था. यह बात ब्राह्मणों को न पहले रास आता थी न आज आती है. ब्राह्मणत्व को एक बड़ा झटका एक और सुधारवादी कायस्थ राजा राममोहन राय ने भी दिया था. उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा, जातिवाद कर्मकांड और पर्दा प्रथा का विरोध अभियान पूर्वक करते ब्राह्मणों के दबदबे को दरका दिया था.

राममोहन पेशे से पत्रकार और लेखक थे जिन्होंने अंगरेजों के अत्याचारों का भी उतना ही विरोध किया था जितना कि ब्राह्मणवाद का किया था. 1828 में उन्होंने अपनी मिशन को अंजाम देने ब्रह्म या ब्रहमो समाज की स्थापना की थी. इस के बाद से उन्हें भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत का जनक कहा जाने लगा था. कुरीतियों के घोर विरोधी होने के अलावा राममोहन राय स्त्री शिक्षा के भी हिमायती थे.

उन की लोकप्रियता के चलते ब्राह्मण उन का विरोध नहीं कर पाए तो उन्होंने उन्हें ब्रह्म समाज की स्थापना करने का हवाला देते ब्राह्मण प्रचारित करना शुरू कर दिया. ठीक वैसे ही जैसे बुद्ध को अवतार घोषित कर दिया था. अभी भी अधिकतर लोग राजा राममोहन राय को ब्राह्मण ही समझते हैं लेकिन हकीकत में उन का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के एक कायस्थ परिवार में हुआ था.

आजादी के कोई 20 साल बाद तक भी कायस्थों का जलवा और रुतबा कायम रहा. कायस्थ 70 के दशक तक हर क्षेत्र में आगे रहे. राजनीति में डाक्टर राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बनाए गए फिर पंडित नेहरु के बाद लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने. जयप्रकाश नारायण के आंदोलन ने कैसे इंदिरा गांधी की बादशाहत को चुनौती दी थी यह कोई भी कायस्थ बड़े फख्र से गिना देगा. वह इस कड़ी में सुभाष चंद्र बोस का भी नाम लेगा कि उन्होंने आजादी की लड़ाई में कितना अहम और हाहाकारी रोल निभाया था.

साहित्य की बात करें तो मुंशी प्रेमचंद सहित महादेवी वर्मा, फिराक गोरखपुरी और हरिवंश राय बच्चन के नाम इतिहास में दर्ज हैं ही. फिल्म इंडस्ट्री में गायक मुकेश और अमिताभ बच्चन जैसे बड़े और भी वजनदार नाम हैं. क्रांतिकारियों में गणेश शंकर विद्यार्थी और खुदीराम बोस के नाम हैं. यह सीरिज पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु से होते शत्रुधन सिन्हा पर खत्म होती है. और भी कई उल्लेखनीय नाम हैं जिन पर कायस्थ गर्व करते हैं.

पर आज का कायस्थ किसी नाम या बात पर गर्व करने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि उस ने लिखनापढ़ना बंद सा कर दिया है. 70 के दशक से पिछड़ी जाति वालों ने जो पढ़ना लिखना चालू किया तो यह बात मुहावरा बन कर रह गई कि कायस्थ ही शिक्षित होते हैं और सरकारी नौकरियों में बड़ी तादाद में हैं. पिछड़ों के शिक्षित होने को कायस्थों ने चुनौती और प्रतिस्पर्धा की रूप में नहीं लिया. क्योंकि तब वे आर्थिक रूप से सम्पन्न थे. मुगलों और अंगरेजों नें उन्हें सेवाओं के बदले जो जमीने दी थीं वे उन की आमदनी का एक बड़ा जरिया थीं.

पिछड़ों के बाद दलित, आदिवासी भी पढ़लिख कर सरकारी नौकरियों में आने लगे तो कायस्थों का एकाधिकार खत्म होने लगा. लेकिन इस की वजह उन्होंने सिर्फ जातिगत आरक्षण को माना और उसे दोष भी दिया पर यह नहीं समझ पाए कि दरअसल में विरासत में मिली बुद्धि अब टाटा बायबाय कर रही है जो आई तो शिक्षा से ही थी. चूंकि अब यह सब के पास हो चली थी इसलिए कायस्थ पिछड़ने लगे. अपनी बदहाली के बाबत वे भाग्य को कोसने लगे और उस से बचने मंदिरों में घंटे घड़ियाल बजाने सुबहशाम जाने लगे. तबियत से दानपुण्य करने लगे जो उन की पिछली पीढ़ी से कहीं ज्यादा और हैसियत के बाहर था.

सीधेसीधे कहें तो धार्मिक कर्मकांडों ने भाग्यवादी होते जा रहे कायस्थों को पिछड़ों की जमात में ला खड़ा कर दिया. 70 – 80 के दशक में पिछड़े जब पढ़ रहे थे तब कायस्थ तेजी से पूजापाठ कर रहे थे. इस के पहले भी वे धर्म के बड़े ग्राहक थे लेकिन तब उन्हें चुनौती देने वाला सिवाय ब्राह्मणों के कोई और नहीं था.

क्षत्रिय ज्यादातर जमींदार थे इसलिए पढ़ाईलिखाई में उन की दिलचस्पी कम थी. वैश्य बनिए इतना ही पढ़ते थे कि बहीखाता भरना और हिसाबकिताब सीख जाएं और अपने पुश्तैनी कारोबार संभालें. अच्छी बात यह है कि अब सभी बराबरी से पढ़ रहे हैं और अफसोस की बात यह है कि किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की मेरिट लिस्ट में कायस्थ युवा अब अपवाद स्वरूप ही नजर आते हैं.

अतीत की इन बातों और समीकरणों का वर्तमान से गहरा संबंध है कि अपनी बदहाली से कायस्थों ने कोई सबक लेते सुधरने की कोशिश नहीं की है. भोपाल की यात्रा देख तो लगता है कि अभी हालात और बिगड़ेंगे. अब कायस्थ चित्रगुप्त पीठ में भी दानदक्षिणा देंगे क्योंकि महामंडलेश्वर उन्हें बता रहे हैं कि हम महान थे और आज की महानता यह है कि अपने आराध्य चित्रगुप्त की भी पीठ हो जो दुनिया के पहले न्यायाधीश थे 15 एकड़ रकबे में बन रही भव्य चित्रगुप्त पीठ के लिए चंदा भी मांग रहे हैं.

कायस्थों का पौराणिक कनैक्शन भी कम दिलचस्प नहीं है. ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, छाती से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पांवों से शूद्र पैदा हुए लेकिन कायस्थ को ब्रह्मा ने अपनी काया यानी शरीर की अस्थियों से बनाया इसलिए वह कायस्थ कहलाया. चित्रगुप्त से कायस्थों की 12 जातियां हुईं जो अलगअलग सरनेमों से पूरे देश भर में फैली हुई हैं. इन में से ज्यादा प्रचिलित और जानीपहचानी हैं- श्रीवास्तव, सक्सेना, सिन्हा, माथुर, खरे, भटनागर, गौड़ और कुलश्रेष्ठ वगैरह.

10 अगस्त को भोपाल के कायस्थ पूजापाठ करते इस बात पर गर्व कर रहे थे कि हमारे चित्रगुप्त भगवान सभी के पापपुण्यों का लेखाजोखा रखते हैं और उन्ही के मुताबिक सजा और इनाम देते हैं. इस नाते ब्राह्मणों को दंड देने का अधिकार दुनिया में अगर किसी के पास है तो वह कायस्थ ही हैं. उलट इस के हाल तो यह है कि कायस्थ ब्राह्मणों के इशारे पर नाचतेगाते हैं उन के पांवों में लोट लगाते हैं. दिल खोल कर मंदिरों में पैसा चढ़ाते हैं और कर्मकांडों पर भी इफरात से पैसा फूंकते हैं. अब उन्हें यह बताने वाला कोई नहीं कि इसी दरियादिली और दिखावे जो शुद्ध मूर्खता है ने उन्हें हर लिहाज से कंगाल सा कर दिया है. अब उन के पास इतना ही है कि इज्जत से वे खा पी पा रहे हैं. पंडेपुजारियों, मंदिरोंम, पाखंडों और कर्मकांडों ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा है.

अब बचा खुचा लूटने उन की ही जाति के महामंडलेश्वर शो रूम बना रहे हैं और उस की मार्केटिंग भी घूमघूम कर रहे हैं. कायस्थों के पहले महामंडलेश्वर स्वयं भू नहीं हैं बल्कि उन्हें इस की मान्यता ब्राह्मणों ने दी है क्योंकि यह हक उन्हों के पास है. ब्राह्मण तो अब दलितों, औरतों और किन्नरों तक को महामंडलेश्वर का दर्जा फ्रेंचायजी की तरह देने लगे हैं कि जाओ जी भर के अपनी जाति वालों की जेबे ढीली करो, पापपुण्य, मोक्षमुक्ति के नाम पर उन्हें लूटो और महामंडलेश्वर की पदवी देने की वाजिब कीमत हमें चुकाते रहो.

इस से भी बड़ी दिक्कत और चिंता की बात कायस्थों का दूसरी सवर्ण जातियों की तरह हिंदुत्व के प्रति कट्टर होते जाना है. आमतौर पर पहले कायस्थ मुसलमानों और दलितों से इतनी नफरत नहीं करते थे जितनी मोदी राज के शुरू होने के बाद करने लगे हैं. वे यह मानने लगे हैं कि भाजपा और नरेंद्र मोदी ही हमें मुसलमानों के कहर ( काल्पनिक और थोपा गया ) से बचा सकते हैं. पहले कायस्थ वोट कांग्रेस और भाजपा में बंट जाया करता था क्योंकि तब वह वोट अपनी अक्ल का इस्तेमाल करते डालता था लेकिन अब हिंदुत्व के ठेकेदारों के इशारे पर डालते भाजपा का कोर वोट बैंक बन चुका है.

लोकसभा चुनाव में यह बहस और मानसिकता सतह पर आई थी और जानकर बहसबाजी भी हुई थी. कांग्रेस ने भोपाल लोकसभा सीट से एक कायस्थ अरुण श्रीवास्तव को टिकट दिया था जबकि भाजपा ने ब्राह्मण समुदाय के आलोक शर्मा को मैदान में उतारा था. तब उम्मीद की जा रही थी कि अगर ढाई लाख कायस्थ वोट कांग्रेस को मिल जाएं तो वे जीत भी सकते हैं क्योंकि मुसलमानों के साढ़े 5 लाख वोट एकमुश्त कांग्रेस को मिलना तय था.

लंबी बहस कायस्थ समुदाय में इस बात पर हुई थी कि धर्म बड़ा या जाति. आखिरकार धर्म जीत गया और अरुण श्रीवास्तव से गई गुजरी इमेज वाले आलोक शर्मा लगभग 5 लाख मतों से जीत गए. दिलचस्प बात यह भी है कि तब भी अधिकतर कायस्थों ने अपनी राजनीतिक उपेक्षा का रोना रोया था. लेकिन वोट हिंदूमुसलिम के चलते भाजपा को ही दिया. जाति के नाम पर वोट न देने का फैसला अच्छा था लेकिन धर्म और कट्टरवाद के नाम पर ही वोट देने का फैसला उस से कहीं ज्यादा बुरा था जिस से बुद्धिजीवी होने का तमगा गले में लटकाए इतराते रहने वाले कायस्थों की कमअक्ली और बौद्धिक दरिद्रता ही उजागर हुई थी.

देश में चित्रगुप्त के मन्दिरों की कमी नहीं है. मध्य प्रदेश के खजुराहो में सब से पुराना स्थापत्य शैली में बना चित्रगुप्त मंदिर है. पूर्वी उत्तर प्रदेश जो कायस्थों का गढ़ रहा है, वहां चित्रगुप्त मंदिरों की खासी तादाद है. 60 के दशक तक इन मंदिरों में पूजापाठ न के बराबर होता था यानी कायस्थों की प्राथमिकता शिक्षा और कैरियर होती थी. चित्रगुप्त के बड़े मंदिरों में से एक गोरखपुर में भी है जिसे बनाने का श्रेय गोरक्ष पीठ के मुखिया महंत अवैधनाथ को जाता है जो योगी आदित्यनाथ के गुरु थे.

80 तक हर जगह कायस्थ डाक्टर, वकील, जज और प्रशासनिक अधिकारी बड़ी संख्या में दिख जाते थे लेकिन अब इन की तादाद बहुत घट गई है. और भी घटेगी क्योंकि कायस्थों का ध्यान चित्रगुप्त मंदिरों में ज्यादा है. और इतना है कि जिले स्तर पर भी चित्रगुप्त मंदिर बनने लगे हैं. जहां दूज और तीज पर भजनपूजन और भंडारे होते हैं.

अब यह बौद्धिक दरिद्रता चित्रगुप्त पीठ के नाम पर केवल भोपाल से ही नहीं बल्कि देश भर से सामने आ रही है तो इसे कायस्थों के पिछड़े और कट्टर होने का सबूत ही कहा जा सकता है. पहले वे शिक्षित होने के साथ साथ संपन्न भी थे लेकिन अब सम्पन्नता धर्म और कट्टर होती मानसिकता ने छीन ली है जमीने तो पहले ही इसी के चलते ठिकाने लग चुकी हैं. ऐसे में उन्हें व्यर्थ का दंभ सुनहरे अतीत का भरने का छोड़ देना चाहिए जिस की वजह पूजापाठी होते हुए भी धार्मिक और जातिगत उदारता थी, समाज सुधार का जज्बा था, अंधविश्वासों से लड़ने की हिम्मत थी.

टीनएजर्स अपनी चिड़चिड़ाहट को कैसे काबू करें

आकाश हमेशा से छोटा होने के कारण सब का लाडला रहा उस की हर बात मानी जाती थी, उसे कभी भी किसी बात के लिए मना नहीं किया गया. जो लोग बचपन से लाड़ले रहे हैं. जिन की बात हर समय मानी गई है. उन्हें न सुनने की आदत नहीं होती है साथ ही कोई दूसरा उन्हें अगर सही बात भी बताएं, तो भी उन्हें बुरा ही लगता है क्योंकि उन्हें लगता है कि सामने वाला बेकार का ज्ञान दे रहा है. क्यूंकि उन्हें किसी की कोई भी बात सुनने की आदत नहीं होती है.

जिस का नतीजा होता है कि ये जो चिड़चिड़ाहट है ये जिंदगी भर पीछा नहीं छोड़ती. यह चिड़चिड़ाहट हमारे डीएनए में घुस जाती है, आदत में आ जाती है. धीरेधीरे आप के फ्रैंड के साथ भी, घर में भी, आप कल को शादी करोगे तब भी, नौकरी करने जाओगे तब भी हर जगह आप का पीछा नहीं छोड़ेगी. नतीजन आप कभी अपने भाई बहनों पर झल्लाओगे. कभी दोस्तों पर. यहां तक कि टीचर से भी बहस कर जाओगे. जौब करोगे तो सिर्फ कुलीग्स ही नहीं कभी आप बौस पर भी झल्लाओगे जिस का असर नौकरी पर भी पड़ेगा.

इस चिड़चिड़ाहट का कारण आप की बचपन की देन है और अगर आपने इस को कायम रखा तो आप को 5 साल बाद भी 10 साल बाद भी 20 साल बाद भी ये खाने को आएगी. इसलिए अच्छा है कि आप इसे काबू करने की कोशिश अभी से करें. हम इस में आप की मदद करेंगे और कुछ बातें ऐसे हैं जिन्हें अपना कर या उन का ध्यान रख कर आप अपनी चिड़चिड़ाहट को कुछ कम कर सकते हैं.

अपने चिड़चिड़ेपन की वजह जाने

सब से पहले यह पता करें कि वे कौनकौन सी बातें है जिन को देख कर या कर के आप को गुस्सा आता है. जैसे कि अगर कोई आप से तेज आवाज में बोले, या आप की बात काटे तो आप को गुस्सा आता है. ऐसे में सामने वाले पर नाराज न हों बल्कि उन्हें शांति के साथ समझाएं की आप का ऐसा व्यवहार मुझे तकलीफ देता है.

अपने व्यवहार में बदलाव लाएं

गुस्सा आने पर पहले 10-1 तक उलटी गिनती गिनें और फिर गुस्सा आने पर रिएक्ट करें. तुरंत रिएक्शन से बेहतर 10-1 तक गिनती करना है. इस के अलावा बहुत तेज़ गुस्सा या चिड़चिड़ाहट होने पर आप अपनी इंडेक्स फिंगर को तेजी से दबाएं और कोशिश करें कि आप का ध्यान उस की तरफ जाए.

अपनी बात को चिड़चिड़ाहट के साथ नहीं बल्कि तर्क के साथ कहें

अब इस में डिग्रीस का फर्क होगा कोई ज्यादा चिड़चिड़ाता है कोई कम चिड़चिड़ाता है. चिड़चिड़ाहट न हो इस का ये मतलब नहीं के आप सरेंडर करो. अगर आप की बात सही है, तार्किक है तो उस पर अड़े पर चिड़चिड़ा के साथ नहीं बल्कि अपनी बात दूसरों को समझाएं. लौजिक के साथ अपनी बात रखेंगे तो सामने वाले को आप की बात समझ आएगी.

व्हाट्सऐप मैसेज टू माइसेल्फ करें

चिड़चिड़ाहट के बाद अपनी बातों को एक डायरी में या व्हाट्सऐप में नोट करो कि मैं कब और क्यों किस बात से चिड़ा. ऐसे क्या बात थी जिस वजह से मुझे गुस्सा आया. अगर डायरी रखना मुश्किल है तो व्हाट्सऐप का एक फीचर है मैसेज टू माइसेल्फ. इस के किसी के देखने के भी चांस नहीं है और जब आप चाहो तब इसी देख सकते हो. जैसे आपने इसे महीने पहले देखा और फिर उस में कुछ ऐड किया और फिर कौपी पेस्ट किया. इस तरह आप के पास एक लम्बी लिस्ट बन जाएंगे की आप किन बातों पर चिड़चिड़ाते हो और वो जैसेजैसे काम होते जाएं आप खुश होते जाएं.

कुछ पल अपने साथ बिताएं और अपने बारे में सोचें

अपने साथ समय बिताने का भी एक मकसद है ताकि आप खुद से खुद को मिलवा सकें और जाने के आप किन बातों से चिढ़ते हैं और फिर कैसे आप की चिड़चिड़ाहट कम होती है.

जो कर रहें है उस बारें विचारें

कई बार चिड़चिड़ाहट की वजह यह भी होती है कि हम करना कुछ ओर चाहते हैं और कर कुछ ओर ही रहे होते हैं. अगर ऐसी बात है तो तुरंत खुद को समय दें और वही करें जो आप करना चाहते हैं. अपनी पसंद का काम करें चाहे कुछ खेलना हो या फिर कोई मूवी देखनी हो अपनी पसंद की देखें.

चिड़चिड़ाहट कम होगी तो दोस्त भी बनेंगे

जितनी चिचिड़ाहट कम होगी उतने ही ज्यादा आप के दोस्त बनेंगे. इसलिए अपनी कुछ आदतों पर धयान दें और उन्हें बदलने की कोशिश करें जैसे क्या आप भी जल्दी परेशान हो जाते हैं, बिना वजह आक्रामक हो जाते हैं, छोटीछोटी बातों का बुरा मानना आप की आदत है, जल्दी गुस्सा आना किसी की बात न सुनना, खुद को ही सही ठहराने की जिद करने लगते हैं. ये सभी बातें आप में पाई जाती हैं तो अपनी इन आदतों को धीरेधीरे छोड़ दें.

इन पर भी धयान दें

– सब से पहले अपनी चिड़चिड़ाहट के कारण को पता लगाने की कोशिश करें कि आप को किस चीज से चिड़चिड़ापन हो रहा है. अगर आप को वजह पता चलेगी तो आप को इसे दूर करने में मदद मिलेगी.

– किसी भी तरह के नशे से दूर रहें. अपनी दिनचर्या से शराब और कैफीन की मात्रा को सीमित करें. इस से दिमाग में एक तरह का तनाव पैदा होता है.

– कुछ समय के लिए एकदम शांत और अकेले रहें. इस से आप अपनी मनोवैज्ञानिक समस्याओं को आसानी से समझ पाएंगे.

– अपने नजरिए को एकदम क्लियर कर के विकसित करें, साथ ही यह जाने कि आप भविष्य में क्या करना चाहते हैं. आप की योजनाएं पूरी तरह से स्पष्ट होने चाहिए.

– दोस्तों के साथ बातें करना और अपने आस पड़ोस के साथ मेल मिलाप बढ़ाएं. इस से आप के दिमाग में नईनई योजनाओं का आगमन होगा.

– अपने को पूरी तरह से फिट रखें इस के लिए सिर्फ शरीर ही नहीं बल्कि मन को भी फिट रखें जैसे कि अपने आसपास नकारात्मक बातों और नकारात्मक ऊर्जा को न आने दें. सकारात्मक सोच से आप इस समस्या को दूर कर सकते हैं.

बंगलादेश : यूथ पावर ने पलटी तानाशाही

बंगलादेश में शेख हसीना के तख्तापलट के बाद सेना प्रमुख वकार-उज-जमां ने सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ले कर प्रधानमंत्री को बस 45 मिनट का वक़्त दिया कि वे अपना इस्तीफा दें और अपनी जान बचा कर बंगलादेश से निकल जाएं. किसी ने कल्पना भी न की होगी कि 15 साल से सत्ता संभाल रहीं प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस तरह अपना देश छोड़ कर भागना पड़ेगा. मात्र एक सूटकेस, जिस में चंद कपड़े और कुछ जरूरी सामान था, के साथ जब शेख हसीना भारत में गाजियाबाद के हिंडन एयरपोर्ट पर उतरीं तो उन के चेहरे पर गहरी मायूसी थी.

बंगलादेश की स्थितियां काफी भयावह हैं. छात्रों के एक गुट ने आरक्षण के मुद्दे पर देश की सरकार उलट दी और प्रधानमंत्री को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. हालांकि यह बात सुनने में हास्यास्पद लगती है क्योंकि तख्तापलट की तैयारी एक रात में नहीं हो सकती. तख्तापलट की घटना को भले छात्रों द्वारा अंजाम दिया गया हो मगर हसीना को सत्ताच्युत करने की रणनीति तैयार करने के पीछे बंगलादेश नैशनलिस्ट पार्टी के नेताओं और अमेरिका व पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों का हाथ माना जा रहा है. जिन्होंने छात्र विद्रोह की आड़ में अपना रास्ता साफ किया.

कुछ खोजी अखबारों का कहना है कि इस भयंकर विद्रोह की पूरी साजिश लंदन में रची गई, जहां बंगलादेश नैशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की कार्यवाहक प्रमुख खालिदा जिया के बेटे रहमान की सांठगांठ के सुबूत मिले हैं. गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को हसीना सरकार ने पिछले 15 सालों से जेल में बंद कर रखा था. हसीना सरकार के तख्तापलट के तुरंत बाद ही खालिदा जिया को जेल से आजाद कर दिया गया.

बंगलादेश में जनवरी 2024 में हुए चुनाव के बाद से ही माहौल बिगड़ने लगा था. वहां हिंसा की घटनाएं बढ़ गई थीं. अल्पसंख्यकों की दुकानों और हिंदू मंदिरों पर लगातार हमले हो रहे हैं. जिन को रोक पाने में हसीना सरकार कामयाब नहीं हो पा रही थी. देश में महंगाई आसमान छू रही थी. आधा पेट खाने वाले लोग रोजगार के लिए तरस रहे थे, मगर हसीना का उन की तरफ कोई ध्यान नहीं था.

उधर चीन, अमेरिका और पाकिस्तान अपनेअपने स्वार्थ के चलते हसीना सरकार को सत्ता से बेदखल करने की साजिश रच रहे थे. इसी बीच जून में एक हाईकोर्ट ने 2018 में रद्द किए गए विवादास्पद कोटा सिस्टम को फिर से बहाल कर दिया. इस सिस्टम के तहत देश की कुल 56 फीसदी सरकारी नौकरियां आरक्षित थीं, जिन में 30 फीसदी आरक्षण 1971 के मुक्ति योद्धाओं के वंशजों को मिलना था. यह अदालत का फैसला था, जिस से सरकार हाथ खींच सकती थी. लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया. जब ढाका विश्वविद्यालय से इस का विरोध शुरू हुआ तो शेख हसीना ने आंदोलन करने वाले छात्रों को रजाकार (बंगलादेश के स्वाधीनता संघर्ष में पाकिस्तान का साथ देने वाले) और आतंकवादी घोषित कर दिया. इस से छात्र भड़क उठे.

16 जुलाई को उन का विरोध प्रदर्शन बहुत हिंसक हो गया. जगहजगह सुरक्षा अधिकारियों के साथ छात्रों की झड़पें हुईं. इंटरनैट बंद कर दिया गया जो 10 दिनों तक बंद रहा. विरोध तेज हुआ और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए आरक्षण को 7 फीसदी पर ला दिया, लेकिन तब तक बात इतनी बिगड़ चुकी थी कि मामला सरकार से माफी की मांग पर आ गया.

5 अगस्त को सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों ने शेख हसीना के इस्तीफे की मांग करते हुए ढाका तक मार्च का ऐलान किया. लाखों की संख्या में लोग हाथों में डंडे और अन्य हथियार उठाए प्रधानमंत्री आवास की ओर चल पड़े. इसे देख कर सेना प्रमुख ने प्रधानमंत्री को अल्टीमेटम जारी किया कि वे 45 मिनट में इस्तीफा दे दें और बंगलादेश छोड़ दें.

शेख हसीना को अपनी जान बचाने के लिए देश छोड़ कर भागना पड़ा. अमेरिका और ब्रिटेन सहित तमाम पश्चिमी देशों ने एक चुनी हुई प्रधानमंत्री के तख्तापलट का स्वागत किया. साफ था कि हसीना के तख्तापलट की स्क्रिप्ट कहीं और लिखी गई थी. ढाका यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले 3 छात्र नाहिद इस्लाम, आसिफ महमूद और अबूबकर मजूमदार जिन का नाम पूरे वाकए को अंजाम देने के पीछे लिया जा रहा है, वे तो दरअसल मोहरा भर थे.

बताते चलें कि नाहिद इस्लाम ढाका यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र का छात्र है. यह उस आंदोलन का नेतृत्व करता है जिस का नाम स्टूडैंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन मूवमैंट (एसएडीएम) है. नाहिद इस्लाम के सहयोगी आसिफ मेहमूद ढाका यूनिवर्सिटी में भाषाशास्त्र के छात्र हैं. वहीं अबू बकर मजूमदार भी ढाका यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा है और वह भूगोल का छात्र है. एसएडीएम के बैनर तले ये छात्र सरकार से यह मांग कर रहे थे कि बंगलादेश में उस कोटा सिस्टम में बदलाव किया जाए जिस के तहत 30 फीसदी आरक्षण बंगलादेश मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले लोगों के परिजनों को मिलता है. बंगलादेश में कुल 56 फीसदी आरक्षण फर्स्ट और सैकंड क्लास नौकरियों में मिलता है. इस व्यवस्था को भेदभाव वाला और राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल होने वाला बताया जाता है.

बंगलादेश मीडिया के मुताबिक, आंदोलन का नेतृत्व करने वाले छात्र नाहिद इस्लाम के साथ उस के दोनों दोस्तों को 19 जुलाई को हसीना सरकार की पुलिस द्वारा अगवा कर लिया गया था. इस के बाद उन से कड़ी पूछताछ की गई और बुरी तरह प्रताड़ित किया गया. 26 जुलाई को इन तीनों को घायल अवस्था में छोड़ दिया गया. इस के बाद इन तीनों ने आंदोलन की आग को भड़काया और अगले 10 दिनों में ही हसीना का तख्ता उलट गया.

शेख हसीना को एक श्वेत व्यक्ति द्वारा बंगलादेश में अमेरिकी बेस बनाने देने की धमकी से ले कर देश में फैली हिंसा और उपद्रव की घटनाओं से यह स्पष्ट है कि अमेरिका और उस के सहयोगी बंगलादेश में जो बदलाव चाहते थे, वो उन्होंने कर दिया. बंगलादेश से पहले इसी तरह की परिस्थितियों में श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, वेनेजुएला, निकारागुआ, ईस्ट तिमोर, सहित तमाम देशों में तख्तापलट हुआ है जिस के बाद वहां पश्चिमी देशों के इशारों पर चलने वाली कठपुतली सरकारें काम कर रही हैं.

बंगलादेश में तख्ता पलटने और शेख हसीना के भारत आ जाने से भारत की चिंताएं और चुनौतियां बढ़ गई हैं. शेख हसीना को शरण देने से अमेरिका, पाकिस्तान और चीन तीनों की ही भृकुटि तनी हुई हैं. वहीं नई सरकार का रुख भारत के प्रति क्या होगा, यह भी स्पष्ट नहीं है. इस्लामी कट्टरपंथियों के सत्ता में लौटने से भारत की चुनौतियां निश्चित रूप से बढ़ेंगी.

बंगलादेश की नाजुक स्थिति पर पाकिस्तान और चीन दोनों ही मौके का फायदा उठाने की फिराक में हैं. पाकिस्तान जहां 1975 के बंटवारे को ले कर आज तक भारत से खार खाए बैठा है वहीं चीन को उम्मीद थी कि तीस्‍ता डैवलपमैंट प्रोजैक्ट उसे मिल जाएगा. यदि चीन को यह प्रोजैक्ट मिलता तो चीन, भारत की चिकननेक के पास आ जाता. मगर शेख हसीना ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और ऐलान किया कि तीस्ता डैवलपमैंट प्रोजैक्ट भारत को दिया जाएगा, इस से चीन काफी नाराज है.

गौरतलब है कि बंगलादेश का संकट केवल उस का नहीं होता. जबजब वह मुसीबत में घिरा है, तो उस की आंच भारत तक भी आई है. बंगलादेश और भारत के बीच विश्व का 5वा सब से बड़ा बौर्डर है, जो हमारे 5 राज्यों बंगाल, असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा से जुड़ा है. ऐसे में बंगलादेश से अपनी जानमाल की सुरक्षा को ले कर भागे अल्पसंख्यक और हसीना समर्थक भारत में घुसने की कोशिश में हैं जिन्हें सीमा सुरक्षा बलों ने कई जगहों पर रोक रखा है. मगर कब तक?

भारत को अब बंगलादेश में फंसे हजारों भारतीयों की सुरक्षा के साथ इस बात को भी सुनिश्चित करना है कि कोई अनधिकृत रूप से सीमा पार कर भारत में प्रवेश न कर सके. इस पूरे घटनाक्रम से देश के लिए एक अभूतपूर्व असुरक्षित स्थिति पैदा हो गई है. भारत फिर एक बार 1971 वाली स्थिति से रूबरू है. बंगलादेश में रह रहे तमाम अल्पसंख्यक समूह, खासकर बड़ी संख्या में हिंदू, भारत में शरणार्थी के तौर पर आने की गुहार लगा सकते हैं.

इस से यहां चिंताजनक हालात पैदा हो सकते हैं. दूसरा इस घटना के बाद अब हमारी सीमा पर आतंकी गतिविधियां और अवैध तस्करी के खतरे बढ़ेंगे. अगर बंगलादेश की अंतरिम सरकार में कट्टरपंथियों का दबदबा बढ़ता है, जिस की पूरी आशंका है, तो भारत की चुनौतियां और अधिक बढ़ जाएंगी, क्योंकि इन में से कुछ गुटों को पाकिस्तान का समर्थन मिलता रहा है. इस के चलते ये लगातार भारतविरोधी गतिविधियां चलाते रहे हैं. पाकिस्तान आज तक भारत को अपने विभाजन यानी बंगलादेश के निर्माण का कारण मानता रहा है और वह कोशिश करेगा कि बंगलादेश के इसलामिक कट्टरपंथी गुटों के साथ मिल कर भारत के खिलाफ आतंकी और असामाजिक तत्त्वों को सक्रिय किया जाए.

उल्लेखनीय है कि खालिदा जिया की सत्ता के वक्त उग्रवादियों ने बंगलादेश को अपना गढ़ बनाया हुआ था. उल्‍फा उग्रवादी बंगलादेश में बड़ी संख्या में थे और कट्टरवाद बंगलादेश से पनप रहा था. साथ ही, चीन और अमेरिका जैसी बाहरी ताकतें वहां पर काफी मजबूत थीं. ऐसे में अगर जिया की सरकार दोबारा बनती है तो इसलामिक कट्टरवाद बढ़ने के साथ हिंदू आबादी पर हमले बढ़ेंगे, जिस को ले कर भारत धर्मसंकट में है. बंगलादेश के साथ भारत के द्विपक्षीय व्यापार पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा. बंगलादेश में भारत ने काफी धन निवेश किया है, इस का असर तमाम परियोजनाओं पर पड़ सकता है.

भारत की सब से बड़ी चिंता बंगलादेश की राजनीतिक स्थिरता है, अगर इस पड़ोसी देश में राजनीतिक अस्थिरता बनी रहती है तो वहां कट्टरवाद बढ़ेगा और अल्‍पसंख्‍यकों को हिंसा का सामना करना पड़ेगा. वे अपनी जान माल की रक्षा के लिए भारत की तरफ पलायन करेंगे. इस के अलावा अगर भारत के साथ बंगलादेश का व्यापार रुकता है तो वहां पर महंगाई 30 फीसदी तक बढ़ जाएगी. जिस से अराजकता और अपराध में बेतहाशा वृद्धि होगी जिस का असर भारत पर भी पड़ेगा. भारत को इन चुनौतियों से निबटने के लिए बहुआयामी और ठोस रणनीति बनानी होगी.

शेख हसीना फिलहाल भारत में हैं और माना जा रहा है कि वे किसी तीसरे देश में शरण मिलने तक यहीं रहेंगी. यह एक असाधारण स्थिति है, जहां भारत को कुछ कठोर निर्णय लेने पड़ेंगे, जिस में पड़ोसी प्रथम नीति के तहत मदद भी करनी है. एक ओर भारत की सुरक्षा के लिए चौतरफा चुनौतियां बढ़ रही हैं. वहीं दूसरी ओर हमारी विदेश नीति बोगस हो चुकी है. नरेंद्र मोदी के 10 साल के शासनकाल में भारत अपने किसी भी पड़ोसी मुल्क से दोस्ताना संबंध नहीं बना पाया है.

बीते दिनों ही नेपाल में चीन समर्थक सरकार बनी है, जिस का नेतृत्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली कर रहे हैं. ओली को ‘इंडिया आउट’ अभियान का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है और हाल के वर्षों में उन्होंने अपनी राजनीतिक साख मजबूत करने के लिए भारत के साथ सीमा विवाद का मुद्दा शांत नहीं होने दिया है. चूंकि ओली की ‘राष्ट्रवादी छवि’ भारतविरोध से बनी है, लिहाजा भारत के लिए जरूरी है कि वह स्थिति पर नजर रखे.

मोदी सरकार के मुताबिक भारत दुनिया की सब से तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है. लेकिन, बंगलादेश के घटनाक्रम से हमें सबक लेने की जरूरत है. बीते कुछ सालों में भारत में बेरोजगारी अपनी चरम पर पहुंच गई है. बेरोजगार युवाओं को मोदी सरकार ने धर्म के झांसे में फंसा रखा है. वे अभी धर्म का डंका पीट रहे हैं, पुष्पवर्षा के बीच कांवड़ ढो रहे हैं, धार्मिक प्रवचन देने वाले बाबाओं की सेवा में जुटे हैं, डेढ़ जीबी का फ्री डाटा पा कर सोशल मीडिया पर व्यस्त हैं इसलिए उन्हें अभी अपनी बेरोजगारी का एहसास नहीं हो रहा है. परिवार की जिम्मेदारी कंधे पर आते ही उन की आंखें खुलेंगी और सरकार के प्रति उन का गुस्सा फूटेगा, जैसा बंगलादेश में हसीना की सरकार के प्रति लोगों का आक्रोश पैदा हुआ. बंगलादेश में असंतोष के कारणों में ऊंची बेरोजगारी दर का बड़ा हाथ है. धर्म का ढिंढोरा पीट कर युवाओं को भ्रमित करने और समाज में धार्मिक कट्टरता बढ़ाने से बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी समस्याएं नहीं निबटेंगी. इस के लिए ठोस रणनीति बनाने और उस पर काम करने की जरूरत है.

गौरतलब है कि भारत की औसत विकास दर भले 7 फीसदी के आसपास है लेकिन 136 की ग्लोबल रैंकिंग के साथ प्रति व्यक्ति आय के मामले में हम अभी भी गरीब देश हैं. जी20 ही नहीं, ब्रिक्स देशों में भी हम सब से गरीब हैं. यह स्थिति अगर नहीं बदली तो अंजाम अच्छा नहीं होगा. जब भूख काबू से बाहर हो जाए तो इंसान इंसान को मारने लगता है. बंगलादेश से पहले श्रीलंका का भी यही हश्र देखने को मिल चुका है.

जिस असंतोष की कीमत बंगलादेश चुका रहा है वैसा ही असंतोष भारत में भी पैर पसार रहा है. मोदी सरकार को समझना होगा कि लोगों के खिलाफ नियम और कानून बना कर उन पर जबरन थोपने से लोगों का धैर्य टूट जाता है. काले कृषि कानून हो, सीएए या एनआरसी हो, धारा 370 हटाना हो, बुलडोजर चला कर लोगों के घरदुकानें ढहा देना हो, राजनीतिक विरोधियों को जेल में ठूंस देना हो, लोगों की पैंशन बंद कर देना हो, सेना में जवानों को पूरा कार्यकाल न दे कर चारचार साल की संविदा पर रखना हो, धर्म के नाम पर नफरत की खाइयां खोद कर लोगों में भय पैदा करना हो, ऐसे तमाम मुद्दे देश में सुलग रहे हैं जो कभी भी ज्वालामुखी की तरह फट सकते हैं. मौजूदा सरकार को समझना चाहिए कि लोकतंत्र में तानाशाही नहीं चलती. लोकतांत्रिक देशों ने तानाशाह बनने वालों को हमेशा सबक सिखाया है.

लोकतांत्रिक देशों में आजकल चुनाव जीतने के लिए धांधली और साजिशों का सहारा लिया जाने लगा है, लेकिन एक न एक दिन ये तमाम चीजें धरी रह जाती हैं और जनता ताज उछाल कर दम लेती है. पिछले 3 बार से शेख हसीना चुनाव जीतती आ रही थीं, लेकिन इस बार उन्होंने चुनाव के पहले केयरटेकर सरकार की व्यवस्था को धता बता दिया, जो इस से पहले हमेशा चुनाव कराती रही है.

इस बार हसीना की अपनी मरजी से चुनाव हुए. उन्होंने उसे भारी मतों से जीता और सरकार बनाई. इस से वहां की विपक्षी पार्टियों में आक्रोश बढ़ा. जनता भी पसोपेश में रही कि अवामी पार्टी जीत कैसे गई? भारत में भी चुनाव के समय इसी तरह के संकेत मिलते हैं. जब वोटों का भारीभरकम घपला दिखने के बाद भी येनकेनप्रकारेण सरकार बन जाती है तो जनता में रोष पैदा होता है. वह भले उसे प्रकट न करे लेकिन दिल में रखे रहती है. और अगले चुनाव में उस का जवाब देती है.

शेख हसीना के प्रशासन में विपक्षी आवाजों और असहमति को दबाने का आरोप लगता रहा. सत्ता में उन के लंबे शासनकाल में विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला और असहमत लोगों के दमन की घटनाएं बड़े पैमाने पर सामने आईं. उन्होंने विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के साथसाथ विरोध प्रदर्शनों को भी क्रूरतापूर्वक दबाने में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी. हाल के विरोध प्रदर्शनों में भी उन की सरकार की प्रतिक्रिया विशेष रूप से हिंसक रही, जिस में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल प्रयोग की खबरें आईं, बड़े पैमाने पर लोग हताहत भी हुए.

उन की सरकारी एजेंसियां उन के इशारों पर साजिश रच कर विपक्षी नेताओं को जेल में डालती रहीं या उन पर मुक़दमे चलाती रहीं, जैसा भारत में भी हो रहा है. पुलिस से ले कर सरकारी एजेंसियों ने विपक्षी नेताओं को फंसाने और जेल में ठूंसने का काम ज्यादा किया है. इन तमाम बातों का गुस्सा अंदर ही अंदर पलता है और एक दिन अचानक फूटता है. यदि बंगलादेश की राजनीतिक घटना के उपयुक्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर अपने देश के बारे में सोचा जाए तो कमोबेश वैसी ही स्थितियां हूबहू यहां मौजूद हैं.

विकास का डंका पीटने, अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के विज्ञापनों से अखबारों और टीवी चैनलों को भर देने से जनता संतुष्ट नहीं होती. उस का संतोष और खुशहाली उस के जीवन की 3 मूलभूत आवश्यकताएं- रोटी, कपड़ा और मकान -हैं जिन की आपूर्ति वादों से नहीं, रोजगार दे कर होती है. बंगलादेश और श्रीलंका में अपने नागरिकों की पीड़ाओं को दूर न कर सत्ता सुरक्षित रखने का अंजाम ऐसा ही होता है. यह भारत सरकार के लिए बड़ा सबक है.

बंगलादेश में नई सरकार का गठन

बंगलादेश में हिंसा और उथलपुथल के बीच अंतरिम सरकार का गठन नोबेल पुरस्कार विजेता और प्रख्यात अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में हुआ. इस अंतरिम सरकार को सेना का समर्थन हासिल है. मोहम्मद यूनुस अपनी बीमारी के कारण पेरिस में थे, मगर वे अब ढाका लौट आए हैं. हसीना के कटु आलोचक 84 वर्षीय यूनुस के नाम की सिफारिश हसीना के खिलाफ अभियान चलाने वाले प्रदर्शनकारी छात्रों ने की थी.

यूनुस को ‘गरीबों के बैंकर’ के रूप में जाना जाता है और उन्हें जरूरतमंद कर्जदारों को छोटेछोटे ऋण दे कर गरीबी से लड़ने में अग्रणी बैंक की स्थापना के लिए 2006 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था. यूनुस ने अपने एक बयान में छात्रों से शांति बनाए रखने की अपील की है. उन्होंने देश को चेतावनी देते हुए यह भी कहा कि हिंसा का रास्ता विनाश की ओर ले जाएगा.

इस बीच बंगलादेश के सेना प्रमुख वकर-उज-जमां ने कहा है कि स्थिति में तेजी से सुधार हो रहा है और जल्दी ही स्थिति सामान्य हो जाएगी. सेना प्रमुख ने यह भी कहा कि पिछले कुछ दिनों से हो रही हिंसा में शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा और उन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी. दो दिनों की ताजा हिंसा में ढाका में 300 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और हजारों घायल हैं.

वहीं, यूनुस और हसीना के मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बंगलादेश नैशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने भी हिंसा समाप्त कर शांति का आह्वान किया है. बीएनपी नेता 78 वर्षीया खालिदा जिया ने ढाका में एक रैली में अपने सैकड़ों समर्थकों को अस्पताल के बिस्तर से वीडियो संबोधन में कहा, “कोई विनाश, बदला या प्रतिशोध नहीं.” नजरबंदी से रिहा हुईं जिया और उन के निर्वासित बेटे तारिक रहमान ने रैली को संबोधित किया और 3 महीने के भीतर राष्ट्रीय चुनाव कराने का आह्वान किया ताकि देश में एक स्थिर सरकार बन सके.

घर के छोटेमोटे रिपेयरिंग के काम, हर कोई सीखे

आप वर्किंग हो या घर संभालती हो लेकिन कुछ ना कुछ हुनर आपमें जरूर होना चाहिए. लेकिन हम हुनर उसे ही कहते है जिससे पैसा कमाया जा सके. लेकिन पैसे से आप सामान तो खरीद सकते है पर घर को व्यवस्थित नहीं कर सकते. जैसे कि घर के कुछ छोटे मोटे काम ऐसे होते है जिनके लिए हम में से ज्यादातर लोग रिपेयरिंग के लिए प्लंबर या मैकेनिक के भरोसे रहते हैं. ये लोग चार्ज भी अच्छा-खासा लेते है. ऐसे में अगर आप खुद इस तरह के काम सीख जाएं तो बाहरी लोगों पर निर्भरता नहीं रहेगी और घर भी दुरुस्त रहेगा। आइये जाने घर के वो कौनसे काम है जिन्हें खुद किया जा सकता है.

अमेरिका से संबंधित एक बात जिसने बहुत प्रभावित किया वह यह है कि वहां लगभग हर व्यक्ति घर हो या बाहर हर काम स्वयं करने में कुशल है. घर के छोटे-मोटे कार्य जिसमें सुई धागे से लेकर कील हथौड़ी तक के काम करने वह खुद ही सीख जाते है। इन जरा जरा से काम के लिए बाहर से किसी को बुलाने की अपेक्षा खुद ही कर लिए जाते है. बिजली के तार जोड़ना, ब्यूटी पार्लर का काम, थोड़ा बहुत सिलाई का काम, सीमेंट से कहीं प्लास्टर करना, पेंट करना, गार्डनिंग आदि सभी काम महिलाएं हो या पुरुष इन कामों को खुद ही करते है क्यूंकि लेबर चार्ज वहां बहुत ज्यादा है.

क्या सीखें और कैसे सीखें

सबसे पहले टूल बॉक्स बनाएं

अगर आप घर में किसी भी तरह की रिपेरिंग करना चाहते है, तो उसके लिए आपके पास रिपेरिंग टूल्स भी होने चाहिए. इसके लिए आप ऑनलाइन इन्हे खरीद सकते है या फिर कही मार्किट से भी जरुरत की सर्जरी चीजें जैसे प्लास, स्क्रू ड्राइवर्स, पेचकस, हतोड़ी, टोर्च, स्टैपल गन आदि कई चीजे हो सकती हैं जो आप अपनी जरुरत के अनुसार खरीद सकते हैं.

ब्यूटी पार्लर का काम भी सीखें

मेकअप के मामले में सिटी गल्र्स काफी एक्टिव नजर आती हैं। वे हर उस नई चीज को ट्राई करने के लिए एक्साइटेड रहती हैं, जो उन्हें डिफरेंट लुक दे सके। इसी तरह मेकअप के ट्रेंड में इन दिनों मैट फिनिश लुक छाया हुआ है, जो कि सिटी गल्र्स को समर सीजन में सबसे ज्यादा पसंद आ रहा है। इसके लिए हर बार पार्लर जाने की जरुरत नहीं है आप यू ट्यूब पर देखकर भी मेकअप सीख सकती है या फिर कोई शार्ट टर्म ऑनलाइन कोर्स करके भी अपना रोजमर्रा का काम चला सकती है.

सिलाई का काम भी सीखें

अगर आपको सिलाई का काम आता है, तो आप अपने बहुत से पैसों की बचत कर सकती है आप अपने लिए सूट, कुर्तियां, ब्लाउज सिल सकती हैं। आप लोगो को सिलाई सिखा के अच्छा खासा पैसा भी कमा सकती हैं। अगर काम नहीं आता है तो अपने पास ही किसी टेलर से थोड़ा बहुत काम सीख ले ताकि उसे करके आपने पैसा भी बचा सके और टाइम भी पास हो जाये.

टॉयलेट चौक हो जाये तो ठीक करना सीखें

यह समस्या बहुत आम है जब एक साथ घर में कई मेहमान आ जाये या फिर पार्टी आदि हो तो कई बार टॉइलट जाम हो जाता है और इतनी जल्दी किसी प्लम्बर को बुलाना भी संभव नहीं होता ऐसे में ये काम खुद भी किया जा सकता है. आइये जाने कैसे

भरे हुए टॉइलट सीट में गर्म पानी डालकर छोड़ दे कुछ देर बाद गंदगी खुद ही टूटकर हैट जायेगे और पानी बह जायेगा.

– डिशवाश लिक्विड को पॉट में डाले और 10 मिनट बाद उसमे तेजी से गर्म पानी डाले इससे भी गंदगी निकलने लगेंगे.

– टॉयलेट ड्रेन में एक कप बेकिंग सोडा और एक कप सिरका डालें। जब सिरका और बेकिंग सोडा को मिलाते हैं तब प्राकृतिक रासायनिक प्रतिक्रिया की वजह से बुलबुले बन जाएंगे। यह टॉयलेट बाउल की चोकिंग को ठीक करने में मदद करेगा.

– हेंगर को सीधा खोल ले और उसके हुक पर कपडा लपेटकर उसे पॉट में चारो तरफ घुमाए इससे पानी निकलने लगेगा.

घर के इलेक्ट्रिक स्विच बोर्ड ख़राब हो जाये तो उसे ठीक करें

वैसे तो यह काम इलेक्ट्रीशियन से ही करवाना सही रहता है लेकिन अगर स्विच लूज़ है तो उसे टाइट कर ले या फिर पेच खोलकर बदल भी सकते हाँ लेकिन जो भी करें पहले मैं स्विच बंद कर दे लाइट का ताकि कोई गड़बड़ न हो. वैसे बिजली का ये छोटा मोटा काम सीख भी सकते है.

दीवार में कील के होल्स भरें

कई बार दीवार में कील ठोकते समय दीवार में छेद हो जाता है जो देखने में बुरा लगता है इसे पुट्ठी और पेंट की सहायता से भरा जा सकता है. अपने घर में पुट्टी का सामान रखें और इसी घोल कर छोटा मोटा काम खुद ही कर लें.

दरवाजे खिड़कियां जाम हो जाये, तो ठीक करें

कई बार खिड़कियों और दरवाजो पर जंग लग जाता है जिससे वे काफी टाइट हो जाते हैं या फिर बहुत आवाज करने लगते है. इसलिए दरवाजो में डालने वाले तेल को हमेशा घर पर रखें और जौरात पड़ने पर उन्हें सही करें.

अचानक दुपहिया रस्ते में बंद हो जाये, तो घबराने की बात नहीं है

यात्रा पर निकलने से पहले ही अपने वाहन से जुड़े छोटे-मोटे काम और टूल्स का उपयोग जरूर सीखें। आप इसके लिए कोई वर्कशॉप भी ज्वाइन कर सकते हैं या चाहें तो जिस जगह से आप अपने वाहन की नियमित सर्विसिंग करवाते हैं, वहां से बारीकियां सीखें। साथ ही उन छोटे ऑटो पार्ट्स की भी जानकारी लें जिन्हें वक्त पड़ने पर बदलने की आवश्यकता हो सकती है। इससे आपको स्टेपनी चेंज करने, छोटी-मोटी रिपेयरिंग करने में दिक्कत नहीं आएँगी। इसके आलावा आपको स्टेपनी बदलना आदि भी आना चाहिए.

छोटे मोटे काम खुद आने के फायदें-

आपको कारपेंटरी आती है, तो आप घर में काम करने वाले को 3 बातें बता तो सकती है की आपको क्या चाहिए और वह काम आप कैसा करवाना चाहती है.

इस काम के बारे में कुछ जानकारी होंगे तो पता चलेगा कि वो आने वाला बंदा कैसा और क्या काम कर रहा है.

थोड़ा बहुत ज्ञान हर चीज का होना चाहिए. ज्ञान किसी भी चीज का बुरा नहीं होता.

ज्ञान जेंडर बेस्ट नहीं है. लड़कियां भी कारपेंटरी सीख सकती हैं और लड़के भी सिलाई और ब्यूटी पार्लर का काम सीख सकतें है. कोई भी काम लड़का या लड़की का या ऊँचा नीचे नहीं होता. घर के छोटे काम जैसे बिजली का काम आदि भी आना चाहिए.

एजुकेशन से इसका कोई मतलब नहीं है. अच्छे पढ़े लिखें हो तब भी घर का हर काम आना चाहियें. आपको पता हो की कोई चीज कैसे ठीक होती है.

सबको पता होना चाहिए कि अगर मेरा दरवाजा ख़राब हो गया है या फ्रिज ठीक से काम नहीं कर रहा तो उसे टेम्परेरी तौर पर कैसे ठीक करें कि जब तक ठीक करने वाला नहीं आता तो आप कामचलाऊं उसे कैसे ठीक करें.

इन कामो को करवाने और लोगों को बार बार कॉल करके बुलाने की चिक चिक भी ख़तम हो जाएगी.Community-verified icon

चार सहेलियां खड़ीखड़ी

नोएडा की एक सोसाइटी में 4 सहेलियों को नियमित रूप से सुबहशाम देखा जाता था जिन्हें देख कर वहां के निवासी ‘चार सहेलियां खड़ीखड़ी…’ गीत जरूर गुनगुनाते थे. सर्दीगरमी, धूपकुहरा हो लेकिन वे आती जरूर थीं, बारिश में भी छाता ले कर अपना दोस्ताना निभाती थीं. वे कोई बचपन, स्कूल, कालेज या औफिस की दोस्त नहीं थीं. इसी सोसाइटी में उन की मित्रता ने जन्म लिया था. चारों सुबहशाम सैर करने की शौकीन थीं. इसी शौक ने उन्हें दोस्ती के मजबूत बंधन में बांध दिया था. उम्र के मामले में भी  समान थीं लगभग 50 और 55 के बीच की. चारों युवा बच्चों की मां थीं.

पहली सहेली राधिका थी जो अपने सासससुर और नोएडा में ही बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत अपने युवा बेटे के साथ रहती थी. उस के पति की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी.

दूसरी थी शाहाना जो अपने पति और छोटी बेटी सारा के साथ रहती थी. बड़ी बेटी की शादी हो चुकी थी. तीसरी थी गुरबीर कौर जो अपने पति, सास और बड़े बेटे के साथ रहती थी और जिस का नोएडा में ही मेडिकल स्टोर था. और छोटा बेटा पुणे में बीटैक कर रहा था. चौथी थी कैथरीन जिस का अपने पति से तलाक हो गया था और वह अपनी  एकलौती बेटी एंजेलिका के साथ रहती थी.

चारों एकदूसरे के धर्म का पूरा मानसम्मान करती थीं. किसी के धर्म को ले कर कोई कुतर्क, वादविवाद या बहस में नहीं पड़ती थीं. दीवाली, बड़ा दिन, ईद और वैशाखीलोहिड़ी पर एकदूसरे को बधाई देती थीं और सभी के त्योहार सम्मिलित रूप से मनाती थीं. अपनेअपने त्योहारों पर मिठाई, सेवईं, मक्के की रोटी, सरसों का साग और केक इत्यादि का आदानप्रदान होता रहता था.

एक दिन शाहाना की खूबसूरत बेटी सारा राधिका के यहां मेवे वाली मीठी सेवइयां देने गई. उस दिन राधिका का बेटा समर घर पर अकेला था. दोनों ने एकदूसरे को देखा तो पहली नजर में ही प्यार हो गया और यह प्यार धीरेधीरे परवान चढ़ने लगा. इधर सोसाइटी क्लब में  कैथरीन की खूबसूरत बेटी एंजेलिका की आंखें गुरबीर कौर के बेटे अमरीक से चार हो गईं और उन की मुहब्बत ने शताब्दी एक्सप्रेस की तरह रफ्तार पकड़ ली.

चारों सहेलियों को अपने बच्चों की मासूम मुहब्बत का पता ही नहीं चला. कहावत है, इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यहां यह कहावत चरितार्थ हुई. जब वे चारों सहेलियां ओपन जिम में थीं तभी किसी ने जुमला कसा,  ‘चार समधिन खड़ीखड़ी…’ यह सुन कर राधिका बोली, ‘यह महिला क्या बोल रही है? हमारा स्लोगन तो चार सहेलियां खड़ीखड़ी है लेकिन यह चार समधिन  खड़ीखड़ी क्यों बोल रही है?’
शाहाना  सीआईडी सीरियल के एसीपी प्रद्युमन की तरह बोली, ‘दया, कुछ तो है?’

गुरबीर कौर उस महिला से पंगा लेने के लिए जैसे ही आगे बढ़ी, कैथरीन ने उसे रोक दिया, ‘जाने दे यार, इन लोगों को हमारी दोस्ती से ईर्ष्या होती है, इसलिए हमें छेड़ते हैं.’

उस दिन तो वे चारों चुप ही रहीं लेकिन अब यह रोज का नियम हो गया था. कोई न कोई  यह गीत जुमले के रूप में उन की तरफ उछाल ही देता था. आखिर एक दिन राधिका बोली, “दोस्तो, आग वहीं लगती है जहां चिनगारी होती है. क्यों न हम अपनीअपनी चिनगारियों  से खुद ही इस विषय में पूछ लें.”

“हां, यह सही रहेगा. हमारी साहबजादी सारा देररात तक न जाने मोबाइल पर किस से बतियाती रहती हैं”, शाहाना ने चिंतित स्वर में कहा.

“और  हमारे सुपुत्र  समर भी आजकल प्रेमरस में डूबी कविताएं फेसबुक पर धड़ाधड़ पोस्ट कर रहे हैं”, कह कर जोर से हंस पड़ी राधिका.

“हमारी डौटर भी आजकल आईने के सामने बहुत सजनेसंवरने लगी है,” कैथरीन ने भी चिंता व्यक्त की.

“मेरा मुंडा भी आजकल खूब मुहब्बतभरे नगमे गुनगुनाने लगा है,” गुरबीर कौर भी हंसते हुए बोली.

घर पहुंचते ही राधिका ने अपने बेटे की क्लास ली, “समर, मैं मां हूं तुम्हारी. सच बताओ, आजकल क्या चल रहा है? देखो, झूठ मत बोलना.”

पहले तो वह घबरा गया, फिर भावुक स्वर में बोला, “मम्मी, प्रौमिस करो कि आप मेरा साथ दोगे.”

“अगर साथ देने वाली बात होगी तो जरूर  साथ दूंगी.”

“मम्मी, मैं आप की दोस्त शाहाना आंटी की बेटी सारा से बहुत प्यार करता हूं और उस से ही शादी करूंगा.” समर दृढ़  स्वर में बोला.

यह सुन कर राधिका के पैरोंतले जमीन खिसक गई. वह तो सारा को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लेगी मगर सासुमां शायद कभी नहीं क्योंकि समर के पिता संजय किसी दूसरी जाति की लड़की से प्यार करते थे लेकिन उन्होंने वह शादी नहीं होने दी और जबरदस्ती संजय से उस की शादी करवा दी. संजय ने पहली रात को ही उसे सब सच बता दिया लेकिन वे अपना पहला प्यार भुला न सके और शराब का सहारा ले लिया. एक रात अत्यधिक नशे के कारण रोड ऐक्सिडैंट में उन की मौत हो गई. यह सोच कर वह एकदम बुत सी बन गई.

“मम्मीमम्मी, क्या हुआ?” समर उसे झिंझोड़ते हुए बोला.

“कुछ नहीं हुआ, बेटा,” कहते हुए वह रसोई में चली गई.

इधर, शाहाना ने जब सारा से पूछा तो उस ने भी समर  के साथ अपनी मुहब्बत का खुलासा करते हुए कहा कि वह समर से ही शादी करेगी. यह सुन कर शाहाना को चक्कर सा आ गया.

उसे इस शादी से कोई एतराज नहीं था बल्कि वह तो खुश थी कि राधिका जैसी सहेली का खूबसूरत और स्मार्ट बेटा उस का दामाद बन जाएगा लेकिन उसे अपने बड़े भाई का चेहरा याद आ गया जिन्होंने बचपन में ही कह दिया था शाहाना तेरी बेटी को मैं अपने बेटे आसिफ के लिए मांगता हूं. जब उन्हें पता चलेगा कि सारा किसी हिंदू लड़के से प्यार करती है और उस से शादी करना चाहती है तो वे धर्म के नाम पर अड़ंगा जरूर लगाएंगे, यह सोच कर वह सिहर उठी.

गुरबीर कौर के बेटे ने भी कैथरीन की बेटी  एंजेलिका से शादी का ऐलान कर दिया और कैथरीन की बेटी ने भी अपनी मां से साफसाफ बोल दिया कि मैं अमरीक से ही शादी करूंगी. कैथरीन के बुजुर्ग मातापिता चाहते थे कि अमरीक ईसाई धर्म अपना कर  कैथरीन के यहां घरजंवाई बन कर रहे जिस के लिए गुरबीर कौर की सास किसी भी हालत में राजी नहीं होती क्योंकि उन की जान दोनों पोतों में बसती थी.

एक शाम को पार्क में घास पर चारों सहेलियां गंभीर सी बैठी हुई थीं. शाहाना ने थर्मस से डिस्पोजल गिलासों में चाय उड़ेलते हुए कहा, “तुम सब अपने मन की बात बताओ, क्या चाहती हो? सचसच बताना. हम चारों के धर्म बेशक अलग हैं लेकिन दोस्ती और मुहब्बत का कोई धर्म नहीं होता. जब हम लोगों की दोस्ती हुई थी तब हम ने एकदूसरे की धर्मजाति नहीं पूछी थी. हमारे बच्चों ने भी धर्मजाति देख कर मुहब्बत नहीं की है. उन्होंने सिर्फ प्यार किया है. सच्चा प्यार,” कहते हुए शाहाना खासी भावुक हो गई.

राधिका ने उस के  हाथों को मजबूती से थामते हुए कहा, “शाहाना,  दिल से कह रही हूं मैं यह दोस्ती रिश्तेदारी में बदलना चाहती हूं लेकिन यहां मेरी सास नाम की एक मजबूत दीवार है जिन्हें आप धर्म की दीवार भी कह  सकती हैं. वे यह शादी नहीं होने देंगी, मैं यह जानती हूं. वे धर्मजाति के मकड़जाल में बुरी तरह फसी हुई हैं. अगर वे अपने बेटे की बात मान लेतीं तो शायद आज संजय जिंदा होते मगर मेरे नहीं किसी और के होते,” कहते हुए राधिका अपने आंसू रोक न सकी. उस के आंसू  पोंछते सभी गमगीन स्वर में बोलीं, ‘राधिका, हम दुख समझते हैं तुम्हारा.’
गुरबीर कौर निराशाभरे लहजे में बोली, “मैं तो तैयार हूं कैथरीन की बेटी से अपने बेटे की शादी के लिए और कैथरीन के मातापिता की शर्त भी मंजूर है मुझे. मेरे पास 2 बेटे हैं. कोई प्रौब्लम नहीं है अगर मेरा एक बेटा अपनी ससुराल में बेटा बन कर रहे. लेकिन चाई जी, तोबातोबा, वे राजी नहीं होंगी.”

“मेरी भी ख्वाहिश है कि मैं भी अपनी बेटी को विदा करूं लेकिन मेरे मातापिता का कहना है कि तुम्हारे बुढ़ापे के सहारे लिए दामाद को घरजंवाई बन कर रहना होगा.”

जिस की उम्मीद थी वही हुआ. राधिका की सास को  जैसे ही  पता चला, होहल्ला कर के पूरा घर सिर पर उठा लिया.

“समर, तुझे अपने धर्म में कोई लड़की नहीं मिली जो दूसरे धर्म की लड़की को लाएगा. उस के आने से हमारा धर्म भृष्ट हो जाएगा.”

इधर शाहाना के भाई ने जब यह सुना कि सारा हिंदू लड़के से प्यार करती है और उस से ही शादी करना चाहती है तो उन्होंने शाहाना को ही आड़ेहाथों लिया, “और करो हिंदुओं से दोस्ती, कितनी चालाकी से अपने लड़के के जरिए सारा को फंसा लिया.”

चाई जी ने भी जिद पकड़ ली. वे बारबार यही कहे जा रही थीं, “एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा यानी एक तो लड़की ईसाई, ऊपर से लड़के को बनाना चाहती है घरजंवाई. मेरे सीधेसादे पुत्तर को हथियाने की  पूरी साजिश कर रही है जो मैं होने नहीं दूंगी.”

कैथरीन के  मातापिता भी अड़ गए. उन का  कहना था, एंजेलिका चली जाएगी तो कैथरीन की देखभाल कौन करेगा? इसलिए उसे घरजंवाई बनना ही होगा.

पूरी सोसाइटी में चारों की दोस्ती और उन के बच्चों के प्यार के चर्चे थे. उन के रिश्तेदार, शुभचिंतक, पासपड़ोसियों ने उन चारों सहेलियों के दिमाग में धर्म का कीड़ा डाल दिया और अपनेअपने तरीकों से ऐसी शादी से होने वाले नुकसान  की लंबीचौड़ी एक लिस्ट पकड़ा दी. और उन्हें मजबूर किया कि वे ये शादियां न करें और अपनी  दोस्ती तोड़ लें. जिन लोगों के पास उन से बात करने का समय नहीं था, अब उन के पास उन्हें बिन मांगी सलाह देने का खूब वक्त था.

चारों सहेलियों के कथित धर्मसमूहों ने अपनेअपने धर्म की खूबी और दूसरे धर्म की खामियों को बता कर उन के मन में जहर घोलने का काम युद्धस्तर पर शुरू कर दिया. ऐसे लोगों की बेबुनियादी बातों और उन के बिन मांगे  ज्ञान व सलाह से चारों सहेलियां मानसिक रूप से परेशान हो गईं और उन के बच्चे भी परेशान हो कर सोचने लगे, जो कल तक हम से सीधेमुंह बात नहीं करते थे, आज हमारे भावी जीवन को ले कर इस तरह ऐक्टिव हो जाएंगे, यह तो हम ने कभी सोचा ही नहीं था. चलतेफिरते, जिम में, क्लब में,  लिफ्ट में  सभी के पास यही काम था उन्हें बिन मांगी सलाह देना.

अपनी मांओं को इस तरह परेशान देख कर बच्चों ने कहा, “मां, कोई बात नहीं, हम कभी शादी ही नहीं करेंगे. लेकिन आप को इस तरह जलील और परेशान नहीं होने देंगे.”

अपने प्रति बच्चों के प्रेम और त्याग की भावना को देख कर चारों सहेलियों ने  परिवार, रिश्तेदार, शुभचिंतकों, पड़ोसियों रूपी कथित समाज से दोदो हाथ करने का फैसला किया.

राधिका अपनी सास से बोली, “मांजी, आप की जिद और जातिधर्म के कुचक्र में  मैं अपने पति को खो चुकी हूं, अब अपने एकलौते बेटे को नहीं  खोना चाहती.  उस को वह हर खुशी दूंगी जिस का वह हकदार है. वह सारा से प्यार करता है, उस की शादी सारा से ही होगी.”

“बहू, तुम यह क्या बोल रही हो? सारा  दूसरे धर्म की है अगर मैं मान भी जाऊं तो यह समाज  क्या कहेगा?”

“जो कहे, उसे कहने दो. मुझे किसी की परवा नहीं.”

“सब रिश्तेदार हम से रिश्ता खत्म कर लेंगे.”

“शौक से खत्म कर लेने दो, कोई फर्क नहीं पड़ता. हमारा मुख्य रिश्ता तो हमारे बेटे से है,” राधिका ने दृढ़ स्वर में बोल कर अपनी सास को आगे न बोलने पर मजबूर कर दिया.

उस की  सास ने लाचारभाव से अपने पति की तरफ देखा, शायद वे उस का साथ दें. लेकिन वे खामोशी से सासबहू के वार्त्तालाप को सुन रहे थे. उन्होंने राधिका के सिर पर हाथ रख कर कहा, “बेटा, समर की शादी सारा से करने की तुम तैयारी करो, इस समाज को जवाब देने के लिए मैं हूं.”

शाहाना ने अपने बड़े भाई को मुंहतोड़ जवाब दिया, “भाई, बचपन में आप ने अपने बेटे और सारा का रिश्ता तय किया था लेकिन आसिफ बेरोजगार और आवारा किस्म का लड़का है, मैं उसे अपनी बेटी का हाथ नहीं दे सकती. अगर लायक भी होता तो भी न देती क्योंकि मेरी बेटी समर से प्यार करती है और मैं उस की शादी उस से ही करूंगी.”

“अपनी जबान को लगाम दे, शाहाना. तू सारा की शादी हिंदू लड़के से कर के बहुत पछताएगी,” उस का भाई क्रोध से चीखा.

“कोई बात नहीं, भाई. मुझे पूरा यकीन है, मेरी सारा समर के साथ हमेशा खुश रहेगी.”

इधर गुरबीर कौर की सास और कैथरीन के मातापिता में दोनों पक्षों (गुरबीर कौर, उस के पति और कैथरीन) के अथक प्रयासों से समझौता हो गया कि अमरीक और एंजेलिका एकदूसरे के धर्म का पूरा मानसम्मान करेंगे और दोनों अपने  घरों में नहीं रहेंगे बल्कि उसी शहर में अलग घर में रहेंगे लेकिन दोनों अपने घरपरिवार की  जिम्मेदारियों का पूरा निर्वाह करेंगे. जल्दी ही सारा और समर की अमरीक और एंजेलिका की शादियां हो गईं. उन चारों सहेलियों की दोस्ती अब भी बरकरार थी पर अब लोग यह वाला जुमला फेंकने लगे थे, चार समधिन समधिन खड़ीखड़ी.’

‘स्त्री 2′ हौरर कौमेडी के नाम पर पितृसत्तात्मक सोच, धर्म व अंधविश्वास का महिमा मंडन 

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः दिनेश विजन और ज्योति देशपांडे

लेखकः निरेन भट्ट (राज और डीके के ‘स्त्री’ में रचे किरदारों पर आधारित)

निर्देशक: अमर कौशिक

कलाकारः श्रद्धा कपूर , राज कुमार राव,पंकज त्रिपाठी, अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बनर्जी,वरुण धवन और अक्षय कुमार

अवधिः 2 घंटे 30 मिनट

2018 में हौरर कौमेडी फिल्म ‘स्त्री’ प्रदर्शित हुई थी, जिसे अच्छी सफलता मिली थी. पर तब इस के निर्माण से दिनेश वीजन व निर्देशक अमर कौशिक के साथ ही राज एंड डीके और लेखक के तौर पर सुमित अरोड़ा जुड़े हुए थे.अभिनेता राज कुमार राव की इस फिल्म के बाद प्रदर्शित कोई भी फिल्म सफलता नही बटोर पाई. लेकिन निर्माता दिनेश वीजन और निर्देशक अमर कौशिक अब 6 वर्ष बाद ‘स्त्री’ का ही सिक्वअल ‘स्त्री 2’ ले कर आए हैं, जिस के लेखन की जिम्मेदारी नितिन भट्ट ने संभाली है. ‘स्त्री 2’ में तमन्ना भाटिया का आइटम डांस नंबर ‘आज की रात..’ (इस आइटम डांस नंबर में तमन्ना भाटिया ने जिस्म की नुमाइश  की सारी हदें पार कर दी हैं. ) फिल्म के रिलीज से पहले ही इस कदर लोकप्रिय हो गया था कि निर्माताओं ने इसी डांस नंबर के आधार पर ऐसा गिमिक रचा कि आज इस फिल्म से जुड़े लोगों के चेहरों पर मुस्कान नजर आ रही है. निर्माताओं ने इस फिल्म की टिकट की दरें दोगुनी से भी अधिक कर दी है. मुंबई के मल्टीप्लैक्स मेें 600 रुपए से 2 हजार रुपए तक की टिकट दर हैं. फिल्म 15 अगस्त को सिनेमाघरों पहुंची, मगर इस की एडवांस बुकिंग एक सप्ताह पहले ही शुरू कर दी गई.

इतना ही नहीं निर्माताओं ने 14 अगस्त की रात साढ़े नौ बजे देश के लगभग हर शहर में इस फिल्म के ‘पेड प्रिव्यू शो ’ भी रख दिए. निर्माताओं का दावा है कि 14 अगस्त को ‘पेड प्रिव्यू’ से ‘स्त्री 2’ ने 8 करोड़ रुपए कमाए, जबकि 15 अगस्त के दिन इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर 45 करोड़ रुपए कमा लिए. यानी कि फिल्म 53 करोड़ रुपए कमा चुकी है. इस में से निर्माता के हाथ में लगभग 25 करोड़ रुपए आने चाहिए. मजेदार बात यह है कि 3 घंटे बाद फिल्म के पीआरओ ने पत्रकारों के पास संदेश भेजा कि फिल्म ‘स्त्री 2’ ने पहले ही दिन 76 करोड़ 50 लाख रुपए इकट्ठे कर लिए हैं. यह आंकड़े कितने सही व कितने गलत हैं, इस पर चर्चा करना बेकार है. जहां कौरपोरेट जुड़ा हो, वहां कई निराले खेल होेते ही रहते हैं. 2024 में जब सात माह बीत जाने के बाद भी किसी फिल्म को सफलता न मिली हो, तब अगस्त माह के तीसरे सप्ताह में धमाल मचाने के लिए कौरपोरेट का कमर कसना अनिवार्य सा हो जाता है. अतीत में भी देख चुके हैं कि किस तरह कौरपोेरेट बुकिंग के माध्यम से सब से अधिक कमाई वाली फिल्म का नाम घोषित किया जा चुका है. वैसे भी ‘स्त्री 2’ के निर्माण के साथ मुकेश अंबानी की कंपनी ‘जियो स्टूडियो’ भी जुड़ा हुआ है.

बहरहाल,अगर ‘स्त्री 2’ ने वास्तव में निर्माताओं या पीआरओ के दावे के अनुरूप कमाई की है तो यह बौलीवुड इंडस्ट्री के लिए सुखद एहसास है. वह भी उस वक्त जब चार दिन पहले ही खबर आई हो कि बौलीवुड के मशहूर निर्माता व निर्देशक करण जोहर की फिल्म प्रोडक्शन कंपनी ‘धर्मा प्रोडक्शन’बिक गया. ‘स्त्री 2’की सफलता से सब से ज्यादा खुश  अभिनेता राज कुमार राव हुए है, जिन की 2018 से एक भी फिल्म सफल नहीं हो रही थी. और तो और अब राज कुमार राव के नजदीकी सूत्र दावा कर रहे हैं कि फिल्म ‘स्त्री 2’ के पहले दिन का कलेक्शन देखते ही राज कुमार राव हवा में उड़ने लगे हैं. उन्होंने अपनी पारिश्रमिक राशि सीधे दोगुनी करते हुए 30 करोड़ रुपए प्रति फिल्म कर दी है, यह तब है जबकि बौलीवुड के हर तब के से मांग उठ रही है कि कलाकारों को अपनी फीस घटानी चाहिए. फिल्म की लागत में कटौती की जानी चाहिए.

फिल्म ‘स्त्री 2’ के निर्माता व पीआरओ ‘समोसा क्रिटिक’ की मदद से लगातार प्रचारित कर रहे हैं कि ‘स्त्री 2’ का वीकेंड बौक्स औफिस कलेक्शन 300 करोड़ रुपए से अधिक होगा. निर्माता अपनी तरफ से सही या गलत आंकड़े दने के लिए स्वतंत्र है, क्योंकि मीडिया के पास इतनी ताकत नहीं है कि वह निर्माता से पूछ सके कि जीएसटी कितनी भरी हो सकता है कि यह सच भी हो. मगर जब हम ने फिल्म ‘स्त्री 2’ देखी तो हमें यह फिल्म विषयवस्तु और कला दोनों ही स्तर पर घटिया फिल्म लगी. यहां तक इस का वीएफएक्स भी काफी कमजोर है. फिल्मकार ने इसे पितृसत्तात्मक सोच का महिमामंडन करने के एजेंडे के साथ बनाया है, जिस में  धर्म व अंधविश्वास का तड़का है तो वहीं द्विअर्थी संवाद और महाभारत व दुर्गा सप्तसती के एक अध्याय को भी पिरो दिया है. यह फिल्मकार वर्तमान आधुनिक पीढ़ी को कितना मूर्ख समझते हैं, यह तो वही जाने.

इस फिल्म की एडवांस बुकिंग में कुछ योगदान तमन्ना भाटिया के आइटम डांस नंबर ‘आज की रात..’ का भी है,जो काफी लोकप्रिय हो गया था. लेकिन इस गाने के आधार पर जिन दर्शकों ने टिकट खरीदे हैं, उन के साथ तो सीधे धोखा किया गया. जी हां, फिल्म के अंदर इस गाने को पूरा नहीं रखा गया है, सिर्फ गाने की झलक है. इतना ही नहीं गाने के बीच में श्रृद्धा कपूर को कहीं ‘सरकटा’ की तलाश करते हुए दिखा कर गाने की उस झलक का भी मजा खराब कर दिया गया.

कहानीः

फिल्म ‘स्त्री 2’ की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां ‘स्त्री’ की कहानी खत्म हुई थी. पहले भाग में  एक अनाम रहस्यमयी युवती ने असीमित शक्तियां पाने के लिए ‘स्त्री’ की चोटी काट कर अपनी चोटी में मिला ली थी, इसी रहस्यमयी अनाम लड़की को विक्की चाहने लगा था.वह अब भी उसे चाहता है. उस के सपने भी देखता है और इस चक्कर में इतना पिट चुका है कि असल में उस के सामने आने पर भी उसे यकीन नहीं होता. पर पहले भाग में स्त्री बस में बैठ कर चली गई थी. उस के जाने के बाद से चंदेरी की दीवारों पर लिखा है, ‘ओ स्त्री रक्षा करना’.

पहले भाग में स्त्री अपना बदला लेने के लिए पुरुषों का अपहरण किया था पर सच जानने के बाद उस ने ‘चंदेरी’ के निवासियों की रक्षा करने का वादा किया था. लेकिन इस बार ‘सरकटा’ नामक दानव उन युवा महिलाओं का अपहरण कर रहा है जो कि स्वतंत्र व आधुनिक जीवन जीने में यकीन करती हैं. फिल्म की शुरुआत होती है कि चंदेरी गांव में सब कुछ ठीक ही चल रहा है. विक्की (राजकुमार राव) को आज भी उस अनाम रहस्यमयी लड़की (श्रद्धा कपूर) का इंतजार है. इसीलिए वह किसी अन्य लड़की से विवाह नहीं करना चाहता. अचानक एक दिन पोस्टमैन रूद्र को एक चिट्ठी दे जाता है, जिस में किसी ने चंदेरी पुराण के कुछ फटे हुए पन्ने भेजा है. तभी अचानक बाजार में विक्की के सामने ही बिट्टू (अपारशक्ति खुराना) की गर्लफ्रेंड चिठ्ठी को ‘सरकटा’ तबाही मचा कर अपने साथ ले कर चला जाता है. तभी वहां रूद्र (पंकज त्रिपाठी) पहुंच कर उस चिट्ठी के बारे में बताते हैं. इस चिट्ठी में चंदेरी पुराण के फटे पन्नों के साथ विक्की एक दूसरा कागज भी निकालता है.

जिस से निष्कर्ष निकलता है कि दिल्ली में रहने वाले जना (अभिषेक बनर्जी) की मदद से सरकटा का पता लगाया जा सकता है. यह लोग जना के माध्यम से कोशिश करते हैं पर जना असफल हो जाता है. इसी बीच रहस्यमयी अनाम लड़की (श्रद्धा कपूर) भी चंदेरी वापस आ जाती है. मगर जब सरकटा रूद्र की नर्तक प्रेमिका शमा (तमन्ना भाटिया) का भी अपहरण कर लेता है और गांव के बिट्टू सहित कई मर्दों को अपने वश में कर के महिलाओं की आजादी पर बंदिश लगवा देता है. तब रूद्र, श्रद्धा, विक्की और जना सरकटा के संहार के लिए कमर कस लेते हैं. अब यह चौकड़ी चंदेरी को दानव से सुरक्षा देने में सफल होगी या नहीं, इस के लिए फिल्म देखनी  पड़ेगी. वैसे फिल्म खत्म होने के बाद भी खत्म नहीं होती है. क्योंकि जब आप सोचते हैं कि फिल्म खत्म हो गई, तब फिल्म में दो गाने आते हैं. एक गाने में परदे पर श्रद्धा कपूर,राज कुमार राव के साथ गाती दिखती हैं, तो दूसरे में वह वरुण धवन के साथ नजर आती हैं. इस का रहस्य भी फिल्म देख कर ही समझा जा सकता है.

समीक्षाः

असम में जन्में अमर कौशिक ने 2008 में राज कुमार गुप्ता के साथ बतौर सहायक निर्देशक ‘नो वन किल्ड जेसिका’ की थी. फिर स्वतंत्र निर्देशक के रूप में 2018 में उन्होंने फिल्म ‘स्त्री’ निर्देशित की थी, जिस के लेखन व निर्माण से राज एंड डीके और सुमित अरोड़ा जुड़े हुए थे और उस वक्त ‘स्त्री’ की सफलता का श्रेय राज एंड डीके के सिर ही गया था. फिर अमर कौशिक ने 2019 में फिल्म ‘बाला’ और 2022 में फिल्म ‘भेड़िया’ निर्देशित की थी. इन दोनों फिल्मों ने बौक्स औफिस पर पानी तक नहीं मांगा था. अब असफलता का दंश झेल रहे अमर कौशिक ने 2018 की ‘स्त्री’ का सिक्वअल ‘स्त्री 2’ निदेशित की है, जिस में राज एंड डीके व सुमित अरोड़ा का कोई जुड़ाव नहीं है. लेखक के तौर पर इस बार नरेन भट्ट जुड़े हैं, जिन्होंने एक एजेंडे को ही पिरोने का पूरा प्रयास किया है. नरेन भट्ट का ज्ञान कितना कम है, इस का एहसास इस बात से लगाया जा सकता है कि फिल्म में संवाद है कि अगर ‘सरकटा’ पर जल्द काबू  पाया गया तो यह ‘चंदेरी’ को दो सौ वर्ष पीछे ले जाएगा. नरेन भट्ट को पता ही नहीं है कि दो सौ वर्ष पहले भी भारतीय नारी सशक्त थीं. अहिल्याबाई होल्कर से ले कर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सहित तमाम वीरांगनाएं इसी देश की हैं. लेकिन फिल्म ‘स्त्री 2’ के सर्जकों ने फिल्म में पितृसत्तात्मक सोच के तहत ही ‘सरकटा’ को रचा है.

सरकटा उन युवा महिलाओं का अपहरण कर अपने अड्डे पर बंदी बना कर रख रहा है जो कि मौडर्न हैं, पढ़ीलिखी हैं, आधुनिक पोशाक पहनती हैं और आधुनिक यानी प्रगतिशील सोच रखती हैं. ‘सरकटा’ के आतंक के चलते पुरूषों ने घर की महिलाओं को घर के अंदर कैद कर दिया है. औरतों ने अपने खुले गले के ब्लाउज में कपड़ा जुड़वा कर को बंद गले का करवा दिया. लड़कियों का स्कूल जाना बंद कर दिया गया है. अब मंदिर में पूजा व आरती भी सिर्फ पुरूष ही करते हैं. यानी महिलाओं को पूूरी तरह से चौकाचूल्हे तक सीमित कर दिया गया. इस तरह जम कर पितृसत्तात्मक सोच का महिमामंडन किया गया है. फिल्म में सैकड़ों पुरूष मिल कर आरती करते हैं, इस तरह के दृश्य कई बार दिखा कर धर्म का महिमामंडन किया गया है. दुर्गा सप्तषती के एक अध्याय में रक्तबीज नामक राक्षस को दुर्गा देवी मारने आती है तो उस पर जितनी बार वार किया जाता है,जितना खून उस के शरीर से गिरता है, उतने ही ही असुर पैदा होते रहते हैं. फिल्मकार ने फिल्म ‘स्त्री 2’ में दिखाया है कि विक्की जितनी बार ‘सरकटा’ के हाथ में मौजूद ‘सिर’ के दो टुकड़े करता है, उतनी ही बार उस से कई गुना ज्यादा ‘कटे हुए सिर’ पैदा हो जाते हैं. और तो और जब ‘स्त्री’ चंदेरी को बचाने के लिए ‘सरकटा’ का विनाश करने के लिए आती है,जो कि हकीकत में भूत है तो वह भी लाल रंग की साड़ी में ‘देवी’ की ही तरह आती है. इस बार फिल्मकार ने ‘महाभारत’ को भी नहीं छोड़ा. जना के पास अचानक ऐसी ताकत आ जाती है कि वह ‘महाभारत’ के संजय की तरह ‘सरकटा’ की गुफा के बाहर बिट्टू व रूद्र के पास बैठे हुए गुफा के अंदर जो कुछ हो रहा होता है, उस का आंखों देखा हाल बताता रहता है. फिल्मकार का मन इतने से भी नहीं भरा तो रहयस्मयी लड़की से ‘काला जादू’ की बात भी करवा डाली. इस तरह के मनगढ़ंत व अविश्वसनीय दृश्यों का महिमामंडन कर फिल्मकार समाज व देश के साथ ही हमारी युवा पीढ़ी को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं? यह सब लेखक व निर्देशक का दिमागी दिवालियापन के अलावा कुछ नहीं है.

लेखन व निर्देशन में इतनी गलतियां है कि क्या कहा जाए. फिल्म की सब से बडी कमजोर कड़ी इस की पटकथा हैं. इंटरवल तक लगता है कि फिल्म की कहानी को लेखक व निर्देशक जबरन खींचने का प्रयास कर रहे हैं,जिस के चलते यह फिल्म सिरदर्द बन जाती है. निर्देशक ने पटकथा पर ध्यान देने की बजाय साउंड इंजीनियर की मदद से अति लाउड साउंड परोस कर लोगों को जबरन हंसने पर मजबूर करते हुए नजर आए हैं. ‘स्त्री’ के मुकाबले ‘स्त्री 2’ में ठहराव और नेचुरल हंसी का भी अभाव है. लेखक ने ‘सरकटा’ की बैकग्राउंड कहानी को ठीक से नहीं गढ़ा.फिल्म ‘स्त्री 2’ देखते समय ‘मुंज्या’ के घने जंगल और ‘लौर्ड औफ द रिंग्स’ की गुफाओं की याद आती है. इसी तरह अचानक भेड़िया कैसे ‘सरकटा’ की गुफा में पहुंच जाता है, जहां जाने का रास्ता किसी के पास नहीं है. वीएफएक्स काफी कमजोर है. ‘सरकटा’ अपहृत महिलाओं के सिर मुंडवा कर उन्हें सफेद साड़ी पहना कर रखता है. पहली बात तो यह सब उसके पास आया कहां से? दूसरी बात  गुफा में जिस तरह से अपहृत औरतों को दिखाया गया है, यह आपत्तिजनक है. मूल फिल्म ‘स्त्री’ में जो आकर्षक मासूमियत थी, साथ ही चीजों को चित्रित करने के तरीके में एक मूल लकीर भी थी, वह सब ‘स्त्री 2’से गायब है.फिल्म में पागलखाना के अंदर रहने वालों का चित्रण अत्यंत आपत्तिजनक है. फिल्म के चारों पुरूष किरदारों को अस्थिर दिमाग वाले व मूर्ख दिखाने के पीछे फिल्मकार की क्या सोच है, यह तो वही जाने.

अभिनयः

इस फिल्म में किसी भी कलाकार का अभिनय स्तरीय नहीं है. पंकज कपूर और राज कुमार राव अपने चिरपरिचित लहजे में ही नजर आए हैं. दोनों अपनेआप को दोहराते नजर आते हैं. पंकज त्रिपाठी व राज कुमार राव दोनों बेहतरीन कलाकार हैं पर इस फिल्म में जो कुछ किया है, उसे देख कर आश्चर्य ही हुआ. अपारशक्ति खुराना और अभिषेक बनर्जी को मान लेना चाहिए कि उन्हें अभिनय नहीं आता है. श्रृद्धा कपूर की प्रतिभा को जाया किया गया है.

‘खेल खेल में’ इटालियन फिल्म ‘परफैक्ट स्ट्रेंजर्स’ के रीमेक के नाम पर पुराने घिसेपिटे मुद्दे

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः परफैक्ट वर्ल्ड पिक्चर्स, टी-सीरीज फिल्म्स, वकाओ फिल्म्स

लेखकः मुदस्सर अजीज, पाओलो जेनोविस द्वारा लिखित ‘परफैक्ट स्ट्रेंजर्स’ पर आधारित

पटकथाः मुदस्सर अजीज, सारा बोडिनार

निर्देशकः मुदस्सर अजीज

कलाकारः अक्षय कुमार, एमी विर्क, फरदीन खान, आदित्य सील,अभिनेत्री तापसी पन्नू, वाणी कपूर, प्रज्ञा जयसवाल, चित्रांगदा सिंह व अन्य

अवधि: 2 घंटे 22 मिनट

‘दूल्हा मिल गया’,‘हैप्पी भाग जाएगी’,‘हैप्पी फिर भाग जाएगी’,‘पति पत्नी और वह’ फिल्मों के सर्जक मुदस्सर अजीज इस बार फिल्म ‘खेल खेल में ’ ले कर आए हैं. हम यहां याद दिला दें कि रवीना टंडन के पिता रवि टंडन ने 1975 में ऋषि कपूर को ले कर फिल्म ‘खेल खेल में ’ बनाई थी, जिसे बौक्स औफिस पर जबरदस्त सफलता नसीब हुई थी. तो मुदस्सर ने सब से पहले तो 1975 की सफलतम फिल्म के नाम को उधार लिया.उस के बाद 2016 में प्रदर्शित पाओलो जेनोविस की सफलतम इटालियन कौमेडी ड्रामा ‘परफेटी स्कोनोसियुटी’ अर्थात ‘परफैक्ट स्ट्रेंजर्स’ का भारतीय रूपांतरण इस में किया है.

मजेदार बात यह है कि इस इटालियन फिल्म पर 25 देशों में अब तब 28 रीमेक फिल्में बन चुकी हैं.भारत में कन्नड़ और मलयालम भाषा में भी रीमेक हो चुका है. मलयालम फिल्म में मोहनलाल ने अभिनय किया था.इस के अलावा इस पर एक नाटक भी हो रहा है. इतना ही नहीं इस फिल्म को देखते हुए हमें एक वेब सीरीज भी याद आती है,जिस में इसी तरह से कुछ लोगों को जंगल में बने एक बंगले में इकट्ठा किया जाता है और फिर उन के साथ गेम खेला जाता है. इस में कहानी को मोड़ देते हुए हत्याएं भी होती हैं. जब हमें खबर मिली थी कि मुदस्सर अजीज इतने रीमेक किए जा चुके फिल्म का पुनः रीमेक या भारतीयकरण करने जा रहे हैं तो बहुत आश्चर्य नहीं हुआ था.

वह इस से पहले बी आर चोपड़ा की 1978 में बनी फिल्म ‘पति पत्नी और वह’ का रीमक कार्तिक आर्यन को ले कर बना चुके हैं. तो वहीं वह ‘पति पत्नी और वह’ का सिक्वअल भी बना रहे हैं. यानी कि वह मौलिक की बजाय रीमेक में ही ज्यादा रुचि रखते हैं. माना कि मुदस्सर अजीज अपनी अब तक की फिल्मों में ह्यूमर को अच्छे से पेश करते आए हैं, मगर इस बार वह बात नही बनी.‘हैप्पी भाग जाएगी’, ‘हैप्पी फिर भाग जाएगी,’ ‘पति पत्नी और कौन’ में जो कुछ मुदस्सर दिखा चुके हैं उसी की पुनरावृत्ति इस फिल्म में है, वह नया कुछ सोच नहीं पाए. पति पत्नी के बीच किसी तीसरी औरत या पुरुष के आने से किस तरह रिश्ते बनतेबिगड़ते हैं, इस पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. मुदस्सर अजीज ने उसी को इस में पिरो दिया है.

कहानीः

फिल्म की कहानी के केंद्र में तीन दंपती और एक कुंआरा इंसान कबीर है. यह सभी वर्तिका की बहन की शादी में हिस्सा लेने जयपुर आए हुए हैं. यह सभी आपस में दोस्त भी हैं. पहला दंपती मशहूर प्लास्टिक सर्जन डाक्टर ऋषभ(अक्षय कुमार) और उन की पत्नी व लेखक वर्तिका (वाणी कपूर) हैं, जिसे दूसरी शादी की है. पहली पत्नी रश्मि से उन की बेटी अनाया है,जो कि वर्तिका को मां मानने को तैयार नहीं है.दूसरा दंपती घरेलू महिला हरप्रीत कौर (तापसी पन्नू) और कार डीलर हरप्रीत (एमी विर्क) का है. तीसरा दंपती बिजनेस मैन समर (आदित्य सील) और रईस नैना (प्रज्ञा जायसवाल) का है. इन्हीं का दोस्त कबीर (फरदीन खान), जो एक स्पोर्ट्स कोच है,जिन्हें स्कूल ने नौकरी से निकाल दिया है.

ऋषभ और वर्तिका की शादी टूटने की कगार पर है, जबकि हरप्रीत और उस का पति 6 साल से बच्चे के लिए ट्राई कर रहे हैं, वहीं समर दिनरात अपनी पत्नी नैना के पिता के बिजनेस में व्यस्त रहता है. शादी के दौरान रात में वर्तिका ने एक गेम खेलने का फैसला किया, जहां सभी को अपने फोन टेबल पर रखने थे और आने वाले हर संदेश को जोर से पढ़ना था और हर कौल को स्पीकर पर रखना था. पत्नियां खेल के लिए राजी हो जाती हैं लेकिन पति नहीं. आखिरकार, वह हार मान लेते हैं और अराजकता फैल जाती है.गहरे, अंधेरे रहस्य कोठरी से बाहर आते हैं जो उन के समीकरणों को गंभीर बनाना शुरू कर देते हैं. उस रात के बाद इन सभी दोस्तों की जिंदगी में क्या भूचाल आता है? क्या रायता फैलता है? यह जानने के लिए आप को फिल्म देखनी होगी.

समीक्षाः

इंटरवल से पहले तो यह फिल्म काफी बोर करती है. इंटरवल के बाद कुछ घटनाक्रम अच्छे बन पड़े हैं पर इंटरवल के बाद कई खुलासे फालतू व फिल्म की लंबाई बढ़ाने के लिए ठूंसे हुए लगते हैं. कुल मिला कर यह फिल्म दर्शकों को बांध कर नहीं रखती. किरदार अति बनावटी लगते हैं. सारे घटनाक्रम बनावटी लगते हैं. मुदस्सर अजीज ने खुद ही निर्देशन करने के अलावा कहानी लिखने से ले कर सारा बोड़िनार के साथ मिल कर पटकथा लिखी है. फिल्म टूटती शादियों, धोखा, पैरेंटिंग, समलैंगिकता, शादी के एडजस्टमेंट, कैरियर के लिए शोषण संतानहीनता, बेवफाई, जैसे घिसेपिटे मुद्दों पर ही बात करती है.यों तो कहा जाता है कि सच्चे दोस्तों के पास कोई रहस्य नहीं होता, लेकिन यह कितना ‘सच’ है.हम कितने माहिर ‘झूठे’ हैं, इस सदियो से चले आ रहे कटु सत्य को लेखक व निर्देशक मुदस्सर अजीज ने नई तकनीक यानी कि मोबाइल के जरिए पेश किया है, मगर मुद्दे वही अति पुराने. इस के लिए उन्हे इटालियन फिल्म ‘परफैक्ट स्ट्रेंजर्स का रीमेक का सहारा लेने की जरूरत क्यों पड़ गई? फिल्म देखते समय हमें कई बार नब्बे के दशक में जीटीवी पर प्रसारित सीरियल ‘तारा’ की याद अती रही.

यह फिल्म कहानी व पटकथा के स्तर पर भी काफी कमजोर है. किरदारों को ठीक से गढ़ा ही नही गया.हरप्रीत कौर द्वारा अच्छे ‘स्पर्म’ की तलाश व कबीर के ‘गे’ के मुद्दे को ले कर काफी रोचक घटनाक्रम लिखे जा सकते थे. पर फिल्मकार ने जिस तरह से इन दो मुद्दों को उठाया है, वह अजीब सा लगता है. फिल्मकार ने व्यभिचार, सफलता के लिए सैक्स का सहारा व सैक्स को कुछ ज्यादा ही तवज्जो दी है. महिला पात्र खुलेआम सैक्स की चर्चा करती हैं.18 वर्षीय बेटी के बैग में कंडोम की मौजूदगी पर पिता ऋषभ जिस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं,उस से एक सवाल जरूर उठता है कि फिल्मकार महोदय किस तरह का समाज रचना चाहते हैं. क्या वह भारत नहीं किसी अन्य देश के निवासी हैं.

मूल इटालियन फिल्म की कहानी के बारे में हमें जो पता है उस के अनुसार ‘खेल खेल में’ काफी बदलाव किया गया है. इतना ही नहीं मुदस्सर ने इस फिल्म में जिस तरह से सभी किरदारो को राउंड द टेबल बैठा कर ‘खेल’ रचा है,वह दर्शकों को 1986 में प्रदर्शित बासु चटर्जी निर्देशित क्लासिक फिल्म ‘एक रुका हुआ फैसला’ की याद दिलाता है. बतौर निर्देशक मुदस्सर अजीज एवरेज ही हैं.

‘झूठ बोलना और धोखा देना’ मानवीय प्रवृत्ति है, इस पर सैकड़ों फिल्में व सीरियल बन चुके हैं.अब मुदस्सर अजीज ने इटालवी फिल्म ‘परफैक्ट स्ट्रेंजर्स’ का भारतीयकरण करने के नाम पर बिग फैट वेडिंग की पृष्ठभूमि में ‘झूठ व धोखे का जो खेल रचा है,उस से वह दर्शकों को धोखा देने में कामयाब हो जाएंगे,ऐसी हमें उम्मीद नहीं है. दूसरी बात फिल्मकार भूल गए कि वक्त बदल चुका है.रिश्तों व विवाह के मायने भी बदल चुके हैं.लगभग हर अमीर खानदान व संभ्रात परिवार में लोगों ने शादीब्याह को व्यापार ही बना रखा है.व्यापार या कैरियर के नफानुकसान का हिसाबकिताब लगा कर ही शादियां हो रही हैं. ऐसे में फिल्मकार ने नया कुछ नहीं दे पाए.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो छिछोरे व किसी भी लड़की को पटाने के लिए टपोरी जैसी हरकतें करने वाले प्लास्टिक सर्जन ऋषभ मलिक के किरदार में कुछ हद तक अक्षय कुमार खुद को संभालते हुए नजर आए हैं. लेकिन वह फिल्म में किसी भी दृष्टिकोण से डाक्टर नजर नहीं आते.किरदार की इस गड़बड़ी के चलते वह दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पाते, जबकि लेखक व निर्देशक ने अक्षय कुमार को ही अपनी तरफ से ज्यादा से ज्यादा हाईलाइट करने का प्रयास किया है. कुछ लोग अक्षय के सौल्ट एंड पेपर लुक पर मोहित हो सकते हैं. ऋषभ की पत्नी व लेखिका वर्तिका के किरदार में वाणी कपूर का चयन गलत है. फिल्म में वह लेखक कहीं से भी नजर नहीं आती. वह सिर्फ खूबसूरत लगी हैं.

मां बनने का दबाव झेलते हुए पति हरप्रीत के झूठ को पकड़ कर झगड़ने की बजाय स्पर्म डोनर के स्पर्म से मां बनने का रास्ता चुनने वाली हरप्रीत कौर के किरदार में तापसी पन्नू का अभिनय शानदार है. पर पति के गे होने की बात सुन कर हरप्रीत कौर के किरदार में अपनी भावनात्मक उथलपुथल का संकेत देने के लिए बिखरे बालों और शराब की बोतल के साथ त्रासदी और कौमेडी को जोड़ने की कोशिश करते समय वह साबित करती है कि अब अभिनय उन के वश की बात नहीं. इस के अलावा तापसी पन्नू जैसी निडर, नारी उत्थान, नारी सशक्तिकरण व सशक्त महिला पात्रों को निभाते आई हैं. वह निजी जीवन में भी लगभग इसी तरह की हैं. पर पहली बार इस फिल्म में तापसी पन्नू ने हरप्रीत कौर का ऐसा किरदार निभाया है जो कि बहुत ही ज्यादा कमजोर है.उस का पति उसे बोलने नहीं देता.

बातबात पर टोकता व लोगों के सामने जलील करता रहता है. फिर भी वह अपने पति को खुश करने की कोशिश में लगी रहती है. इस तरह का किरदार निभाने के पीछे उन की क्या सोच रही,यह तो वही जाने,मगर इस तरह के किरदार में दर्शक तापसी से रिलेट नहीं कर पाते. कबीर के किरदार में फरदीन खान बिलकुल नहीं जमे. 14 साल बाद अभिनय में वापसी करते हुए उन्हें अपने अभिनय को सुधारने पर ध्यान देना चाहिए था पर ऐसा कुछ नहीं किया.एमी विर्क के हिस्से में करने के लिए कुछ खास रहा नहीं.समर के किरदार में आदित्य सील और नेहा के किरदार में प्रज्ञा जायसवाल का अभिनय ठीकठाक है.

अंत मेंः

अक्षय कुमार फिल्म की सफलता के लिए मन्नत मांगने कुछ दिन पूर्व वह मुंबई में हाजी अली पर जा कर चादर चढ़ाने के साथ ‘हाजी अली ट्रस्ट ’ को 1 करोड़ 21 लाख रुपए दान किए थे.पर यह भी उन के काम आएगा, ऐसा नहीं लगता.

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