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सोनम के रिसेप्शन में उदास दिखें रणवीर सिंह? क्या है माजरा

8 मई को सोनम कपूर और आनंद आहूजा की शादी हुई. उसी दिन रात को रिसेप्शन था. यहां पर कई बौलीवुड सेलेब्स जोड़ियों में पहुंचे. लेकिन यहां पर रणवीर सिंह ने अपनी गर्लफ्रेंड के बगैर पार्टी में शिरकत की. वैसे तो रणवीर ने पार्टी में जमकर डांस किया, खूब मस्ती की. लेकिन क्या आप जानते हैं पार्टी, मस्ती, डांस के रंगारंग कार्यक्रम के बीच वे सीढ़ियों पर उदास बैठे दिखें.

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सोशल मीडिया पर रणवीर सिंह की एक तस्वीर सामने आई हैं जिसमें वे एक कोने में अकेले में बैठे हैं और फोन पर बात करते हुए दिखाई दे रहे हैं. इस दौरान वे काफी उदास हैं. शायद लोगों से भरे उस महफिल में भी वह खुद को अकेला महसूस कर रहे थे और दीपिका को याद कर रहे थे. सोशल मीडिया पर उनकी यह फोटो सामने आने के बाद फैंस ने जमकर उनकी चुटकी ली. एक फैन ने फोटो शेयर करते हुए कैप्शन में पूछा- रणवीर सोनम-आनंद के रिसेप्शन में फोन पर किससे बात कर रहे हैं? जिसके जवाब में लोगों ने दीपिका के नाम पर मुहर लगाई.

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लेकिन जो गौर करने वाली बात है वह यह है कि इस फोटो पर दीपिका पादुकोण ने भी कमेंट किया है. उन्होंने दिल यानी की लव का इमोजी बनाया है.

गौरतलब है कि हाल ही में दीपिका के पेरेंट्स बेंगलुरू से मुंबई रणवीर के माता-पिता से मिलने आए थे. खबरों के मुताबिक इस साल के अंत में रणवीर-दीपिका शादी के बंधन में बंध जाएंगे.

VIDEO : पीकौक फेदर नेल आर्ट

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

बेहतर बनाम बदतर जौब्स

बिहार के सिवान जिले में 13 मई को  पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मार कर हत्या कर दी गई. फरवरी माह में दिल्ली के वसंतकुंज में रहने वाले, पेशे से टीवी पत्रकार, 30 साल के हरदीप की गोली मार कर हत्या कर दी गई. हत्या की वजह इतनी थी कि उस ने तेज आवाज में बज रहे म्यूजिक का विरोध किया. बंगलादेश में पिछले कुछ सालों में धर्मनिरपेक्ष बातें करने वाले कई पत्रकारों व बुद्धिजीवियों की बर्बर तरीके से हत्याएं की गईं जिन में स्वतंत्र लेखक, प्रोफैसर और पत्रकार शामिल हैं. बंगलादेश में ही नहीं, उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले पत्रकार हों या सीरिया और सोमालिया में अपनी जान को जोखिम में डाल कर अपनी जिम्मेदारी निभाने वाले पत्रकार हों, जानलेवा हमलों के शिकार हो रहे हैं.

ऐसे हालात पर अमेरिका में कैरियरकास्ट एजेंसी की एक शोध की ताजा रिपोर्ट बताती है कि पत्रकारिता का जौब दुनिया का सब से खराब जौब है. कैरियरकास्ट हर साल दुनियाभर की नौकरियों को ले कर सर्वे करती है और काम का दबाव, माहौल, सैलरी, फ्यूचर, आउटलुक के हिसाब से पता करती है कि कौनकौन से जौब्स बदतर हैं और कौनकौन से बेहतर. सर्वे के मुताबिक, वैज्ञानिक की नौकरी सब से अच्छी और रिपोर्टर की सब से खराब है. इस क्रम में मजदूर, वैल्डर, कचरा कलैक्टर, टैक्सी ड्राइवर, डेयरी किसान और लकड़हारे जैसे पेशे भी शुमार किए गए हैं. अमेरिकी सर्वे की तर्ज पर भारत में नौकरी हब डौट कौम के सर्वे के अनुसार, जो जौब्स सब से खराब माने गए हैं उन में सीवर सफाई कर्मचारी, मौर्चरी में काम करने वाले, फायरब्रिगेडकर्मी, रिपोर्टर, सेनाकर्मी, नौकरानी, कामवाली, धोबी व इस्त्रीवाला, हौस्पिटल अटैंडैंट, सिक्योरिटीमैन, वेटर, ऐंबुलैंस ड्राइवर, टैलीमार्केटर, टीचर, बसट्रक ड्राइवर, होटल में बरतन धोने वाले, कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव और लैब असिस्टैंट आदि शामिल हैं. हम अकसर ऐसी खबरों को चटखारे ले कर पढ़ते हैं और अगर हमारे परिचित उपरोक्त पेशे से जुड़े हैं तो उन का मजाक भी उड़ाते हैं. हम मान कर चलते हैं कि ये जौब्स सचमुच खराब हैं और हमें या हमारे बच्चों को ऐसे पेशों में नहीं जाना है. लेकिन क्या हम ने कभी यह सोचा है कि हम सब अगर इस तरह के पेशे से दूर रहने लगें या फिर कम सैलरी या तनाव ज्यादा होने के चलते इन नौकरियों से भागने लगें तो हमारे देश, समाज, व्यवस्था, शहरकसबों यहां तक कि देश के भविष्य का क्या होगा?

सफाईकर्मी की अहमियत

जो सीवरेज सफाईकर्मी बिना सुरक्षा उपकरण के जहरीली गैसों से भरी गंदी नालियों के अंदर घुस कर सफाई करते हैं, अगर अपने काम से मुंह मोड़ लें तो सारा शहर गंदगी के ढेर में तबदील हो जाएगा. आज हम इन के पेशे को ले कर नाकभौं सिकोड़ते हैं, लेकिन इन के काम के बगैर सांस लेने लायक भी नहीं रहेंगे. इतना खतरनाक और जानलेवा काम करने वाले इन कर्मियों को न तो उचित पैसा मिलता है और न समाज में मानसम्मान. हम अपने साफसुथरे घरों में क्लीन टौयलेट का प्रयोग करते हैं लेकिन यह नहीं सोचते कि हमारे इस टौयलेट को साफ रखने के लिए सफाईकर्मी ही हैं जो अपनी जान की भी परवा नहीं करते. महज 100-200 रुपए की दिहाड़ी के लिए गंदगी से भरे गटरों व मैनहोलों आदि में उतर कर शहर को साफ रखने वाले इस पेशे को बुरा कहना अमानवीयता और संवेदनहीनता ही है. शर्मिंदा होने की जरूरत है कि हम इन पेशों को उन का वाजिब हक व मान नहीं दिला पाए.

आखिर हम इन के लिए क्या करते हैं? कुछ नहीं. क्या यह हमारी जिम्मेदारी नहीं है कि हम इन के हक के लिए लड़ें और उचित पैसा व मान दिलाएं. पिछले कुछ महीनों में काम के दौरान देश में 61 सफाईकर्मियों की मौत हुई है. इन के काम करने और रहने के इलाके देख कर आप को उलटी आ जाएगी लेकिन फिर भी ये सिर झुकाए अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं. सिर्फ चैन्नई में 24 मई, 2003 और 17 अक्तूबर, 2008 के बीच 17 सीवर कर्मचारियों की मौत, मैनहोलों की सफाई करते समय गंदी जहरीली गैस चढ़ने से हो गई थी. अगर ट्रेड यूनियनों की मानें तो यह आंकड़ा बीते 2 दशकों में 1,000 पार कर चुका है. हर समय कार्बन मोनोऔक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड और मीथेन जैसी जहरीली गैसों के बीच गंदगी को साफ करते रहने के चलते ये कई तरह के चर्म रोगों के भी शिकार होते हैं.

इंप्लौयमैंट औफ मैनुअल स्कैवेंजर्स ऐंड कंस्ट्रक्शन औफ ड्राई लैटरीन्ज (प्रोविजनल) एक्ट 1993 के तहत मानवीय हाथों से मैनहोल या गटर तो क्या, घरों के सैप्टिक टैंक भी साफ करना गैरकानूनी है. लेकिन कितने कानून अमल में लाए जाते हैं, बताने की जरूरत नहीं है. आज भी मैला ढोने की प्रथा देश के कई इलाकों में बदस्तूर जारी है. 1996 में महाराष्ट्र के हाईकोर्ट ने सीवरों में काम करने वाले सफाईकर्मियों को प्राथमिक सुरक्षा उपकरण जैसे बैल्ट, औक्सीजन व मापदंड यंत्र आदि देना कानूनन अनिवार्य कर दिया था. वर्ष 2000 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी सीवरों में कार्यरत सफाईकर्मियों की सुरक्षा हेतु दिल्ली जल बोर्ड को विशेष हिदायतें दी थीं. पर सालों बीत गए ये कर्मी अपने रिस्क पर आज भी हमारे घर, शहर, नालियों और गटर को साफ कर रहे हैं. अगर आज इन की हालत बदतर है तो हमारी संवेदनहीनता और स्वार्थ की वजह से.

लोकतंत्र की रक्षक मीडिया

पत्रकारिता के पेशे को तनाव और जान जोखिम वाला बता कर इस से दूर रहने की सलाह दी गई है. इस पेशे को लकड़हारे के जौब से भी नीचे रखा गया है. सर्वे के मुताबिक, साल 2022 तक इस में और भी गिरावट आने का अंदेशा है. इस के पीछे यह सोच है कि इस पेशे में जान का जोखिम और डैडलाइन की तलवार सिर पर लटकती रहती है. इसी धारदार लक्ष्य को पूरा करने की जिद और समाज को न्यायपालिका, कार्यपालिका व विधायिका की हर गतिविधि से निष्पक्षतौर से वाकिफ करने का जनून लिए इस पेशे को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है. जाहिर है देशदुनिया के बिगड़ते हालात, भ्रष्टाचार, सरकारी अनियमितता और समाज विरोधी तत्त्वों के खिलाफ आवाज बुलंद करने में पत्रकारों को जान भी गंवानी पड़ती है, फिर चाहे अंधविश्वास के खिलाफ लड़ने वाले मुंबई के गोविंद पंसारे दाभोलकर हों या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले आरटीआई कार्यकर्ता शहला मसूद और नदीम सैयद.

27 सितंबर, 2007 को यांगून के सिटी सैंटर में प्रोटैस्टर्स को खदेड़ने में पुलिस और सेना की कार्यवाही के दौरान एपीएफ के 50 साल के जापानी वीडियोजर्नलिस्ट केंजी नागई के एक सैनिक की गोली लगने से मौत हो गई थी. रायटर्स की मिडिल ईस्ट एडिटर सामिया नेखाओ 8 अप्रैल, 2003 को बगदाद के फिलिस्तीन होटल में से रिपोर्ट कर रही थीं कि तभी एक यूएस टैंक ने उस होटल पर निशाना साध दिया. जिस में वे बुरी तरह घायल हो गई थीं. 22 फरवरी, 2013 को सीरिया के होम्स शहर में सरकारी बलों द्वारा किए गए हमले में अमेरिकी संवाददाता मरी काल्विन मारे गए थे. इस हमले में और भी कई पत्रकार घायल हुए थे. दुनियाभर में पत्रकार अपनी जान पर खेल कर आमजन के लिए जरूरी खबरें जुटा रहे हैं.

इतना सब करने के बावजूद मीडिया को जनता का समर्थन नहीं मिलता. अगर लोग पत्रकारों का समर्थन करें, सिर्फ लफ्फाजी से नहीं, बल्कि समय और धन से तो ये भी बड़ा बदलाव ला सकते हैं. लेकिन हम सिर्फ मजे के लिए टीवीन्यूज देखते हैं. हम ‘मीडिया बिकी हुई है’, ‘इस का फलां राजनीतिक पार्टी से कनैक्शन है’, ‘विज्ञापन ज्यादा दिखाते हैं’ जैसे जुमले दोहरा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं. जब कोई पत्रकार किसी घोटाले का खुलासा करता है तो उसे जनता का कोई सपोर्ट नहीं मिलता. हम बैठ कर तमाशा देखते हैं. नतीजतन, मीडिया के दफ्तरों पर हमले होते हैं, आगजनी होती है, सैंसरशिप पर हमलों के जरिए पत्रकारों की आवाज बंद कराने के प्रयास बढ़ जाते हैं. उन के साथ अपराधी जैसा व्यवहार किया जाता है क्योंकि उन में आपराधिक कृत्यों का खुलासा करने का साहस होता है.

इसलिए अगर अमेरिकी सर्वे कंपनी कैरियरकास्ट का शोध यह बताता है कि बीते 5 सालों में रिपोर्टर बनने का क्रेज तेजी से घटा है तो यह हमारे देश, समाज और हमारी हार है. हम ने उन्हें हतोत्साहित किया है, उन के जौब को बेहतर बनाने के बजाय बदतर बनाया है. और अगर आज लोग इस पेशे से भाग रहे हैं तो इस में भी हमारा ही नुकसान है. इस से लोकतंत्र कमजोर होगा. निरंकुश ताकतों का राज चलेगा और आम आदमी की आवाज सुननेकहने वाला कोई नहीं होगा.

हिकारतभरा रवैया क्यों?

देश के ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में मौर्चरी विभाग होता है जहां कुछ कर्मी शवों की देखभाल करते हैं. वे विकृत, सड़ेगले, दुर्घटनाग्रस्त शवों को फ्रीजर में रखना, उन की देखभाल करना, पोस्टमार्टम आदि प्रक्रिया में शामिल होते हैं. यों तो अस्पतालों के मौर्चरीरूम में फ्रीजर होता है लेकिन कई जगहों में ये फ्रीजर इतनी बेकार हालत में होते हैं कि शव को सुरक्षित रखने के लिए बाहर से बर्फ मंगवाई जाती है. इतना ही नहीं, लावारिस और अज्ञात अवस्था में आने वाले शव बिना फ्रीजर व बर्फ के सड़ांध मारते रहते हैं. कई शव इतने क्षतिग्रस्त होते हैं कि उन्हें परिजन लेने ही नहीं आते. सड़कहादसों में मरने वाले अज्ञात लोगों को मौर्चरी में उन की शिनाख्त के लिए 48 घंटों तक रखा जाता है. मौर्चरी में रोजाना कई शवों का पोस्टमार्टम होता है. कई सिविल अस्पतालों में डीप फ्रीजर का कनैक्शन न होने के चलते 24 घंटे बाद शव दुर्गंध मारने लगते हैं.

तेज गरमी के दिनों में पारा ज्यादा रहता है, बेचारे किसी तरह दूषित वातावरण में नाक को रूमाल से ढांप कर काम करते हैं ताकि बदबू न आए. अगर ये अपना काम ईमानदारी से न करें तो शहर सांस लेने लायक न रहें, गंध से न जाने कितनी बीमारी फैलें. कई सरकारी मौर्चरी के हाल तो इतनी बदतर हैं कि वहां से उठती दुर्गंध और बजबजाते कीड़े कर्मचारियों के लिए मुसीबत बन जाते हैं. ज्यादातर अस्पतालों के सब से पिछले हिस्से में एक कमरे को मौर्चरी के रूप में प्रयोग किया जाता है. इस मौर्चरी में न तो उचित प्रकाश की व्यवस्था होती है और न ही साफसफाई का इंतजाम. शवों के कारण कई बार नेवला आदि भी पहुंच जाते हैं. मौर्चरी का फर्श नीचा होने से उस में पानी आदि भी नहीं निकलता है. इस से स्थिति और भी भयावह हो जाती है. कई बार तो कर्मी खाना भी नहीं खा पाते हैं. इतना सब करने के बावजूद, इन्हें इस के एवज में क्या मिलता है? समाज में इन को देख कर नाकभौं सिकोड़ी जाती है. पैसा भी इतना कम कि दो जून की रोटी का गुजारा भारी न हो पाए. आपातकालीन सेवाओं में कार्यरत ऐसे कर्मचारियों को कई बार वेतन देने में विलंब तक किया जाता है.

इसी तरह सेनाकर्मी सालभर घर से बाहर लद्दाख के माइनस डिगरी तापमान के बर्फीले माहौल में अपनी हड्डियां गलाते हैं, देशसेवा के नाम पर आतंक का मुकाबला करते शहीद हो जाते हैं. देश का युवा सेना में भरती होने से कतराता है तो इस के पीछे यही वजह है कि इन के सम्मान व आर्थिक उद्धार को मजबूत नहीं किया गया. क्या वजह है जो सेना में भरती होने वाले ज्यादातर जवान दूरदराज के गांवों से आते हैं या फिर वे होते हैं जिन के पास न तो जमीन है और न घर. इस पेशे को अगर तिरस्कार मिलता है तो उस के लिए हमारी व्यवस्था, समाज और हमारा शासन जिम्मेदार है. हम इन के लिए ऐसा कुछ नहीं करते कि इन की नौकरी को रुतबा मिले और नेता, बिजनैसमेन व ऊंची जाति के घरों से भी सैनिक निकलें.

मेहनतकश का तिरस्कार क्यों

धोबी, इस्त्रीवाला, हौस्पिटल अटैंडैंट, सिक्योरिटीकर्मी, वेटर, घरेलू नौकरानी, एंबुलैंस ड्राइवर, टैलीमार्केटर, टीचर, बसट्रक ड्राइवर, होटल में बरतन धोने वाले, कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव और लैब असिस्टैंट जैसे पेशे भी वर्स्ट जौब माने गए हैं. अस्पतालों में बीमार और चोटिल मरीजों को ले कर बदहवासी में घूमने वाले परिजन हौस्पिटल अटैंडैंट की भूमिका समझते हैं, नए उत्पादों, बच्चों व परिजनों के लिए पौलिसी की तलाश करते अभिभावक सेल्समैन की महत्ता जानते हैं. इसी तरह घर से दूर नौकरीपेशा और छात्र होटलों में खाना खाने वाले होटल में बरतन धोने वाले की भूमिका जानते हैं, वैज्ञानिक तकनीकों और मैडिकल साइंस के लोगों को पता है कि लैब असिस्टैंट का काम कितना अहम होता है. देश के भविष्य की नींव रखने वाले शिक्षक न हों तो हमारे नौनिहालों को शिक्षा कौन देगा? एंबुलैंस ड्राइवर अपनी सूझबूझ न दिखाएं तो न जाने कितने मरीज अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दें. बसट्रक के ड्राइवर अगर दिनरात सफर न करें तो परिवहन सुविधाएं ठप हो जाएं और जरूरी सामान की आवाजाही रुक जाए. समाज या देश की समुचित प्रणाली, तंत्र को सुचारु रूप से चलने, हमारी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार और रोजमर्रा की जरूरतों को आसान करते इन जरूरी व इज्जतदार पेशों को वर्स्ट यानी बदतर जौब्स की श्रेणी में डाल कर उन का तिरस्कार करना न सिर्फ उन की मेहनत, कर्त्तव्यपरायणता और ईमानदारी की तौहीन है, बल्कि उन को हतोत्साहित करने से देश का विकास भी अवरुद्ध होता है. इन की मदद के बिना न तो हम एक कदम चल सकते हैं और न ही यह देश. फिर हम क्यों न इन पेशों से जुड़े मेहनतकशों को उन का वाजिब हक, पैसा, मानसम्मान दिला कर उन को और अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित करें, न कि उन का मजाक बनाएं. हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी. फिर इन्हीं पेशों के एक दिन बदतर से बेहतर होते देर नहीं लगेगी.

अकर्मण्यता, कामचोरी बनाम तिरस्कृत पेशे

फायरमैन आगजनी के हादसों से जूझ कर देश की लाखोंकरोड़ों की संपति व इंसानों की जानें बचाते हैं. कई बार वे भीषण आग में जल कर जान भी गंवाते हैं. बावजूद इस के, जबलपुर में नगर निगम फायर ब्रिगेड में करीब 26 साल से फायरमेन की सेवा दे रहे दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं है. करीब 16 फायरमैन 1990 से अपना काम कर रहे हैं. अदालत ने इन के पक्ष में फैसला किया है. फिर भी इन्हें नियमित नहीं किया जा रहा है. इसी तरह अमृतसर में एक माह से वेतन न मिलने के कारण निगम के फायर ब्रिगेड कर्मचारी प्रदर्शन कर रहे हैं. उन की भी कोई नहीं सुन रहा. ऐसे में इस पेशे को बदतर कहने से पहले जरा सोचने की जरूरत है. अकसर होटलों में काम करने वाले वेटर/बैरे या घर में काम करने वाले मेड या कामवाली बाई के साथ हम मानवीयता से पेश नहीं आते. दुत्कारना, गालीगलौज कर के बात करना हमारी फितरत हो गई है. इसलिए इस पेशे को भी बदतर माना गया है. हालांकि महानगर और शहरों का शायद ही कोई घर होगा जिस का काम बिना कामवाली के चल जाए. एक दिन ये न आए या आने में देर हो जाए तो हम अपाहिज जैसे हो जाते हैं. घर में अजीब सी गंध आने लगती है, कूड़ाकचरा और बरतन यों ही फैले रहते हैं, बिस्तर तक ठीक नहीं होता.

सोचने वाली बात है कि जो हमारे घरों को रहने लायक साफसुथरा बनाता हो, वह पेशा छोटा कैसे हो सकता है? इज्जतदार और सामाजिक तौर पर बेहद जरूरी ऐसे पेशों को हम अपनी छोटी सोच के जरिए छोटा बनाते हैं. होना तो यह चाहिए कि हम उन के इस काम के लिए उन्हें ज्यादा पैसे दें और उन्हें सम्मान भी दें ताकि लोग ऐसे कामों से मुंह न चुराएं. हमारे रूखे व्यवहार से आजिज आ कर कई बार घर के नौकर घर की गुप्त जानकारियां असामाजिक तत्त्वों तक पहुंचा देते हैं. अगर हम उन के साथ आत्मीयता से पेश आएं तो वे, घर के सदस्य की तरह, जीजान से हमारी सेवा करेंगे और अपने पेशे पर गर्व कर सकेंगे.

भटकाव की परिणति

2014 में जो आशा जगी थी कि देश के युवाओं को एक नया युग मिलेगा वह अब खत्म सी हो गई है. शासन और सरकार वैसे ही सरक रही है जैसे पहले खिसकती चलती थी. बड़ी बड़ी बातों के बावजूद न नई नौकरियां निकल रही हैं और न नए कारखाने या व्यापार चमक रहे हैं.

वैसे यह उम्मीद करना कि देश को बनाने की जिम्मेदारी नेताओं या प्रधानमंत्री की ही है, कुछ गलत है. एक देश को गर्व होना चाहिए अपने युवा खून पर और इस देश में उन की कमी नहीं. जहां दूसरे अमीर देश कम होती युवा जनसंख्या पर चिंतित हैं, हमारे यहां हर साल नया खून नौकरी की तलाश में और ज्यादा गिनती में निकल रहा है.

बस अफसोस यह है कि यह नया खून पकीपकाई खिचड़ी चाहता है. ज्यादातर की तो इच्छा सरकारी नौकरी पाने की है ताकि जीवन भर अच्छा वेतन, पावर व रिश्वत कमाने के मौके मिल जाएं. इस के लिए यह खून हर तरह के दंड पेलने को तैयार है सिवा अपनी मैरिट सुधारने के.

देश भर में फैले कोचिंग सैंटरों में भरमार इस बात का सुबूत है कि मातापिता की गाढ़ी कमाई को पढ़ाई के नाम पर और परीक्षा पास करने के नाम पर खर्च किया जा रहा है ताकि सरकारी नौकरी मिल जाए या अच्छी कंपनी में छोटी ही सही नौकरी मिल जाए.

उत्पादकता बढ़ाने, नया सोचने, नया करने, सुधारने, बदलाव लाने में किसी की इच्छा नहीं. मनोरंजन के क्षेत्र में कुछ होता नजर आता है पर वह कुल मिला कर निरर्थक, क्योंकि अनुत्पादक है. अच्छे गायक या नर्तक बन कर कुछ को पैसा मिल जाए पर देश का और युवाओं का कल्याण नहीं होने वाला.

यह समस्या भारत की ही नहीं है. अमेरिका के विचारक भी चिंतित हैं कि अब उत्पादकता बढ़ाने के शोध पर कुछ नया काम नहीं हो रहा. सारा मुनाफा बोनस के रूप में केवल उन को बांट दिया जाता है जो यह खोज कर सकें कि किस तरह लोगों की जेब से पैसे निकलवाएं.

डिजिटल क्रांति से बहुत कुछ सरल हुआ है. कहना सुनना अब सैकड़ों में होने लगा है. हर कान में आज तार लगा है, हर आंख एक स्क्रीन पर है. अब यह बताइए कि क्या इस से भैंसों का दूध ज्यादा निकलेगा, जमीन में कारखाने लग जाएंगे, कपड़ा सस्ता हो जाएगा, कारें धुआं उगलना बंद कर देंगी?

युवाओं को जिस दिशा में काम करना चाहिए वह न भारत में हो रहा है न कहीं और. चीन के युवा भी अब लगता है आराम पसंद होने लगे हैं और पिछली पीढ़ी की कमाई का मजा लूट रहे हैं. यह खतरनाक है और शायद पश्चिम एशिया का खूंखारी युद्घ इसी भटकाव का परिणाम है, क्योंकि वहां का युवा भी निठल्ला, निरुद्देश्य है और उसे मरने मारने में ज्यादा ऐक्साइटमैंट नजर आ रही है.

ब्राइडल हेयरस्टाइल्स फौर समर सीजन

आज की दुलहन के पास परफैक्ट हेयरस्टाइल के लिए अनेक औप्शन हैं, जो उसे परफैक्ट ब्राइड का लुक दे सकते हैं. फैब मीटिंग में इस बार भावी दुलहनों के कन्फ्यूजन को दूर करने के लिए सैलिब्रिटी हेयरस्टाइलिस्ट परमजीत सोई ने समर वैडिंग की ब्राइडल हेयरस्टाइल के अनेक औप्शन बताए. आइए जानते हैं इन ब्राइडल हेयरस्टाइल्स के बारे में:

क्लासिक ब्राइडल हेयरस्टाइल

सब से पहले बालों को अच्छी तरह कंघी कर के सुलझा लें. सारे बालों को अच्छी तरह आयरन करें. फिर हेयर स्प्रे करें और एक पोनी बनाएं. पोनी को गूंथ कर साधारण चोटी बनाएं और जूड़े की तरह क्राउन एरिया पर, गोल एरिया पर गोल घुमाते हुए पिनअप करें.

सारे बालों को हौट रोलर से कर्ल करें व इयर टू इयर पार्टिंग करते हुए बालों का एक सैक्शन निकाल कर सामने की तरफ एक चोटी बनाएं. बालों का एक सैक्शन ले कर पीछे के बालों को बांधे और पिनअप करें. इस के बाद बालों के अलगअलग सैक्शन ले कर 1-1 कर के जूड़े की तरह पिनअप करें. बाद में 2-3 बूंदें हेयर सीरम ले कर बालों को क्लीन लुक दें.

बालों को ब्लो ड्राई करें और सामने की तरफ एक वी सैक्शन निकालें. क्राउन एरिया के पास से बालों का बड़ा यू सैक्शन निकालें. अब कान के ऊपर की तरफ से बालों का एक सैक्शन लें और उस की चोटी बना लें. दूसरी तरफ से भी इसी प्रकार चोटी बनाएं और जब पीछे का हेयरस्टाइल बन जाए तब उस पर अटैच करते हुए पिनअप करें. अब वी सैक्शन लें और सभी बालों की बैककौंबिंग करें. फिर क्राउन एरिया को ऊपर आगे की तरफ प्रैस करते हुए पिनअप करें. अब यू सैक्शन के दोनों तरफ से छोटेछोटे सैक्शन ले कर रोल करते हुए पिनअप करें. अंत में फ्लौवर बीड्स से ऐक्सैसराइज करें.

लंबे बालों का ब्राइडल हेयरस्टाइल

बालों की साइड पार्टिंग करते हुए बालों को 90 डिग्री में उठाते हुए सौफ्ट बैककौंबिंग करें. इस से बालों में बाउंस आएगा. ब्रश से नीट लुक देना न भूलें. अगर किसी ब्राइड का फोरहैड चौड़ा हो तो फ्रंट से कुछ ऐसा स्टाइल दें ताकि बाल थोड़े से माथे पर आएं. इस के बाद साइड के बालों को ट्विस्ट करते हुए पिन लगाएं. पीछे के बालों में से ऊपर के थोड़े बालों को ले कर 2 हिस्सों में बांट लें. बीच के बालों पर सैंटर में पिन लगाएं. इस से ऊपर वाले बाल क्लीन लगेंगे. इस के बाद एक साइड के बाल उठा कर कौंब कर के अटैच करें. दूसरी साइड पर पिन लगा दें. ऐसा दूसरी साइड के बालों के साथ भी करें. पीछे के थोड़ेथोड़े बाल ले कर ट्विस्ट करते हुए फ्लौवर की शेप देते हुए ऊपर वाले बालों पर अटैच करती जाएं. अंत में बालों में हेयर ऐक्सैसरीज लगाएं.

फैंटेसी ब्राइडल हेयरस्टाइल

इस हेयरस्टाइल को बनाने के लिए अगर बाल फ्रिजी हों तो उन्हें ब्लो ड्राई कर लें. बालों को सुलझाने के बाद इयर टू इयर पार्टिंग करें. पीछे के ऊपर के कुछ बालों को ले कर उन में रबड़बैंड लगाएं. बाकी बचे बालों को खुला छोड़ दें. सामने से बालों को हाइट देने के लिए स्टफिंग की मदद लें. ध्यान रहे स्टफिंग सौफ्ट हो. सैंटर से बालों को ले कर स्टफिंग को कवर करें. ध्यान रहे कि हेयर पिन ऐसे लगाएं कि आधी पिन स्टफिंग में व आधी बालों में रहे. बालों से बाहर दिखती पिन्स हेयरस्टाइल के लुक को खराब कर सकती हैं. अगर आप टीका लगाना चाहती हैं तो फ्रंट स्टाइल से पहले लगाएं. फिर क्राउन एरिया से थोड़े बाल ले कर बैककौंबिंग कर के हेयर स्पे्र करें व ब्रश से बालों को नौट करें. पार्टिंग करते हुए साइड के बालों को थोड़ाथोड़ा ले कर बैककौंबिंग करें व स्टफिंग से अटैच करें. ऐसा दोनों साइड करें. इस के बाद आगे के बचे बालों को टौंग करते हुए पीछे ले जा कर पिनअप कर दें. बालों को सैट करते समय हेयर स्प्रे साथसाथ करती रहें. इस के बाद पीछे के बचे बालों में डोनट लगाएं. डोनट को पोनीटेल के बालों से बैककौंबिंग करते हुए कवर करें. इन्हें सैट करने के लिए इन पर एक रबड़बैंड लगा दें. बचे बालों को उस में अटैच कर दें. अब जो बाल नीचे बचे हैं उन्हें बैककौबिंग करते हुए टौम्स बनाते हुए डोनट पर अटैच करती जाएं. ऐसा करते समय जूड़ा पिन और बौब पिन लगाएं ताकि बन टिका रहे. पूरा बन बनने के बाद उसे हेयर ऐक्सैसरी से ऐक्सैसराइज करें.

रिश्ते, प्यार व परिवार: कैरियर पर बैरियर

आज कैरियर की दौड़ में युवा रिश्तों व पर्सनल लाइफ का महत्त्व भूलते जा रहे हैं और उन्हें कैरियर की राह में बैरियर समझते हैं जबकि कैरियर, हाई स्टेटस, पैसा, सफलता आदि के साथसाथ रिश्तों और अपनों का होना भी खुशियां बांटने के लिए निहायत जरूरी है. अत: युवाओं को रिश्तों और कैरियर में बैलेंस बना कर चलना चाहिए.

स्वाति की कजिन कियारा, जिस के साथ स्वाति ने बचपन में लंबा समय बिताया था, जीवन के खट्टेमीठे पल एकसाथ शेयर किए थे, की मुंबई में मैरिज फिक्स्ड हो गई थी. कियारा चाहती थी कि स्वाति उस की मैरिज के हर फंक्शन में उस के साथ हो ताकि उस के जीवन का वह अनमोल पल उस के लिए यादगार बन सके, लेकिन संयोग से उसी दौरान स्वाति की बेंगलुरु में इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा थी. ऐसे में स्वाति ने कियारा की मैरिज अटैंड करने के बजाय अपने कैरियर को महत्त्व दिया और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा दी. कियारा को जब स्वाति के इस निर्णय का पता चला तो उसे हैरानी के साथसाथ दुख भी हुआ.

आप को अपने आसपास अधिकांश युवा स्वाति जैसे मिल जाएंगे जिन के लिए कैरियर पर्सनल लाइफ से अधिक महत्त्वपूर्ण है और वे इसे प्राथमिकता देते हैं.एक समय था जब युवा घर, परिवार, प्यार व दोस्ती को कैरियर से अधिक महत्त्व देते थे, लेकिन आज जमाना बदल चुका है, आज का युग प्रतियोगिता का है, जिस में युवाओं का फंडा है, ‘वही सक्सैसफुल है, जो अपनी इस उम्र को पूरी तरह अपने कैरि यर पर कुरबान कर दे.’ आज के युवाओं की महत्त्वाकांक्षाएं अत्यधिक बढ़ गई हैं. समाज में पैसे के बढ़ते महत्त्व के कारण भी युवा कैरियर को अधिक महत्त्व देने लगे हैं और बाद में अन्य चीजों के बारे में सोचते हैं.

पहले गांवों में उच्च शिक्षा की सुविधा न होने के कारण बच्चे दूसरे शहरों में पढ़ने जाते थे, लेकिन आज युवाओं में कैरियर में सफल होने की ललक इस कदर बढ़ गई है कि वे 10वीं व 12वीं के बाद ही घरबार छोड़ कर कैरियर बनाने की खातिर दूसरे शहरों में जा कर रहने लगे हैं. उन का एकमात्र उद्देश्य कैरियर में सफल होना होता है.

पीछे छूटती पर्सनल लाइफ

ग्लोबल स्वीडिश सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय युवाओं की प्राथमिकता सूची में काम, कैरियर और उच्च जीवन की चाहत सब से ऊपर हैं. एक ओर जहां भारतीय समाज में पारिवारिक संस्था को अत्यंत महत्त्व दिया जाता रहा है वहीं भारतीय युवा परिवार व बच्चे की चाह से दूर हो रहे हैं. वे परिवार को कैरियर में बैरियर यानी राह का रोड़ा समझने लगे हैं. सर्वे के अनुसार भारतीय युवाओं में देर से शादी भी चिंता का विषय है जिस के पीछे एकमात्र कारण उन का कैरियर को अधिक महत्त्व देना है. डिंक यानी डबल इनकम नो किड्स और सिंगल नौट रैडी टू मिंगल का चलन भी साबित करता है कि युवाओं के लिए कैरियर ज्यादा अहम है.

युवाओं की राय

इस बारे में आईआईटी की परीक्षा की तैयारी में जुटे 18 वर्षीय दिल्ली के अतिशय राठी का कहना है, ‘‘फर्स्ट चौइस कैरियर होना चाहिए. मार्केट में कंपीटिशन को देखते हुए कैरियर बनाना मेरी प्राथमिकता है. मैरिज या लव अफेयर के बाद कैरियर में सफल नहीं हुआ जा सकता. सफल कैरियर के बिना कोई पर्सनल लाइफ नहीं होती और मैं यह गलती हरगिज नहीं करूंगा.’’ इस बारे में गुड़गांव, हरियाणा में एक आईटी कंपनी में कार्यरत 25 वर्षीय स्वाति गोयल कहती है, ‘‘आज जरूरतें व ख्वाहिशें बढ़ गई हैं. ऐसे में कैरियर को प्राथमिकता देना जरूरी हो गया है. कैरियर को छोड़ कर प्यार या दोस्ती में पड़ना बेवकूफी हगी. किसी भी रिश्ते को खुशनुमा बनाए रखने के लिए आत्मनिर्भर होना जरूरी है. वैसे भी नौकरी या व्यवसाय में सफल होने के लिए शुरुआती मेहनत ज्यादा जरूरी होती है.

‘‘ऐसे में अगर पर्सनल लाइफ को महत्त्व देंगे तो आत्मनिर्भर नहीं बन पाएंगे और सफलता की दौड़ में पीछे रह जाएंगे. वैसे भी आज अधिकांश युवक वर्किंग वाइफ की डिमांड करते हैं इसलिए युवतियों का भी कैरियर को महत्त्व देना जरूरी हो गया है. मैं खुद भी ऐसा पति चाहूंगी जो कैरियर को प्राथमिकता दे.’’

सक्सैसफुल वही है जिस का स्टेटस हाई है

रायपुर के 28 वर्षीय व्यवसायी राकेश अग्रवाल का मानना है, ‘‘आज सोसायटी में वही सक्सैसफुल है, जिस का स्टेटस हाई है. इस सब के लिए आप को अपनी पर्सनल लाइफ व मौजमस्ती को त्यागना होगा तथा अपने कैरियर या व्यवसाय में सफल होना होगा. यही तो उम्र है कमाने की, भविष्य सुरक्षित करने की. मौजमस्ती के लिए तो पूरी उम्र पड़ी है. इमोशनल बनने के बजाय प्रैक्टिकल हो कर सफल हुआ जा सकता है. बड़ेबुजुर्ग भी कहते हैं, ‘गुजरा समय लौट कर नहीं आता,’ यह उम्र व्यवसाय में सफल होने की है. अगर आज मैं दोस्ती, रिश्तों व इच्छाओं को महत्त्व दूंगा तो सक्सैसफुल होने की रेस में पिछड़ जाऊंगा.’’

मनोवैज्ञानिक राय

युवाओं में कैरियर को ले कर बढ़ती गंभीरता के बारे में मनोवैज्ञानिक प्रांजलि मल्होत्रा का मानना है, ‘‘समाज में हर चीज का व्यावसायीकरण हो रहा है, उपभोक्तावादी संस्कृति पनप रही है इसलिए युवा खुद को सुखसुविधा के साधनों से लैस कर लेना चाहते हैं. इस ख्वाहिश के चलते वे कैरियर को पर्सनल लाइफ की अपेक्षा अधिक तवज्जो देने लगे हैं. युवाओं में कैरियर के प्रति बढ़ती इस गंभीरता के पीछे कहीं न कहीं पेरैंट्स भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि पेरैंट्स ही चाहते हैं कि बच्चे अपने कैरियर में सफल हों, नौकरी में अच्छा पैकेज पाएं, व्यवसाय में सफल हों, भले ही इस के लिए बच्चों को अच्छे कालेज व नौकरी के लिए उन से दूर, दूसरे शहर में रहना पड़े.’’ पर्सनल लाइफ की अपेक्षा कैरियर के प्रति अधिक लगाव युवाओं में डिप्रैशन, हाई ब्लड प्रैशर व अकेलेपन जैसी समस्याओं को जन्म दे रहा है. कैरियर को अधिक महत्त्व देते युवाओं की इसी चाहत का परिणाम है कि युवाओं में विवाह की उम्र बढ़ रही है, वे गर्लफ्रैंड, बौयफ्रैंड, लिव इन रिलेशनशिप से काम चला रहे हैं.

दरअसल, युवाओं के कैरियर को प्राथमिकता देने के पीछे भी एक ठोस कारण है. पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे, जहां खर्चे साझे हुआ करते थे, जिम्मेदारियां मिलबांट कर पूरी होती थीं, लेकिन आज स्थिति विपरीत है. एकल परिवार होने से जिम्मेदारियां भी बढ़ गई हैं जिस के चलते युवा कैरियर को ज्यादा महत्त्व देने लगे हैं.

ऊंचा स्टेटस न खो दे पर्सनल लाइफ

आज भले ही युवा हाई स्टेटस की ख्वाहिश में पर्सनल लाइफ की अनदेखी कर रहे हैं, लेकिन कैरियर में सफल होने की यह होड़ कहीं उन्हें रिश्तों के दायरे में अकेला न छोड़ दे. माना कि कैरियर, पैसा, सफलता सब जरूरी है, लेकिन उस सफलता, पैसे से खुशियां बांटने वाले रिश्तों, अपनों का होना भी उतना ही जरूरी है. ऐसे में रिश्तों और कैरियर को एकसाथ बैलेंस कर के चलने में ही समझदारी होगी. इसलिए कैरियर के साथ पर्सनल लाइफ में भी निवेश करें.

आपके नहीं, मजदूरों के लिए बनाई गई थी जींस

इस हाईटेक और ग्लोबलाइजेशन के युग में फैशन का बोलबाला है. कोई व्यक्ति फैशन को ज्यादा पसंद करता है तो कोई कम, लेकिन करते सब हैं. मान लीजिए अगर आपके फैशन में चार चांद लगाने वाले आपके कपड़ों की लिस्ट में से जींस का नाम हटा दिया जाए तो क्या ये लिस्ट पूरी हो पाएगी. तो जवाब होगा नहीं. दुनिया में हर उम्र और जेंडर के लोगों में जींस के प्रति कुछ खास लगाव है. पर क्या आपने कभी सोचा है कि जींस की शुरूआत कहां से हुई. किसके दिमाग में जींस बनाने का ख्याल आया होगा जो आज तक पुराना नहीं हुआ. तो आज आपको जींस के बारे में हम वो हर बात बताएंगे जिसे जानकर आपको थोड़ी नहीं बहुत हैरानी होगी.

मजदूरों के लिए बनाई गई थी जींस

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि शुरुआत में जींस वर्कर्स द्वारा पहनी जाती थी. भारत में डेनिम से बने ट्राउजर्स डूंगा के नाविक पहना करते थे, जिन्हें डूंगरीज के नाम से जाना जाता था. वहीं, फ्रांस में गेनोइज नेवी के वर्कर जींस को बतौर यूनिफॉर्म पहनते थे. उनके लिए जींस का फैब्रिक उनके काम के मुताबिक परफेक्ट था. जींस को ब्लू कलर में रंगने के लिए इंडिगो डाई का इस्तेमाल किया जाता था. हालांकि 16 वीं शताब्दी में जींस के चलन ने ज्यादा जोर पकड़ा, लेकिन बाकी देशों तक अपनी पहुंच बनाने में इसे काफी समय लग गया.1850 तक जींस काफी पॉप्युलर हो चुकी थी. इस दौरान एक जर्मन व्यापारी लेवी स्ट्रॉस ने कैलिफोर्निया में जींस पर अपना नाम छापकर बेचना शुरू किया.

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका की फैक्टिरियों में काम करने वाले वर्कर्स इसे पहना करते थे. और तो और यह उनकी यूनिफॉर्म में शामिल कर दी गई थी. पुरुषों के लिए बनी जींस में जिप फ्रंट में नीचे की तरफ लगाई जाती थी, वहीं महिलाओं के लिए बनी जींस में इसे साइड में लगाया जाता था. स्पेन और चीन में वहां के कॉउबॉय वर्कर्स जींस कैरी किया करते थे. वक्त के साथ जींस में नए-नए चेंज आने लगे. इसी के तहत अमेरिकन नेवी में बूट कट जींस को वर्कर्स की यूनिफॉर्म बनाया गया.

यह तो रही इसके इतिहास की बात, चलो अब हम आपको बताते हैं कि यह फैशन में किस तरह आई. दरअसल, 1950 में जेम्स डीन ने एक हॉलिवुड फिल्म ‘रेबल विदाउट अ कॉज’ बनाई, जिसमें उन्होंने पहली बार जींस को बतौर फैशन यूज किया. इस फिल्म को देखने के बाद अमेरिका के टीन एजर्स और यूथ में जींस का ट्रेंड काफी पॉप्युलर हो गया. इसकी लोकप्रियता कम करने के लिए अमेरिका में रेस्तरां, थियेटर्स और स्कूल में जींस पहनकर जाने पर बैन भी लगा दिया गया, फिर भी जींस का फैशन यूथ के सिर पर ऐसा चढ़ा की फिर उतरा ही नहीं.

धीरे-धीरे जींस की लोकप्रियता बढ़ने लगी और 1970 में इसे फैशन के तौर पर स्वीकार कर लिया गया. तब से अब तक जींस का क्रेज हर तबके के लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रहा है, फिर चाहे वह अमीर, गरीब, बच्चा, बूढ़ा या फिर जवान कोई भी हो.

बहू भी कराती है हत्या

आमतौर पर यह माना जाता है कि ससुराल में बहू पर ही अत्याचार होता है. यह अत्याचार कभी ससुर करता है कभी सास. लखनऊ के माल थाना क्षेत्र के नबीपनाह गांव की रहने वाली बहू पर उसकी ससुराल वालों ने कोई अत्याचार नहीं किया बल्कि खुद उसने ही करोडों की जायदाद के लालच में अपने ससुर की हत्या चचेरे देवर और उसके दोस्त के साथ मिलकर कर दी और हत्या के आरोप में अपने पति और सगे देवर को फंसाने की कोशिश की, पर अपराध छिपाये नही छिपता और बहू को अपने डेढ साल के बच्चे के साथ जेल जाना पड़ा.

नबी पनाह गांव में मुन्ना सिंह अपने दो बेटो संजय और रणविजय सिंह के साथ रहते थे. 60 साल के मुन्ना सिंह की आम कह बाग और दूसरी जायदाद थी. जिसकी कीमत करोडो में थी. मुन्ना के बडे बेटे संजय की शादी रायबरेली जिले की रहने वाली सुशीला के साथ 5 साल पहले हुई थी.

सुशीला के 2 बच्चे 4 साल की बडी लडकी और डेढ साल का बेटा था. सुशीला पूरे घर पर कब्जा जमाना चाहती थी. इस कारण उसने अपने सगे देवर रणविजय से संबंध बना लिये. जिससे वह अपनी शादी न करे. सुशील को डर था कि देवर की शादी के बाद उसकी पत्नी और बच्चों का भी जायदाद में हक लगेगा. यह बात जब मुन्ना सिह को पता चली तो वह अपने छोटे बेटे की शादी कराने का प्रयास करने लगे. सुशीला को जायदाद की चिन्ता थी. वह जानती थी कि देवर रणविजय ससुर को राह से हटाने में उसकी मदद नहीं करेगा.

तब उसने अपने चचेरे देवर शिवम को भी अपने संबंधों से जाल में फंसा लिया. जब शिवम पूरी तरह से उसके काबू में आ गया तो उसने ससुर मुन्ना सिंह की हत्या की योजना पर काम करने के लिये कहा. शिवम जब इसके लिये तैयार नहीं हुआ तो सुशीला ने शिवम को बदनाम करने का डर दिखाया और बात मान लेने पर 20 हजार रूपये देने का लालच भी दिया. डर और लालच में शिवम सुशीला का साथ देने को तैयार हो गया.

12 जून की रात सुशीला के सुसर बुजुर्ग किसान मुन्ना सिंह चैहान आम की फसल बेचकर अपने घर आये. इसके बाद खाना खाकर आम की बाग में सोने के लिये चले गये. वह अपने पैसे भी हमेशा अपने साथ ही रखते थे. सुशीला ने शिवम को फोन गांव के बाहर बुला लिया. शिवम अपने साथ राघवेन्द्र को भी ले आया था. तीनों एक जगह मिले और फिर मुन्ना सिंह को मारने की योजना बना ली. मुन्ना सिंह उस समय बाग में सो रहे थे. दबे पांव पहुंच कर तीनो ने उनको दबोचने के पहले चेहरे पर कंबल ड़ाल दिया. सुशीला ने उनके पांव पकड लिया और शिवम,राघवेन्द्र ने उनको काबू में किया. जान बचाने के संघर्ष में मुन्ना सिंह चारपाई से नीचे गिर गये. वही पर दोनो ने गमझे से गला दबा कर उनकी हत्या कर दी.

मुन्ना सिंह की जेब में 9 हजार 2 सौ रूपये मिले. शिवम ने 45 सौ रूपये राघवेन्द्र को दे दिये. सुशीला ने आलमारी और बक्से की चाबी ले ली. सबलोग अपने घर चले आये. सुबह पूरे गांव मे मुन्ना सिह की हत्या की खबर फैल गई. मुन्ना सिंह के बेटे संजय और रणविजय ने हत्या का मुकदमा माल थाने में दर्ज कराया. एसओ माल विनय कुमार सिंह ने मामले की जांच शुरू की. पुलिस ने हत्या में जायदाद को वजह मान कर अपनी खोजबीन शुरू की. मुन्ना सिंह की बहु सुशीला बारबार पुलिस को यह समझाने की कोशिश में थी कि ससुर मुन्ना के संबंध अपने बेटो से अच्छे नहीं थे. पुलिस ने जब मुन्ना सिंह के दोनो बेटो संजय और रणविजय से पूछताछ शुरू की तो दोनो बेकसूर नजर आये. इस बीच गांव में यह पता चला कि मुन्ना सिंह की बहू सुशीला के देवर से संबंध है. इस बात पर पुलिस ने सुशीला से पूछताछ शुरू की तो उसकी कुछ हरकते संदेह प्रकट करने लगी.

पुलिस ने सुशीला के मोबाइल की काल डिटेल देखनी शुरू की तो उनको पता चला कि सुशीला ने शिवम से देर रात तक उस दिन बात की थी. पुलिस ने शिवम के फोन को देखा तो उसमें राघवेन्द्र का फोन मिला. इसके बाद पुलिस ने राघवेन्द्र, शिवम और सुशीला से सबसे पहले अलग अलग बातचीत शुरू की. सुशीला अपने देवर रणविजय को हत्या के मामले में फंसाना चाहती थी. वह पुलिस को बता रही थी कि शिवम का फोन उसके देवर रणविजय के मोबाइल पर आ रहा था. सुशीला सोच रही थी कि पुलिस हत्या के मामले में देवर रणविजय को जेल भेज दे तो वह अकेली पूरे जायदाद की मालकिन बन जायेगी. पर पुलिस को सच का पता चल चुका था. पुलिस ने राघवेन्द्र, शिवम और सुशीला तीनो को आमने सामने बैठाया.तो सबने अपना जुर्म कबूल कर लिया.

14 जून को माल पुलिस ने राघवेन्द्र, शिवम और सुशीला को मजिस्ट्रेट के समाने पेश किया. वहां से तीनो को जेल भेज दिया गया. सुशीला अपने साथ डेढ साल के बेटे को भी जेल ले गई. उसकी 4 साल की बेटी को पिता संजय और चाचा रणविजय ने अपने पास रख लिया. जेल जाते वक्त भी सुशीला के चेहरे पर कोई शिकन नहीं था. वह बारबार शिवम और राघवेंद्र पर इस बात से नाराज हो रही थी कि उन लोगों ने यह क्यों बताया कि मारने के समय उसने ससुर मुन्ना सिंह के पैर पकड रखे थे.

जानिए इंटरनेट और मोबाइल पर सुरक्षित पासवर्ड के लिए क्या करें, क्या नहीं

दिनपर दिन हमारे रोजमर्रा की जिंदगी में इंटरनेट और मोबाइल की अहमियत बढ़ती जा रही है. ऐसे में हम अपने फोन और लेपटौप पर कई तरह के पासवर्ड डालकर रखते हैं. जो भी सोशल साइट्स का इस्तेमाल करते हैं उनमें भी पासवर्ड का इस्तेमाल करते हैं. पर क्या ये पासवर्ड सुरक्षित हैं. शायद इसका जवाब हममें से कोई नहीं दे सकता, लेकिन फिर भी पासवर्ड को सुरक्षित रखने के लिए अपनी तरफ से हर संभव प्रयास जरूर कर सकता है. आइए आपको बताते हैं इंटरनेट और मोबाइल पर सुरक्षित पासवर्ड रखने के लिए आप क्या करें और क्या नहीं.

क्या ना करें

  • सबसे जरूरी बात है कि एक ही पासवर्ड को एक से ज्यादा वेबसाइट के लिए इस्तेमाल ना करें वरना एक ताला टूटते ही सारे तालें खुल जाएंगे.
  • पासवर्ड को कागज पर लिखकर या फोन या कंप्यूटर पर स्टोर मत कीजिए.
  • पत्नी, बच्चे, अपार्टमेंट, फेवरिट फुटबौल क्लब वगैरह को भी अपना पासवर्ड बनाने से बचें जिन्हें लोग भांप सकते हैं और उसका फायदा उठा सकते हैं.
  • भूलकर भी 123456, 0000, 2468 या wxyz जैसे पासवर्ड इस्तेमाल न करें. कोई भी हैकर सबसे पहले ऐसे ही पासवर्ड ट्राई करते हैं, और कई बार सफल भी हो जाते हैं.

क्या करें

  • जितना लंबा और स्पेशल कैरेक्टर वाला पासवर्ड होगा, वह उतना ही सुरक्षित होता है.
  • अगर आप अंग्रेजी के शब्द और नंबर के अलावा उसमें एक-दो शब्द दूसरी भाषा के डाल देंगे तो पासवर्ड अधिक सुरक्षित हो जाएगा.
  • अगर आप पासवर्ड कागज पर लिखकर रखते हैं तो उसे पासवर्ड की तरह नहीं बल्कि किसी और शक्ल में लिखकर रखें जिसे सिर्फ आप ही समझ पाएं. मिसाल के तौर पर आप उसे उल्टा लिख सकते हैं या उसमें हर दूसरा या तीसरा कैरेक्टर गलत लिख सकते हैं, जिसे सही पढ़ने का तरीका सिर्फ आपको आता है.
  • हो सके तो अपने पासवर्ड कागज की बजाय आनलाइन लाकर में रखें. LastPass, SplashID Safe, 1Password जैसे सौफ्टवेयर स्टोर आपके पासवर्ड इनक्रिप्ट करके सुरक्षित रखते हैं.
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गूगल एंड्रायड P के ये फीचर्स बदल देंगे आपके स्मार्टफोन प्रयोग करने का तरीका

गूगल के वार्षिक डेवलपर कौन्फ्रेंस में गूगल ने अपने अपकमिंग एंड्रायड आपरेटिंग सिस्टम एंड्रायड पी को आधिकारिक तौर पर पेश कर दिया है. बताया जा रहा है कि अभी तक लौन्च हुए सभी एंड्रायड ओएस के नाम खाने की वस्तुओं के नाम पर रखे गए हैं. तो आइए जानते हैं एंड्रायड पी के वे खास फीचर्स जो आपके स्मार्टफोन को इस्तेमाल करने का तरीका पूरा तरह से बदल देंगे.

यह बताएगा कि आप आगे क्या सोचने वाले हैं?

एंड्रायड पी आपको यह बता सकता है कि आप अपने स्मार्टफोन पर आगे टाइप करने वाले हैं या नहीं. दरअसल एंड्रायड पी यूजर्स की पसंद और एक्वविटी को ट्रैक कर सकता है. इसका मकसद यूजर्स के समय और फोन की बैटरी को बचाना है.

डिजाइन

नए एंड्रायड पी में नेवीगेशन सिस्टम के इंटरफेस में बदलाव किया गया है. तुरंत एक्शन के लिए इसमें कई सारे नए बटन जोड़े गए हैं.

किस ऐप को आपने कितने देर प्रयोग किया?

एंड्रायड पी में एक डैशबोर्ड होगा जिसकी मदद से आप यह जान सकेंगे कि अपने अपने स्मार्टफोन के कौन-से ऐप को ज्यादा वक्त तक इस्तेमाल कर रहे हैं. इसी के साथ ही फोन को कितनी बार अनलौक किया गया आप ये भी पता कर सकते हैं. इसके अलावा अभी तक आपके फोन पर कितने नोटिफिकेशंस आए हैं? एंड्रायड पी में शामिल किये गए इस फीचर का मकसद लोगों को स्मार्टफोन की लत के बारे में अवगत कराना है.

सेटिंग टाइम

एंड्रायड पी में यूजर्स को ऐप का समय सेट करने का विकल्प दिया जाएगा, यानी अब आप तय कर सकेंगे कि किसी ऐप को कितनी देर इस्तेमाल करना है? तय समय पूरा होने पर आपको किसी अन्य ऐप के इस्तेमाल का सुझाव दिया जाएगा.

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‘संजू’ के नए पोस्टर में दिखा रणबीर कपूर का ‘रौकी’ अवतार

इस साल संजय दत्त की बायोपिक संजू रिलीज होने वाली है. इस फिल्म के लिए राजकुमार हिरानी ने रणबीर कपूर को संजू बनाया है. इस फिल्म का टीजर अप्रैल में रिलीज किया जा चुका है, जिसे सोशल मीडिया पर खूब तारीफें मिलीं. फिल्म का ट्रेलर आने के बाद से ही लोग इस फिल्म के रिलीज होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

वहीं इसी बीच राजकुमार हिरानी ने संजू का नया पोस्टर रिलीज किया है. इस पोस्टर में रणबीर रौकी लुक में देखाई दे रहे हैं. निर्देशक ने इस पोस्टर को जारी करने के लिए आठ मई की तारीख को चुना क्योंकि इसी दिन संजय दत्त की पहली फिल्म ‘रौकी’ रिलीज हुई थी.

रणबीर के कमबैक पर राजकुमार हिरानी का कहना था कि रणबीर तो यहीं था. वो कहीं गया ही कहां था. वो शानदार एक्टर है और मुझे उसके साथ काम करके बहुत मजा आया. उम्मीद है कि मैं दोबारा उसके साथ काम कर पाऊंगा.

‘संजू’ में रणबीर कपूर इतने शानदार लग रहे हैं कि फिल्म अभी से ही ब्लौकबस्टर मानी जा रही है. माना जा रहा है कि ये फिल्म रणबीर कपूर के करियर की दिशा पलट कर उन्हें बौक्स औफिस स्टार बना सकती है. फिल्म में रणबीर कपूर के अलावा मनीषा कोइराला, परेश रावल, अनुष्का शर्मा, दीया मिर्जा और सोनम कपूर जैसे कलाकार हैं. बता दें कि फिल्म 29 जून 2018 को रिलीज होगी.

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