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इन उपायों को अपनाकर हौट वैदर में भी रहेंगी हैल्दी

समर सीजन में जरा सी लापरवाही आप को गंभीर बीमारियों का शिकार बना सकती है. कुछ हैल्थ प्रौब्लम्स इस मौसम में कौमन होती हैं. आइए, जानते हैं कि क्या हैं वे और कैसे बचें उन से:

सनबर्न

सनबर्न इस सीजन की आम समस्या है. धूप में ज्यादा रहने के कारण अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में आने से त्वचा के टिशूज जल जाते हैं. सनबर्न के कुछ लक्षण हैं जैसे त्वचा का लाल होना, हलका चक्कर आना और थकान महसूस होना. अगर सनबर्न यूवी किरणों के कारण है तो यह त्वचा कैंसर का कारण भी बन सकता है.

बचाव: खुद को सनबर्न से बचाने के लिए बाहर जाने से 20 मिनट पहले शरीर के खुले हिस्सों पर सनस्क्रीन लोशन लगाएं.

हीटस्ट्रोक यानी लू लगना

हीटस्ट्रोक हाइपरथर्मिया का गंभीर रूप है. शरीर में बहुत ज्यादा गरमी अवशोषित होने के कारण ऐसा होता है. इस का इलाज न करना घातक साबित हो सकता है. इस के कुछ लक्षण हैं -सांस लेने में परेशानी, पल्स बढ़ना, शरीर का तापमान बढ़ना, भ्रमित महसूस करना आदि.

बचाव: दोपहर 11 से शाम 4 बजे के बीच जहां तक हो सके घर के भीतर ही रहें. अगर इस दौरान बाहर जाना ही पड़े तो चेहरे और शरीर को स्टोल से अच्छी तरह ढक लें.

घमौरियां

इस में ज्यादा तापमान के कारण त्वचा पर लाल रैशेज हो जाते हैं. पसीने की ग्रंथियों के छेद बंद हो जाने से भी ऐसा हो सकता है.

बचाव: प्रभावित हिस्से पर प्रिक्ली हीट पाउडर लगाएं. शरीर के उन हिस्सों पर जहां पसीना ज्यादा आता है, प्रिक्ली हीट पाउडर इस्तेमाल करें. अगर फिर भी लक्षण दिखाई दें तो तुरंत डाक्टर की सलाह लें.

फूड पौइजनिंग

इन दिनों ज्यादा गरमी के कारण भोजन जल्दी खराब हो जाता है. इसलिए हमेशा ताजे खा- एवं पेयपदार्थों का ही सेवन करें. अगर आप भोजन को कुछ समय के लिए रखना चाहते हैं तो पूरी सावधानी बरतें. फूड पौइजनिंग आमतौर पर खराब हो चुके भोजन या दूषित पानी के सेवन से होती है. इस के लक्षण हैं- पेट में दर्द, उलटी आना, डायरिया आदि. अत: कच्चे मांस, सड़क किनारे बेचे जाने वाले खुले भोजन का सेवन कतई न करें, क्योंकि इस के खराब होने की संभावना बहुत अधिक होती है.

बचाव: बचे भोजन को हमेशा फ्रिज में रखें. भोजन को अच्छी तरह पकाएं. खाने से पहले देख लें कि यह खराब तो नहीं हो गया है. फल और सब्जियां खरीदते समय ध्यान दें कि इन से किसी तरह की गंध तो नहीं आ रही है.

डायरिया

गरमी के मौसम में भोजन जल्दी दूषित होता है, इसलिए इस मौसम में डायरिया की संभावना अधिक होती है.

बचाव: डायरिया से बचने के लिए पानी को हमेशा उबाल कर पीएं. सब्जियों को काटने से पहले और बाद में अच्छी तरह धो लें. शरीर में तरल की कमी न होने दें.

पानी से फैलने वाले रोग

हम गरमियों में पानी में ज्यादा समय बिताना पसंद करते हैं. इस से बैक्टीरियल इन्फैक्शन फैलने की संभावना अधिक होती है. पाचनतंत्र संबंधी बीमारियां नदी, झील, पूल आदि के माध्यम से फैल सकती हैं. इस के अलावा इस से त्वचा, कानों और आंखों का संक्रमण, श्वसन, न्यूरोलौजिकल और वायरल बीमारियां भी फैलती हैं.

बचाव: साफ पेयजल का सेवन करें. ध्यान रखें कि जिस स्विमिंग पूल में आप जाते है वहां हमेशा क्लोरीन सही मात्रा में डाली जाती हो.

समर कोल्ड

एक तरह का वायरस ऐसी बीमारी पैदा करता है कि आप गरमियों में भी ठंड लगने जैसे लक्षण महसूस करते हैं. इसे ऐंट्रोवायरस कहा जाता है. इस के लक्षण हैं -सिर में दर्द, गले में खराश, मुंह सूखना, रैशेज आदि.

बचाव: आमतौर पर लक्षणों के अनुसार इलाज किया जाता है. ऐसे में फौरन चिकित्सक से संपर्क करें.

क्या खाएं क्या नहीं: खाने के लिए स्वादिष्ठ और सेहतमंद आहार के बहुत से विकल्प हैं. समर में मिलने वाली कई फलसब्जियां सेहत के लिए बहुत अच्छी मानी जाती हैं. इस मौसम में आप को सिट्रस फलों, तरबूज, कच्ची सब्जियां, मछली, ठंडा सूप, सफेद योगर्ट, अंडा, स्मूदी आदि का भरपूर सेवन करना चाहिए. इन के अलावा इस मौसम में ज्यादा कैफीन, कार्बोनेटेड पेयपदार्थों, अलकोहल और ज्यादा चीनी युक्त पदार्थों के सेवन से बचें.

खूब पानी पीएं: पानी शरीर को ठंडा रखता है. हवा में नमी होने के कारण पसीना जल्दी नहीं सूखता. इसलिए चाहे आप को प्यास न लगे तो भी थोड़ीथोड़ी देर बाद पानी पीते रहें.

ऐसा आहार लें जो फाइबरयुक्त हो. आसानी से पचने वाले भोजन का सेवन करें. गरम, तले, मसालेदार भोजन का सेवन न करें.

– डा. आर एस के सिन्हा, जनरल फिजिशियन, सीनियर कंसल्टैंट, जेपी हौस्पिटल, नोएडा

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ब्लौक प्रमुख के हक बढ़ने चाहिए : विजय लक्ष्मी

मोहनलालगंज राजधानी लखनऊ से तकरीबन 23 किलोमीटर दूर है. वह विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र भी है. राजधानी लखनऊ का एक बड़ा ग्रामीण इलाका इस में आता है. यह लखनऊ और रायबरेली के बीच बसा एक खास इलाका है. इस ब्लौक की प्रमुख विजय लक्ष्मी हैं. साल 2016 में वे ब्लौक प्रमुख चुनी गई थीं. वे तय समय पर अपने दफ्तर में क्षेत्र की समस्याएं सुनती हैं. इस के अलावा गांवगांव दौरा कर के लोगों की परेशानियां हल करने की कोशिश करती हैं.

वे जब तक दफ्तर में रहती हैं तब तक कोई न कोई अपनी फरियाद ले कर उन के पास आता ही रहता है. ज्यादातर लोग राशनकार्ड, आवास, हैंडपंप, खड़ंजा, बिजली, पुलिस और तहसील की अपनी परेशानियां ले कर उन के पास आते हैं. पेश हैं, विजय लक्ष्मी से की गई बातचीत के खास अंश:

आप का राजनीति में कैसे आना हुआ?

मेरी ससुराल गांव बिंदौआ में है. वहां बीडीसी यानी ब्लौक डैवलपमैंट कमेटी के चुनाव होने वाले थे. पंचायत चुनावों में रिजर्वेशन के चलते वह महिला सीट हो गई थी. मेरे पति वकील हैं. उन के कहने पर मैं ने पहले बीडीसी का चुनाव लड़ा. उस में 3 गांवों के लोग वोट डालते हैं. जब मैं ने अपना प्रचार शुरू किया था तो मुझे कोई जानकारी नहीं थी. लोगों से बात करना नहीं आता था. पति और कुछ करीबी लोगों ने इस में मेरी पूरी मदद की. लोगों के बीच बोलना सिखाया.

मैं ने बहुत मेहनत कर के चुनाव लड़ा और जीत गई. ब्लौक प्रमुख का चुनाव आया तो मैं निर्विरोध ब्लौक प्रमुख बन गई.

ब्लौक प्रमुख बनने के बाद आप की जिंदगी में क्या खास बदलाव हुआ?

पहले मैं केवल घरपरिवार और बच्चे ही देखती थी. मेरी 2 बेटियां और एक बेटा है. मैं उन को खुद ही पढ़ाती थी. मेरे बच्चे अपनी क्लास में हमेशा अव्वल आते हैं. अब बच्चों और परिवार के साथ क्षेत्र की जनताभी मेरी जिंदगी में शामिल हो गई है. मैं तय समय पर ब्लौक दफ्तर में बैठती हूं, लोगों से मिलती हूं.

चुनाव लड़ते समय मुझे लगता था कि ब्लौक प्रमुख बन कर मैं बहुत सारी परेशानियां दूर कर दूंगी पर कुरसी पर बैठ कर लगा कि ब्लौक प्रमुख से जनता को जिस तरह की उम्मीदें होती हैं, उन को पूरा करने के लिए ब्लौक प्रमुख को और ज्यादा हक मिलने चाहिए.

आप के पति विधायक कैसे बने?

साल 2017 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने चुनाव से पहले मेरे पति अंबरीश पुष्कर को टिकट दिया था. विधानसभा में बड़ा क्षेत्र आता है. ऐसे में हम लोगों के पास चुनाव प्रचार का समय कम था. मोहनलालगंज विधानसभा से पहले भी सपा की महिला विधायक थीं. उन का टिकट कट चुका था. ऐसे में पार्टी के कुछ लोग सहयोग नहीं कर रहे थे.

हम सब ने मिल कर चुनाव लड़ा. भारतीय जनता पार्टी की आंधी के बीच हम लोग चुनाव जीते और अंबरीश पुष्कर विधायक बन गए. पति के चुनाव प्रचार का बड़ा जिम्मा मेरे कंधों पर भी था. जीत के बाद अच्छा लगा.

आप की शादी कैसे हुई थी?

शादी के पहले हम लोगों की कालेज में मुलाकात हुई थी. तब हम ने शादी करने का फैसला किया था. हम एक ही जाति से थे, इस के बाद भी बड़ी मुश्किल से परिवार के लोग इस शादी के लिए राजी हुए.

शादी के बाद मेरी पढ़ाई बहुत आगे नहीं बढ़ सकी. मैं ने बीए कर लिया था, पर एमए नहीं कर पाई. शादी के बाद केवल मैं ने ही परेशानियां नहीं उठाईं, अंबरीश ने भी मेरा साथ देने के लिए बहुत मेहनत की. कुछ दिन शादीब्याह और दूसरे अवसरों में विडियोग्राफी भी की. फिर एलएलबी कर के वे मोहनलालगंज तहसील में ही वकालत करने लगे.

अच्छी बात यह है कि वे मुझे पूरा सहयोग करते हैं. राजनीति में वे मेरे पहले गुरु हैं.

परिवार और राजनीति में आप इतना तालमेल कैसे करती हैं?

मैं अपने समय को मैनेज करती हूं. बेटियां और पति मेरा पूरा साथ देते हैं. आज भी मैं घर का खाना खुद बनाती हूं. मुझे घूमने और फिल्में देखने का बहुत शौक है. अब कई बार पति वक्त नहीं निकाल पाते हैं, ऐसे में बच्चों के साथ घूमने चली जाती हूं.

मैं गांव की औरतों के सशक्तीकरण, सेहत और पढ़ाईलिखाई के लिए बहुत काम करना चाहती हूं. सच तो यह है कि गांव की औरतें भी बहुत हुनरमंद हैं पर उन को मौके कम मिलते हैं.

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रूढ़ियों पर चोट करता सिनेमा

देश में आज भी ऐसी कई रूढ़ियां हैं जिन पर समाज ज्यादा बोलने से कतराता है. इन्हीं में से एक है माहवारी, जिसे लोग औरतों से जुड़ा मुद्दा होने के चलते शर्म की बात मानते हैं, जबकि माहवारी औरतों के सेहतमंद होने और उन के मां बनने के काबिल होने की एक निशानी है. इस के बावजूद औरतों को माहवारी के दौरान गंदे कपड़े इस्तेमाल करने व साफसफाई न रखने से इंफैक्शन और गर्भाशय के कैंसर जैसी कई गंभीर बीमारियों तक से जूझना पड़ता है.

जो लोग माहवारी को ले कर थोड़ेबहुत जागरूक हैं, वे आज भी दुकानों से सैनेटरी पैड खरीदने में झिझक महसूस करते हैं और खरीदे गए सैनेटरी पैड को काली पन्नी या अखबारी कागज में लपेट कर ही घर ले जाते हैं. लोगों में माहवारी और साफसफाई के प्रति इतनी चुप्पी के बावजूद अचानक इन दिनों सोशल मीडिया पर लोगों के हाथों में सैनेटरी पैड लिए उन की सैल्फी व फोटो खूब वायरल हो रहे हैं. यह सब करना इतना आसान नहीं था. जो काम सालों से सरकार की मुहिम नहीं कर पाई वह माहवारी से जुड़ी एक फिल्म ने कर दिखाया.

इस फिल्म का नाम है ‘पैडमैन’ जिस के हीरो अक्षय कुमार हैं. उन्होंने माहवारी के मुद्दे को बड़ी ही गंभीरता से उठाया है.

यह फिल्म दक्षिण भारत के एक शख्स अरुणाचलम मुरुगनंथम की जिंदगी पर बनी है. इस फिल्म ने रिलीज होने के पहले ही लोगों की रूढि़वादी सोच को बदलने में कामयाबी हासिल कर ली थी. इस फिल्म की कहानी और डायलौग दोनों ही बेहद कसे हुए हैं. इस फिल्म से अक्षय कुमार ने लोगों की माहवारी को ले कर शर्म को दूर करने की भरपूर कोशिश की है. फिल्म में यह बताने की कोशिश भी की गई है कि औरत के लिए शर्म से बढ़ कर कोई बीमारी ही नहीं है.

इस फिल्म में एक जगह अक्षय कुमार अपनी बहनों को सैनेटरी पैड देते हैं तो उन्हें सुनने को मिलता है कि बहन को कोई ऐसी चीज भी देता है क्या? अक्षय कुमार जवाब देते हैं, ‘‘नहीं देता है पर देना चाहिए. राखी बांधी थी न तो रक्षा का वचन निभा रहा था.’’

इस डायलौग से यह जाहिर होता है कि माहवारी को ले कर हमारे समाज की क्या सोच है. फिल्म ‘पैडमैन’ ने इस सोच को पूरी तरह से नकारा है. आज इसी का नतीजा है कि जिस सैनेटरी पैड को लोग दुकानों से खरीदते समय सौ बार सोचते थे वही लोग आज सैनेटरी पैड को हाथ में ले कर फोटो खींच रहे हैं, इस के फायदे गिना रहे हैं.

सोच और शौचालय पिछले साल अक्षय कुमार की ही एक और फिल्म ‘टौयलेट : एक प्रेम कथा’ आई थी. इस फिल्म में खुले में शौच की समस्या को उठाया गया था. पाखंड और मनुवादी सोच पर भी करारी चोट की गई थी.

इस फिल्म का एक डायलौग ‘हां भाभी चलो, सवा 4 हो गए, सब इंतजार कर रहे हैं लोटा पार्टी में तुम्हारे वैलकम का’ साबित करता है कि ज्यादातर रूढि़यों का सामना औरतों को ही करना पड़ता है. इस फिल्म में पाखंड को ले कर बोले गए डायलौग ‘जिस आंगन में तुलसी लगाते हैं वहां शौच करना शुरू कर दें’ से यह जाहिर होता है कि आंखों पर चढ़ी अंधविश्वास की पट्टी बेहतर सेहत की राह में एक बड़ा रोड़ा है.

इस फिल्म की हीरोइन भूमि पेडनेकर एक जगह कहती हैं, ‘‘मर्द तो घर के पीछे बैठ जाते हैं, पर हम तो औरतें हैं हमें तो हर चीज के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी.’’ अक्षय कुमार भी कहते नजर आते हैं, ‘‘अगर बीवी पास चाहिए तो घर में संडास चाहिए.’’

इन डायलौगों से यह जाहिर होता है कि आज भी लोग लाखों रुपए लगा कर आलीशान मकान बनवा लेते हैं, लेकिन कुछ हजार रुपए लगा कर शौचालय बनवाने में फेल हो जाते हैं. इस सिलसिले में हीरो जफर खान का कहना है कि सामाजिक मुद्दों पर कहानी लिखने वालों की कमी और फिल्म में लगाए गए पैसे डूबने के डर से इस तरह की फिल्में बहुत कम बन पाती हैं. लेकिन जब भी इस तरह की फिल्में बनती हैं तो दर्शक उस फिल्म में दिखाई गई समस्या को खुद से जोड़ कर देखना शुरू कर देते हैं. यही वजह है कि इस तरह की फिल्में कम बजट की होने के बावजूद अच्छी कमाई करती हैं.

पाखंड पर करारा वार धर्म और पाखंड की पोल खोलती एक फिल्म ‘पीके’ आई थी जिस में आमिर खान ने दमदार ऐक्टिंग की थी. इस फिल्म के जरीए यह बताने की कोशिश की गई थी कि चमत्कार नाम की कोई चीज नहीं होती है. फिल्म में उन तथाकथित साधुसंतों को कठघरे में खड़ा किया गया था, जो चमत्कार दिखा कर लोगों को बेवकूफ बनाते हैं.

फिल्म ‘पीके’ ने तर्क के सहारे धर्म और पाखंड के नाम पर दुकान चलाने वालों की बोलती बंद कर दी थी. धार्मिक मूर्तियों की एक दुकान पर आमिर खान कहते हैं कि क्या मूर्ति में ट्रांसमीटर लगा है जो भगवान तक उस की आवाज पहुंचेगी? जब भगवान तक आवाज नहीं पहुंचती, तो मूर्ति की क्या जरूरत? इसे साबित करने के लिए वे कालेज में एक पेड़ के नीचे पड़े एक पत्थर पर लाल रंग पोत देते हैं जिस पर छात्र अपने पास होने की मन्नतें मांगते नजर आते हैं. फिल्म ‘ओह माई गौड’ में धर्म के उन ठेकेदारों पर निशाना साधा गया था जो धर्म की अपनी दुकान को बचाए रखने के लिए क्या कुछ नहीं करते हैं.

इस फिल्म में परेश रावल ने सभी तबकों को कठघरे में खड़ा किया था. फिल्म यह संदेश देने में कामयाब रही थी कि धर्म का डर इनसान खुद अपने मातापिता से सीखता है और आगे चल कर अपनी आने वाली पीढि़यों को भी सिखाता है. इस देश में धर्म का डर दिखा कर सौदे तय किए जाते हैं, तावीजगंडे पहना कर अमीर बनने के ख्वाब दिखाए जाते हैं. धर्म और आस्था के नाम पर लोग भी लुटने को तैयार रहते हैं. औरतों की अस्मत तक लूटी जाती है, लेकिन लोग धर्म के डर से मुंह खोलने से कतराते हैं.

इस मसले पर हीरो रविशंकर मिश्रा का कहना है कि फिल्मों में दिए गए संदेशों का असर दर्शकों के दिमाग पर तब आसानी से होता है, जब समाज में फैली कुरीतियों और समस्याओं से जुड़ी कहानी हो.

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तो क्रियाज क्रिएशंस की संपत्ति होगी जब्त

जौन अब्राहम और प्रेरणा अरोड़ा के बीच फिल्म‘‘परमाणु : ए स्टोरी आफ पोखरण’’का विवाद बहुत ही बुरे मोड़ पर पहुंच गया है. गत माह मुंबई उच्च न्यायालय के आदेश का पालन न किए जाने पर दुबारा इस मसले की सुनवाई जब तीन दिन पहले अदालत में शुरू हुई, तो अदालत ने पाया कि प्रेरणा अरोड़ा व अर्जुन एन कपूर की कंपनी ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ अदालत को भी गुमराह कर रही थी. इस मामले पर सुनवाई पूरी होने पर मुंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शाहरुख काथावाला ने दस मई को इस विवाद पर फैसला सुनाते हुए फिल्म‘‘परमाणु’’पर  ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’’का कोई हक न होने का फैसला सुनाया.

इतना ही नही मुंबई उच्च न्यायालय ने मुंबई अपराध शाखा की ‘आथिक अपराध’शाखा को ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’के खिलाफ दाखिल की गयी सभी आपराधिक मामलों की जांच करने के आदेश दे दिए. माना जा रहा है कि मुंबई पुलिस की ‘आर्थिक अपराध शाखा’ जांच प्रक्रिया के तहत अब प्रेरणा अरोड़ा व अर्जुन एन कपूर की सारी चल अचल संपत्ति को जब्त करने जा रही है.

इसके अलावा अदालत ने प्रेरणा अरोड़ा, अर्जुन एन कपूर और प्रेरणा अरोड़ा की मां को 22 मई तक देश न छोड़ने का भी आदेश दिया है. 22 मई को इन तीनों को अदालत में मौजूद रहने के लिए कहा गया है.

अदालत के इस आदेश के बाद जौन अब्राहम अपनी फिल्म‘‘परमाणु : ए स्टोरी आफ पोखरण’’ को अब 25 मई को प्रदर्शित करने वाले हैं.

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पकड़ा गया लश्कर का आतंकी, वीडियो हुआ वायरल

बारामुला हमले में शामिल एक आतंकी ने अपने साथियों से आतंक का रास्ता छोड़ने की अपील की है. वायरल हो रहे इस वीडियो में वो आतंकी अपने साथियों को सम्बोधित करता दिख रहा है और उनके नाम लेकर उनसे आतंक की राह छोड़ने को कह रहा है.

“मेरा नाम एजाज़ अहमद है, मै अपने दोस्तों, सुहेब, मोहसिन, नासिर जो अमन का रास्ता छोड़ अपने परिवार को भुला कर आतंक फैला रहे हैं से आतंकवाद छोड़ घर लौट आने की गुजारिश करता हूँ. मैं नासिर से विनती करता हूँ की वो घर लौट आये, उसकी माँ बहुत बीमार हैं.”

इस दो मिनट के वीडियो को हिरासतमें रहने के दौरान बनाया गया है. आगे जोड़ते हुए अहमद ने कहा की पाकिस्तान नौजवानों को गलत रास्ते पर ले जा रहा है.

“हमारे पास आतंकी संगठन लश्कर के द्वारा उत्तरी कश्मीर में हिंसा फैलाये जाने के पुख्ता सबूत हैं,” आईजीपी (कश्मीर रेंज) स्वयं प्रकाश ने बातचीत के दौरान पत्रकारों को बताया.

पुलिस के सूत्रों का कहना है की हिरासत में लिए गए चार में से दो आतंकी बारामुला निवासी हसीब खान, इरफ़ान, मोहम्मद शेख की हत्याओं में शामिल थे. वीडियो में हिरासत में लिए गए आतंकी अहमद ने कहा की फ़ौज ने उन्हें ज़िंदा छोड़ के एक नयी ज़िन्दगी दी है.

“हमने फ़ौज पर हमला किया, पर जवाब में उन्होंने गोलियां नहीं चलायीं, मै वहाँ से भाग के घने जंगलों में छिप गया, पर फ़ौज ने मुझे ढूंढ निकाला और ज़िंदा हिरासत में ले कर नयी ज़िन्दगी दी.”

इसके आगे जोड़ते हुए उन्होंने कहा की,” हमें पाकिस्तान में बैठे हमारे नेताओं द्वारा हिंदुस्तानी फ़ौज के बारे में गलत कहा जा रहा है. आपको यहां आकर हिंदुस्तानी फ़ौज से मिलना चाहिए. हमारे साथ धोखा हो रहा है, पाकिस्तान के नेता हमारी ज़िन्दगी के साथ खेल रहे हैं.”

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होप और हम : कमजोर पटकथा व कथा कथनशैली ने डुबाया

‘लोगों से प्यार करो, चीजों से नहीं’ सहित कई छोटे छोटे संदेश देने वाली फिल्म ‘‘होप और हम’’ जिंदगी के छोटे छोटे पलों के साथ ही आशा व उम्मीदों की बात करती है. इंसानी भावनाओं की सीधी सादी कहानी के साथ फिल्म में लघु प्रेम कहानी भी है.

फिल्म की कहानी मुंबई के एक मध्यमवर्गीय परिवार की है. जिसके मुखिया नागेश श्रीवास्तव (नसिरूद्दीन शाह) हैं. उनके दो बेटे नीरज (अमीर बशीर) व नितिन (नवीन कस्तूरिया) हैं. नितिन दुबई में नौकरी कर रहा है. नीरज की पत्नी अदिति (सोनाली कुलकर्णी) और उनकी बेटी तनु (वृति वघानी) व बेटा अनुराग (मास्टर कबीर साजिद) है. अनुराग को क्रिकेट काशौक है. नागेश श्रीवास्तव के पास एक जर्मन कंपनी की एक फोटो कापी मशीन है, जिसे वह मिस्टर सोनेकेन बुलाते रहते हैं. जिसका लेंस खराब हो गया है, इसलिए अब फोटो कापी सही नहीं निकलती, परिणामतः हर ग्राहक उन्हे दस बातें सुनाकर चला जाता है.

अदिति चाहती हैं कि उनके ससुर जी अब उस मशीन को बेच दें,तो उस जगह पर तनु के लिए एक कमरा बन जाए. जबकि नागेश का फोटो कापी मशीन से दिल का लगाव है और वह अपने काम को एक कलात्मक काम मानते हैं. वह मशीन के लिए लेंस तलाश रहे हैं. इसके लिए उनकी पोती तनु कंपनियों को ईमेल भेज कर लेंस के बारे में पूछताछ करती रहती है, पर हर बार उसे एक ही जवाब मिलता है कि उस फोटोकापी मशीन का लेंस नही है. मगर नागेश को उम्मीद है कि फोटो कापी मशीन का लेंस जरुर मिलेगा.
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इसी बीच अनुराग की नानी (बीना बनर्जी) के बुलावे पर नीरज व अनुराग राजपीपला में उनकी पुरानी कोठी पर जाते हैं, जहां अनुराग के मामा, नानी की इच्छा के बगैर कोठी को होटल बनाने के लिए किसी को बेच रहे हैं. नानी की कोठी में अनुराग अपने नाना के कमरे में जाता है और उनकी किताबें पढ़ने के साथ ही संगीत सुनता रहता है. एक दिन वह क्रिकेट खेलने निकलता है और गेंद कोठी के एक कमरे में जाती है तो जब वह गेंद लेन जाता है,तो उसके साथ एक ऐसा हादसा होता है, जिससे वह अपराधबोध से ग्रसित हो जाता हे और फिर उसका व्यवहार ही बदल जाता है.

इधर अनुराग का चाचा दुबई से वापस आता है, वह हर किसी के लिए कुछ न कुछ उपहार लेकर आया है. वह अपने पिता नागेश के लिए नई फोटोकापी यानी मशीन लेकर आया है. एक दिन नाटकीय तरीके से पिता को नई मशीन पर काम करने के लिए राजी कर लेता है. जबकि इस बार नागेश ने जर्मन भाषा में तनु से एक कंपनी को लेंस के लिए ईमेल भिजवाया है. नागेश अपनी फोटोकापी मशीन को बेचकर उस जगह पर तनु के लिए कमरा बनवा देते हैं. नागेष अपना मोबाइल फोन टैक्सी में भूल गया है. पर उसे उम्मीद है कि उसका मोबाइल फोन मिल जाएगा.

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एक दिन एक लड़की उसका फोन उठाती है और मोबाइल फोन लेने के लिए काफीशौप बुलाती है, पर कई घंटे इंतजार के बाद जब नितिन वापस लौटने लगता है तो वही लड़की (नेहाचौहान) नाटकीय तरीके से उसे औटोरिक्शा में उसका मोबाइल फोन वापस देकर गायब हो जाती है. बाद में अनुराग की नानी, नितिन की शादी के लिए उसी लड़की की फोटो दिखाती है. इतना ही नही नागेश को जर्मन कंपनी से लेंस मिलने की खबर मिलती है. पर अब नागेश क्या करे, उन्होंने तो फोटोकौपी मशीन बेच दी. इससे अदिति को भी तकलीफ होती है. दुबारा अपनी नानी के घर जाने पर अनुराग के मन का अपराध बोध गलत साबित होता है. और वह फिर से क्रिकेट खेलने वाला पहले जैसा अनुराग बन जाता है. यानी कि फिल्म में हर किरदार की उम्मीदें पूरी होती हैं.

फिल्मकार सुदीप बंदोपाध्याय ने नसीहते देने व उम्मीदों के पूरे होने की बात करने वाली फिल्म का कथा कथन शैली बहुत बचकानी रखी है. यदि सुदीप बंदोपाध्याय ने एक खुशनुमा फिल्म बनाने का प्रयास किया होता, तो इंसानी बदलाव व विकास की एक बेहतर फिल्म बन सकती थी. मगर फिल्म देखते हुए अहसास होता है जैसे कि वह लोगों को धूल से सने फोटो अलबम में झांकने के लिए कह रहे हों. फिल्म जीवन की मीठी मगर व्यर्थताओं को पकड़ने की कोशिश है. फिल्म में नवीनता नहीं है. इस तरह की कोशिशें अतीत में ‘फाइंडिंग फैनी’ और‘ए डेथ इन द गंज’ फिल्मों में भी की जा चुकी हैं. इतना ही नहीं उम्मीदों व आशा की बात करते करते पटकथा लेखक द्वय सुदीप बंदोपध्याय व नेहा पवार तकदीर की बात कर फिल्म पर से अपनी पकड़ खो देते हैं. फिल्म का गीत संगीत फिल्म की संवेदनशीलता को खत्म करने काम काम करता है.

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जहां तक अभिनय का सवाल है, तो नागेश के किरदार को नसिरूद्दीन शाह ने बाखूबी निभाया है. नसिरूद्दीन शाह के सामने बाल कलाकार कबीर साजिद ने बेहतरीन परफार्मेंस देकर इशारा कर दिया है कि वह आने वाले कल का बेहतरीन कलाकार है. सोनाली कुलकर्णी, अमीर बशीर व नवीन कस्तूरिया भी ठीक ठाक रहे.

एक घंटा 35 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘होप और हम’’ का निर्माण समीरा बंदोपाध्याय ने किया है. सह निर्माता दिव्या गिरीश शेट्टी, लेखक सुदीप बंदोपाध्याय व नेहा पवार,निर्देशक सुदीप बंदोपाध्याय, संगीतकार रूपर्ट फेंमंडेस, कैमरामैन रवि के चंद्रन तथा कलाकार हैं- नसिरूद्दीन शाह, सोनाली कुलकर्णी, अमीर बशीर, नवीन कस्तूरिया, मास्टर कबीर साजिद, वृति वघानी व अन्य.

‘परमाणु’ विवाद का हुआ अंत, 25 मई को प्रदर्शित होगी फिल्म

गत माह मुंबई उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ की प्रेरणा अरोड़ा का फिल्म ‘परमाणु’ पर हक बरकरार रहा था. मगर प्रेरणा अरोड़ा की कंपनी ‘‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’’ मुंबई उच्च न्यायालय के आदेश को पूरा करने में पूरी तरह से विफल रही, जिसके चलते पिछले तीन दिन से इस मसले पर पुनः मुंबई उच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही थी.

अब जौन अब्राहम की प्रोडक्शन कंपनी ‘जे ए इंटरटेनमेंट’ की प्रवक्ता मीनाक्षी दास ने पत्रकारों को ईमेल भेजकर कहा है कि फिल्म ‘‘परमाणु: द स्टोरी आफ पोखरन’’ आगामी 25 मई को ‘जे ए इंटरटेनमेंट’, ‘जी स्टूडियो’ और क्याटा प्रोडक्शन के तहत प्रदर्शित होगी.

मीनाक्षी दास ने अपने ईमेल में लिखा है-‘‘फिल्म ‘परमाणु-ए स्टोरी आफ पोखरण’ को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई के बाद निम्न निर्णय हुए हैं…

  1. फिल्म ‘‘परमाणु: द स्टोरी आफ पोखरन’’ आगामी 25 मई को ‘जे ए इंटरटेनमेंट’, ‘जी स्टूडियो’ और क्याटा प्रोडक्शन के तहत प्रदर्शित होगी.
  2. इनके अलावा कोई दूसरा निर्माता इस फिल्म के साथ नहीं जुड़ा है.
  3. फिल्म का ट्रेलर, आज 11 मई को ‘‘पोखरण’’ में हुए भारत के पहले सफल न्यूकलियर परीक्षण के बीस वर्ष पूरे होने पर जारी होगा.
  4. भारत में फिल्म का वितरण वासु भगनानी की कंपनी ‘पूजा इंटरटेनमेंट’ और विदेशों में जी स्टूडियो करेगा.

हम माननीय मुंबई उच्च न्यायालय के आभारी हैं कि उन्होंने तेजी से इस मसले पर सुनवाई कर हमारी फिल्म के प्रदर्शन का रास्ता साफ किया. अब हम कुछ भी कहने की बजाय अपना सारा ध्यान फिल्म को सही ढंग से दर्शकों तक पहुंचाने में लगाना चाहते हैं.

‘जे ए इंटरटेनमेंट’ के प्रवक्ता के उपरोक्त बयान पर ध्यान दिया जाए, तो यह बात साफ हो जाती है कि प्रेरणा अरोड़ा की कंपनी  ‘क्रियाज क्रिएशंस’, फिल्म ‘‘परमाणु : ए स्टोरी आफ पोखरण’’ पर से अपना हक खो चुकी है.

वास्तव में मुंबई उच्च न्यायालय के गत माह के आदेश के अनुसार ‘जे ए इंटरटेनमेट’ को समुचित धन देने में ‘क्रियाज क्रिएशंस’ असफल रही है. सूत्रों की माने तो अदालत ने पाया कि ‘क्रियाज क्रिएशंस’ सच बोलने की बनिस्बत अदालत को भी गुमराह कर रही थी.

राजी : आलिया भट्ट के जीवंत अभिनय ने लगाए चार चांद

‘फिलहाल’, ‘जस्ट मैरिड’, ‘तलवार’ जैसी फिल्मों की निर्देशक मेघना गुलजार इस बार हर वतन परस्त इंसान के दिल की बात करने वाले तोहफे के तौर पर रोमांचक फिल्म ‘‘राजी’’ लेकर आयी हैं. हरिंदर सिक्का की किताब ‘कालिंग सहमत’ पर आधारित फिल्म‘‘राजी’’ एक भारतीय अंडरकवर की सच्ची कहानी है, जो कि हर इंसान के दिल में देशप्रेम जगाती है. इसी के साथ यह फिल्म इस तरफ भी इशारा करती है कि युद्ध अनावश्यक है, युद्ध सही या गलत नहीं पहचानता. युद्ध तो सिर्फ अंधेरे व क्रूरता का परिचायक है. फिल्मकार मेघना गुलजार ने फिल्म में सहमत के साहस का जश्न मनाने से परे कई सवाल भी उठाए हैं.

फिल्म ‘‘राजी’’ की कहानी 1971 के भारत पाक युद्ध की पृष्ठभूमि की है. कहानी शुरू होती है पाकिस्तान से, जो कि तत्कालीनबांग्लादेश की मुक्तिवाहिनी सेना का भारत द्वारा साथ दिए से नाराज होकर भारत को नेस्तानाबूद करने के मंसूबे के साथ युद्ध की तैयारी कर रहा है. पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर परवेज सय्यद (शिशिर शर्मा) के साथ कश्मीर निवासी भारतीय उद्योगपति हिदायत खान (रजित कपूर) की बहुत अच्छी दोस्ती है, पर ब्रिगेडियर परवेज सय्यद को इस बात की भनक नहीं है कि हिदायत खान वतन परस्त होने के साथ साथ हिंदुस्तान की ‘रा’ एजेंसी को जानकारी देने का काम भी करते हैं.

हिदायत खान के पिता भी स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय सुरक्षा एजेंसी के लिए काम करते थे. हिदायत खान का पाकिस्तान आना जाना लगा रहता था. जब हिदायत खान को पाकिस्तानी ब्रिगेडियर परवेज सय्यद के मुंह से पाकिस्तानी सेना के मंसूबे का पता चलता है तो वह सच जानकर भारत को सुरक्षित रखने के लिए एक अहम फैसला लेते हैं. हिदायत खान अपनी बीमारी का वास्ता देकर दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने की बात कर दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययनरत अपनी बेटी सहमत (आलिया भट्ट) का विवाह ब्रिगेडिर परवेज सय्यद के बेटे व पाकिस्तानी सेना के मेजर इकबाल (विकी कौशल) के संग करने की गुजारिश करते हैं, जिसे परवेज सय्यद सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं.

सहमत बहुत ही ज्यादा नाजुक व अति भावुक साधारण कश्मीरी लड़की है. उसे इस बात का तब तक अहसास नहीं होता, जब तक उसके पिता उसे वापस कश्मीर नहीं बुलाते हैं कि उसके पिता ने उसके भविष्य को लेकर पाकिस्तान में कितना बड़ा फैसला कर आए हैं. जब सहमत पहलगाम, कश्मीर अपने घर पहुंचती है, तो हिदायत खान सहमत की मां तेजी (सोनी राजदान) के सामने ही बताते हैं किउन्होंने सहमत की शादी इकबाल संग कराने का फैसला किस मकसद से लिया है.

वतन के लिए परेशान अपने पिता हिदायत खान को देखकर सहमत बिना देर किए हामी भर देती है. उसके बाद वह पाकिस्तान जाकर अपने वतन भारत की कान व आंख बनने के लिए पूरी तैयारी करने में जुट जाती है. वह बेहतरीन भारतीय जासूस बनने के लिए ‘रा’एजेंट खालिद मीर (जयदीप अहलावत) से प्रशिक्षण लेना शुरू करती है. प्रशिक्षण के दौरान उसे काफी तकलीफ होती है, पर इससे वह मजबूत होती जाती है.

पूर्णरूपेण प्रशिक्षित होने पर इकबाल से सहमत की शादी होती है और वह एक बेटी से बहू बनकर भारत की दहलीज पार कर पाकिस्तान पहुंचती है. दुश्मन देश में अपनी ससुराल व अपने पति के दिल में जगह बनाते हुए सहमत अपने वतन भारत के खिलाफ पाकिस्तानी सेना द्वारा रचे जा रहे षडयंत्र की जानकारी इकट्ठा कर भारत में ‘रा’ के पास पहुंचाना शुरू करती है. एक सैनिक परिवार की बहू के रूप में सैनिक परिवार  के अंदर रहकर यह सब करना उसके लिए बहुत कठिन होता है, पर उस पर अपने वतन के लिए कुछ भी कर गुजरने का ऐसा भूत सवार है कि वह हर संकट का मुकाबला करते हुए अपने मकसद में कामयाब होती है. उसे दो लोगों की हत्या करने के साथ ही कई ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं, जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी.

इस कहानी के बीच में सहमत व इकबाल की बड़ी खूबसूरत छोटी सी प्रेम कहानी भी पनपती है. बहरहाल, सहमत द्वारा भेजी गयी अहम जानकारी की वजह से भारत, पाकिस्तान के खिलाफ जंग जीतने में कामयाब होता है. पर अंतिम वक्त में इकबाल को पता चल जाता है कि सहमत ने पाकिस्तानी सेना द्वारा रचे जा रहे षडयंत्र की जानकारी भारत भेज दी है. वह अपने वतन के लिए सहमत के खिलाफ अपने देश की जांच एजेंसी को खबर करता है. जबकि खालिद मीर अपने साथियों के साथ सहमत को पाकिस्तान से सुरक्षित निकालने के  लिए पहुंच जाता है. पर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. जिसमें इकबाल मारे जाते हैं. पर सहमत को लेकर खालिद मीर व उसके साथी भारत पहुंच जाते हैं. अब सहमत खुद को जासूसी के काम से अलग कर लेती है. वह इकबाल के बेटे को जन्म नहीं देना चाहती. मगर वह एक मां और एक औरत भी है.

मेघना गुलजार ने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि उन्हें  कहानी व किरदारों पर अपने निर्देशकीय कौशल से पकड़ बनाए रखने में महारत हासिल है. अपनी पिछली फिल्मों के मुकाबले वह इस फिल्म से ज्यादा बेहतरीन निर्देशक के रूप में उभरती हैं. फिल्म बहुत तेज गति से भागती है और दर्शकों को अपनी सीट पर चिपके रहने के लिए मजबूर करती है. निर्देशक के तौर पर मेघना गुलजार ने फिल्म को फिल्माने के लिए लोकेशन भी बहुत सही चुनी है. मेघना गुलजार ने फिल्म मे जिस तरह से मानवीय भावनाओं व संवेदनाओं को उकेरा है, उसके लिए भी वह बधाई की पात्र हैं.

मेघना गुलजार ने अपनी फिल्म में देशप्रेम को जगाने के लिए कोई देशभक्ति वाला भाषण नहीं परोसा है. उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ जहर उगलने वाले उत्तेजक या विरोधात्मक भाषण से भी दूरी बनाए रखी है. लेकिन अति जटिल व्यक्तियों का समूह अपने ईद गिर्द की परिस्थितियों से निपटने का जिस तरह से प्रयास करता है, उसी से देशप्रेम अपने आप उभरकर आता है.

अमूमन किताब को सेल्यूलाइड के परदे पर लाते समय पटकथा लेखक पूरी कहानी व फिल्म का बंटाधार कर देता है. मगर ‘कालिंग सहमत’ को फिल्म ‘राजी’ के रूप में पेश करने के लिए पटकथा लेखकद्वय मेघना गुलजार व भवानी अय्यर की तारीफ की जानी चाहिए.

फिल्म ‘‘राजी’’ पूर्ण रूपेण आलिया भट्ट की फिल्म है. आलिया भट्ट के जानदार अभिनय की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है. वह पूरी फिल्म को अपने कंधे पर लेकर चलती हैं. दर्शक उनकी खूबसूरती, उनकी मासूमियत व उनकी अभिनय प्रतिभा का कायल होकर रह जाता है. सहमत को परदे पर सही मायनों में आलिया भट्ट ने अपने अभिनय से जीवंत किया है. संगीत प्रेमी मेजर इकबाल के किरदार को विकी कौशल ने खूबसूरती से निभाया है. संतुलित व संजीदा सैनिक, अपनी पत्नी सहमत के वतन के खिलाफ उसके सामने होने वाली बातों से पत्नी के मन को लगने वाली ठेस का अहसास करने के दृश्य में विकी कौशल एक मंजे हुए कुशल अभिनेता के रूप में उभरते हैं. तो वहीं ‘रा’ एजेंट खालिद मीर के किरदार में जयदीप अहलावत भी अपने अभिनय से लोगो के दिलों में जगह बना ही लेते हैं. रजित कपूर, शिशिर शर्मा, आरिफ जकरिया, सोनी राजदान आदि ने भी अपनी तरफ से सौ प्रतिशत देने का प्रयास किया है.

जहां तक फिल्म के गीत संगीत का सवाल है, तो वह भी काफी बेहतर बन पड़े हैं. फिल्म के कथानक के साथ ‘दिलबरो’, ‘ऐ वतन’ व‘राजी’ गाने काफी बेहतर लगे हैं. गीतकार गुलजार और संगीतकार की तिकड़ी शंकर एहसान लौय ने कमाल दिखा ही दिया.

दो घंटे बीस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘राजी’’ का निर्माण विनीत जैन, करण जोहर, हीरू यश जोहर व अपूर्वा मेहता ने किया है. हरिंदर सिक्का की किताब ‘‘कालिंग सहमत’’ पर आधारित इस फिल्म की पटकथा लेखक भवानी अय्यर व मेघना गुलजार, निर्देशक मेघना गुलजार, गीतकार गुलजार, संगीतकार शंकर एहसान लौय, कैमरामैन जय आई पटेल तथा फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं-आलिया भट्ट, विक्की कौशल, रजित कपूर, शिशिर शर्मा, अमृता खानविलकर, जयदीप अहलावत, अश्वथ भट्ट, सोनी राजदान व अन्य.

फोन चार्ज करते समय भूलकर भी ना करें ये 5 गलतियां

हममें से ज्यादातर लोग स्मार्टफोन की बैटरी और चार्जिंग की समस्या को लेकर परेशान रहते हैं. ऐसे में आपको फोन बदलने की नहीं बल्कि, अपनी फोन चार्ज करने की आदत सुधारने की जरूरत है, क्योंकि अक्सर लोग फोन चार्ज करते समय कई सारी गलतियां कर बैठते हैं और उसके बाद से ही शुरू होती है फोन में कई सारी गड़बड़ियां.

फोन चार्जिंग को लेकर अंजाने में की गई गलती और आपकी लापरवाही की वजह से या तो आपका फोन खराब होता है या फिर चार्जर में ही दिक्कत आने लगती है. कई बार तो 6 महीने से पहले ही फोन की बैटरी खराब हो जाती है. तो चलिए आज हम आपको ऐसी गलतियों के बारे बताते हैं जिन्हें फोन चार्ज करते वक्त नहीं करना चाहिए.

औरिजनल चार्जर से ही फोन चार्ज करें

फोन चार्ज करते वक्त हमेशा ध्यान रखें कि कभी भूलकर भी दूसरे या डुप्लिकेट चार्जर से फोन चार्ज ना करें. फोन चार्ज करते समय हमेशा असली चार्जर का ही इस्तेमाल करें. इसका फायदा यह होगा कि आपकी बैटरी की लाइफ बनी रहेगी, चार्जिंग प्वाइंट खराब नहीं होगा और फोन जल्दी चार्ज होगा और ज्यादा लम्बे समय तक चलेगा.

फास्ट चार्जर से करें तौबा

आजकल बाजार में कई सारे फास्ट चार्जर मौजूद हैं लेकिन ये आपके फोन के लिए किसी दुश्मन से कम नहीं हैं. इनसे आपका फोन जल्दी चार्ज तो हो जाता है लेकिन फोन की बैटरी भी बर्बाद हो जाती है. इसलिए जितना हो सकें इस तरह के चार्जर से अपना फोन चार्ज करने से बचें.

पावर सेवर ऐप से बचें

कई लोग बैटरी बचाने का दावा करने वाले थर्ड पार्टी ऐप फोन में इंस्टौल करके रखते हैं, ऐसा ना करें क्योंकि इस तरह के ऐप हमेशा आपके फोन को नुकसान ही पहुंचाते हैं. दरअसल ऐसे ऐप फोन पर प्रेशर बनाते हैं और उसे भारी कर देते हैं. इसके बाद आपका फोन हैंग होने लगता है.

100% चार्जिंग से बचे

कभी भी फोन को 80% से ज्यादा चार्ज ना करें, क्योंकि इसके बाद बैटरी गर्म होने लगती है और उसकी लाइफ कम हो जाती है. वैसे भी 80 फीसदी चार्जिंग पूरे दिन के लिए काफी है.

VIDEO : पीकौक फेदर नेल आर्ट

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बुकस्टोर से फ्लिपकार्ट बनने तक के अनोखे सफर पर एक नजर

लगभग 11 साल पहले एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी कर रहे दो युवाओं ने इस्तीफा देकर अपने सपने को साकार करने की ओर कदम बढ़ाया. उनका सपना था कुछ बड़ा करने का इसलिए उन्होंने बेंगलुरु में दो कमरे के मकान में अपनी छोटी सी कंपनी शुरू की. उनकी लगन और मेहनत का नतीजा आज हम सबके सामने फ्लिपकार्ट के रुप में है. उन्होंने अपने मेहनत से फ्लिपकार्ट को देश की सबसे बड़ी ई-कौमर्स कंपनी बनाने में सफल हुए.

बता दें कि बेंगलुरु में इसका नया औफिस 8.3 लाख वर्ग फीट का है. बुधवार को कंपनी ने अमेरिका की दिग्गज रिटेल कंपनी वौलमार्ट के साथ समझौता किया. इसके तहत वौलमार्ट नें फ्लिपकार्ट के 77 फीसदी शेयर खरीदने की घोषणा की. वौलमार्ट ने करीब साढ़े नौ खरब रुपये में फ्लिपकार्ट को खरीदा है.

बता दें कि इस डील के बाद फ्लिपकार्ट के दो फाउंडर्स में से एक सचिन बंसल अपने शेयर बेच कंपनी से अलग हो जाएंगे. यह डील दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल डील कारोबारियों और उपभोक्ताओं दोनों पर असर डालेगी.

फ्लिपकार्ट के इस अनोखे सफर पर एक नजर…

2007 में स्थापना

2005 में आइआइटी, दिल्ली में सचिन बंसल और बिन्नी बंसल की मुलाकात हुई. अमेरिकी ई-कौमर्स कंपनी अमेजन में काम करते हुए दोनों में दोस्ती हुई. दोनों ने अपना खुद का स्टार्टअप शुरू करने का सपना देखा. लिहाजा दोनों ने अपने सपने को पूरा करने के लिए नौकरी छोड़ दी. इसके बाद दोनों ने अक्टूबर, 2007 में बेंगलुरु में औनलाइन बुकस्टोर के रूप में फ्लिपकार्ट की स्थापना की. आज भारत में अमेजन व फ्लिपकार्ट के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिलती है. लेकिन यह भी एक सच है कि दोनों ने अमेजन में रहकर ही कारोबारी गुण सीखे.

दोनों दिग्गज कंपनियों की इस राइवलरी की एक खास बात यह भी है कि दोनों ही कंपनियों की शुरुआत लगभग एक ही तरह से हुई थी. अमेजन की शुरुआत एक बुकस्टोर के तौर पर हुई और फ्लिपकार्ट ने भी अपनी पारी की शुरुआत एक औनलाइन बुक स्टोर के तौर पर ही की.

बढ़ता गया दायरा

सबसे पहली किताब जो फ्लिपकार्ट ने बेची वह जौन वुड्स की लिखी ‘लीविंग माइक्रोसौफ्ट टू चेंज द वल्र्ड’ थी. किताबों के बाद कंपनी ने म्यूजिक, फिल्में, गेम्स, इलेक्ट्रौनिक उपकरण और मोबाइल भी बेचना शुरू कर दिया. इलेक्ट्रौनिक उपकरणों और मोबाइल की बिक्री ने कंपनी को तेजी से ऊपर पहुंचाया. 2010 में कंपनी ने अपनी लौजिस्टक कंपनी ईकार्ट लांच की.

2008 में बेंगलुरु में कंपनी ने पहला आफिस खोला. इसके बाद 2009 में दिल्ली और मुंबई में आफिस बनाए. कंपनी ने बेंगलुरु के सभी आफिस को 8.3 लाख वर्ग मीटर के कैंपस में समेट दिया. 2011 में कंपनी ने सिंगापुर में भी ब्रांच खोली. वित्तीय वर्ष 2017 में कंपनी के मालिकों का संयुक्त नुकसान 87.70 अरब रुपये रहा. 2016 में यह 52.16 अरब रुपये था. कंपनी का कुल मुनाफा 2016 की तुलना में 29 फीसद बढ़कर 198.55 अरब रुपये हो गया.

प्रमुख कंपनियों का अधिग्रहण

– 2014 – क्लौदिंग ई-रिटेलर मिंत्रा 20 अरब रु में खरीदी

– 2016 में जबोंग को 4.7 अरब रु में खरीदा. 2016 में ही पेमेंट यूनिट फोनपे का अधिग्रहण किया.

– 2017 के अप्रैल में अन्य ई-कौमर्स साइट ईबे ने फ्लिपकार्ट में हिस्सेदारी पाने के लिए फ्लिपकार्ट में 50 करोड़ डौलर (33.6 अरब रुपये) का निवेश किया और अपना बिजनेस भी फ्लिपकार्ट को बेच दिया.

प्रमुख निवेशक

जापान का सौफ्टबैंक ग्रुप फ्लिपकार्ट में 23-24 फीसद का हिस्सेदार है. दक्षिण अफ्रीका की नैस्पर्स की कंपनी में 13 फीसद हिस्सेदारी है. अन्य में न्यूयौर्क की ग्लोबल टाइगर, अमेरिकी कंपनी एस्सेल पार्टनर्स, चीन की टेनसेंट होल्डिंग्स लिमिटेड, ईबे और माइक्रोसौफ्ट कौर्प शामिल हैं.

भारत में वौलमार्ट का सफर

– 2007 में भारती इंटरप्राइज के साथ ज्वाइंट वेंचर में वौलमार्ट भारत आया. पंजाब के अमृतसर में मई, 2009 में पहला स्टोर खोला.

– 2014 में वौलमार्ट इंडिया पूरी तरह से वौलमार्ट इंक के अधीन आ गया.

– अब वौलमार्ट इंडिया बेस्ट प्राइस नाम से देश के नौ राज्यों में 21 कैश एंड कैरी स्टोर संचालित करता है.

– नवंबर, 2017 में वौलमार्ट ने मुंबई में पहला फुलफिलमेंट सेंटर खोला.

– वौलमार्ट का दावा है कि उसके दस लाख से अधिक ग्राहक हैं.

VIDEO : पीकौक फेदर नेल आर्ट

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