आजकल हममें से ज्यादातर लोग पेमेंट करने के लिए पेटीएम का इस्तेमाल करते हैं. कई बार आपके साथ ऐसा हुआा होगा कि आपको पेटीएम से पेमेंट करना है पर फोन में इंटरनेट नहीं है या फिर नेटवर्क नहीं है. या फिर फोन कहीं भूल गए हो तो भी पेमेंट नहीं हो पाता. ऐसे में पेटीएम से पेमेंट करना मुश्किल हो जाता है और आपको कैश के लिए भाग दौड़ करनी पड़ जाती है. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा.
जी हां, ये सच है. ऐसा इसलिए क्योंकि पेटीएम ने इस समस्या को दूर करने के लिए ‘पेटीएम टैप कार्ड’ की शुरुआत की है जिसकी मदद से आप बिना इंटरनेट भी पेमेंट कर सकेंगे. यह कार्ड एक सेकंड में पेटीएम द्वारा जारी एनएफसी पीओएस टर्मिनल्स में पूरी तरह औफलाइन, सुरक्षित और सहज डिजिटल भुगतानों को सक्षम करने के लिए नियर फील्ड कम्यूनिकेशन (एनएफसी) तकनीक का इस्तेमाल करता है.
औफलाइन पेमेंट करने के लिए यूजर्स टैप कार्ड पर क्यूआर कोड स्कैन करके और किसी भी ऐड वैल्यू मशीन (एवीएम) में इसे सत्यापित करके अपने पेटीएम खाते से भुगतान कर सकेंगे. इतना ही नहीं अगर आपके पास आपका फोन नहीं है तो भी आप इस कार्ड केरिए भुगतान कर सकेंगे वो भी बिना किसी शुल्क के. इसे विस्तार रूप देने के लिए पेटीएम पहले चरण में कार्यक्रमों, शैक्षणिक संस्थानों और कार्पोरेट के साथ साझेदारी कर रहा है.
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Redmi Note 5 Pro को टक्कर देने के लिए Nokia ने अपना नया स्मार्टफोन NOKIA X6 लौंच किया है. इस स्मार्टफोन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें iPhone X की तरह ही डिस्प्ले दिया गया है. इसकी डिस्प्ले का आस्पेक्ट रेश्यो 19:9 है.
NOKIA X6 फोन के फीचर्स
इस फोन में Redmi Note 5 Pro की तरह ही आक्टाकोर स्नैपड्रेगन 636 प्रोसेसर दिया गया है. NOKIA X6 में 4GB और 6GB रैम का विकल्प है. कंपनी ने इसके 3 वेरिएंट लौंच किए हैं. इसके 4GB रैम के साथ 32GB और 64GB की इंटरनल मैमोरी का विकल्प दिया गया है. इसकी इंटरनल मैमोरी को माइक्रोएसडी कार्ड से 128GB तक बढ़ाया जा सकता है.
वहीं इसके अन्य फीचर्स की बात करें तो इसमें 5.8 इंच की डिस्प्ले और 2.5D गोरिल्ला ग्लास प्रोटेक्शन दी गई है. यह फोन गूगल के एंड्रायड आपरेटिंग सिस्टम ओरिओ 8 पर काम करेगा. कैमरे की बात करें तो Nokia X6 में डुअल रियर कैमरा सेटअप दिया गया है. प्राइमरी कैमरा 16 मेगापिक्सल का है और दूसरा कैमरा 5 मेगापिक्सल का है. वहीं सेल्फी और वीडियो कौलिंग के लिए फ्रंट पैनल पर 16 मेगापिक्सल का कैमरा दिया गया है. बेहतर फोटोग्राफी के लिए इसमें एआई फीचर दिए गए हैं.
हालांकि इस स्मार्टफोन को अभी केवल चीन में लौंच किया है. चीनी मार्केट में Nokia X6 की कीमत 1,299 युआन (करीब 13,800 रुपए) से शुरू होती है. यह कीमत इसके 4GB रैम और 32GB इंटरनल मैमोरी वाले वेरिएंट की है. वहीं, 6GB रैम और 64GB इंटरनल मैमोरी वाले वेरिएंट की कीमत 1,699 युआन (करीब 18,100 रुपए) है. फिलहाल, इस हैंडसेट को भारत में लौंच किए जाने के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी गई है.
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टीवी के मशहूर अभिनेता अमित टंडन के सिर से अब मुश्किलों के बादल छटने लगे हैं. खबरों के मुताबिक अमित की पत्नी रूबी टंडन को आखिरकार दुबई की जेल से जमानत मिल गई है. उन्हें बस अब कुछ कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करना है. खबर है कि एक्टर अमित टंडन पत्नी से मिलने अक्सर दुबई की जेल में जाया करते थे. अमित ने पत्नी को जेल से बाहर निकालने की पूरी कोशिश की और आखिरकार वह सफल हुए. 10 महीने बाद जेल से बाहर आकर वह अपनी 7 साल की बेटी से मिल पाई हैं. सूत्रों की मानें तो अमित टंडन और उनकी बेटी फिलहाल दुबई में ही हैं.
गौरतलब है कि पिछले काफी समय से रूबी टंडन दुबई जेल में बंद थीं. रिपोर्ट्स की मानें तो दुबई हेल्थ अथारिटी ने कथित तौर पर बताया है कि रूबी ने सरकारी अधिकारियों को धमकी दी थी. इसी आरोप के चलते उन्हें दुबई की अल राफा जेल में बंद किया गया था.
अमित टंडन और रूबी की शादी साल 2007 में हुई थी. दोनों की 7 साल की एक बेटी भी है. अमित टंडन की पत्नी रूबी मुंबई के एक जानी मानी डर्मेटोलौजिस्ट हैं. उनके क्लाइंट्स में फिल्म और टीवी इंडस्ट्री के कई बड़े नाम जैसे मोनी रौय, संजीदा शेख, इकबाल खान, लकी मोरानी, रोहित वर्मा और विक्रम भट्ट आदि शामिल हैं.
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राजस्थान सरकार के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने विधानसभा में बताया कि प्रदेश में पिछले 3 साल में दलित दूल्हों को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने के 38 मामलों में मुकदमे दर्ज हुए हैं.
सालभर पहले मध्य प्रदेश के रतलाम से आई एक तसवीर ने भी लोगों को चौंका दिया था. वहां एक दलित दूल्हे को हैलमैट पहन कर घोड़ी पर चढ़ना पड़ा, क्योंकि गांव के ऊंची जाति के लोग नहीं चाहते थे कि वह घोड़ी पर चढ़े.
पहले तो उस दलित की घोड़ी छीन ली गई और फिर पत्थर फेंके गए. पत्थरों से दूल्हे को बचाने के लिए जब पुलिस ने हैलमैट का बंदोबस्त किया, तब जा कर बरात निकली.
हाल ही में उत्तर प्रदेश के कासगंज में पुलिस ने आधिकारिक तौर पर कह दिया था कि दलित दूल्हे का घोड़ी पर बैठना शांति के लिए खतरा है.
दादरी जिले के संजरवास गांव में पिछले साल जब एक दलित दूल्हे की बरात आई तो राजपूतों ने हमला कर दिया.
इस वारदात में दूल्हे संजय समेत कई बराती और लड़की वाले जख्मी हो गए. हमला करने वालों का कहना था कि दलित दूल्हा घोड़ी पर सवार हो कर नहीं आ सकता, क्योंकि उन्हें इस का हक नहीं है.
उत्तर प्रदेश के रहने वाले संजय जाटव को कासगंज जिले में बरात निकालने की इजाजत नहीं मिली.
2 साल पहले हरियाणा के कुरुक्षेत्र में दलित समाज की एक बरात पर ऊंची जाति वालों ने यह कह कर हमला कर दिया था कि दलित दूल्हा घोड़ी की बग्गी पर सवार हो कर उन के मंदिर में नहीं आ सकता. उसे जाना है तो रविदास मंदिर में जाए. पुलिस की सिक्योरिटी के बावजूद पथराव हुआ.
शादियों के मौसम में तकरीबन हर हफ्ते देश के किसी न किसी हिस्से से ऐसी किसी घटना की खबर आ ही जाती?है. इन घटनाओं में जो एक बात हर जगह समान होती है, वह यह है कि दूल्हा दलित होता है, वह घोड़ी पर सवार होता है और हमलावर ऊंची जाति के लोग होते हैं.
इन घटनाओं के 2 मतलब हैं. एक, दलित समुदाय के लोग पहले घुड़चढ़ी की रस्म नहीं करते थे. न सिर्फ ऊंची जाति वाले बल्कि दलित भी मानते थे कि घुड़चढ़ी अगड़ों की रस्म है, लेकिन अब दलित इस फर्क को नहीं मान रहे हैं. दलित दूल्हे भी घोड़ी पर सवार होने लगे हैं.
यह अपने से ऊपर वाली जाति के जैसा बनने या दिखने की कोशिश है. इसे लोकतंत्र का भी असर कहा जा सकता है, जिस ने दलितों में भी बराबरी का भाव और आत्मसम्मान पैदा कर दिया है. यह पिछड़ी जातियों से चल कर दलितों तक पहुंचा है.
दूसरा, ऊंची मानी गई जातियां इसे आसानी से स्वीकार नहीं कर पा रही हैं. उन के हिसाब से दूल्हे का घोड़ी पर सवार होना ऊंची जाति वालों का ही हक है और इसे कोई और नहीं ले सकता.
लिहाजा, वे इस बदलाव को रोकने की तमाम कोशिशें कर रहे हैं. हिंसा उन में से एक तरीका है और इस के लिए वे गिरफ्तार होने और जेल जाने तक के लिए भी तैयार हैं. देश में लोकतंत्र होने के बावजूद ऊंची जाति वालों में यह जागरूकता नहीं आ रही है कि सभी नागरिक बराबर हैं.
कई साल पहले पिछड़ी जातियों के लोगों ने जब बिहार में जनेऊ पहनने की मुहिम चलाई थी, तो ऐसी ही हिंसक वारदातें हुई थीं और कई लोग मारे गए थे. दलितों के मंदिर में घुसने की कोशिश अब भी कई जगहों पर हिंसक वारदातों को जन्म देती है.
इसी का एक रूप 3 साल पहले उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में देखने को मिला था. वहां के रेहुआ लालगंज गांव के राजू और ब्रजेश सरोज ने जब आईआईटी का ऐंट्रैंस इम्तिहान पास कर लिया, तो गांव के ऊंची जाति वालों ने उन के घर पर पत्थरबाजी की.
यह तब हुआ जबकि इन भाइयों के आईआईटी ऐंट्रैंस इम्तिहान पास करने का देशभर में स्वागत हुआ था और तब के मानव संसाधन विकास मंत्री ने इन की हर तरह की फीस और खर्च माफ करने का ऐलान किया था.
दलितों को इस तरह सताने के मामलों की तादाद बहुत ज्यादा है जो कहीं दर्ज नहीं होते, नैशनल लैवल पर जिन की चर्चा नहीं होती. दरअसल, एक घुड़चढ़ी पर किया गया हमला सैकड़ों दलित दूल्हों को घुड़चढ़ी से रोकता है, यानी सामाजिक बराबरी की तरफ कदम बढ़ाने से रोकता है.
गांवों का समाज अभी भी वैसा ही है और दलित कई जगहों पर मालीतौर पर ऊंची जाति वालों पर निर्भर हैं इसलिए वे खुद भी ऐसा कुछ करने से बचते हैं, जिस से ऊंची जाति वाले नाराज हों.
इन मामलों को अब तक दलितों को सताने के तौर पर देखा गया है, पर अब जरूरत इस बात की भी है कि इन को ‘सवर्णों की समस्या’ की तरह देखा जाए. कोई बीमार समाज ही किसी दूल्हे के घोड़ी पर चढ़ने या किसी के आईआईटी पास करने पर पत्थर फेंक सकता है.
दुनिया में किसी भी देश में इसे मामूली नहीं माना जाएगा. 21वीं सदी में तो इसे किसी भी हालत में आम घटना के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए.
हावी है पिछड़ापन
यह समझने की कोशिश की जाए कि आधुनिकता और लोकतंत्र के इतने सालों के अनुभव के बाद भी कुछ समुदाय सभ्य क्यों नहीं बन पाए हैं? ऐसी कौन सी चीज है, जिस की वजह से ऊंची जाति वाले यह मानने को तैयार नहीं हैं कि वे भी बाकी लोगों की तरह इनसान हैं और उन्हें कोई जन्मजात खास हक हासिल नहीं हैं और न ही कुछ लोग सिर्फ जन्म की वजह से उन से नीचे हैं.
अगर पुराने दौर में ऊंची जाति वालों को कुछ खास हक हासिल थे भी तो लोकतंत्र में उन्हें यह सुविधा हासिल नहीं है. इसे भारतीय आधुनिकता की समस्या के तौर पर भी देखा जाना चाहिए. यूरोप और अमेरिका में परंपरा की कब्र पर आधुनिकता का विकास हुआ है. जोकुछ सामंती या छोड़ देने लायक था, उसे खारिज करने की कोशिश की गई. चर्च और पादरियों को पीछे हटना पड़ा, तब जा कर बर्बर यूरोप बदला और वहां वैज्ञानिक और औद्योगिक क्रांति हुई.
यूरोप से सीखी हुई आधुनिकता और भारतीय परंपरा के नाम पर जारी नाइंसाफी भारत में गलबहियां कर गईं. जिंदगी जीने का ढर्रा नहीं बदला. यही वजह है कि उपग्रह भेजने की कामयाबी के लिए मंदिर में पूजा को आम बात माना जाता है.
जातिवाद एक बड़ी समस्या का ही हिस्सा है, जहां वैज्ञानिक जागरूकता और लोकतांत्रिक सोच से टकराव हर लैवल पर दिखाई देता है. मसलन, क्या यह धार्मिक मामला है कि दिल्ली में अरबिंदो मार्ग पर आईआईटी के गेट पर शनि मंदिर बनाया गया है जहां टीचर और स्टूडैंट सरसों का तेल चढ़ाते हैं? भारतीय समाज कई मामलों में एक भैंसागाड़ी की तरह है, जिस में इंजन लगा दिया गया हो.
भारत में लोकतंत्र जैसी आधुनिक शासन प्रणाली को तो अपना लिया गया, लेकिन समाज में गोलबंदी का आधार धर्म और जाति बने रहे. संविधान सभा में बाबा साहब अंबेडकर ने इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए भविष्य की सब से बड़ी चुनौती के रूप में स्वीकार किया था.
उन्होंने कहा था कि हर शख्स का एक वोट और हर वोट की एक कीमत तो है लेकिन हर लोग समान नहीं हैं. उन्होंने उम्मीद जताई थी कि ये हालात बदलेंगे. लेकिन दलितों की घुड़चढ़ी पर पत्थर फेंकने वाले ऊंची जाति वालों ने भारत के संविधान निर्माताओं को निराश ही किया है.
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भरेपूरे परिवार की 28 साला प्रीति रघुवंशी को अपने ही कसबे उदयपुरा के 30 साला गिरजेश प्रताप सिंह से तकरीबन 6 साल पहले प्यार हो गया था. उन के घर भी आमने सामने थे.
प्रीति के पिता चंदन सिंह रघुवंशी खातेपीते किसान हैं और उदयपुरा में उन की अच्छी पूछपरख है. गिरजेश के पिता ठाकुर रामपाल सिंह मध्य प्रदेश सरकार में लोक निर्माण मंत्री हैं.
कर ली शादी
दोनों को मालूम था कि घर वाले आसानी से उन की शादी के लिए तैयार नहीं होंगे, लिहाजा उन्होंने पिछले साल 20 जून, 2017 की चिलचिलाती गरमी में भोपाल आ कर नेहरू नगर के आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली. मंदिर के कर्ताधर्ता प्रमोद वर्मा ने शादी कराई और गिरजेश को शादी का सर्टिफिकेट भी दे दिया.
प्रीति घर वालों से इलाज की कह कर भोपाल आई थी. उस के साथ उस का छोटा भाई नीरज सिंह भी था जो शादी में भी शामिल हुआ था.
नीरज को प्रीति ने भरोसे में ले कर सारी बात बता दी थी. गिरजेश की तरफ से शादी में उस के कुछ नजदीकी दोस्त शामिल हुए थे.
शादी के बाद प्रीति घर वापस आ गई और उस दिन का इंतजार करने लगी जब गिरजेश और उस के घर वाले उसे लेने आएंगे.
नीरज ज्यादा देर तक अपनी बहन की शादी की बात पचा नहीं पाया और उस ने घर में यह बात बता दी. इस पर पूरा घर सनाके में आ गया. पर वे सभी मुनासिब वक्त का इंतजार करने लगे.
बेवफाई बनी फंदा
उदयपुरा में प्रीति का एकएक दिन एकएक साल के बराबर गुजर रहा था. कभीकभार गिरजेश से फोन पर बात होती थी तो वह खुश और बेचैन भी हो उठती थी. गिरजेश हमेशा की तरह उसे हिम्मत बंधाता था कि बस कुछ दिन की बात और है, फिर सबकुछ ठीक हो जाएगा.
लेकिन वह दिन कभी नहीं आया. अलबत्ता, होली के बाद कहीं से प्रीति को खबर लगी कि गिरजेश की सगाई उस के घर वालों ने कहीं और कर दी है. खबर गलत नहीं थी. वाकई गिरजेश की सगाई टीकमगढ़ जिले में हो चुकी थी और फलदान भी हो चुका था.
16 मार्च, 2018 की रात गिरजेश उदयपुरा आया तो प्रीति की बांछें खिल उठीं. रात में ही उस ने गिरजेश से फोन पर बात की जो ठीक उस के घर के सामने रुका था. क्या बातें हुईं थीं, यह बताने के लिए प्रीति तो अब जिंदा नहीं है और गिरजेश मुंह छिपाता फिर रहा है. सुबह 5 बजे प्रीति ने अपने गले में फांसी का फंदा डाल कर खुदकुशी कर ली.
सियासत तले मुहब्बत
सुबह के तकरीबन10 बजे सोशल मीडिया पर यह मैसेज वायरल हुआ कि उदयपुरा में प्रीति रघुवंशी नाम की लड़की ने खुदकुशी कर ली है और वह राज्य के रसूखदार मंत्री ठाकुर रामपाल सिंह की बहू है, तो हड़कंप मच गया.
जल्द ही सारी कहानी सामने आ गई. प्रीति का लिखा सुसाइड नोट भी वायरल हुआ जिस में उस ने अपनी गलती के बाबत बारबार मम्मीपापा से माफी मांगते हुए किसी को परेशान न किए जाने की बात लिखी थी. अपने आशिक या शौहर गिरजेश का उस ने अपने सुसाइड नोट में जिक्र तक नहीं किया था.
8 महीने से सब्र कर रहे प्रीति के घर वाले भी अब खामोश नहीं रह पाए और उन्होंने ठाकुर रामपाल सिंह और गिरजेश पर इलजाम लगाया कि ये दोनों प्रीति को दिमागी तौर पर परेशान कर रहे थे, इसलिए प्रीति ने खुदकुशी कर ली.
बात चूंकि ठाकुर रामपाल सिंह सरीखे रसूखदार और दिग्गज मंत्री के बेटे की थी, इसलिए कांग्रेसियों ने मौका भुनाने की भूल नहीं की और गिरजेश की गिरफ्तारी और रामपाल सिंह को मंत्रिमंडल से बरखास्त करने की मांग पर वे अड़ गए.
चौतरफा समर्थन मिलता देख कर प्रीति के पिता चंदन सिंह रघुवंशी इस जिद पर अड़ गए कि ठाकुर रामपाल सिंह प्रीति को बहू का दर्जा दें और गिरजेश उस का अंतिम संस्कार करे तभी वे प्रीति की लाश लेंगे नहीं तो प्रीति की लाश नैशनल हाईवे पर रख कर प्रदर्शन किया जाएगा.
चंदन सिंह रघुवंशी ने ठाकुर रामपाल सिंह और गिरजेश के खिलाफ उदयपुरा थाने में शिकायत भी दर्ज कराई.
उधर ठाकुर रामपाल सिंह ने दोटूक कह दिया कि उन के बेटे गिरजेश को फंसाया जा रहा है और प्रीति उन की बहू नहीं है तो पूरा रघुवंशी समाज उदयपुरा में इकट्ठा हो कर विरोध करने लगा.
बात इतनी बिगड़ी कि उदयपुरा छावनी में तबदील हो गया और रायसेन की कलक्टर और एसपी समेत दूसरे आला अफसर मामला सुलझाने की कोशिश में जुट गए.
जैसेतैसे बड़ेबूढ़ों के समझाने पर प्रीति के घर वालों ने उस का दाह संस्कार किया लेकिन जांच की मांग नहीं छोड़ी तो पाला बदलते ठाकुर रामपाल सिंह प्रीति को बहू का दर्जा देने के लिए तैयार हो गए.
इस से बात सुलझती नजर आई लेकिन फिर जल्द ही बिगड़ भी गई क्योंकि जांच के नाम पर पुलिस प्रीति के घर वालों को ही परेशान करने लगी थी और गिरजेश के खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिख रही थी.
25 मार्च, 2018 को जैसेतैसे प्रीति के पिता चंदन सिंह रघुवंशी के बयान दर्ज हुए, पर तब तक भी पुलिस ने गिरजेश के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की थी.
जातपांत का फेर
गिरजेश ने सरासर बुजदिली दिखाई और भोलीभाली प्रीति को धोखा दिया. उस की शादी की खबर ठाकुर रामपाल सिंह को थी लेकिन वे जातिगत ठसक और जिद के चलते बेटे की चोरीछिपे की शादी को मंजूरी नहीं दे पाए.
प्रीति की गलती यह थी कि उस ने गिरजेश पर आंखें मूंद कर भरोसा किया और चोरी से शादी भी कर ली. लेकिन गिरजेश वादे से मुकर गया तो वह घबरा उठी.
प्रीति अगर मरने के बजाय दिलेरी से अपनी शादी का राज खोल कर अपना हक मांगती तो नजारा कुछ और होता.
प्रीति की मौत एक सबक है कि आशिक पर भरोसा कर उस से चोरीछिपे शादी करना जिंदगी दांव पर लगाने जैसी बात है. वजह, जो शख्स चोरी से शादी कर रहा हो उस के पास मुकरने और धोखा देने का पूरा मौका रहता है.
कई लड़कियां तो चोरी से शादी कर पेट से हो आती हैं और दोहरी परेशानी और जिल्लत झेलती हैं. वे शादी का सुबूत दें तो भी उस पर कोई तवज्जुह नहीं देता.
यह भी साफ दिख रहा है कि जातपांत में जकड़ा समाज कहने भर को मौडर्न हुआ है, नहीं तो हकीकत प्रीति के मामले से सामने है कि बदला कुछ खास नहीं है.
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जनता को बेहतर डाक्टरी इलाज मुहैया कराने की तमाम सरकारी योजनाओं के बड़ेबड़े होर्डिंग भले ही लोगों का ध्यान खींचते हों, पर इन योजनाओं को असरदार तरीके से लागू न करने के चलते मरीजों का हाल बेहाल है.
अगस्त, 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मैडिकल कालेज में औक्सिजन की कमी से हुई सैकड़ों बच्चों की मौतें सरकारी अस्पतालों के बुरे हालात को उजागर करती हैं.
गौरतलब है कि गोरखपुर और फर्रुखाबाद के जिला अस्पताल में मरने वाले बच्चे उन गरीब परिवारों के थे, जो इलाज के लिए केवल सरकारी अस्पतालों की ओर ताकते हैं.
इसी तरह राजस्थान के बांसवाड़ा में महात्मा गांधी चिकित्सालय में 51 दिनों में 81 बच्चों की मौतें कुपोषण की वजह से हो गईं.
वहीं दूसरी ओर जमशेदपुर के महात्मा गांधी मैमोरियल अस्पताल में बीते चंद महीनों में 164 मौतें हुईं तो झारखंड के 2 अस्पतालों में इस साल अब तक 800 से ज्यादा बच्चों की मौतें हो गईं. इन में से ज्यादातर मौतें मैनेजमैंट की कमी की वजह से हुईं.
स्वास्थ्य सेवाएं वैंटीलेटर पर
मध्य प्रदेश के 51 जिलों में 8,764 प्राथमिक उपस्वास्थ्य केंद्र, 1,157 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 334 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 63 सिविल अस्पताल और 51 जिला अस्पताल हैं, पर स्वास्थ्य सेवाएं वैंटीलेटर पर हैं.
सरकार नई स्वास्थ्य योजनाएं लागू कर रही है, लेकिन हकीकत में इस के नतीजे निराशाजनक ही रहे हैं.
सरकारी योजनाओं में फैला भ्रष्टाचार भी इस में अहम रोल निभा रहा है. गांवों में ठेके पर बहाल किए गए स्वास्थ्य कार्यकर्ता हफ्ते में एक दिन जा कर पंचायत भवन या स्कूल में थोड़ी देर बैठ कर बच्चों को टीके लगा कर या मरीजों को नीलीपीली गोलियां बांट कर अपने फर्ज को पूरा करना समझ लेते हैं.
कहने को तो सरकारी अस्पतालों में हजारों बिस्तर और मशीनें हैं, लेकिन इन का इंतजाम बदहाल है. कई अस्पतालों में 1-1 बिस्तर पर 2-2 मरीज भरती कर इलाज की रस्म अदायगी हो रही है.
मैदान में पोस्टमार्टम
मध्य प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में पोस्टमार्टम हाउस में मवेशी मरे पड़े रहते हैं और डाक्टर खुले मैदान में पोस्टमार्टम कर देते हैं.
ऐसी ही एक घटना मई, 2017 में नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा अस्पताल में सामने आई थी. यहां करंट लगने से मरी 14 साल की एक किशोरी का पोस्टमार्टम डाक्टरों ने मैदान में किया.
परिवार वाले डाक्टरों के आगे गिड़गिड़ाते रहे कि उन की बेटी का पोस्टमार्टम करने के लिए कम से कम किसी कपड़े या धोती की आड़ तो बना लीजिए, लेकिन डाक्टर नहीं माने और खुले में ही पोस्टमार्टम कर दिया.
बताया गया कि इस की वजह पोस्टमार्टम हाउस में गंदगी फैली थी. एक मवेशी की सड़ रही लाश से परेशानी हो रही थी. उस में से बदबू आ रही थी.
उजड़ी 600 कोखें
नरसिंहपुर जिला अस्पताल में पिछले 9 महीने में तकरीबन 600 औरतों की बच्चेदानी के आपरेशन किए जाने के पीछे एक रैकेट के होने के शक से हड़कंप मच गया.
अगर कोई औरत पेटदर्द से पीडि़त होती और वह जिला अस्पताल पहुंच जाती तो डाक्टर उसे पेटदर्द के लिए कोई दवा दें या न दें, उस का ब्लड एचआईवी व ईसीजी जांच के लिए पैथोलौजी सैंटर जरूर भेज देते. जब रिपोर्ट आ जाती तो बताया जाता है कि मरीज की बच्चेदानी का आपरेशन किया जाएगा.
आपरेशन बगैर सोनोग्राफी जांच के कर दिए जाते. इक्कादुक्का मामलों में अगर सोनोग्राफी कराई भी जाती तो बता दिया जाता कि बच्चेदानी में सूजन है या फिर उस में गांठ है, जिस से तकलीफ है. यह कह कर बच्चेदानी का आपरेशन कर दिया जाता.
हैरानी की बात है कि जिन का आपरेशन किया गया उन में कम उम्र की औरतें ज्यादा थीं. 25 से 35 साल की औरतों की तादाद 200 से ज्यादा थी जबकि 35 से 45 साल की औरतों की तादाद 250 थी.
निजी अस्पताल मालामाल
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान वगैरह योजनाओं के तहत प्रदेश के 2 दर्जन से ज्यादा निजी क्लिनिक को मरीजों के इलाज के लिए चिह्नित किया गया है. इन में कैंसर, हृदय रोग समेत दूसरी गंभीर बीमारियों से पीडि़त मरीजों का इलाज होता है और राज्य सरकार इलाज का खर्च उठाती है. पर जब मरीज इन निजी क्लिनिकों में इलाज के खर्च का लेखाजोखा तैयार करवाने जाता है तो बीमारी से कई गुना ज्यादा का लेखाजोखा तैयार कर सरकार से लाखों रुपए की भरपाई ये निजी अस्पताल कराते हैं.
बेदम सरकारी अस्पताल
गांवदेहात के स्वास्थ्य केंद्रों में डाक्टरों की बेहद कमी है. वजह, मैडिकल कालेजों से डिगरी लेने के बाद डाक्टरों की वहां जाने में कोई दिलचस्पी नहीं है.
शहरों में बड़ी तादाद में चल रहे निजी अस्पतालों में इन डाक्टरों को नौकरी के अलावा सीनियर डाक्टरों के साथ काम करने का मौका मिल जाता है.
प्रदेश सरकार द्वारा आबादी की बढ़ती रफ्तार के साथ नए मैडिकल कालेज खोलने या मैडिकल कालेजों में सीटों की तादाद बढ़ाए जाने में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई गई है.
सरकारी अस्पतालों में काम कर रहे डाक्टर ओपीडी में बैठने के बजाय निजी प्रैक्टिस कर पैसा कमाने में लगे हैं. एक मरीज से फीस के नाम पर 200 से ले कर 500 रुपए वसूलने वाले इन डाक्टरों को महीनेभर में मिलने वाली तनख्वाह नाकाफी लगती है.
कसबाई इलाकों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में महिला डाक्टर के न होने से स्वास्थ्य विभाग की जननी सुरक्षा योजना का फायदा गरीब तबके को सही ढंग से नहीं मिल पा रहा है. अस्पतालों में बच्चा पैदा कराने का काम नर्सों व दाइयों के जिम्मे है. यही वजह है कि निजी नर्सिंगहोम गरीबों की जेब पर डाका डाल कर नोट बटोर रहे हैं. मलेरिया के लिए की जाने वाली खून की जांच के लिए 2-3 बार भटकना पड़ता है. मजबूरन लोग मैडिकल स्टोर पर मिलने वाली किट का सहारा लेते हैं.
गरीब के पास वोट रूपी हथियार होता है. कभी व्यवस्था से नाराज हो कर वह सरकार बदलने का कदम उठाता भी है तो अगली सरकार का रवैया भी वैसा ही रहता है. ऐसे में गरीब तबका सरकारी अस्पतालों में मिल रही आधीअधूरी सुविधाओं से काम चला लेता है.
लोगों द्वारा चुनी जाने वाली सरकारें जनता के दुखदर्द को महसूस न कर के उन्हें पूजापाठ के रास्ते पर चलाने में बिजी हैं.
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जो लोग दुनिया की बढ़ती आबादी से चिंतित हो रहे हैं उन्हें अब राहत का एहसास होगा कि चीन में 40 वर्षों से चल रही एक बच्चे की नीति को ढीला करने के बावजूद वहां बच्चों की जन्मदर बढ़ने की जगह घट ही रही है. 2016 में 1.86 करोड़ बच्चे पैदा हुए थे जबकि 2017 में घट कर 1.72 करोड़ बच्चे ही पैदा हुए. ऐसे में वहां कामकाजी लोगों की कमी महसूस की जाने लगी है.
चीन की आबादी अभी घट नहीं रही है क्योंकि वहां अगर बच्चे घट रहे हैं तो मृत्युदर भी घट रही है और लोग ज्यादा दिन जी रहे हैं. अब समस्या यह आ रही है कि प्रौढ़ और वृद्धों की देखभाल कौन करेगा.
भारत में वृद्धि अभी भी काफी है और भारत जल्दी ही जनसंख्या के मामले में दुनिया का सब से बड़ा देश बन जाएगा. हालांकि सब से ज्यादा गरीब भी यहीं होंगे और सब से ज्यादा बीमार भी यहीं होंगे.
चीन ने आबादी घटाने के लिए कड़ी मेहनत की थी और अपनी जनता पर बहुत अंकुश लगाए थे. आज उसे उस का भरपूर लाभ मिल रहा है. चीन की वर्तमान प्रगति का राज उस का नास्तिक होना और बच्चों का कम होना है. चीनी न धर्म के नाम पर पैसा व समय बरबाद करते हैं और न ही उन्हें ज्यादा बच्चे पालने में अपने काम छोड़ने पड़ते हैं.
बच्चों से बहुत सुख मिलता है, पर जितने सुख गिनाए जाते हैं उस से ज्यादा आफतें होती हैं. जब तक केवल कृषि पर आधारित समाज था, बच्चे जैसेतैसे खेतों के किनारे पल जाते थे, पर जब से उत्पादन फैक्टरियों में होने लगा और सेवा क्षेत्र बढ़ने लगा है, तब से घर व काम करने की जगहें अलग हो गई हैं और दूसरे कामों के साथ बच्चे पाले नहीं जा सकते.
हमारे यहां नीतियां आज भी पौराणिक सोच पर बन रही हैं और इसीलिए हमारी जन्मदर दूसरे देशों से ज्यादा है. गरीबी के कारण बच्चों को पैदा होने से रोकना कठिन होता है और पैदा हुए बच्चों को उसी गरीबी को झेलना पड़ता है. हमारी रूढि़वादी सरकार केवल गैरहिंदुओं की बढ़ती आबादी का हल्ला मचा कर राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है और उस ने ‘हम दो, हमारा एक’ का नारा लगभग भुला दिया है. चीन अब 3 बच्चों तक की अनुमति दे रहा है, वास्तव में वह पारिवारिक जीवन में दखलंदाजी बंद कर रहा है.
सैक्स जीवन के लिए अहम है पर बच्चे केवल बाईप्रोडक्ट हैं. आज कम बच्चों के साथ ही अर्थव्यवस्थाएं मजे में चल सकती हैं. आर्टिफिशल इंटैलिजैंस के सहारे चलने वाली स्वचालित मशीनों का दौर अब केवल नुक्कड़ के परे है और जल्दी ही बहुत अधिक उत्पादन, बहुत कम लोगों से होने लगेगा. घरघर में ऐसी मशीनें पहुंच सकती हैं जो घर का काम भी तुरंत कर देंगी और बच्चों के कारण होने वाली मानसिक व आर्थिक समस्याएं खड़ी न होंगी.
कम बच्चे या बच्चे न होना एक गुण होगा, कभी नहीं.
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शायद आप को यह पता नहीं है कि गैस सिलैंडर पर मिलने वाली सब्सिडी की जो राशि आप के खाते में लौटाई जा रही है उस से बैंक कुछ राशि चुपचाप न्यूनतम बैलेंस शुल्क के नाम पर काट रहे हैं. बैंक आप को बताए बिना आप के खाते पर डाका डाल रहे हैं. बैंकों का तर्क है कि पिछले वर्ष 1 अप्रैल से बचत बैंक खातों में जिन ग्राहकों की नियमानुसार न्यूनतम राशि नहीं है उन की सब्सिडी पर शुल्क लगाया गया है. स्टेट बैंक के अनुसार, उस के बाहरी उपभोक्ता के बचत बैंक खाते में न्यूनतम राशि 3 हजार रुपए अनिवार्य है जबकि अर्धशहरी बैंक खाताधारक के खाते में 2 हजार रुपए और ग्रामीण क्षेत्र के खाताधारक के खाते में न्यूनतम 1 हजार रुपए होने चाहिए.
बैंकों ने इस नियम का फायदा उठाते हुए चुपचाप गैस सब्सिडी के पैसे पर हाथ मारा और जुर्माना वसूल करना शुरू कर दिया. इस बारे में जब शिकायत की गई तो जांच कराई गई.
जांच में पता चला कि बैंक ने खाताधारक के खाते में न्यूनतम राशि न होने पर गैस सब्सिडी के पैसे से शुल्क वसूला है. देशभर में 20 करोड़ से अधिक उपभोक्ताओं के खाते में सब्सिडी का पैसा सीधे पहुंच रहा है और बैंक इस से कितना काट रहे हैं, इस की सूचना नहीं है.
जनधन खातों में न्यूनतम राशि की बाध्यता नहीं है. सवाल है कि क्या बैंकों को ग्राहकों का पैसा उन की अनुमति के बिना वसूलने का अधिकार है. बैंक में यदि किसी ग्राहक के हस्ताक्षर में थोड़ा फर्क हो तो ग्राहक को उस का पैसा देने से मना किया जाता है, लेकिन यहां उसे बताए बिना पैसा काट लिया जाता है. यह आर्थिक अराजकता और मनमानी ही तो है. बैंक में ग्राहक ने भरोसे से अपना पैसा रखा है और उस की अनुमति के बिना उस के पैसे से छेड़छाड़ करने का किसी को अधिकार नहीं है, खुद बैंक को भी नहीं है. ग्राहक की अनुमति के बिना सब्सिडी का पैसा काटने वालों को दंडित किया जाना चाहिए.
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पनीर को छोटे टुकड़ों में काट कर अलग रख लें. पेस्ट बनाने की सारी सामग्री एकसाथ मिला कर महीन पीस लें. फिर एक पैन में घी गरम कर के प्याज डाल कर सुनहरा होने तक भूनें. अब उस में पेस्ट, चीनी और नमक डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर मेथी और पालक की प्यूरी डाल कर 2 मिनट तक पकाएं. पकने पर पनीर डाल कर मिलाएं व गरमगरम सर्व करें.
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अव्वल तो 64 वर्षीय सुरेंद्र हीरानंदानी का नाम ही अपनेआप में एक ब्रैंड है लेकिन उन की कई और भी पहचान हैं. मसलन, वे रियल एस्टेट कारोबार के बादशाह हैं, 83 हजार करोड़ रुपए की अकूत दौलत के मालिक हैं, फोर्ब्स की सूची में उन का नाम दुनिया के 100 रईसों में शुमार है और वे फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार के जीजा हैं.
कुछ दिनों पहले ही सुरेंद्र भारत छोड़ कर साइप्रस जा बसे हैं (पैसे डकार कर भागे नहीं हैं). देश छोड़ विदेश जा बसने की वजहें भी उन्होंने बताई है जिन में प्रमुख यह है कि अब कंस्ट्रक्शन कारोबार में पहले सा मुनाफा नहीं रह गया है और भारतीय पासपोर्ट पर वर्कवीजा मिलने में उन्हें भी कठिनाई पेश आ रही थी.
रहस्यमय बात यह है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 23 हजार अरबपति जाने किस घुटन और डर के चलते देश छोड़ चुके हैं. जाहिर है सरकार की नीतियांरीतियां इस की जिम्मेदार हैं.
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