कास्टिंग काउच को ले कर केवल फिल्मों पर ही चर्चा होती है. लेकिन सचाई यह है कि कास्टिंग काउच केवल फिल्मों में ही नहीं बल्कि राजनीति और दूसरे क्षेत्रों में भी होता है. समयसमय पर हर क्षेत्र में काम करने वाले लोग इस पर अपनी राय देते हैं. फिल्मों की तरह राजनीति भी अब कास्टिंग काउच से अछूती नहीं है. यहां लोग इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं. गौसिप के रूप में तमाम नेताओं के महिलाओं से संबंधों की चर्चा होती रहती है. इन में राजनीति के अलावा फिल्मी महिलाएं भी शामिल होती हैं.

राजनीति में कास्टिंग काउच नहीं होता तो समयसमय पर नेताओं के संबंधों की कहानियां सामने नहीं आतीं. आंध्र प्रदेश में एन टी रामाराव और उत्तर प्रदेश में नारायण दत्त तिवारी के नाम चर्चित रहे हैं. दूसरे भी बहुत सारे ऐसे नेता हैं जिन के नाम समयसमय पर महिलाओं के साथ सामने आए हैं. यह बात और है कि ये बातें आसानी से दबा दी जाती हैं. अभिनेत्री श्रीरेड्डी के बयान

के बाद कांगे्रस नेता और पूर्व राज्यसभा सदस्य रेणुका चौधरी ने भी कहा कि कास्टिंग काउच केवल फिल्मों में ही नहीं है, यह सभी कार्यस्थलों की कड़वी सचाई है. यहां तक कि संसद भी इस से अछूती नहीं है. विदेशों में अभिनेत्रियों ने इस बात को स्वीकार कर ‘मी टू’ कहने में काफी समय लिया. अब समय आ गया है कि भारत में भी लोग सामने आ कर ‘मी टू’ कहें. चुप रहती हैं पीडि़ताएं

भारत में ‘मी टू’ अभियान के तहत कई औरतों ने बताया कि वे भी कभी न कभी इव टीजिंग का शिकार हुई हैं. कास्टिंग काउच को अभी लोगों ने स्वीकार नहीं किया है. फिल्मी दुनिया में भी वही अभिनेत्रियां सामने आई हैं जो कास्टिंग काउच की शिकार होने के बाद फिल्मों में काम नहीं पा सकी हैं. दक्षिण भारत में एम जी रामचंद्रन और जयललिता का मामला ऐसे उदाहरणों में शामिल है. आंध्र प्रदेश में एन टी रामाराव और लक्ष्मी पार्वती का उदाहरण भी इन में से एक है. एन टी रामाराव और जयप्रदा पर भी ऐसे आरोप लगते रहे हैं.

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