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फर्जी खबरों पर शिकंजा कसने की तैयारी में यूट्यूब

गूगल की वीडियो प्लेटफौर्म कंपनी यूट्यूब अफवाहों और फर्जी खबरों पर शिकंजा कसने और समाचार संगठनों की मदद के लिए खबर की सच्चाई परखने के लिए कई कदम उठा रही है. इन चुनौतियों से मुकाबला करने के लिए कंपनी 2.5 करोड़ डालर का निवेश भी करेगी. यूट्यूब ने खुद इस बात की जानकारी दी है. कंपनी ने कहा कि वह समाचार स्त्रोतों को और अधिक विश्वसनीय बनायेगी, खासतौर से ब्रेकिंग न्यूज के मामले में एहतियात बरतेगी जहां गलत सूचनाएं आसानी से फैल सकती है.

इसी के साथ वह चेतावनी भी देगा कि ये खबरें बदल सकती हैं. इसका उद्देश्य फर्जी वीडियो पर रोक लगाना है जो कि गोलीबारी, प्राकृतिक आपदा और अन्य प्रमुख घटनाओं के मामले में तेजी से फैल सकती है. यूट्यूब ने कहा कि वह अपने प्लेटफौर्म पर खबरों में सुधार और भ्रामक सूचनाएं जैसी गंभीर चुनौतियों से निपटने के लिए अगले कुछ वर्षों में 2.5 करोड़ डालर का निवेश करेगी.

इसमें दुनिया भर के समाचार संगठनों में टिकाऊ एवं बेहतर वीडियो परिचालन स्थापित करने के लिए कर्मचारी प्रशिक्षण और वीडियो प्रोडक्शन सुविधा में सुधार जैसे चीजें शामिल हैं. इसके अलावा कंपनी विकिपीडिया और इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका जैसे सामान्य विश्वसनीय सूत्रों के साथ विवादित वीडियो से निपटने के तरीकों का भी परीक्षण कर रही है.

सावधान! कहीं आपके फोन में मौजूद ऐप आपकी जासूसी तो नहीं कर रहे

आप भी एंड्रायड फोन का इस्तेमाल करते होंगे. लेकिन क्या आपको पता है कि आपके एंड्रायड फोन में मौजूद कुछ लोकप्रिय ऐप आपकी जासूसी करते हैं? जी हां! ये सच है, ये ऐप आपकी बातों को सुनते हैं, आपके व्यवहार पर नजर रखते हैं और यहां तक कि आपकी गतिविधि के स्क्रीनशाट्स भी ले सकते हैं और उसे तीसरे पक्ष को भेज सकते हैं. यह जानकारी एक नए अध्ययन में सामने आई है.

अध्ययनकर्ताओं ने कहा है कि मोबाइल के स्क्रीन पर आपके क्रियाकलापों के इन स्क्रीनशाट्स और वीडियो में आपके यूजरनेम, पासवर्ड, क्रेडिट कार्ड का नंबर और अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां शामिल हैं. बोस्टन के नार्थइस्टर्न यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक डेविड चोफनस ने कहा, “हमने पाया कि सभी ऐप के पास आपके स्क्रीन को या जो कुछ भी आप टाईप करते हैं, उन्हें रिकार्ड करने की क्षमता है.” इन अध्ययन को बार्सिलोना में होने वाले प्राइवेसी इनहांसिंग टेक्नोलौजी सिंपोजियम में पेश किया जाएगा. अध्ययन के अंतर्गत, समूह ने एंड्रायड औपरेटिंग सिस्टम में विद्यार्थियों द्वारा लिखित एक स्वचालित परीक्षण कार्यक्रम का उपयोग कर 17,000 से ज्यादा सबसे महत्वपूर्ण ऐप का विश्लेषण किया.

इन 17,000 ऐप में से 9,000 ऐप के पास स्क्रीनशाट्स लेने की क्षमता थी. विश्वविद्यालय के प्राध्यापक क्रिस्टो विल्सन ने कहा, “अध्ययन में किसी भी प्रकार के औडियो लीक का पता नहीं चला. एक भी ऐप ने माइक्रोफोन को सक्रिय नहीं किया.” उन्होंने कहा, “उसके बाद हमने ऐसी चीजें देखी, जिसकी हमें आशा नहीं थी.

ऐप खुद ब खुद स्क्रीनशाट्स ले रहे थे और तीसरे पक्ष को भेज रहे थे.” विल्सन ने कहा, “इसका उपयोग निश्चित ही किसी दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाता होगा. इंस्टाल होना और जानकारी इकट्ठी करना काफी आसान है. और जो सबसे खतरनाक है, वह यह है कि इसके लिए कोई नोटिफिकेशन नहीं भेजा जाता और उपयोगकर्ताओं से कोई इजाजत नहीं ली जाती.”

अध्ययनकर्ताओं ने कहा, हालांकि यह अध्ययन एंड्रायड फोन पर किए गए, लेकिन इस विश्वास का कोई कारण नहीं है कि अन्य आपरेटिंग सिस्टम कम खतरनाक होंगे.

इंग्लैंड में अनुष्का शर्मा के साथ डेट पर निकले कोहली

टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली इस वक्त सबसे व्यस्त खिलाड़ी हैं. इंटरनेशनल क्रिकेटिंग कैलेंडर में भी उनका शेड्यूल बेहद बिजी है. पिछले कुछ वक्त से विराट कोहली यह शिकायत भी करते रहे हैं कि बेहद बिजी क्रिकेट शेड्यूल होने की वजह से उन्हें अपने परिवार के साथ समय बिताने का मौका नहीं मिल पा रहा है. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट शेड्यूल और आईपीएल ने क्रिकेटरों का अधिकांश समय ले लिया है. दूसरे क्रिकेटरों की तरह विराट कोहली भी यही कहते हैं कि उन्हें परिवार को देने के लिए समय नहीं मिलता. हालांकि, वे जानते हैं कि इंडियन जर्सी पहनने की जिम्मेदारी बड़ी है और कप्तान होने की नाते यह जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ जाती है.

फिलहाल कप्तान विराट कोहली लगभग 80 दिनों के लंबे शेड्यूल पर इंग्लैंड में हैं. इंग्लैंड को 3 मैचों की टी-20 में 2-1 से मात देने के बाद विराट कोहली को थोड़ा-सा वक्त अपने परिवार के लिए मिल ही गया है, क्योंकि भारत को अब वन-डे सीरीज 12 जुलाई से करनी है. ऐसे में लिहाजा सभी खिलाड़ियों को कुछ वक्त मिल ही गया.

Day out with my beauty!

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इंग्लैंड दौरे पर टीम इंडिया के कई खिलाड़ियों के परिवार भी उनके साथ हैं. कप्तान विराट कोहली की पत्नी अनुष्का शर्मा भी इस वक्त इंग्लैंड हैं. ऐसे में वक्त मिलने पर विराट और अनुष्का एक रोमांटिक डेट पर निकले. विराट कोहली ने अपने औफिशियल इंस्टाग्राम अकाउंट से अपनी इस रोमांटिक डेट की एक तस्वीर भी शेयर की है.

इस तस्वीर में अनुष्का शर्मा, विराट कोहली के गालों पर किस करती नजर आ रही हैं. इस तस्वीर को शेयर करते हुए विराट कोहली ने लिखा है- अपनी ‘Beauty’ के साथ एक दिन.

बता दें कि विराट और अनुष्का ने दिसंबर 2017 में इटली में गुपचुप तरीके से शादी रचाई थीं. हालांकि, इसके बाद उन्होंने दिल्ली और मुंबई में दो ग्रैंड रिसेप्शन किए. विराट-अनुष्का 2014 से एक-दूसरे को डेट कर रहे थे. इस पावर कपल ने अपने अफेयर को बहुत सीक्रेट रखा, लेकिन अब शादी के बाद दोनों सोशल मीडिया पर अपने फोटो शेयर करने में कोई संकोच नहीं करते. अधिकांश मौकों पर अनुष्का विराट को चीयर करने के लिए मैदान पर होती हैं. वहीं, दूसरी तरफ विराट भी अक्सर अनुष्का के प्रोफेशनल वेंचर्स को सोशल मीडिया पर प्रमोट करते दिखाई पड़ते हैं.

इस तरह वनडे में नंबर 1 बन सकता है भारत

भारत अगर 12 जुलाई से शुरू होने वाली तीन वन-डे मैचों की सीरीज में इंग्लैंड को 3-0 से हरा देता है तो वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद की वनडे रैकिंग में शीर्ष पर पहुंच जाएगा. इंग्लैंड और भारत अभी वनडे रैंकिंग में क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर हैं. इन दोनों के बीच पहला वनडे गुरुवार को नाटिंघम में होगा.

इस मैच से एक महीने तक चलने वाले वन-डे मैचों की शुरुआत भी होगी. इस दौरान कुल 10 टीमें इस प्रारूप में खेलेंगी. इंग्लैंड को टी-20 अंतरराष्ट्रीय सीरीज में 2-1 से हराने वाली ‘विराट सेना’ ने 2 मई को वार्षिक अपडेट के बाद अपनी शीर्ष रैंकिंग गंवा दी थी, लेकिन उसके पास फिर से इसे हासिल करने का मौका है.

आईसीसी की विज्ञप्ति के अनुसार इसके लिए उसे इंग्लैंड को 3-0 से हराना होगा. दूसरी तरफ इंग्लैंड अगर इसी अंतर से जीत दर्ज करता है तो वह शीर्ष पर अपनी स्थिति मजबूत कर देगा और उसकी बढ़त 10 अंक की हो जाएगी.

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भारत और इंग्लैंड के बीच सीरीज 17 जुलाई को समाप्त होगी. इस बीच जिम्बाब्वे पांच मैचों के लिए पाकिस्तान की मेजबानी करेगा. ये मैच 13 से 22 जुलाई के बीच खेले जाएंगे. वेस्टइंडीज 22 से 28 जुलाई के बीच बांग्लादेश के खिलाफ तीन वन-डे खेलेगा.

श्रीलंका 29 जुलाई से 12 अगस्त के बीच पांच मैचों के लिये दक्षिण अफ्रीका की मेजबानी करेगा जबकि नीदरलैंड अपनी सरजमीं पर नेपाल के खिलाफ दो वन-डे खेलेगा. नेपाल एक अगस्त को नीदरलैंड के खिलाफ वनडे में पदार्पण भी करेगा. नीदरलैंड क्रिकेट बोर्ड ने बताया कि 1 अगस्त से 3 अगस्त तक नीदरलैंड और नेपाल की टीमें वन-डे मैच में आमने-सामने होंगी. यह दोनों मैच नीदरलैंड में खेले जाएंगे.

इस बीच खिलाड़ियों के पास भी अपनी रैंकिंग में सुधार का मौका रहेगा. भारतीय कप्तान विराट कोहली अभी 909 अंक के साथ बल्लेबाजी रैंकिंग में शीर्ष पर हैं. वह दूसरे नंबर पर काबिज पाकिस्तान के बाबर आजम से 96 अंक आगे हैं.

भारत के चौथी रैंकिंग के रोहित शर्मा टी-20 की अपनी फौर्म को वन-डे में भी बरकरार रखना चाहेंगे. इंग्लैंड के छठी रैंकिंग के जो रूट के पास रास टेलर को पीछे छोड़ने का मौका रहेगा. गेंदबाजी रैंकिंग में शीर्ष पर काबिज जसप्रीत बुमराह उंगली की चोट के कारण सीरीज में नहीं खेल पाएंगे जिससे अन्य को अंतर कम करने का मौका मिलेगा. तीसरे नंबर पर काबिज हसन अली फिर से शीर्ष पर पहुंचने की कोशिश करेंगे.

म्यूजिक वीडियो ‘‘नखरे’’ में अर्शी खान का बिकनी अवतार

अति बोल्ड व तेज तर्रार अदाकारा अर्शी खान ने टीवी के रियालिटी शो ‘‘बिग बौस सीजन 11’’ में अपनी अदाओं से सनसनी फैलाई थी. अब वह एक बार फिर सनसनी फैला रही हैं, मगर इस बार वह हाल ही में बाजार में आए म्यूजिक वीडियो ‘‘नखरे’’ में सनसनी फैला रही हैं. इस वीडियो में विन मुग्दिल के साथ अर्शी खान की अति गर्मागर्म केमिस्ट्री हर किसी को अपनी तरफ खींच रही है.

जी हां! ‘‘पौप कल्चर मीडिया’’ द्वारा प्रस्तुत म्यूजिक वीडियो के गीत ‘‘नखरे’’में विन मुग्दिल के संग अर्शी खान अपनी अदाओं से सनसनी फैला रही हैं. जबकि इस म्यूजिक वीडियो के निर्देशक आदित्य सिंह राजपूत ने इस म्यूजिक वीडियो में अर्शी खान को नेक्स्ट डोर गर्ल का लुक दिया है, पर इस लुक में भी वह लोगों को अपनी तरफ आकर्शित कर रही हैं.

वास्तव में नेक्स्ट डोर गर्ल होते हुए भी इस म्यूजिक वीडियो में अर्शी खान बिकनी अवतार में नजर आ रही हैं. गीत ‘‘नखरे’’ की कहानी के अनुसार इसमें विन मुग्दिल रहस्यमय प्रेमी के किरदार में हैं.

मुसलिम दलित एकता जरूरी है

15 अप्रैल, 2018 को पटना में  गांधी मैदान में हुए ‘दीन बचाओ, देश बचाओ’ सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जम पर निशाना साधा गया. मुसलिमों के इस सम्मेलन में पहली बार मुसलिम और दलित एकता का नारा दिया गया.

राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के माय यानी मुसलिमयादव समीकरण से आगे बढ़ कर मुसलिमदलित एकता का नारा बुलंद किया गया.

देशभर में मुसलिमदलित समाज को एकजुट करने की कवायद शुरू हो चुकी है. साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को ले कर यह कोशिश जोर पकड़ने लगी है.

तकरीबन 30 करोड़ दलित और तकरीबन 18 करोड़ मुसलिमों की आबादी पर राजनीतिक दलों ने अपनी निगाहें टिका दी हैं. इन दोनों को मिलाने की राह में कई रोड़े हैं लेकिन इस के बाद भी नेताओं को उम्मीद है कि मुसलिमदलित एकता बनेगी और अगले चुनाव में अपना रंग दिखाएगी.

‘इमारत ए शरिया’ के इस सम्मेलन में बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के मुसलिम शामिल हुए. ‘इमारत ए शरिया’ की बुनियाद मौलाना अबुल कलाम आजाद और मौलाना सज्जाद ने साल 1921 में रखी थी. इस संस्था का मकसद सामाजिक सुधार, कल्याणकारी काम, तालीम का प्रसार और गरीबों की मदद करना है.

इस सम्मेलन की अगुआई करते हुए ‘इमारत ए शरिया’ के अमीर शरीअत और आल इंडिया मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड के महासचिव हजरत मौलाना सैयद वली रहमानी ने कहा कि देश के हालात पिछले कुछ सालों से ठीक नहीं हैं. संविधान में दिए गए बुनियादी हकों को खत्म करने की साजिशें चल रही हैं. सुप्रीम कोर्ट तक पर दबाव बनाया जा रहा है.

इस सम्मेलन की खासीयत यह रही कि इस में मुसलिमों और दलितों की एकता पर जोर दिया गया.

पिछले कुछ समय से कई राजनीतिक दल दलितमुसलिम एकता का नारा बुलंद करने लगे हैं. मुलायम सिंह यादव, मायावती, ममता बनर्जी को तो छोडि़ए, भारतीय जनता पार्टी के पिछलग्गू नीतीश कुमार भी अब मुसलिमदलित एकता की रट लगा रहे हैं.

लालू प्रसाद यादव ने अपने माय यानी मुसलिमयादव समीकरण के दम पर 16 सालों तक बिहार पर राज किया था. उन के इस कामयाब समीकरण की तोड़ के लिए अब नीतीश कुमार एमडी यानी मुसलिमदलित समीकरण के बूते नई सियासी जमीन बनाने में लगे हुए हैं, जबकि उन की आका पार्टी भारतीय जनता पार्टी मुसलिमों को देशद्रोही घोषित करने की कोशिश कर रही है और दलितों को पौराणिक गुलाम.

पिछले दिनों बिहार विधानपरिषद के चुनाव में नीतीश कुमार ने अनजान से मुसलिम चेहरे खालिद अनवर को परिषद का टिकट दे कर इस समीकरण को मजबूत बनाने की कवायद की.

अरब देशों से खूब पैसा कमाने के बाद जब खालिद अनवर बिहार लौटे तो उन्होंने राजनीति में पैठ बनाने की कोशिश शुरू की. पहले तो वे लालू प्रसाद यादव के दरबार में घूमे, लेकिन वहां मुसलिम नेताओं की भरमार होने की वजह से उन्हें कोई खास भाव नहीं मिला. इस के बाद वे नीतीश कुमार के चारों ओर चक्कर काटने लगे.

नीतीश कुमार ने उन्हें अपनी ताकत दिखाने के लिए कहा. इस के बाद खालिद अनवर पटना के गांधी मैदान में मुसलिमों को जमा करने की कवायद में लग गए और ‘दीन बचाओ, देश बचाओ’ रैली करा कर अपनी ताकत दिखा दी. उसी दिन शाम होते ही खालिद अनवर के घर पर विधानपरिषद का टिकट पहुंच गया.

इस से पहले जनता दल (यूनाइटेड) का कोई नेता खालिद अनवर को जानता तक नहीं था. पटना के कुम्हरार इलाके में सुन्नी वक्फ बोर्ड की वक्फ संख्या-1048 की 5300 वर्गफुट जमीन पर उन का प्रिंटिंग प्रैस चलता है. इस जमीन पर उन्होंने जबरन कब्जा जमा रखा है.

पिछले साल जद (यू) के कुछ नेता कब्रिस्तान की जमीन पर कब्जा करने के विरोध में खालिद अनवर के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे. इस मामले में इतनी तीखी झड़प हुई थी कि जद (यू) के नेताओं ने खालिद अनवर की पिटाई कर दी थी और थाने में केस भी दर्ज कराया था.

खालिद अनवर पर यह भी आरोप है कि उन्होंने पटना के ही चितकोहरा इलाके में कब्रिस्तान की 63 डिसमिल जमीन पर कब्जा जमा रखा है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत में दलितों की कुल आबादी 20 करोड़, 14 लाख थी. यह तब की कुल आबादी का 16.6 फीसदी था. उत्तर प्रदेश में सब से ज्यादा दलित हैं. वहां कुल दलित आबादी में से 20 फीसदी दलित हैं. इस के बाद बिहार में 7.2 फीसदी दलित आबादी है. कई दलित संगठन अपनेअपने सर्वे के हिसाब से यह दावा करते हैं कि दलितों की कुल आबादी आज 32 करोड़ के आसपास है. उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश में सब से ज्यादा दलित बसते हैं. उन से ऊपर शूद्रों यानी अन्य पिछड़ी जातियों में भी बहुत सी जातियां हैं. जो हैं तो दलितों के बराबर, पर उन्हें मंडल आयोग ने ऊंची जमात में रख दिया जहां उन्हें हिकारत से देखा जाता है.

वहीं 2011 की जनगणना रिपोर्ट बताती है कि देश में 17 करोड़, 22 लाख मुसलिम रहते हैं. वे देश की कुल आबादी का 14.23 फीसदी हैं. इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद भारत मुसलिम आबादी के लिहाज से तीसरा सब से बड़ा देश है.

भारत में सब से ज्यादा मुसलिम आबादी उत्तर प्रदेश में है. वहां 3 करोड़, 7 लाख मुसलिम रहते हैं. इस के बाद पश्चिम बंगाल का नंबर आता है, जहां 2 करोड़, 2 लाख मुसलिम हैं. बिहार में एक करोड़, 37 लाख मुसलिम हैं. देश की कुल मुसलिम आबादी में से 47 फीसदी आबादी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार में ही रहती है.

सियासत के जानकार हेमंत राव कहते हैं कि मुसलिमों के साथ दलितों को मिला कर साझा राजनीति करने का सपना मुसलिम के साथ हिंदू नेता भी देख रहे हैं. राजनीति में मुसलिम की खास पैठ नहीं है, इसलिए वे दलितों के कंधे पर सवार हो कर राजनीति में अपनी कमजोर हालत को मजबूत बनाने की कवायद में लगे हैं.

गौरतलब है कि मुसलिमों का एक बड़ा हिस्सा वे लोग हैं जो हिंदुओं की निचली और सताई गई जातियों से धर्म बदल कर मुसलिम हुए हैं. भारत के

18 करोड़ मुसलिमों में से ज्यादातर हिंदू दलित ही हैं, जिन्होंने हिंदुओं की ऊंची जातियों के जोरजुल्म से बचने के लिए इसलाम धर्म कबूल कर लिया था.

वैसे, हिंदू दलितों और मुसलिमों की बदहाली के लिए अलगअलग वजहें हैं. दोनों की समस्याएं और जरूरतें अलगअलग हैं. हिंदू दलित जहां ब्राह्मणवाद के शिकार हैं, वहीं मुसलिम सांप्रदायिकता नाम की बीमारी से पीडि़त हैं. इन दोनों समस्याओं को राजनीतिक दलों ने अपने फायदे के लिए पैदा किया और कायम रखा है.

मुसलिमों के पैरोकार और सांसद ऐजाज अली कहते हैं कि हर दल मुसलिमों की तरक्की की बात तो करता है, पर उस की कोशिश यही रही है कि मुसलिमों की तरक्की न हो. वे पढ़ेलिखे नहीं है. पढ़लिख जाने पर उन्हें समझदारी आ जाएगी और फिर वे अपने दिमाग से वोट डालेंगे. सियासी दलों का मकसद बस मुसलिमों को वोट बैंक बना कर रखना है, न कि उन की तरक्की करना.

मुसलिमों को टिकट देने में हर दल आनाकानी करता रहा है. मुसलिम नेता कहते हैं कि अगर मुसलिमदलित की राजनीतिक एकता मजबूत बनाने के पहले मुसलिमों को उन के हक दिए जाएं.

अगर इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि साल 1936 से साल 1950 तक मुसलिमों के दलित तबके को हिंदू दलितों की तरह ही रिजर्वेशन का फायदा मिलता था. साल 1950 में संविधान की धारा 34(1) में यह आदेश जारी किया गया था कि कोई भी शख्स जो हिंदू धर्म के अलावा किसी धर्म को मानता हो, उसे अनुसूचित जाति के दायरे से बाहर माना जाएगा. इस फरमान के बाद मुसलिमों में जो दलित थे, उन्हें रिजर्वेशन का फायदा मिलना पूरी तरह से बंद हो गया था, जबकि हिंदू दलितों को इस का फायदा मिलता रहा.

कुछ मुसलिम नेता दबी जबान में कहते हैं कि दलित मुसलिमों को आरक्षण का फायदा देने से वंचित करने के इस फरमान पर डाक्टर भीमराव अंबेडकर भी चुप्पी साधे रहे.

गौरतलब है कि अंबेडकर उस समय केंद्र सरकार में कानून मंत्री थे. मुसलिमों के साथ हुई इस नाइंसाफी और बेईमानी के खिलाफ उन्होंने जरा भी आवाज नहीं उठाई. इस से आम मुसलिम हिंदू दलितों के साथ कंधे से कंधा मिलाने के नाम पर कन्नी काटते रहे हैं.

राज्यसभा के सदस्य रह चुके पिछड़े मुसलिमों के नेता अली अनवर कहते हैं कि हर चुनाव से पहले मुसलिमों को ले कर सियासत शुरू हो जाती है पर उन्हें टिकट देने की बात उठते ही सब बगलें झांकने लगते हैं.

बिहार की ही बात करें तो वहां मुसलिमों की आबादी 16.5 फीसदी है और कुल 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 60 में वे फैसला करने के रोल में हैं. मुसलिम नेता मानते हैं कि 243 विधानसभा सीटों में से 60 सीटों में मुसलिमों के वोटों से किसी भी उम्मीदवार को जिताया जा सकता है. उन क्षेत्रों में मुसलिमों के वोट 18 से 74 फीसदी तक हैं. इस के अलावा 50 ऐसी सीटें हैं जहां 10 से 17 फीसदी मुसलिम वोट हैं. इस के बाद भी सियासी दल मुसलिमों को टिकट देने में आनाकानी करते रहे हैं.

बिहार विधानसभा के 10 साल तक (2005-2015) अध्यक्ष रहे जद (यू) नेता उदय नारायण चौधरी ने जद (यू) पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी है. वे कहते हैं कि बिहार में नीतीश सरकार दलितों को सता रही है. जद (यू) में पैसे वालों और बाहरी लोगों को तरजीह दी जा रही है. दलितों पर होने वाले जोरजुल्म के मसले पर सरकार ने चुप्पी साध ली है. दलितों को केवल सत्ता पाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

दलितों और अल्पसंख्यकों को ठगा गया है : जीतनराम मांझी

बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके जीतनराम मांझी का मानना है कि केंद्र से ले कर राज्य सरकारें दलितों को केवल ठगने का ही मायाजाल बिछाती रही हैं. अगर सरकार को दलितों का खयाल है तो वह सभी थानों में एससीएसटी ऐक्ट की तरह एफआईआर दर्ज कराने का फरमान जारी करे और इस काम के लिए दलित अफसर को ही बहाल करे. अल्पसंख्यक बरहुज थानों का थानाध्यक्ष भी अल्पसंख्यक समाज का ही होना चाहिए. इतना ही नहीं, इस ऐक्ट का केस देखने के लिए अलग से कोर्ट भी बनाया जाए.

एससीएसटी ऐक्ट के तहत दर्ज केस में कनविक्शन रेट महज 1.86 फीसदी ही है. पिछले साल तक इस ऐक्ट के तहत दर्ज 25 हजार, 943 केस पैंडिंग थे. इन में से 1443 केसों का ही फैसला आया और केवल 89 केसों में ही सजा मिली. जीतनराम मांझी बेपेंदे के लोटे की तरह हैं जो कभी इधर की और कभी उधर की हांकते हैं.

हो ही गयी मिमोह और मदालसा की शादी

मशहूर अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती के बेटे व अभिनेता महाअक्षय चक्रवर्ती उर्फ मिमोह और अभिनेत्री मदालसा शर्मा की शादी 7 जुलाई 2018 को दिल्ली में होनी थी. लेकिन एक अभिनेत्री द्वारा मिमोह पर बलात्कार का आरोप लगाए जाने और पुलिस की कारवाही शुरू होने पर यह शादी रद्द हो गयी थी. लेकिन अचानक मंगलवार, 10 जुलाई 2018 को मिमोह ने अपनी प्रेमिका व अभिनेत्री मदालसा के संग उटी में अपने पिता मिथुन चक्रवर्ती के होटल में रीतिरिवाज के साथ शादी कर ली.

सूत्रों का दावा है कि मिमोह और मदालसा की शादी सात जुलाई को दिल्ली में होनी थी. मगर एक अभिनेत्री द्वारा मिमोह पर बलात्कार का आरोप लगाए जाने पर पुलिस जांच शुरू हो गयी. कार्यक्रम स्थल पर जांच के लिए पुलिस पहुंची थी, जिसके चलते शादी का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा था. मगर मिमोह और मदालसा ने सात जुलाई को ही अपनी शादी रजिस्टर्ड करा दी थी. उसके बाद दिल्ली की रोहिणी कोर्ट से मिमोह ने 7 जुलाई को ही गिरफ्तारी से बचने के लिए जमानत भी ले ली थी.

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रोहिणी कोर्ट के स्पेशल न्यायाधीश आशुतोष कुमार ने मिमोह की अग्रिम जमानत मंजूर कर ली थी. उसके बाद 10 जुलाई की शाम उटी में रीति रिवाज के साथ मिमोह और मदालसा ने शादी की. जबकि संगीत समारोह सोमवार, नौ जुलाई को संपन्न हुआ.

बाप की शराबखोरी ने ली जान, चेतावनी दे गया बेटा

डाक्टर बन कर लोगों को सेहतमंद जिंदगी देने का सपना देखने वाले एक होनहार लड़के ने शराब जैसी सामाजिक बुराई से हार कर अपनी जान दे दी. तमिलनाडु के तिरुनेलवेली में रहने वाले दिनेश ने बुधवार, 2 मई, 2018 को वन्नारपेट्टई में एक पुल से लटक कर खुदकुशी कर ली.

दिनेश का घर कुरुक्कलपट्टी में है. वह 12वीं जमात की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैडिकल प्रवेश परीक्षा ‘नीट’ की तैयारी में लगा हुआ था. दरअसल, दिनेश के पिता शराब पीने के आदी हैं. इस वजह से परिवार को कई सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था.

दिनेश ने अपने सुसाइड लैटर में लिखा, ‘अप्पा, मेरे मरने के बाद आप को शराब नहीं पीनी चाहिए. आप मेरी चिता को आग नहीं लगाएंगे, क्योंकि आप शराब पीते हैं. ‘आप अपना सिर भी न मुंडवाएं क्योंकि आप को इस का हक नहीं है. यह मेरी आखिरी इच्छा है, उस के बाद ही मेरी आत्मा को शांति मिलेगी. कम से कम अब तो शराब पीना बंद कर दीजिए.’

इतना ही नहीं, दिनेश ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीस्वामी को उस सुसाइड लैटर में लिखा, ‘देखते हैं कि अब मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी राज्य में शराबबंदी करते हैं कि नहीं. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो मेरी आत्मा दोबारा लौटेगी और यह काम कर के जाएगी.’ दिनेश के पिता मजदूरी करते हैं पर खूब शराब पीते हैं. दिनेश की मां की काफी पहले मौत हो चुकी है.

एक शराबी मजदूर का बेटा इस तरह शराबी बाप से तंग आ कर अपनी जान दे देगा, यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि इस तरह की सामाजिक बुराइयां कैसी भयंकर हो रही हैं. हमारे देश में शराब की खपत लगातार बढ़ती ही जा रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में साल 2005 में प्रति व्यक्ति 106 लिटर शराब की खपत के मुकाबले साल 2012 में यह खपत 38 फीसदी बढ़ कर 202 लिटर हो गई थी.

शराब के एक सिंगल पैग यानी 25 मिलीलिटर को एक यूनिट माना जाए तो एक दिन में 7.5 यूनिट से ज्यादा शराब पीने को विश्व स्वास्थ्य संगठन ओवर ड्रिंकिंग यानी ज्यादा शराब पीना मानता है, जो सेहत के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक है.

लंबे समय तक कोई शख्स ज्यादा शराब पीता है तो उस में कई किस्म की जिस्मानी बीमारियां घर कर लेती हैं. डाक्टरों के मुताबिक, लिवर से जुड़ी बीमारियों की अहम वजह शराब है. ज्यादा शराब पीने से अलकोहल शरीर के कई हिस्सों पर बुरा असर डालता है. इस से 200 से ज्यादा बीमारियां पैदा हो सकती हैं. शराब मुंह और गले में कफ झिल्ली को नुकसान पहुंचाती है. ब्रैस्ट कैंसर और आंत के कैंसर के लिए भी अलकोहल ही जिम्मेदार होता है.

ज्यादा शराब पीने से पेट में अल्सर हो सकता है. यह दिमाग को सुस्त कर देती है जिस से याददाश्त कमजोर हो जाती है. शराब से होने वाले इतने नुकसानों के बावजूद हमारे गांवदेहातों में शराब पीने का चलन बहुत पुराना है. साल 2016 में आई ‘क्रोम डाटा ऐनालिटिक्स ऐंड मीडिया’ की सर्वे रिपोर्ट में बताया गया था कि गांवदेहात के लोग सेहत के लिए दवाओं के मुकाबले नशे की चीजों पर ज्यादा पैसा खर्च करते हैं. ग्रामीण भारत में एक शख्स इलाज पर तकरीबन 56 रुपए खर्च करता है, जबकि शराब पर 140 रुपए. देश में हर साल तकरीबन 10 लाख लोगों की मौत शराब पीने से होती है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में शराब का सेवन करने से प्रति 96 मिनट में एक और एक दिन में 15 लोगों की मौत होती है.

महाराष्ट्र ऐसी मौतों में नंबर वन है. साल 2013 में महाराष्ट्र में शराब पीने से मरने वालों की तादाद 387 थी जो साल 2014 में बढ़ कर 1699 हो गई थी. इस के बाद मध्य प्रदेश और तमिलनाडु का नंबर आता है. और राज्यों का भी कमोबेश यही हाल है.

हां, गुजरात, नागालैंड, मिजोरम के बाद बिहार में शराब पीने पर बैन जरूर लगा हुआ है, पर वहां भी चोरीछिपे तस्कर की गई शराब जम कर लोगों को परोसी जाती है. शराब पीने से सिर्फ शराबी को नुकसान होता है, ऐसा नहीं है. दुख की बात तो यह है कि औरतों के प्रति होने वाले अपराधों और जोरजुल्म की ज्यादातर वजह शराबखोरी ही है. शराब पीने की लत के चलते जहां छोटे किसान अपनी जमीन से बेदखल हो रहे हैं, वहीं चोरी, छीनाझपटी, लूटमार और राहजनी की वारदातें भी लगातार बढ़ रही हैं.

निचले तबके की समस्या और ज्यादा बड़ी है. उस के पास खाने को पैसे नहीं होते और अगर ऐसे में किसी को खासकर घर के मुखिया को शराब पीने की लत लग जाए तो वह बेकाबू हो कर अपने परिवार वालों से लड़ाईझगड़ा करता है. नतीजतन, परिवार के परिवार बिखर जाते हैं. बच्चे पढ़ नहीं पाते हैं, इसलिए वे गरीबी की दीवार को तोड़ नहीं पाते हैं. दिनेश के सुसाइड नोट ने हमारे समाज, शासन और प्रशासन पर करारा तमाचा मारा है. वह पिता की शराबखोरी से तो परेशान था ही, उस ने मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी को राज्य में शराबबंदी लागू करने के लिए भी कड़ी बात कह दी. उस ने लिखा कि अगर वे प्रदेश में शराबबंदी लागू नहीं करेंगे तो उस की आत्मा दोबारा लौटेगी और यह काम कर के जाएगी.

आत्मा लौटेगी यह तो गलतफहमी है जो पंडों ने फैलाई है पर यह कहना उस के गुस्से को जताता है. दिनेश की यह चेतावनी इशारा करती है कि शराबखोरी हमारे देश के लिए कितनी ज्यादा घातक है, जबकि इस के प्रति कोई भी गंभीर नहीं दिखाई देता है.

मुनीश बना मिसाल

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिला हैडक्वार्टर से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर खुदागंज ब्लौक के जल्लापुर भुडि़या गांव के मुनीश चंद्र गंगवार ने ऐसा कारनामा किया है कि लोग उस की करतूतों को भूल गए हैं. दरअसल, मुनीश चंद्र गंगवार आज से 4 साल पहले एक शराबी के तौर पर जाना जाता था. गलत सोहबत के चलते उसे शराब पीने की लत लग गई थी. परिवार वाले उस से परेशान रहते थे. उस का खर्चापानी तक बंद कर दिया था ताकि वह शराब न पी सके.

मुनीश चंद्र गंगवार शायद खुद भी अपनी लत से तंग हो गया था इसलिए वह इस से छुटकारा पा कर कुछ करना चाहता था. साल 2013-14 में वह अपने एक दोस्त के साथ नियामपुर गांव में बने कृषि विज्ञान केंद्र पहुंचा. वहां उस ने कुछ किसानों को अवार्ड लेते देखा. वहीं 10वीं पास इस शख्स ने ठान लिया कि जिंदगी में कुछ बेहतर कर के दिखाएगा. मुनीश चंद्र गंगवार ने अपने भाई की मदद से ढाई बीघा खेत किराए पर ले कर उस में सतावर की खेती शुरू की. पहली बार में घाटा हुआ लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी और उस घाटे को देखते ही देखते मुनाफे में बदल दिया.

आज मुनीश चंद्र गंगवार के पास 50 बीघा खेत हैं, जिन में वह सतावर, कालमेघ, सर्पगंधा और एलोवेरा उगाता है. साथ ही वह हरी मिर्च, शिमला मिर्च, गोभी व प्याज की भी खेती करता है और दूसरे किसानों को नई तकनीक की खेतीबारी करने के लिए बढ़ावा देता है.

तरह तरह की फिल्मी सेवाएं

नैटफ्लिक्स चैनल की सफलता के बाद अब हौलीवुड की अन्य फिल्में दिखाने के लिए वाल्ट डिज्नी कंपनी भी अपना चैनल शुरू करने वाली है. डिज्नी की अपनी फिल्में व जिन फिल्मों के कौपीराइट्स उस ने ले रखे हैं, वे सभी उसी के चैनल पर औनलाइन रिलीज होंगी और जब चाहो, देखी जा सकेंगी. ब्रौडबैंड इंटरनैट की स्पीड जैसेजैसे सुधर रही है, लोग बिना इंटेरप्शन या विज्ञापनों के हाई क्वालिटी में स्ट्रीमिंग फिल्में नैटफ्लिक्स और अमेजौन पर देख रहे हैं. ग्राहकों को अब इन चैनलों को अलगअलग सब्सक्राइब करना पड़ेगा जब तक कोई ऐसा औप्शन नहीं आ जाता जिस में सैटटौप बौक्स की तरह आप चैनल बदल कर स्ट्रीमिंग कंपनी बदल सकें लेकिन भुगतान एक ही जगह पर कर सकें.

बड़ी स्क्रीन पर दिखने वाली ये फिल्में शायद एक बार फिर सिनेमाहौलों पर संकट ला दें. मल्टीप्लैक्सों में अरबों रुपए लगाए गए हैं जिन में एक ही लौबी, एक ही फूड सर्विस के माध्यम से कई हौलों में फिल्में दिखाना संभव हुआ है. सिनेमा हौलों के दरवाजे पहले हर 2-3 घंटे में खुलते थे, पर अब मल्टीप्लैक्सों के दरवाजे हर समय खुले रहते हैं. दर्शकों को यह सुविधा भी हो गई है कि एक ही मल्टीप्लैक्स में कई फिल्में देखने को मिल जाती हैं. इस सुविधा ने सिंगल स्क्रीन हौलों को तो खत्म कर दिया लेकिन मल्टीप्लैक्सों को जान दे दी है. अब स्ट्रीमिंग औनलाइन फिल्मी सेवाएं मल्टीप्लैक्सों को चुनौती पेश कर रही हैं. एंड्रौयड टीवी आने के कारण यह काम और आसान हो रहा है. एंड्रौयड स्टिक भी आ गई है जिस से पुराने टीवी पर स्ट्रीमिंग फिल्में देखना संभव हो गया. इस सब का दुखद पक्ष यह है कि यह सारी मेहनत केवल कोरा मनोरंजन देने के लिए की जा रही है. डिज्नी, नैटफ्लिक्स, अमेजौन या इसी तरह की कोई और सेवा न ज्ञान बांटने वाली हैं न मार्गदर्शन करने वाली. तमाशा ही जीवन का बड़ा हिस्सा बन रहा है.

कठिनाई यह है कि सर्कस से कभी रोटी पैदा नहीं होती. ग्रीक और रोमन राजाओं ने जनता को बहलाने के लिए सर्कसों का आयोजन किया और बड़ेबड़े पैंथियन बनाए थे पर उसी ने रोमन सभ्यता का अंत किया, क्योंकि आम जनता को कुछ साल तो बहकाया जा सका पर उसे रोटी न दी जा सकी. स्ट्रीमिंग फिल्मी सेवाएं लोगों को बहलाएंगी, फिल्म एडिक्ट बनाएंगी पर नया करने या जीवन के संघर्षों से मुकाबला करना नहीं सिखाएंगी. भारत जैसे गरीब देश ही नहीं, अमेरिका जैसे अमीर देशों में भी जरूरत उत्पादकता की है, मनोरंजन की नहीं. ये सेवाएं लोगों को निचोड़ कर रख देंगी. ये अफीम से कम नहीं हैं.

हकीकत : धार्मिक जगहों से सड़कों पर भीड़

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के जस्टिस विक्रम नाथ और अब्दुल मोईन ने वकील मोतीलाल की याचिका पर फैसला देते हुए 20 दिसंबर, 2017 को धार्मिक जगहों व शादी समारोहों पर बिना इजाजत के लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर सख्त एतराज जताया.

कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या ऐसी जगहों पर लाउडस्पीकर लगाने को ले कर लिखित इजाजत ली गई है? अगर इजाजत नहीं ली गई तो इन के खिलाफ क्या कार्यवाही की गई है? कोर्ट ने यह भी पूछा है कि प्रदेश में शोर प्रदूषण रोकने के लिए क्या कोई मशीनरी बनी है?

कोर्ट ने यह भी पूछा है कि जब कानून बना है तो अफसर उस का कड़ाई से पालन क्यों नहीं कराते हैं? शोर प्रदूषण से आजादी और शांतिपूर्ण नींद को संविधान के अनुच्छेद में होने की बात को दोहराते हुए कोर्ट ने कहा कि बारबार इस मुद्दे पर याचिकाएं दाखिल होने से एक बात तो तय है कि या तो संबंधित अफसरों के पास 2000 के रूल्स के प्रावधान को लागू करने की इच्छाशक्ति नहीं है या उन की जवाबदेही तय नहीं है.

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के अफसरों को जवाब देने का सख्त आदेश दिया है. नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने अमरनाथ में दर्शन करने वालों से कहा है कि वहां पर जयकारे नहीं लगाए जाएं. समझने वाली बात यह है कि कोर्ट के ऐसे बहुत सारे आदेशों को दरकिनार कर के धार्मिक जगहों पर काम हो रहे हैं.

धार्मिक जगहों पर भीड़

सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि हाईवे सड़क के किनारे मंदिर न बनाए जाएं. तमाम सरकारों ने धार्मिक जगहों को हटाने की जगह पर सड़क को ही हाईवे कैटेगरी से बाहर कर दिया. देश में शायद ही ऐसी कोई सड़क होगी जहां पर मंदिर या दूसरी धार्मिक जगहें न बनी हों. सड़क पर ही नहीं शहरों में भी भीड़ को देखें तो सब से ज्यादा कब्जा पूजा वाली जगहों के पास ही दिखता है.

सड़कों पर भीड़ के लिए मंदिरों में दर्शन करने आने वाले ही जिम्मेदार होते हैं. यहां पर ट्रैफिक पुलिस भी कभी गाडि़यों का चालान नहीं करती है. केवल दर्शन करने वाले ही नहीं बल्कि मंदिरों के आगे फूल वाले, प्रसाद की दुकानों, दर्शन के लिए लाइनोें, गाडि़यों वगैरह का रुकना भी भीड़ को बढ़ाता है.

मंदिरों में आने वाले भक्त तो यह सहन कर लेते हैं, पर आम आदमी को क्यों सहन करें? यह बात अदालत समझती है पर अफसरशाह, नेता और जनता नहीं समझती है. इस की 2 वजहें हैं. एक तो नेताओं पर वोट बैंक का दबाव होता है. ज्यादातर पार्टियां धर्म के नाम पर वोट लेती हैं. ऐसे में वे धर्म के नाम पर कानून में हुए बदलाव को लागू करने की कोशिश में नहीं रहती हैं. इसी वजह से कोर्ट को दखल देना पड़ता है.

SOCIETY

दूसरी, नौइज पौल्यूशन रैज्यूलेशन ऐंड कंट्रोल रूल्स 2000 को बने हुए इतने साल का समय हो गया, पर यह ठीक से लागू नहीं हो पाया है.

लखनऊ हाईकोर्ट ने इस बात को महसूस करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से सवाल किया है. देखने वाली बात यह है कि अब सरकार इस को कैसे लागू करती है. शोर प्रदूषण को ले कर इस के पहले भी कई जगहों पर बात उठती रहती है. मंदिरों के बाहर होने वाले कब्जों को ले कर लोग कम सवाल करते हैं.

कानून का नहीं होता पालन

धार्मिक जगहों के बाहर भीड़ के लिए केवल मंदिर ही दोषी नहीं हैं, बल्कि मसजिद, चर्च और गुरुद्वारे भी भीड़ के लिए जिम्मेदार होते हैं. ऐसे में सड़क पर चलने वाले हर किसी को तकलीफ होती है. जरूरी है कि धार्मिक जगहों के सामने होने वाली भीड़ को रोका जाए.

त्योहारों और दूसरे मौकों पर यह परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है. दर्शन करने वालों को भी सड़क पर लगे जाम से रूबरू होना पड़ता है. इस के बाद भी वे धर्म के नाम पर सहन करते हैं.

धार्मिक मसलोें को ले कर सब से ज्यादा सड़क पर जाम होता है. जाम लगाने वाले दूसरों की सुविधा का ध्यान नहीं रखते हैं. इस वजह से परेशानी और बढ़ जाती है.

गायक सोनू निगम ने मसजिद में लगे लाउडस्पीकर पर सवाल उठाया था. ऐसे में उन का विरोध होने लगा. दरअसल, धर्म को ले कर कायम अंधविश्वास को ले कर सभी एकमत हैं. मंदिर के समर्थकों को लगता है कि अगर मसजिद के लाउडस्पीकर पर सवाल उठेंगे तो मंदिर के लाउडस्पीकर भी हटाने पड़ेंगे.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने बयान में कहा था कि जब हम सड़क पर होने वाली नमाज को नहीं रोक सकते तो हमें कांवड़ यात्रा को रोकने का हक नहीं है.

कांवड़ यात्रा के समय कुछ शहरों में यातायात इतना प्रभावित होता है कि वहां सड़कों पर लोगों के चलने पर बैन लगा दिया जाता है. कई शहरों में तो कईकई दिनों तक वहां का जनजीवन प्रभावित हो जाता है. स्कूलकालेज, बाजार बंद करने और दूसरे काम रोकने पड़ते हैं. पहले धर्म के नाम पर जुटने वाली भीड़ कम होती थी. तब ये बातें जिंदगी को इतना प्रभावित नहीं करती थीं. अब भीड़ के बढ़ने से मामला गंभीर हो गया है.

बढ़ती आस्था जिम्मेदार

धर्म के नाम पर बढ़ती भीड़ केवल आस्था के चलते ही नहीं होती, बल्कि धार्मिक जगहों में भीड़ की आड़ में कई तरह के रोजगार भी बढ़ जाते हैं. ऐसी जगहों पर दुकान लगाने वाले मंदिर से जुड़े लोग होते हैं. दरगाह के सामने भी ऐसी भारी भीड़ जुटने लगी है. वहां भी फूल से ले कर चादर और दूसरे सामान बिकने लगे हैं.

इन दुकानों से पुलिस से ले कर जिला प्रशासन तक कोई वसूली नहीं कर पाता है. इस वजह से वहां दुकान लगाने वालों को आसानी रहती है. धर्म के नाम पर किसी तरह का भी संरक्षण मिल जाता है. ऐसे में अब धार्मिक जगहें किसी न किसी तरह से दुकानों के अड्डे बनती जा रही हैं.

धार्मिक जगहों पर होने वाली भीड़ में चोरीचकारी, धक्कामुक्की और छेड़खानी तक होती है. यही वजह है कि हर मंदिर में यह नोटिस लिखा दिख जाता है कि चोरउचक्कों से सावधान रहिए. यह बताता है कि भीड़ में होने वाले अपराध मंदिरों में भी होते हैं.

धर्म के नाम पर लोग हर तरह की बातें स्वीकार कर लेते हैं. ऐसे में केवल उन लोगों को भुगतना पड़ता है जो ऐसी जगहों के पास रहते हैं.

अयोध्या में राम मंदिर के पास रहने वाले किशन कुमार कहते हैं, ‘‘मंदिर में जब भीड़ बढ़ती है तो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर असर पड़ता है. कई बार तो हम घरों में ही कैद हो कर रह जाते हैं. हमें अपने घरों में कई तरह के सुधार तक करने की छूट नहीं होती है. हरबात के लिए प्रशासन की इजाजत लेनी पड़ती है.’’

ऐसी परेशानियां बहुत से लोगों को सहन करनी पड़ती हैं. सड़क नागरिकों के चलने के लिए होती है. यहां पर लगने वाली भीड़ से नागरिक अधिकारों का हनन होता है. ऐसे में जरूरी है कि धार्मिक जगहों के बाहर होने वाली भीड़ को रोका जाए.

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