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शेष चिह्न – भाग 2 : निधि की क्या मजबूरी थी

लेखिका- डा. छाया श्रीवास्तव

‘‘नहीं रे, मजाक नहीं कर रही… दुहेजा है.’’

‘‘कहीं दहेज के चक्कर में पहली को मार तो नहीं डाला. क्या चक्कर है?’’ मैं बोली.

‘‘यह मेरी मौसी की ननद का देवर है,’’ निधि ने बताया.

‘‘सेल्स टेक्स कमिश्नर है. तीसरी बार बेटे को जन्म देते समय पत्नी की मौत हो गई थी.’’

‘‘तो क्या 2 संतान और हैं?’’

‘‘हां, 1 बेटी 10 साल की, दूसरी 8 साल की.’’

‘‘तो तुझे सौतेली मां का दर्जा देने आया है?’’

‘‘यह तो है पर पत्नी की मृत्यु के 4 साल बाद बड़ी मुश्किल से दूसरी शादी को तैयार हुआ है. घर पर बूढ़ी मां हैं. एक बड़ी बहन है जो कहीं दूर ब्याही गई है, बढ़ती बच्चियों को कौन संभाले. वह ठहरे नौकरीपेशा वाले. समय खराब है. इस से उन्हें तैयार होना पड़ा.’’

‘‘तो तू जाते ही मां बनने को तैयार हो गई, मदर इंडिया.’’

‘‘हां रे. अम्मांबाबूजी तो तैयार नहीं थे. मौसी प्रस्ताव ले कर आई थीं. मुझ से पूछा तो मैं क्या करती. जन्म भर अम्मांबाबूजी की छाती पर मूंग तो न दलती. दीदी व उन की बेटी बोझ बन कर ही तो रह रही हैं. फिर 2 बहनें और भी शूल सी गड़ती होंगी उन की आंखों में. कब तक बैठाए रहेंगे बेटियों को छाती पर?

‘‘मैं अगर इस रिश्ते को हां कर दूंगी तो सब संभल जाएगा. धन की उन के यहां कमी नहीं है, लखनऊ में अपनी कोठी है. ढेरों आम व कटहल के बगीचे हैं. नौकरचाकर सब हैं.

‘‘मैं सब को ऊपर उठा दूंगी, मीनू,’’ निधि ने जैसे अपने दर्द को पीते हुए कहा, ‘‘मेरे मातापिता की कुछ उम्र बच जाएगी नहीं तो उन के बाद हम सब कहां जाएंगे. बाबूजी 2 वर्ष बाद ही तो रिटायर हो रहे हैं, फिर पेंशन से क्या होगा इतने बड़े परिवार का? बता तो तू?’’

मैं ने निधि को खींच कर छाती से लगा लिया. लगा, एक इतनी खूबसूरत हस्ती जानबूझ कर अपने को परिवार के लिए कुरबान कर रही है. मेरे साथ वह भी फूटफूट कर रो पड़ी.

निधि शाम को आने का मुझ से वचन ले कर वापस लौट गई. फिर शाम को भारी मन लिए मैं उस के घर पहुंची. उस की मौसी आ चुकी थीं और वर के रूप में भूपेंद्र बैठक में आराम कर रहे थे. निधि को अभी देखा नहीं था. मैं मौसी के पास बैठ कर वर के घर की धनदौलत का गुणगान सुनती रही.

‘‘बेटी, तुम निधि की सहेली हो न,’’ मौसी ने पूछा, ‘‘वह खुश तो है इस शादी से, तुम से कुछ बात हुई?’’

‘‘मौसी? यह आप स्वयं निधि से पूछ लो. पास ही तो बैठी है वह.’’

‘‘वह तो कुछ बोलती ही नहीं है, चुप बैठी है.’’

‘‘इसी में उस की भलाई है,’’ मैं जैसे बगावत पर उतर आई थी.

‘‘मीनू, तुम नहीं जानती घर की परिस्थिति, पर मुझ से कुछ छिपा नहीं है. निधि की मां मुझ से छोटी है. उसी के आग्रह पर मैं अब तक कई लड़के वालों के पतेठिकाने भेजती रही पर बेटा, पैसों के लालची आज के लोग रूपगुण के पारखी नहीं हैं…फिर आरती में क्या कमी है, लेकिन क्या हुआ उस के साथ…मय ब्याज के वापस आ गई…ये निधि है 28 पार कर चुकी है. आगे 2 और हैं.’’

मैं उन के पास से उठ आई, ‘‘चल निधि, कमरे में बैठते हैं.’’

वह उठ कर अंदर आ गई.

मैं ने जबरन निधि को उठाया. उस का हाथमुंह धुलाया और हलका सा मेकअप कर के उसे मौसी की लाई साडि़यों में से एक साड़ी पहना दी, क्योंकि निधि को शाम का चायनाश्ता ले कर अपने को दिखाने जाना था. सहसा वर बैठक से निकल कर बाथरूम की ओर गया तो मैं अचकचा गई. कौन कह सकता है देख कर कि वह 40 का है. क्षण भर में जैसे अवसाद के क्षण उड़ गए. लगा, भले ही वर दुहेजा है पर निधि को मनचाहा वरदान मिल गया.

शाम के समय लड़की दिखाई के वक्त नाश्ते की प्लेटें लिए निधि के साथ मैं भी थी. तैयार हो कर तरोताजा बैठा प्रौढ़ जवान वर सम्मान में उठ कर खड़ा हो गया और उस के मुंह से ‘बैठिए’ शब्द सुन कर मन आश्वस्त हो उठा.

हम दोनों बैठ गए. निधि ने चाय- नाश्ता सर्व किया तो उस ने प्लेट हम लोगों की ओर बढ़ा दी. फिर हम दोनों से औपचारिक वार्त्ता हुई तो मैं ने वहां से उठना ही उचित समझा. खाली प्लेट ले कर मैं बाहर आ गई. दोनों आपस में एकदूसरे को ठीक से देखपरख लें यह अवसर तो देना ही था. फिर पूरे आधे घंटे बाद ही निधि बाहर आई.

‘‘क्या रहा, निधि?’’ मैं निकट चली आई.

‘‘बस, थोड़ी देर इंतजार कर,’’ यह कह कर निधि मुझे ले कर एक कमरे में आ गई. फिर 1 घंटे बाद जो दृश्य था वह ‘चट मंगनी पट ब्याह’ वाली बात थी.

रात 8 बजतेबजते आंगन में ढोलक बज उठी और सगाई की रस्म में जो सोने की चेन व हीरे की अंगूठी उंगलियों में पहनाई गई उन की कीमत 60 हजार से कम न थी.

15 दिन बाद ही छोटी सी बरात ले कर भूपेंद्र आए और निधि के साथ भांवरें पड़ गईं. इतना सोना चढ़ा कि देखने वालों की आंखें चौंधिया गईं. सब यह भूल गए कि वर अधिक आयु का है और विधुर भी है. बस, एक बात से सब जरूर चकरा गए थे कि दूल्हे की दोनों बेटियां भी बरात में आई थीं. पर वे कहीं से भी 12 और 8 की नहीं दिखती थीं. बड़ी मधु 16 वर्ष और छोटी विधु 12 की दिखती थीं. जवानी की डगर पर दोनों चल पड़ी थीं. सब को अंदाज लगाते देर नहीं लगी कि वर 50 की लाइन में आ चुका है.

निधि से कोई कुछ न कह सका. सब तकदीर के भरोसे उसे छोड़ कर चुप्पी लगा गए. 1 माह तक ससुराल में रह कर निधि जब 10 दिन के लिए मायके आई थी तो मैं ही उस से मिलने पहुंची थी. सोने से जैसे वह मढ़ गई थी. एक से बढ़ कर एक महंगे कपड़े, साथ ही सारे नए जेवर.

एक बात निधि को बहुत परेशान किए थी कि वे दोनों लड़कियां किसी प्रकार से विमाता को अपना नहीं पा रही थीं. बड़ी तो जैसे उस से सख्त नफरत करती, न साथ बैठती न कभी अपने से बोलती. पति से इस बात पर चर्चा की तो उन्होंने निधि को समझा दिया कि लोगों ने या इस की सहेलियों ने इस के मन में  उलटेसीधे विचार भर दिए हैं. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. अपनी बूढ़ी दादीमां का कहना भी वे दोनों टाल जातीं.

निधि हर समय इसी कोशिश में रहती कि वे दोनों उसे मां के बजाय अपना मित्र समझें. इस को निधि ने बताने की भी कोशिश की पर वे दोनों अवहेलना कर अपने कमरों में चली गईं. खाने के समय पिता के कई बार बुलाने पर वे डाइनिंग रूम में आतीं और थोड़ाबहुत खा कर चल देतीं. पिता भी जैसे पराए हो गए थे. पिता का कहना इस कान से सुनतीं उस कान निकाल देतीं.

सवाल – भाग 3 : मयंक की मां बहू रुचिका के लिए अपनी सोच बदल पाई

यह सुन प्रियंका हंस पड़ी, क्या जवाब देती… आज उस की डिगरियां उस को मुंह चिढ़ा रही थीं. राहुल ने शादी की पहली ही रात कह दिया था कि मुझे घर संभालने वाली लड़की चाहिए. नौकरी के चक्कर में घर की शांति भंग नहीं कर सकता. आखिर घर में और भी महिलाएं हैं… प्रियंका ने दूसरे ही दिन उन सपनों को कहीं गहरे तहखाने में दबा कर रख दिया था.

“मयंक कह तो तुम सही रहे हो. शायद तुम को अच्छा न लगे, पर तुम्हारे घर का जो माहौल है, वहां तुम्हारी बीवी से साड़ी पहनने की उम्मीद की जाए, खाने में 3 तरह की सब्जी की उम्मीद की जाए, तो वो बेचारी कहां से नौकरी कर पाएगी.”

“साड़ी…? मामीजी इन 2 सालों में मैं ने किसी को भी सलवारसूट में नहीं देखा. आप साड़ी की बात कर रही हैं. आप 3 सब्जी की बात कर रही हैं. मैं तो यह भी उम्मीद नहीं करता कि उसे खाना बनाना भी आता हो. जब मुझे बनाना नहीं आता, अगर उसे बनाना नहीं आता तो कौन सी बड़ी बात हो जाएगी. वैसे भी वो सब तो मैनेज हो ही जाता है.”

मयंक की बेबाकी कहीं न कहीं उसे अंदर तक भेद गई थी. कहीं न कहीं वह अपने भविष्य के लिए भी भयभीत हो रही थी. कुछ  वर्षों बाद वह भी तो उसी दहलीज पर खड़ी होगी, जहां आज दीदी खड़ी थी.

प्रियंका हतप्रभ थी, क्या वाकई में जमाना इतना बदल गया है. प्रियंका की आंखों के सामने दीदी का चेहरा घूम गया, बहू के लिए देखे गए वो अनगिनत सपने कहीं न कहीं उसे चूरचूर होते दिख रहे थे, जिस की किरचें उसे चुभती सी महसूस हो रही थीं.

प्रियंका कहीं भी घूमने जाती तो ननद के लिए उस शहर की कोई प्रसिद्ध चीज ले कर आती. कई बार तो दीदी ने भी मनुहार कर के अपनी भावी बहू के लिए भी साड़ी मंगवाई थी.

“प्रियंका, एकसाथ कुछ नहीं हो पाता, धीरेधीरे कर के इकट्ठा करती चलूंगी तभी तो मयंक की शादी तक कर पाऊंगी.” बनारसी, कांजीवरम, चंदेरी और न जाने क्याक्या… मां तो मां ही होती है. महीनों की जद्दोजहद के बाद आखिर मयंक के लिए एक अच्छी लड़की ढूंढ ही ली गई. लड़की मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती थी. मयंक के बराबरी की थी. दीदी अपनी चांद सी बहू के गुण गाते नहीं थक रही थी.

“जानती हो प्रियंका, रुचिका मयंक से पहले से नौकरी करती है. मयंक से कहीं ज्यादा अच्छा पैकेज है उस का…””दीदी, आप की तो ऐश है, दोनों हाथ लड्डू में… सुंदर और कमाऊ बहू मिल रही है आप को…”दीदी की भाषा और व्यवहार में अचानक से कमाऊ बहू की ठसक दिखने लगी थी.

“दीदी, साड़ियां और लेनी हो तो बता दीजिएगा,” प्रियंका ने भाभी होने का फर्ज निभाते हुए कहा.”प्रियंका सुन, पीहर से भात के लिए बस मेरे और जीजाजी का ही कपड़ा लाना. रुचिका और मयंक का मैं देख लूंगी. नए जमाने के बच्चे हैं, पता नहीं क्या पसंद आए, क्या नहीं. हम लोगों का तो सब चल जाता है.”

“नहींनहीं दीदी, ऐसेकैसे… ये तो पीहर वालों की जिम्मेदारी है,” प्रियंका ने अपनी आवाज में रस घोलते हुए कहा.आखिर शादी का दिन भी आ गया. सब बहुत खुश थे… खुश तो दीदी भी थी, पर शायद मयंक की वापसी की बात सोचसोच कर उन की आंखें भर आ रही थीं.

दीदी… शायद ये भूल गई थीं, कहीं न कहीं इन सब की जिम्मेदार वो स्वयं थीं. मयंक की पीठ पर आज जो सपनों के पंख हैं, वो उन्होंने खुद ही रोपे थे. आज मयंक के बचपन की एकएक घटना को याद करकर उन का आंचल भीगा जा रहा था. वक्त की आंच में स्मृतियां मोम की तरह पिघलपिघल कर आंखों से टपटप गिर रहे थे. कहीं न कहीं हम अपने बच्चों को अपने खुद के अधूरे सपनों को पूरा करने का जरीया बना लेते हैं.

झालर की रोशनी से नहाया दीदी का घर कितना खूबसूरत लग रहा था. शादी बड़ी धूमधाम से संपन्न हो गई. बहू के आगमन के साथ मेहमानों की रवानगी शुरू हो गई. प्रियंका भी अपना सामान बांध रही थी, तभी पीछे से दीदी ने आ कर प्रियंका को चौंका दिया. उन के हाथों में कुछ रंगीन लिफाफे और कपड़ों के बंडल थे.

“प्रियंका आती रहना. मयंक अगले महीने तक चला जाएगा. रुचिका अभी यहीं रहेगी. वीजा बनते ही वह भी मयंक के पास चली जाएगी.”न जाने क्यों दीदी कहतेकहते उदास हो गईं, कितने मन से जीजाजी ने दोमंजिला घर बनवाया था. एकएक चीज दीदी और मयंक की पसंद की लगवाई थी, पर आज उस घर में रहने के लिए दीदीजीजाजी के सिवा कोई नहीं था.

प्रियंका दीदी से आने का वादा कर अपने घर वापस आ गई.गृहस्थी की उठापटक से जूझती प्रियंका समय निकाल कर अकसर दीदी से बात कर लेती. शुरूशुरू में तो सब ठीक था, पर कमाऊ बहू की सास होने की ठसक धीरेधीरे न जाने कहां गुम होने लगी थी.

वीजा का इंतजार करतेकरते सालभर होने को आ गया था. शुरूशुरू में तो सबकुछ ठीक था. एक बार साड़ी में पैर फंस जाने की वजह से रुचिका गिरतेगिरते बची थी. दीदी ने उसी दिन फरमान जारी कर दिया था, “साड़ी पहनने की जरूरत नहीं है. तुम सूट पहनो. वैसे भी सारा शरीर ढका रहता है. कल कहीं चोटवोट लग जाए, तो फिर कौन सेवा करेगा.”

प्रियंका सोच में पड़ गई. वक्त के साथ दीदी कितनी बदल गई थीं.शादी के 5 साल बाद जब उस ने दबे स्वर में सलवारकमीज पहनने की इजाजत मांगी, तो घर में कितना हंगामा मचा था. दीदी ने भी कितनाकुछ सुनाया था,”भले घर की बहूबेटियों को ये सब शोभा नहीं देता, पर आज…”

रुचिका को तो मानो खुला आसमान मिल गया. वो घर में गाउन पहन कर आराम से सासससुर के सामने डोलने लगी थी. चीजें बिगड़ रही थीं और चीजों के बिगड़ने के साथ दीदी के फोन आने का सिलसिला भी बढ़ता जा रहा था. प्रियंका उन के फोन को उठाने से बचने लगी थी, पर बचती भी तो कब तक… घर में शायद कुछ ज्यादा ही बवाल हो गया था. दीदी का सुबहसुबह ही फोन आ गया था, “प्रियंका, देख क्या जमाना आ गया है. गिनती के 3 लोग हैं, पर महारानी से 3 लोगों का भी खाना नहीं बन पाता. कहती है कि नौकरी करूं या खाना बनाऊं. इन की नौकरी से हमें क्या लेनादेना, कौन सा एक चवन्नी हमारे हाथ पर धर देती है. तीजत्योहार पर दे भी दिया तो उस से क्या पेट भर जाएगा. कहती है, कमाने का फायदा क्या, जब एक खाना बनाने वाली भी नहीं रख सकते. अब यही रह गया कि घर में 2-2 औरतों के रहने के बावजूद भी नौकरों के हाथ का खाना खाया जाए.”

प्रियंका चुपचाप ननद की बात सुनती रही और सोचती रही कि दीदी को बहू से उम्मीद करने या कोसने से पहले एक बार अपने बेटे से भी पूछना चाहिए था कि क्या उसे कैसी बीवी चाहिए थी. रुचिका ही हर बार अच्छी बहू होने का प्रमाण क्यों देती फिरे… आखिर मयंक कब आ कर ये कहेगा कि उसे तो ऐसी ही जीवनसाथी चाहिए थी. आखिर रुचिका ही कर्तव्यों की कसौटी पर क्यों और कब तक पिसती रहेगी. क्या सचमुच मयंक कभी ये कह पाएगा… प्रियंका सोचती रही, क्या इस सवाल का जवाब कभी कोई दे पाएगा. सच ही कहा है किसी ने, समाज औरतों के लिए कभी नहीं बदलता.

एक सवाल

लेखिका- Bhawna Gaur

‘‘आकाश तुम अपनी सेहत का बिलकुल खयाल नहीं रखते हो. शादी के 10 साल बाद भी रिंकू मिंकू से ज्यादा मुझे तुम्हारा खयाल रखना पड़ता है,’’ जल्दीजल्दी टिफिन तैयार करती कोमल बोले जा रही थी और आकाश फोन आने पर बदहवास सा भागने लगा.

‘‘उफ, टिफिन तो लेते जाओ,’’ कहते हुए हाथों में टिफिन पकड़े कोमल उस के पीछे लगभग दौड़ ही पड़ी.

टिफिन लेते ही आकाश की गाड़ी धुआं उड़ाती चली गई.

कोमल को अब जा कर फुरसत से चाय पीने का मौका मिला. शादी के 5 साल तक उन के कोई संतान नहीं थी. तब सुबह की चाय कोमल और आकाश हमेशा साथ पीते थे. पड़ोस में रहने वाली शीला मौसी का जिक्र छिड़ते हुए कोमल उदास हो कर जब कभी बताती कि पता है आकाश, शीला मौसी के दोनों बेटे विदेश में बस गए हैं, पर वे अकेली रहते हुए भी शान से कहती हैं कि साथ नहीं रह सकते तो क्या हुआ. कुदरत ने उन्हें 2-2 बेटे तो दिए. यह बतातेबताते जब कोमल लगभग रोआंसी सी हो जाती. तब आकाश प्यार से उस का हाथ थाम कर कहता, ‘‘डाक्टर ने कहा है न कि जल्द ही हमारे घर भी प्यारा सा बच्चा आ जाएगा. तुम बिलकुल परेशान न हो.’’

यह सुन कोमल शीघ्र ही सहज हो जाती. आकाश का अपनत्वपूर्ण स्पर्श उसे एक नए आत्मविश्वास से भर देता.

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कोमल की पड़ोसिन दिव्या रेडियो आर जे की नौकरी करती थी. उस की नन्ही बेटी मिन्नी कोमल को बड़ी प्यारी लगती. एक दिन कोमल दोपहर को बालकनी में खड़ी थी. दिव्या के घर पर नजर पड़ी तो देखा नन्ही मिन्नी अपना स्कूल बैग लिए दरवाजे के बाहर बैठी है. कोमल का दिल ममता से भर आया. अत: मिन्नी को घर बुला कर कुछ स्नैक्स खाने को दिए. फिर दिव्या को फोन किया तो पता चला कि अचानक किसी मीटिंग की वजह से उसे आज आने में देर हो जाएगी. तब कोमल ने उसे मिन्नी का ध्यान रखने का आश्वासन दिया.

दिव्या जब औफिस से आई तो अपनी बेटी का ध्यान रखने के लिए कोमल का आभार व्यक्त किया.

‘‘आगे से तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. दोबारा कभी ऐसा हुआ तो मैं खुशी से मिन्नी को अपने पास बुला लूंगी.’’

कोमल के यह कहने पर दिव्या बोली, ‘‘धन्यवाद कोमल, लेकिन अब आगे से ऐसा कभी नहीं होगा, क्योंकि मैं ने एक प्ले स्कूल में बात कर ली है. अपने स्कूल से मिन्नी सीधे वहां पहुंच जाया करेगी. फिर शाम को औफिस से लौटते हुए मैं उसे ले आया करूंगी.’’

‘‘तो तुम्हें मिन्नी का मेरे साथ रहना पसंद नहीं,’’ कोमल उदास होते हुए बोली तो दिव्या प्यार से उस के कंधे पर हाथ रखती हुई बोली, ‘‘ऐसा बिलकुल नहीं है कोमल. तुम जब चाहो मिन्नी को अपने साथ ले जा सकती हो. लेकिन मेरा मानना है कि अपनी जरूरतों के लिए हमें स्वयं जिम्मेदारी लेनी चाहिए. मेरे पति के 3-3 फार्महाउस हैं. उन का ज्यादातर समय उन की देखरेख में ही बीत जाता है. मैं चाहूं तो नौकरी छोड़ कर आराम से घर पर रह सकती हूं, लेकिन मैं आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं. अपनी कमाई का जो सुख होता है मैं उसे खोना नहीं चाहती.’’

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कोमल दिव्या की बातों से बड़ी प्रभावित हुई. उस के मन में भी अपनी कमाई का सुख पाने की इच्छा बलवती होने लगी. फिर उसे जल्द ही इस का मौका भी मिल गया.

दिव्या के औफिस में कोई सहकर्मी अचानक बीमार पड़ गई. दिव्या ने कोमल को अस्थाई तौर पर अपने औफिस में काम करने का प्रस्ताव दिया तो कोमल ने तुरंत स्वीकार लिया.

आत्मविश्वास से भरी कोमल की आवाज से दिव्या के बौस प्रभावित हुए. कुछ ही दिनों में कोमल की आवाज रेडियो पर लोकप्रिय होने लगी. कोमल को जल्द ही स्थाई तौर पर काम करने का प्रस्ताव मिला. वह बेहद खुश थी. आकाश से उसे प्रोत्साहन मिला तो वह रेडियो की दुनिया में अपनी पहचान बनाती चली गई. इसी बीच कोमल की खुशी का तब ठिकाना न रहा जब उसे पता चला कि वह मां बनने वाली है.

कोमल ने अपने परिवार को प्राथमिकता दी. जब उसे पता चला कि उसे जुड़वां बच्चे पैदा होने वाले हैं, तो विनम्रता के साथ अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया. वक्त के साथ 2 नन्हे राजकुमार उस के जीवन में आए, तो वह निहाल हो उठी.

2-2 बच्चों की एकसाथ देखभाल से कोमल थक कर चूर हो जाती. लेकिन आकाश बच्चों की देखभाल में उस की मदद करने के बजाय अपना ज्यादातर समय औफिस को देता था. वह जब कभी आकाश को अपने बच्चों की किलकारियां सुनाने की कोशिश करती, आकाश उसे उतना ही दूर भागता महसूस होता. वह जितना ज्यादा आकाश के करीब जाना चाहती आकाश उस से उतना ही दूर जाता रहा. वह समझ नहीं पाती कि जुड़वां बच्चे पैदा कर के आखिर उस ने ऐसा कौन सा अपराध कर दिया कि आकाश उसे अपने से दूर करना चाहता है.

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धीरेधीरे कोमल समझने लगी कि आकाश को अब उस का स्पर्श पसंद नहीं आता. अब आकाश जबतब औफिस के दौरे पर रहने लगा. अपने दोनों बच्चों की परवरिश की पूरी जिम्मेदारी कोमल के कंधों पर आ पड़ी. कुछ ही दिन पहले तो उस ने अपने बच्चों का चौथा जन्मदिन मनाया था. आकाश उस दिन भी मेहमानों की तरह आखिर में आया था.

उस दिन कोमल ने कुछ लोगों को आकाश के बारे में कुछ कानाफूसी करते सुना. मगर उस ने लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दिया. लेकिन कुछ दिनों बाद एक ऐसी घटना घटी कि उस ने कोमल का नजरिया ही बदल दिया.

हुआ यह कि एक दिन अचानक दिव्या उस के लिए एक इन्विटेशन कार्ड ले कर आई. रेडियो स्टेशन के लोग पूर्व कर्मचारियों के लिए एक पार्टी रख रहे थे, जिस में कोमल भी आमंत्रित थी. आकाश औफिस के दौरे पर गया हुआ था. बच्चों को प्ले स्कूल में छोड़ कर कोमल अतिथि होटल में पार्टी में शामिल होने गई. वहां उस ने आकाश को एक लड़की के साथ जाते देखा, तो हैरान हो आकाश के पीछे भागी. उन दोनों ने रूम नं. 512 में जा कर कमरा बंद कर लिया. उस ने होटल की रिसैप्शनिस्ट से कह कर रजिस्टर में देखा तो रूम नं. 512 के आगे ‘मिस्टर ऐंड मिसेज आकाश’ लिखा नाम उसे मुंह चिढ़ा रहा था. कोमल को तो जैसे काटो तो खून नहीं.

इसी बीच दिव्या उसे ढूंढ़ती हुई वहां आ कर उसे पार्टी में ले गई.

दिव्या के पुराने बौस कह रहे थे, ‘‘कोमल, तुम्हारी आवाज को लोग आज भी याद करते हैं. तुम जब चाहो वापस आ सकती हो. यू आर मोस्ट वैलकम.’’

कोमल अन्यमनस्क सी वहां बैठी थी. जैसेतैसे पार्टी से निकल कर वह घर पहुंची. घर पहुंचते ही वह फूटफूट कर रो पड़ी. उसे पलपल छले जाने का एहसास कचोटने लगा. आज पहली बार उसे अपने नारी होने पर दुख हुआ. उस ने आकाश को फोन किया पर उस का फोन बंद मिला.

आकाश अगले दिन आया. कोमल ने उस से दौरे के बारे पूछताछ की तो वह हड़बड़ा गया. कोमल ने अतिथि होटल का नाम लिया तो आकाश गुस्से में कोमल को भलाबुरा कहता हुआ घर से बाहर चला गया.

कोमल को अब समझ में आने लगा कि क्यों आकाश उस से दूर रहना चाहता है. उसे लगता था कि पिता बनने का जो गौरव वह आकाश को दे रही है उस के बाद आकाश उसे पलकों पर बैठा कर रखेगा, लेकिन आकाश ने तो उसे अपनी जिंदगी से ही निकला फेंका. उस ने आकाश से बात करने की कोशिश की, लेकिन आकाश उस की कोई बात सुनने को तैयार ही न हुआ. कोमल ने बहुत मिन्नतें कीं, अपने बच्चों की दुहाई भी दी, लड़ाईझगड़ा भी किया, लेकिन आकाश पर कोई असर न हुआ. उस ने दोटूक जवाब दिया कि वह उसे और बच्चों के खर्च देता रहेगा, लेकिन निजी जीवन में वह क्या करता है, इस से उसे मतलब नहीं होना चाहिए.

कोमल ने मायके वापस जाने की सोची, लेकिन फिर सोचने लगी कि जब उस के मासूम बच्चों पर दुनिया की जबानें तलवार की तरह बरसेंगी तो वह किसकिस का मुंह बंद करती फिरेगी. वह उदासी में डूब गई. अब दिनरात सोच में डूबी रहती. अपनेआप को इतना ज्यादा अपमानित उस ने कभी महसूस नहीं किया था.

अचानक कोमल को अपने बौस का ‘यू आर मोस्ट वैलकम’ कहा वाक्य याद आया तो वह उठ खड़ी हुई. उस ने फोन कर के फिर से औफिस आने की बौस से इजाजत मांगी, तो जवाब में यही सुनने को मिला कि ‘यू आर मोस्ट वैलकम.’

कोमल अपमान की दुनिया से निकलना चाहती थी. वह अपनी जिंदगी के फटतेबिखरते पन्नों को समेट रही थी.

दिल के किसी कोने में आज भी कोमल को यह उम्मीद है कि शायद कभी आकाश को अपनी गलती का एहसास होगा. लेकिन एक सवाल यह भी है कि क्या वह उसे माफ कर पाएगी?

भाजपा में जूनियर नेताओं को प्रमोशन

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल में सबसे बडी समानता यह है कि दोनो ही नेता जूनियर नेता है. गुजरात के मुख्यमंत्री बने भूपेन्द्र पटेल पहली बार विधायक बने थे. गुजरात में भूपेन्द्र पटेल से सीनियर तमाम नेता वहां के मंत्रिमंडल में है. इनको मुख्यमंत्री ना बनाकर उनसे जूनियर भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया. भूपेन्द्र पहली बार विधायक बने है. इनसे सीनियर नेताओं में नितिन पटेल, कौशिक पटेल और भूपेन्द्र चुडस्सा जैसे नेता गुजरात में है. पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी खुद सीनियर नेता रहे है. उनको जबसे मुख्यमंत्री बनाया गया गुजरात में कोई परेशानी नहीं थी.
पहली बार विधायक बनने के बाद ही गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की जगह भूपेन्द्र पटेल का नाम मुख्यमंत्री के लिये चुन लिया गया. यह किसी के भी समझ के बाहर है. भूपेन्द्र पटेल को इससे पहले मंत्री पद तक संभालने तक को कोई अनुभव नहीं है. ऐसे में सीधे उनको मुख्यमंत्री बनाया जाना आष्चर्यजनक लगता है. गुजरात में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने है. गुजरात सबसे अहम प्रदेष है. क्योकि भाजपा के बडे नेता ‘मोदीशाह’ यही से आते है. जिस समय भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमंत्री पद की षपथ राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने दिलाई भूपेन्द्र पटेल अकेले शपथ ले रहे थे. भाजपा में अब मंत्री बनने को लेकर लौबिंग शुरू हो गई है. मंत्री बनने के लिये जातिगत, राजनीतिक प्रभाव और क्षेत्र के समीकरण देखे जायेगे. जिस समय भूपेन्द्र पटेल मुख्यमंत्री की शपथ ले रहे थे केन्द्रिय गृहमंत्री अमित शाह वहां मौजूद थे. भूपेन्द्र पटेल के लिये मुख्यमंत्री की कुर्सी कांटो भरा ताज है.उत्तराखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री है पुष्कर सिंह धामी
गुजरात की ही तरह से उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी दूसरी बार विधायक का चुनाव जीते थे. वह उत्तराखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री है. उत्तराखंड में भाजपा ने मुख्यमंत्री को लेकर ताश के पत्तों की तरह से नेताओं को फेंट दिया. पहले त्रिवेन्द्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया फिर उनको कुछ ही दिनों में हटाकर पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया. पुष्कर सिंह धामी को पहले किसी भी तरह से मंत्री पद संभालने का अनुभव नहीं है. उत्तराखंड में भी अगले साल चुनाव है. ऐसे में अनुभव हीन जूनियर पुष्कर सिंह धामी कैसे भाजपा को वापस सत्ता दे पायेगे ? यह देखने वाली बात है होगी. इसी तरह से कुछ और छोटे कद वाले नेताओं को भाजपा मे जिस तरह से तबज्जों दी जा रही है उससे साफ लग रहा है कि भाजपा को अब अपने ही बडे नेताओं से डर लगने लगा है.

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जिस नेता की जमीन मजबूत होने लगती है उसको हटाकर कमजोर नेता को बडा पद दिया जा रहा है. चुनकर छोटेछोटे कद वाले नेताओं को मुख्यमंत्री पद दिया जा रहा है. जिससे ‘मादीशाह’ की जोडी का वर्चस्व भाजपा में बना रहे. इसके पहले 2017 में उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के सांसद रहे योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया. वह उस समय मुख्यमंत्री की रेस में चल रहे नेताओं में सबसे जूनियर थे. वह उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी नहीं थे. योगी आदित्यनाथ के साथ दो उपमुख्यमंत्री डाक्टर दिनेश शर्मा और केशव मौर्य को काम दिया गया. इसके बाद भी ‘मोदीशाह’ की जोडी उत्तर प्रदेश में दखल देती रहती है. 2022 के चुनाव प्रचार का जो खाका तैयार हुआ है उसके अनुसार सबसे बडे स्टार प्रचारक के रूप में ‘मोदीशाह’ को ही स्थान दिया गया है.हार का ठिकरा छोटे नेताओं पर:
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में विधानसभा के चुनाव 2022 में होने है. इन चुनाव के परिणाम देखने के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हटाने का काम किया जा सकता है. इसके पहले भाजपा में केन्द्रीय मंत्री के रूप में काम करने वाले सीनियर नेताओं रवि शकर प्रसाद, प्रकाश जावडेकर और सुरेश प्रभु जैसे नेताओं को हटाया गया था. राज्यों से लेकर केन्द्र तक में प्रभाव वाले नेताओं को हटाकर उसकी जगह नये नेताओं को प्रमुखता दी जा रही है. चुनाव भले ही ‘मोदीशाह’ की जोडी के नाम पर लडा जाये पर हार की जिम्मेदारी छोटे नेताओं को ही दी जाती है. पष्चिम बंगाल चुनाव के प्रचार में ‘मोदीशाह’ का नाम सबसे बडा था. पर चुनाव में बेहतर परिणाम न आने के बाद उनको जिम्मेदार नहीं माना गया.

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भाजपा में इस दौर के नेताओं में केवल मोदीमोदी ही दिख रहे है. यह ठीक वैसे ही है जैसे 1970 के दषक में कांग्रेस में इंदिरा इंदिरा ही दिख रहा था. 2019 में दूसरी बार लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली में बदलाव दिखा और अब पार्टी, संगठन और सरकार में कहीं भी उनके कद का कोई नेता नहीं दिखता. सीनियर नेताओं को हटाकर जूनियर नेताओं को महत्व दिया जा रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी को कमजोर प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह के मुकाबले ताकतवर प्रधानमंत्री के रूप में पेष किया गया. चुनाव प्रचार में उनके ‘छप्पन इंच के सीने’ का जिक्र बारबार प्रचार के लिये किया गया.बडे मुददों को छोड छोटे मुददों पर जोर:
तकतवर होने के बाद भी नरेन्द्र मोदी अपनी जिम्मेदारियों को सही तरह से निर्वाह नहीं कर पाये. ऐसे समय में जब देश तमाम तरह की चुनौतियों को सामना कर रहा वह देश किसान आन्दोलन, अफगानिस्तान, चीन, बेकारी, खाली खजाना, कोविड जैसी समस्याओ से घिरा हो प्रधानमंत्री बिना वजह मुख्यमंत्री बदलने की सोचने का समय कैसे निकाल ले रहे है. यह परेशानियां बडी हो रही है क्योकि इन पर फैसला प्रधानमंत्री को लेना है. वह इन परेशानियों से निपटने की जगह पर अपनी ही पार्टी के नेताओं को बदलने उनकी कुंडलियां खगालने में लगे रहते है. यहां तक की ऐसे बदलाव में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की भूमिका भी साफतौर पर नहीं दिखती है.

भाजपा में अटल बिहारी वाजपेई के दौर में मंत्रिमंडल और सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने का काम होता था. अब ऐेसा नहीं है. इस कारण से आपसी सलाह का अभाव दिखता है. मोदी अपनी छवि को चमकाने के लिये ही पूरी तरह से इवेंट की तरह से काम करते है. राजनीति एक तरह से इवेंट में बदल गई है. कोविड के दौरान आनाज बांटने के लिये जो झोले बनवाये गये उनमें मोदी की फोटो लगाई गई. कोविड टीकाकरण का जो प्रमाणपत्र दिया जाता है उसमें भी मोदी की फोटो लगी है. प्रधानमंत्री हर काम का श्रेय खुद लेना चाहते है. ऐसे में उनके आसपास ऐसे नेताओं को रखा जाता है जो कद में मोदी का मुकाबला न कर सके.अधिनायकवादी छवि:
यह सभी जानते है और कई मौको पर देखने को भी मिला है कि प्रधानमंत्री के तमाम कैबिनेट मंत्री तक अपने मन के काम करने को आजाद नहीं है. नोटबंदी की बात हो या कोविड के दौरान लौकडाउन की. सारा श्रेय प्रधानमंत्री ने खुद ही लिया था. सारी मंहत्वपूर्ण नीतियां प्रधानमंत्री कार्यालय से तैयार होती है फिर विभाग उनको लागू करते है. अगर काम में कुछ गलत हो जाता है तो इसका दोष दूसरों पर मढ दिया जाता है. उदाहरण के लिये जब कष्मीर से धारा 370 हटाई गई तब कहा गया कि इससे अमनचैन आ सकेगा. दो साल का समय बीत जाने के बाद भी वहां के हालात सामान्य नहीं हुये है.

ऐसे ही फैसलों में नोटबंदी का फैसला था. इसके जरीये भ्रष्टाचार, आतंकवाद और कालाधन को खत्म करने की बात कही गई थी. नोटबंदी से यह लाभ तो हुये नहीं उल्टे कारोबार बंद हो गये. ऐसे ही दावे जीएसटी लागू करते किये गये थे. जीएसटी सरल कर व्यवस्था बनाने के बजाये कठिन होती गई. केन्द्र और राज्य सरकार के बीच जीएसटी के पैसों को लेकर तमाम तरह के विवाद खडे हो गये है. कोविड के दौरान जनता कर्फ्यू और तालाबंदी से कोरोना को रोकने का दावा किया गया. 3 माह की तालाबंदी से कोरोना तो नहीं गया उल्टे उद्योग धंधे चौपट हो गये.
यह देखा जाता है कि जो प्रधानमंत्री अपनी कैबिनेट के मंत्रियों की सलाह से काम करते है उसके परिणाम बेहतर होते है. मोदी ने अपनी छवि अधिनायकवादी नेता जैसी रखी है. वह अपने पास ऐसे नेताओं को नहीं रखना चाहते जो उनको सलाह दे सके. ऐसे मंे वह सीनियर नेताओं को हटाकर जूनियर नेताओं को साथ रखते है. जिससे वह केवल मोदी की दिखाई राह पर चल सके. मोदी को सलाह देने का साहस ना कर सके.

प्रिया – भाग 3 : क्या था प्रिया के खुशहाल परिवार का सच?

विकास की तेज आवाज पर प्रिया ने हैरान हो कर उस की तरफ देखा, फिर आंच धीमी की और विकास की आंखों में देखती हुई बोली, ‘‘विकास, आप की पहली गलतफहमी यह है कि मैं ने आप को बेवकूफ बनाया. मैं ने आप से कभी थोड़ीबहुत जो बातें कीं वह मेरी गलती थी, लेकिन वे बातें प्यारमुहब्बत की तो थीं नहीं, आप ने अपनेआप को किसी भ्रम में डाल लिया शायद… जब मेरे मम्मीपापा ने आप के रिश्ते को मना किया तो मुझे दुख हुआ था, लेकिन ऐसा नहीं कि मैं खुद को संभाल न सकूं. मैं ने फिर आप के बारे में नहीं सोचा.’’

‘‘तुम झूठ बोल रही हो. तुम ने नीलू से क्यों कहा था कि मैं तुम्हें अच्छा लगता हूं, लेकिन तुम ने मेरा साथ नहीं दिया… जब मैं पूरी तरह तुम्हारे प्यार में डूब गया तो तुम ने मेरा दिल तोड़ दिया… अमर के जीवन में आने से पहले तुम ने यह खेल न जाने कितनों के साथ खेला होगा.’’

‘‘विकास,’’ प्रिया गुस्से से बोली, ‘‘शायद आप जानते होंगे कि रिश्ते तो हर लड़की के लिए आते हैं. आप का भेजा हुआ प्रपोजल कोई अनोखा नहीं था फर्क सिर्फ इतना था कि मैं आप को जानती थी.

‘‘मैं ने नीलू को बताया था कि आप मुझे बुरे नहीं लगते. आप बुरे थे भी नहीं. एक अच्छे इंसान में जो खूबियां होनी चाहिए वे सब आप में थीं. लेकिन जब मेरे मम्मीपापा की मरजी नहीं थी तो मैं आप का साथ देने की सोच भी नहीं सकती थी. अगर मैं मांबाप की मरजी के खिलाफ आप का साथ देती तो एक भागी हुई लड़की कहलाती और ऐसे प्यार का क्या फायदा जो इज्जत न दे सके? मैं ने आप के बारे में सोचा जरूर था, लेकिन आप से प्यार कभी नहीं किया. आप शायद एकतरफा मेरे लिए अपने दिल में जगह बना चुके थे, इसलिए मेरी शादी को आप ने बेवफाई माना. कुछ समय बाद मेरी अमर के साथ शादी हो गई, यकीन करें मैं ने आप के साथ कोई मजाक नहीं किया था. उस के बाद मैं ने कभी आप के बारे में सोचा भी नहीं. अमर का प्यार मुझे उन के अलावा कुछ और सोचने भी नहीं देता.’’

प्रिया की आवाज में अमर के लिए प्यार भरा हुआ था और विकास सोच रहा था, वह कितना बेवकूफ था अपने एकतरफा प्यार में… अपने जीवन का इतना लंबा समय बरबाद करता रहा.

‘‘क्या सोचने लगे, विकास?’’ किचन की तपिश ने उस के चेहरे को और खूबसूरत बना दिया था.

‘काश, तुकास को घेर लियाम मेरी प्रिया होतीं. तुम्हारी यह खूबसूरती मेरे जीवन में होती, मेरा प्यार एकतरफा न होता,’ फिर अचानक शर्मिंदगी के एहसास ने वि कि यह सब वह अपने दोस्त की पत्नी के बारे में सोच रहा है.

प्रिया ध्यान से उस के चेहरे के उतारचढ़ाव को देख रही थी. वह उसे चुप देख कर बोली, ‘‘आप ड्राइंगरूम में बैठिए, यहां गरमी है, मैं अभी आती हूं.’’

विकास चुपचाप हारे कदमों से ड्राइंगरूम में आ गया, जहां सनी अभी तक खेल रहा था. कुछ देर में प्रिया भी आ गई और वहीं बैठ गई. दोनों काफी देर चुप रहे.

दिल ने एक बार फिर उकसाया तो विकास बोल उठा, ‘‘अगर मैं अमर को बता दूं कि मैं तुम्हें जानता हूं, बल्कि प्रपोज भी कर चुका हूं तो?’’ कह कर विकास ने उस के चेहरे पर नजरें जमा दीं.

प्रिया की गहरी आंखों में पल भर के लिए उलझन छाई, फिर धीरे से बोली, ‘‘यह जो पुरुष होता है न बड़ा अजीब होता है. अच्छाई पर आए तो फरिश्तों को भी मात कर दे और बुराई पर आए तो शैतान भी पनाह मांगे. आप का दिल जो चाहे, वह करो. आप अपने अधूरे प्यार का गुस्सा मेरे शांत जीवन को खत्म कर के उतारना चाहते हैं, अमर के सामने मेरा अपमान करना चाहते हैं जबकि आप का और मेरा ऐसा कोई रिश्ता था ही नहीं. क्या मेरा अपराध यही है कि मैं ने अपने मम्मीपापा की इच्छा के बिना आप का साथ नहीं दिया,’’ कहतेकहते प्रिया की आंखें भर आईं.

वह ठीक कह रही थी. विकास के दिमाग को उस की बातें स्वीकार्य थीं, लेकिन उस का दिल अब भी नहीं मान रहा था. और फिर दिमाग दिल पर हावी हो गया. विकास ने महसूस किया कि दिल और दिमाग में रस्साकशी चले तो दिमाग की बात मान लेनी चाहिए. इसीलिए शायद कुदरत ने बुद्धि को हृदय के ऊपर बैठाया है.

प्रिया की बातों ने विकास को शर्मिंदा सा कर दिया था. उस का मन ग्लानि से भर उठा. उस ने प्रिया को देखा तो उस के उदास चेहरे के घेरे में कैद सा हो गया. अपनी छोटी सोच पर उसे कुछ बोला ही नहीं गया, फिर हिम्मत कर के बोला, ‘‘आई एम सौरी, प्रिया, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए. मैं गलत सोच रहा था,’’ फिर दोनों थोड़ी देर चुपचाप बैठे रहे.

कुछ ही देर में अमर आ गया. फिर सब ने खाना खाया, दोनों दोस्त बीते दिनों की बातें दोहराते रहे. प्रिया काम समेटती रही.

विकास के चलने का समय आया तो अमर गाड़ी निकालने लगा. प्रिया बोली, ‘‘आप फिर कब आएंगे?’’

‘‘शायद अब कभी नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘तुम्हें मुझे अपने घर बुलाते हुए डर नहीं लग रहा है?’’

‘‘वह क्यों?’’ प्रिया ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं तुम्हारा कोई नुकसान कर दूं तो?’’

‘‘मुझे पता है आप ऐसा कभी नहीं कर सकते.’’

‘‘वह क्यों?’’ अब हैरान होने की बारी विकास की थी.

‘‘इसलिए कि आप बहुत अच्छे इंसान हैं. आप अमर के दोस्त हैं, जब चाहें आ सकते हैं.’’

‘‘प्रिया बहुत शांति है तुम्हारे घर में, तुम्हारे जीवन में, मेरी कामना है कि यह हमेशा रहे,’’ विकास मुसकराया.

‘‘आप घर बसा लें ऐसी शांति आप को भी मिल जाएगी,’’ प्रिया की आंखों में खुशी दिखाई दे रही थी.

विरोधी भावों के तूफान से जूझने के बाद विकास का मन पंख सा हलका हो गया था. मन का बोझ उतरने पर बड़ी शांति मिल रही थी, यही विकल्प था दीवाने मन का. विकास को लगा इतने वर्षों की थकान जैसे खत्म हो गई है.

भारत भूमि युगे युगे: पूर्वोत्तर का उत्तरायण

दिखने में भोलीभाली मगर तेजतर्रार कांग्रेसी नेत्री सुष्मिता देव कांग्रेस पार्टी छोड़ कर टीएमसी में शामिल हो गई हैं. महिला कांग्रेस की मुखिया रही इस नेत्री का तर्क है कि पूर्वोत्तर से भाजपा को हटा पाना अब कांग्रेस के बस की बात नहीं. 48 वर्षीया सुष्मिता पेशे से वकील हैं. उन के पिता संतोष मोहन देव कांग्रेस से सांसद रहे थे, यानी सुष्मिता को अब तक जो भी मिला था वह कांग्रेस की देन था. उन के इस्तीफे से हल्ला यह मचा कि कांग्रेस के युवा अब निराश हो चले हैं, इसलिए पार्टी छोड़छोड़ कर भाग रहे हैं. दरअसल, कांग्रेसी युवा निकम्मे हो चले हैं जिन्हें अब तक मुफ्त की मलाई गांधीनेहरू खानदान से मिल रही थी. अब पार्टी संकट में है तो चूहों सरीखे भाग रहे हैं.

मुनव्वर के वाल्मीकि रामायण के रचयिता वाल्मीकि दलित थे या ब्राह्मण इस पर आएदिन बहस और विवाद होते रहते हैं, जिन में से कुछ मुकदमों की शक्ल में अदालतों तक भी पहुंचे हैं. इन दिनों बेइंतहा परेशान चल रहे मशहूर शायर मुनव्वर राणा ने तालिबानों की तुलना वाल्मीकि से कर दी तो उन के खिलाफ लखनऊ के हजरतगंज थाने में सामाजिक सरोकार फाउंडेशन के उपाध्यक्ष पी एल भारती ने दलितों की धार्मिक भावनाएं भड़काने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. मुनव्वर राणा ने कहा था कि ‘10 साल बाद तालिबानी भी वाल्मीकि होंगे और हिंदू धर्म में तो किसी को भी भगवान कह दिया जाता है.’ इस बयान के दीर्घकालिक प्रभाव कुछ भी हों लेकिन तात्कालिक माने ये हैं कि दलितों की भी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं और कोई मुसलमान कुछ कहे तो आहत हो जाती हैं.

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ऊंची जाति वालों के आएदिन लतियाते रहने से खास फर्क नहीं पड़ता. ये फिल्मी अमिताभ नहीं उत्तर प्रदेश में चुनावी सरगर्मियों के बीच 1992 बैच के आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने न केवल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी बल्कि अभी से प्रचार करने गोरखपुर की तरफ कूच भी करने लगे तो उन्हें हाउसअरैस्ट कर लिया गया. पौराणिक काल में नायक इसी तरह जीतते थे कि प्रतिद्वंद्वी को छलकपट, झूठ और बेईमानी कर लड़ने ही मत दो और लड़ो तो इन्हीं चालाकियों का सहारा लो. अभिमन्यु, कर्ण, द्रोणाचार्य और बाली आदि इसी विधि से मारे गए थे. हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर पूरे चुनावभर यही हो क्योंकि भाजपा दिक्कत में है. जीत के लिए वह इस रणनीति पर चल भी सकती है. अब भला योगीमोदी जैसे ‘देवताओं’ के राज में किस की जुर्रत कि सवाल करे, इसलिए अमिताभ ठाकुर के बहाने संदेश तो दे दिया गया है.

अपनेअपने छुट्टे सांड ‘राहुल गांधी किसी काम के नहीं हैं, वे भगवान को समर्पित सांड की तरह हैं जो हर जगह घूमते हैं लेकिन किसी के काम नहीं आते हैं,’ ये पवित्र लेकिन कुंठित उद्गार नवनियुक्त रेल राज्यमंत्री बालासाहब दानवे के हैं जो उन्होंने भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान महाराष्ट्र के जालना में व्यक्त किए. किसी सार्वजानिक मंच से इस से ज्यादा अशिष्टता यानी अगला चरण भद्दी गाली बकने का ही हो सकता था जिस की हिम्मत दानवे जुटा भी लेते तो बात कतई हैरत की नहीं होती. इस के एवज में मुमकिन है उन का और प्रमोशन कर दिया जाता.

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मोदी मंत्रिमंडल के नए मंत्री कोई जानेमाने नाम नहीं हैं, वे हर लिहाज से मोहरे और छोटे स्तर के हैं और अपनी पहचान बनाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं. इन से जन उपयोगी कार्यों की उम्मीद करना बेकार है क्योंकि इन रंगरूटों की भरती काम के लिए नहीं, बल्कि गांधीनेहरू परिवार को कोसने व गाली देने के मकसद से की गई है. अब यह तो भगवा गैंग को सोचना चाहिए कि उस के पूजनीय गौवंश को आगे कौन से सांड बढ़ाते हैं.

अपनी डफली अपना राग : भाग 3

“बढ़िया है, लगे रहो मुन्ना भाई,” दिव्या बोल ही रही थी कि उस के घर से फोन आ गया.  घबराई हुई सी उस की मां कहने लगी कि अचानक से उस के पापा की तबीयत बिगड़ गई.  उन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ा.

“क्या…पर यों अचानक. हां, हां, मैं पैसों का इंतजाम कर के जल्द ही भेजती हूं. आप चिंता मत करो,” दिव्या फोन रख कर सिर पकड़ कर बैठ गई कि अचानक से इतने पैसे कहां से लाएगी वह?

“तू चिंता मत कर. हम हम कुछ करते हैं,” मनीषा ने उसे ढाढ़स बंधाते हुए कहा कि वह भाविन से बात करती है. लेकिन आकांक्षा कहने लगी कि नहीं, इस से तो अच्छा होगा कि हम जो मकान मालिक को देने के लिए पैसे रखे हैं वही दिव्या को दे दें क्योंकि अभी उन पैसों को इसे सब से ज्यादा जरूरत है.  कह देंगे मकान मालिक से हम उन्हें 2 महीने का किराया एकसाथ दे देंगे.

“हां, यह सही रहेगा,” किंजल बोली. तुरतफुरत में दिव्या ने वह पैसे अपने मां को भेज दिए और छुट्टी ले कर वह अपने घर मोरबी के लिए रवाना हो गई. लेकिन अब इधर किंजल के सिर पर मुसीबत आन पड़ी.  उस की मां उस के लिए रिश्ता देख रही थी.  एक जगह उस की शादी की बात भी चल रही है. लेकिन लड़का पहले किंजल से मिलना चाहता है, फिर ही शादी के लिए हां करेगा.  इसलिए उस की मां का हुक्म था कि किंजल जितनी जल्दी हो सके, छुट्टी ले कर घर आ जाए. किंजल के मांपापा पोरबंदर में रहते हैं.  वहां उन का अपना फैमिली बिजनैस है.

“मां, पन हवे हूं आवी शकती नथी. मारी पासे वेकेशन नथी. मने समझो मां.” लेकिन उस की मां कहने लगी कि उसे कुछ नहीं सुननासमझना है. इतना अच्छा रिश्ता वह अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती, इसलिए वह आ जाए.  आखिर उसे भी तो समाज, नातेरिश्तेदारों को जवाब देना पड़ता है कि अब तक उस की बेटी कुंआरी क्यों बैठी है?

“जवाब क्या देना है मां.  मैं यहां जौब कर रही हूं.  लोग क्या कह रहे हैं, क्या सोच रहे हैं मुझ से से कोई लेनादेना नहीं है.” लेकिन उस की मां कहने लगी कि उसे तो लेनादेना है न.  उसे इसी समाज में रहना है तो उन के अनुसार ही चलना पड़ेगा न.

“क्यों, क्यों हमें उन के हिसाब से चलना पड़ेगा मां? वो क्या हमारे कर्ताधर्ता हैं?  और मैं ने कहा था न आप से कि मैं अभी शादी नहीं करना चाहती.” इस पर उस की मां कहने लगी कि क्या अब वह उसे बताएगी कि उसे शादी कब करना है, कब नहीं? सब समझ रही हूं, जरूर उस का वहां किसी से चक्कर चल रहा है, तभी वह ऐसा बोल रही है. गलती हो गई उस से जो उसे बाहर नौकरी करने भेजा. “मां…” मां की बात पर किंजल चीख पड़ी और फोन रख कर सिसकसिसक कर रोने लगी.

किंजल की मां बहुत ही पुराने विचारों वाली महिला है.  उस ने अपनी बेटी को बाहर रह कर जौब करने की इजाजत तो दे दी, पर वहीं से वह उस पर चार आंखें गड़ाए रहती है.  वह औफिस से कब घर आती है? कब जाती है? पुरुष दोस्त तो नहीं हैं उस के जैसे सवालों से उसे छलनी किए रहती  है.  यहां तक की उस का एक बार में फोन न उठाने पर, फ़ोन बिजी आने पर भी उस की मां सवालों की झड़ी लगा देती है.  किंजल के पापा उतने सख्त इंसान नहीं हैं जितनी उस की मां. बेचारी किंजल, अपनी मां के पुलिसिया व्यवहार से खिन्न रहती पर कुछ कर नहीं पाती थी.

“जाने दो न किंजल, आंटी ने ऐसे ही बोल दिया होगा,” आकांक्षा और मनीषा उसे समझाने लगीं.  बुरा लगा रह था उन्हें किंजल को ऐसे रोते देख कर  क्योंकि वही चारों में से सब से समझदार और धैर्यवान लड़की थी.  वरना, ये तीनों तो छोटीछोटी बातों पर बच्चों की तरह रोने बैठ जाती थीं, तब किंजल ही बड़ी बहन की तरह सब को समझातीबुझाती थी.  लेकिन आज उस की आंखों में आंसू देख कर ये उस की बड़ी बहन बन कर उसे समझा रही थीं.

“नहीं, ऐसे ही नहीं बोल दिया मां ने, बल्कि उन के दिमाग में यही सब बातें चलती रहती हैं कि मैं यहां गुलछर्रे उड़ाती हूं.  जब देखो, फोन कर नसीहतें देती रहती है.  जरा औफिस से आने में देर क्या हो जाती है, सवालों की झड़ी लगा देती है.  एक बार में फोन न उठाने पर भी सवाल करने लगती है कि फोन क्यों नहीं उठाया? कहां थी? क्या कर रही थी? और अगर फोन बिजी आ रहा हो तो पूछो मत कि कैसेकैसे सवाल दागने लगती है.  लेकिन यही सब कभी भैया से नहीं पूछा मां ने.  वे भी तो बाहर रह कर जौब कर रहे हैं.  उन के भी तो दोस्त होंगे.  लेकिन उन के लिए सबकुछ जायज है क्योंकि वह लड़का है.  बता न, आखिर क्यों हम लड़कियों पर ही लोगों की आंखें टिकी होती हैं.  ब्याह कर लूं, क्यों, समाज को उन्हें जवाब देना पड़ता है इसलिए?”

“तो समझा न आंटी को की तू अभी शादी नहीं करना चाहती है.  और पहले तो तेरे भाई की शादी होगी न, क्योंकि वे तुम से बड़े हैं,” आकांक्षा ने कहा तो वह कहने लगी कि अगर उस में बोलने की इतनी हिम्मत होती तो क्या अपनी मां को जवाब नहीं दे देती. “घर से इतनी दूर रह कर नौकरी कर सकती है तो बोल क्यों नहीं सकतीं तुम? सच बोलने में डर कैसा?”

“अच्छाअच्छा, अब सब चुप हो जाओ,” मनीषा बोली, “इस बार आंटी का फोन आए तो मुझ से बात करवाना.  समझाऊंगी उन्हें कि लड़की कोई गायबकरी नहीं है जो जब चाहा जिस खूंटे से बांध दिया.  विदेशों में तो लोग अपने ढंग से अकेलेपन का मजा लेते हैं.  वे दुनियाभर में घूमते हैं.  रचनात्मक कार्य करते हैं. होटलों में अकेले खा सकते हैं.  भारत में ही एक साथी पता नहीं क्यों जरूरी है लोगों को.”

“अच्छा, बड़ी आई रचनात्मक वाली.  फिर तू क्यों भाविन से शादी कर रही है? मत कर शादी, रह अकेले,”  आकांक्षा की बात पर किंजल को भी रोतेरोते हंसी आ गई.“नहीं, म…मेरा मतलब है कि शादी हो तो अच्छा.  लेकिन कोई न करना चाहे तो इस में बुराई भी क्या है?”

“हूं, यह बात सही कही तूने,”  आकांक्षा बोली, “देखो किंजल, चुप रहने से काम नहीं चलेगा.  इस से परेशानियां और बढ़ेंगी.  अगर तुम्हें लगता है कि अभी तुम शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हो और तुम्हें थोड़ा समय चाहिए, तो इस बारे में खुल कर अपने मांपापा से बात करो.  तुम अभी शादी क्यों नहीं करना चाहतीं, इस का कारण भी उन्हें बताओ. जब तक तुम अपनी समस्या नहीं बताओगी, उन्हें कैसे समझ आएगा? अगर तुम अपने मांपापा से इस बारे में बात नहीं कर सकती तो अपने भैया से बोलो.  ताकि वे अंकलआंटी को समझा सकें.  भाईबहन दोस्त की तरह होते हैं.  मैं भी अपनी छोटी बहन से अपनी सारी बातें शेयर करती हूं.  लेकिन मांपापा से नहीं कर सकती.  डर लगता है मुझे.”

“तुम्हें क्या लगता है आकांक्षा, मेरे ऐसा कहने से वे मान जाएंगे?”  किंजल बोली.“हो सकता है न मानें, गुस्सा हो जाएं तुम पर क्योंकि हर मांबाप का यही सवाल होता है कि तो फिर कब करोगी शादी? ऐसे ही पूरी उम्र तुम्हें बिठा कर तो नहीं रख सकते हम.  तो वहां तुम उन्हें समझा सकती हो कि अभी तुम्हें अपने जीवन  में और आगे जाना है. सपने पूरे करने हैं अपने, फिर ही शादी के बारे में सोच सकती हो.  देखना, वे तुम्हारी बात जरूर समझेंगे,” आकांक्षा की बात कुछ हद तक किंजल को सही लगी.  क्योंकि वह अभी शादी भी नहीं करना चाहती थी और न ही अपने मांपापा का दिल दुखाना चाहती थी.

“अरे, वाह रे अक्कू, तूने तो किंजल की सारी प्रौब्लम्स ही सौल्व कर दीं,” मनीषा ने आंखें चमकाईं तो आकांक्षा ने मुसकरा कर अपना कौलर ऊपर कर दिया.“एक काम कर, चल, मेरी होने वाली सास को भी समझा दे जरा कि वह मेरे पीछे न पड़ी रहे,” मनीषा बोली तो दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.  आकांक्षा ने जैसा कहा, किंजल ने उसी तरह अपने मांपापा को समझाया और यह भी कहा कि वह कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करेगी जिस से उन का सिर शर्म से नीचा हो जाए.  किंजल के मांपापा ने उस की बात मान ली और फिर उस पर शादी का दबाव नहीं बनाया.

इधर, दिव्या के पापा की तबीयत में सुधार आने लगा था और अब वे पहले से ठीक थे. दिव्या 10  दिनों की छुट्टी पूरा कर नौकरी जौइन कर चुकी थी.  दिव्या और किंजल की समस्या तो सौल्व हो चुकी थी.  मगर मनीषा और आकांक्षा की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई थी.एक रोज मनीषा की सास ने फोन कर उस से कहा कि भाविन घर छोड़ कर कहीं चला गया है.  न तो वह उस का फोन उठाता है और न ही फोन करता है.  यह सब उस के कारण ही हुआ है.  उस के कारण ही उसका एकलौता बेटा घर छोड़कर कहीं चला गया.  वह मनीषा से अपनी कहीं बातों के लिए माफी मांगने लगी.  “नहीं, मम्मी जी, ऐसा मत कहिए आप, प्लीज” उसने भाविन को फोन कर कहा कि उसकी मम्मी  परेशान है इसलिए वह तुरंत घर जाए. भाविन की मम्मी ने दिल से मनीषा को अपनी बहू स्वीकार कर लिया था. उसने मनीषा के लिए अपनी पसंद के कपड़े खरीदकर भी भेजें और कहा कि पहन कर बताए, फिट आया या नहीं ? मनीषा और उसकी सास के सारे टंटे खत्म हो चुके थे.  अब उन्हें एक-दूसरे से कोई समस्या नहीं थी.  भाविन भी खुश था कि उसकी माँ ने मनीषा को मन से स्वीकार कर लिया है.

एक आकांक्षा ही रह गयी थी जिसकी समस्या वैसी की वैसी बनी हुई थी. जॉब न लगने से वह काफी परेशान रहने लगी थी. चिंता के मारे न तो वह ठीक से खा-पी सक रही थी और न ही उसे ठीक सेनींद आती थी. देश में युवाओं के लिए आज बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है. डिग्री होने के बाद भी उन्हें जॉब नहीं मिल पा रही है जिससे वह डिप्रेशन में आ रहे हैं.

“ये आकांक्षा….देख तेरे सिर पर छपकली !” रुद्रेश ने कहा तो वह एकदम से उछल कर भागी.  मगर जब देखा सूखा पत्ता था, जो रुद्रेश ने ही उसके सिर पर डाला था, तो वह उसे मारने दौड़ी.  “अरे रे रे, अब क्या बच्चे की जान लेगी?” अपने आप को आकांक्षा के मार से बचाते हुए रुद्रेश हँसे जा रहा था और वह उस के पीठ पर मारे जा रही थी.  बड़ा मजा आ रहा  था उसे आकांक्षा को चिढ़ाने में.  ये सारे दोस्त जहां भी बैठते मैहफिल जमा देते थे.  कोई दुखी हो,उसे भी अपनी बातों से हँसा देते थे.  वैसे, तो ये अपनी समस्याओं से लेकर देश दुनिया की समस्याओं पर भी खूब चर्चा करते. लेकिन कभी-कभी इनकी बेकार, फालतू की बकवास बातें सुनकर माथा चकरा जाता था.

“ये आकांक्षा,एक काम कर” चाय की चुसकी लेते हुए श्लोक बोला. “तू न लोट्टी चोखा की दुकान खोल ले.  क्योंकि अब तेरी जॉब तो लगने नहीं वाली….. तो कब तक तू अपने माँ-पापा की रोटियाँ तोड़ती रहेगी?” उसकी बात पर मनीषा, किंजल, दिव्या,दीप, निश्चय और रुद्रेश ठहाका लगा कर हँसने लगें.

“ज्यादा बोल मत समझे, देखना आकांक्षा की इतनी अच्छी जॉब लगेगी न कि तू जल मरेगा साले” श्लोक की पीठ पर एक धौल जमाते हुए मनीषा बोली, तो वह ‘आउच’ कर उठा.

“मोटी…. तू तो चुप ही रह” शलोक बोला.  “तेरी मम्मी, मतलब तेरी होने वाली सास वैसे भी तेरे मोटापे के पीछे पड़ी है.  इसलिए अपना वजन कम कर पहले.  खा-खा कर ‘बड़ा पाव’ बन गयी है” उसकी बात पर मनीषा ने ट्यूशु पेपर का बॉल बनाकर उसके मुंह पर दे मारा.  “अत तेरी की….. लगी यार” श्लोक ने अपने मुँह पर हाथ फेरा तो सब हँस पड़े.  तभी अचानक से आकांक्षा उठ खड़ी हुई.  “अबे,अब तेरे को क्या हुआ” लेकिन आकांक्षा “शी शी कर उसे चुप करा दिया और बोली कि शायद उसके बैंक का रिजल्ट आ गया. उसकी बात पर सब खड़े हो गए.  सब के मुँह पर साफ हवाइयां उड़ती दिख रही थी.  भले ही सब एक दूसरे की टांग खींचने से बाज न आते हों.  पर एक की परेशानी सब की परेशानी बन जाती थी.  जब आकांक्षा ने हैरानी से अपने मुँह पर हाथ रख लिया तो सब डर गए कि पता नहीं, इस बार भी उसका नहीं हुआ क्या !

“बता ने क्या हुआ….. आकांक्षा बोल न… तेरा हो गया?”  किंजल ने उसे झंझकोरते हुए फिर वही सवाल किया तो आकांक्षा उससे लिपट गयी और बोली कि बैंक पी.ओ में उसका सलेक्शन हो गया.  “क्या…… अरे, वाह!” कह कर उसने उसे गले से लगा लिया.  श्लोक ने तो उसे अपने गोद में उठा लिया और ‘हो हो’ करने लगा. “अरे, छोड़ न…. मैं गिर जाऊँगी” आकांक्षा हँसते हुए चिल्लाई.  उसे अभी भी भरोसा नहीं हो रहा था कि बैंक एसबीआईमें उसका चयन हो गया.

“अब तो आकांक्षा चली जाएगी हमें छोड़कर” मनीषा उदास हो गयी.  लेकिन आकांक्षा उसे गले लगा कर कहने लगी कि भले ही हम अलग हो जाए पर दिल से हमेशा जुड़े रहेंगे. लेकिन इधर सारे दोस्त ‘पार्टी पार्टी पार्टी बोल कर आकांक्षा का कान फाड़ने लगे थे.  आज सब की ढपली से सुरीले राग निकल रहे थे.

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