आपातकाल ने इंदिरा गांधी को कुख्यात बना दिया, नक्सल दमन ने सिद्धार्थ शंकर राय को. अब सिंगूर ने बुद्धदेव भट्टाचार्य को खलनायक बना दिया. बुद्धदेव भट्टाचार्य की करनी का खमियाजा पूरे वाममोरचा को उठाना पड़ रहा है. सिंगूर मामले ने माकपा को ही नहीं, बल्कि पूरे वाममोरचा को नेस्तनाबूद कर दिया. वाममोरचा ने जहां 34 सालों तक शासन किया, वहीं अब ‘सिंगूरनंदीग्राम का पाप’ धो कर सत्ता में लौटने में उसे जाने कितने वर्ष लग जाएंगे. सिद्धार्थ शंकर राय का ‘पाप’ प्रदेश कांग्रेस आज तक भोग रही है. 1972 के बाद चुनाव दर चुनाव बीत गए, उन के पाप ने कांग्रेस को उठने नहीं दिया. और सिंगूर-नंदीग्राम जमीन अधिग्रहण ही है जिस ने बंगाल समेत पूरे देश में माकपा और इस के अन्य घटकों को अपने अस्तित्व बचाने की जद्दोजेहद में लगे रहने को मजबूर कर दिया है. ममता बनर्जी ने न्यायालय के फैसले के बाद

सिंगूर जमीन अधिग्रहण को माकपा की ऐतिहासिक भूल नहीं, ऐतिहासिक आत्महत्या कहा. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से ममता बनर्जी का कद थोड़ा और ऊंचा हो गया. गौरतलब है कि 2006 में सिंगूर आंदोलन से ही ममता बनर्जी मां-माटी-मानुष का नारा ले कर नए सिरे से राजनीति में उतरी थीं. वाममोरचा सरकार द्वारा टाटा के लिए जबरन जमीन अधिग्रहण के विरोध में ममता बनर्जी 26 दिनों तक अनशन पर बैठी थीं. यही सिंगूर आंदोलन राज्य में परिवर्तन की बयार ले कर आया. आज ममता न केवल बंगाल की मुख्यमंत्री हैं, बल्कि कोलकाता नगर निगम, विधाननगर नगर निगम सहित राज्य की ज्यादातर नगरपालिकाओं और पंचायतों में उन्हीं की पार्टी का कब्जा है.

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