सिंगल पेरैंटिंग अपनेआप में एक चैलेंज है. समाज और परिवार को आप से बहुत अपेक्षाएं होती हैं. ऐसे में आप जब एक बार फिर डेट पर जाने की सोचें तो कई बातों का खयाल रखना जरूरी है. देश में जैसे-जैसे तलाक के केस बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे सिंगल पेरैंट्स की संख्या भी बढ़ती जा रही है. ऐसे में अपने बच्चों की केयर करते हुए वे फिर किसी को डेट करें या नहीं, उन के सामने यह सवाल उठ खड़ा होता है.

सिंगल पेरैंट की बहुत सी जिम्मेदारियों के साथ यह स्थिति उन के लिए काफी जटिल होती है क्योंकि उन के दिमाग में अपने बच्चे की सुरक्षा और जरूरतें प्राथमिकता में होती हैं. 2 बच्चों की सिंगल पेरैंट मां सुलेखा कहती हैं, ‘‘जब आप सिंगल हो, आप पार्टी, डिनर, छुट्टी जब चाहे एंजौय कर सकते हैं, पर जब आप का बच्चा साथ हो, आप हर चीज बच्चे की टाइमिंग्स, उस की उम्र व उस की जरूरतों के अनुसार ही तय करते हो.’’

11 और 16 वर्षीय बेटों की सिंगल पेरैंट अंजलि का कहना है, ‘‘समाज और फैमिली की अलग ही उम्मीदें हैं, इसलिए मैं खुल कर डेट नहीं कर पाई. मुझे कोई गिल्ट नहीं था. पर मैं अपने पेरैंट्स के सामने डेटिंग नहीं कर पाई, यह स्वीकार करना मेरे पेरैंट्स के लिए मुश्किल था कि मैं आगे बढ़ रही हूं. उन्हें हमेशा यही आशा थी कि मैं अपने एक्स हस्बैंड के पास वापस चली जाऊंगी.’’

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प्राजक्ता देशमुख के अनुसार, ‘‘यह याद रखना चाहिए कि सुखी माता या पिता ही बैस्ट माता-पिता होते हैं और यदि डेटिंग से उन्हें खुशी मिल रही है तो उन के जीवन में यह खुशी आनी ही चाहिए. अपने नए पार्टनर को बच्चे के बारे में साफ बता देना चाहिए. पर बच्चों को अपने पार्टनर के बारे में बताने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए.’’

8 वर्षों से सिंगल पेरैंट रह रहीं रीता कहती हैं, ‘‘मैं अपने बच्चों के बारे में क्यों छिपाऊं? वे मेरे जीवन के सब से प्यारे लोग हैं. यदि कोई मेरे बच्चों को स्वीकार नहीं करता, तो बस, बायबाय. मैं अपने नए पार्टनर को पहले अपना दोस्त कह कर बच्चों से मिलवाती हूं. 4 साल मैं ने जिसे डेट किया, वे उस से 5 बार मिले. मुझे महसूस हुआ कि सिंगल पेरैंट के बच्चों के लिए भी यह स्थिति काफी कन्फ्यूजिंग होती है. उन के पास 2 अलगअलग रूल्स वाले घर होते हैं. ऐसे में आप एक नया पर्सन उन के सामने ले आते हैं तो और रूल्स जुड़ जाते हैं. तभी मैं ने तय कर लिया कि मैं सिंगल पेरैंट बन कर ही रहूंगी.’’

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7 साल के बेटे की सिंगल पेरैंट आरती की कोशिश रहती है कि डेटिंग से पहले नया व्यक्ति उस का अच्छा दोस्त बन जाए. वह मेरे बेटे को और मेरा बेटा उसे पसंद करता हो. दोनों एकदूसरे की कंपनी एंजौय करते हों. अगर मैं दोनों के बीच यह पौजिटिव एनर्जी देख लूंगी, तभी मैं आगे बढ़ने के बारे में सोच सकती हूं.’’ सिंगल पेरैंट अगर वर्किंग हैं तो उन के सामने सब से बड़ा चैलेंज होता है कि वे कैसे अपना टाइम मैनेज करें.

सुलेखा कहती हैं, ‘‘मैं 9 बजे के बाद वीकडेज में बाहर जाती हूं. मैं घर पर अपनी डेट से कभी नहीं मिलती. मेरे बच्चे वीकैंड पर अपने पिता के पास चले जाते हैं. मैं तब पूरी तरह से फ्री होती हूं.’’ आरती ने वीकैंड को बेटे के साथ टाइम बिताने के लिए रिजर्व रखा है. उस ने कह रखा है कि वह वीकडेज में ही मिल सकती है. वीकैंड में वह अपने बेटे को बाहर उस की पसंद की जगह ले कर जरूर जाती है. वह कभी डेट को अपने बेटे के सामने घर नहीं लाती और उस ने यह क्लियर कर रखा है कि बेटे से संबंधित जब भी कोई इमरजैंसी होगी, वह हर चीज पीछे छोड़ सकती है. वह कहती है, ‘‘अपने लिए टाइम मैनेज करना एक चैलेंज होता है. पहले बच्चा, फिर दोस्त, उस के बाद अपने लिए टाइम बचता है. कभीकभी थकान हो जाती है.’’

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पुरुषों के लिए स्थिति अलग 10 साल के बेटे के सिंगल पेरैंट अजय कहते हैं, ‘‘मेरी पत्नी के बजाय बेटे ने मेरे साथ रहना चुना. सिंगल पिता को महिलाएं ज्यादा विश्वसनीय डेटिंग औप्शन मानती हैं. मेरा बेटा मेरे साथ रहता है, इसलिए उन्हें लगता है कि मैं बहुत जिम्मेदार इंसान हूं. मेरा बेटा समझदार है. उसे नए लोगों से मिलने में कोई प्रौब्लम नहीं होती. वह हर जगह एडजस्ट कर लेता है. ‘‘मेरा रिलेशन लौंग टर्म चले या शौर्ट टर्म चले, मैं उन्हीं लोगों को बेटे से मिलवाता हूं जिन के बारे में मुझे पता होता है कि वे मेरे बेटे के साथ ठीक से रहेंगे. मेरी मां मेरे साथ रहती हैं, इसलिए मुझे किसी से मिलने बाहर भी जाना हो तो मेरे बेटे को देखने के लिए कोई घर पर होता है.

वैसे, मेरी प्राथमिकता काम पर से घर ही आने की होती है. मैं अपने बेटे के साथ कुछ समय बिताता हूं. साढ़े 9 बजे उस के सोने के बाद ही बाहर जाता हूं.’’ अजय कहते हैं, ‘‘सभी सिंगल पेरैंट्स को अपने बच्चों से खुली बात करनी चाहिए. बच्चे सवाल पूछते हैं. कुछ पेरैंट्स उन्हें चुप करा देते हैं. मैं यह कभी नहीं करता. वह चाहे कुछ भी पूछे, चाहे सैक्सुअलिटी पर ही, मैं जवाब देने की कोशिश जरूर करता हूं. जैसेजैसे बच्चे बड़े होते हैं, अपने आसपास बहुतकुछ देखते हैं. उन का सवाल पूछना स्वाभाविक है.

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बच्चों के साथ हैल्दी बात होने का माहौल रहना चाहिए. उन के साथ नम्र रहना चाहिए.’’ अंजलि ऐसी ही स्थिति से गुजरी हैं. कुछ साल पहले उन के बेटे ने पूछ लिया कि क्या वे किसी को डेट कर रही हैं? वे बताती हैं, ‘‘मेरी लाइफ में किसी के आने से वह खुद को इनसिक्योर समझने लगा. मुझे अजीब सी स्थिति से निबटना पड़ा. उसे समझना पड़ा कि किसी से मिलने, किसी के साथ मूवी जाने से मेरी लाइफ में उस का महत्त्व कम नहीं हो जाएगा. वह ही मेरी पहली प्राथमिकता रहेगा. अपने बच्चों से फ्रैंडली बात करने की आदत यहां बड़ी काम आई.’’

कई बार बच्चे खुद ही महसूस करने लगते हैं कि उन के पेरैंट्स के लिए कौन सही रहेगा. मोना बताती हैं, ‘‘मेरे सभी दोस्तों में मेरा बेटा अंदाजा लगा लेता है कि कौन मेरा अच्छा, सही दोस्त हो सकता है. जिन्हें मैं ने डेट किया, उन के बच्चों के साथ उन का कैसा संबंध रहा है, यह भी जानना जरूरी होता है. बच्चों का साथ होना आप को सिखा देता है कि लाइफ में क्या महत्त्व रखता है.’’

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आरती के अनुसार, बच्चों की जिम्मेदारी के चलते उन के सामने यह स्पष्ट था कि उन्हें लाइफ में अब क्या नहीं चाहिए. उस ने बताया, ‘‘जिस ने बच्चों को साइडलाइन करने की कोशिश की, उसे मैं ने साफसाफ न कहने में देर नहीं लगाई. जब आप अपने बच्चों की लाइफ, फ्यूचर, कैरियर के बारे में सोचते हो तो आप के सोचने का नजरिया कुछ और होता है. आप को लगता है कि किसी इडियट के साथ रहने से अच्छा है अकेले रहना.

सिंगल पेरैंट के लिए मेरी यही सलाह है कि भावनात्मक रूप से इनसिक्योर लोगों से दूर रहो. अपने इमोशंस, अपने बच्चों के इमोशंस और फिर तीसरे व्यक्ति के इमोशंस मैनेज करना बहुत मुश्किल है.’’

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