वर्षों पहले गीतकार संतोष आनंद ने फिल्म 'प्रेम रोग' में सवाल उठाया था, मोहब्बत है क्या चीज़ हम को बताओ. ये किस ने शुरू की हमें भी सुनाओ....’ आज तक इस सवाल का जवाब हमें नहीं मिला. तभी तो कई बार शादी के बाद भी इंसान किसी तीसरे के प्यार में पड़ जाता है. यह प्यार अचानक या किसी मकसद से या सोच समझ कर नहीं होता.
आज की व्यस्त दिनचर्या में वैसे भी इस तरह किसी तीसरे का मिलना आसान नहीं. मगर जब अनजाने ही कोई आंखों को भाने लगे तो दिल में कुछ उथलपुथल होने लग जाती है. इंसान धीरेधीरे अपने जीवन में उस तीसरे का भी आदी होने लगता है. मगर जब यह हकीकत जीवन साथी के सामने आए तो मामला उलझ सकता है.
तभी तो 18वीं सदी के मशहूर शायर मीर तक़ी मीर ने फ़रमाया था, "इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर है...
मीर ने इश्क़ को भारी पत्थर कहा तो 20वीं सदी के एक और शायर अकबर इलाहाबादी ने इसे कुछ ऐसे परिभाषित किया...
"इश्क़ नाज़ुक मिज़ाज है बेहद, अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता..."
जाहिर है यह प्यार किसी को भारी पत्थर लगा तो किसी को नाज़ुक मिज़ाज, किसी ने मोहब्बत में ख़ुदा देखा तो किसी को दुश्मन नजर आया.
मगर प्यार की हकीकत केवल शायराना अंदाज से नहीं समझी जा सकती. इस प्यार या इश्क के जज्बातों के पीछे कहीं न कहीं साइंस काम कर रहा है. दरअसल किसी के प्रति यह आकर्षण आप के दिमाग का केमिकल लोचा भर है. इसलिए इसे ले कर ज्यादा तनाव नहीं लेना चाहिए. मोहब्बत होती है तो खुद से हो जाती है और न होनी हो तो लाख कोशिशें करते रहिए छू कर भी न गुजरेगी आप को.