Writer- रोहित

लड़कियों को बचपन से ही आदर्श पत्नियों के रूप में खुद को डैवलप करने की शिक्षा दी जाती है. उन्हें सिखाया जाता है कि उन की आकांक्षा एक अच्छे आदमी के साथ जीवन गुजारने व एक खुशहाल व स्वस्थ परिवार का पालनपोषण करने की हो. यह सीख बचपन से उन्हें हर कदम पर दी जाती है.

दूसरी ओर लड़कों को सिखाया जाता है कि परिवार में एक सुशील दुलहन लाना, बेटा पैदा कर के घर का वंश आगे बढ़ाना और अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभाना उन का कर्तव्य है. इस प्रकार शादी करना और बच्चे पैदा करना ही किसी भी युवा पुरुष या महिला की चैकलिस्ट में 2 सब से जरूरी काम होते हैं.

तीसरा होता है पारिवारिक जीवन को किसी भी हाल में बनाए रखना और अपने रिश्ते को सफल बनाना. भारतीय परंपरा में मैरिज को एक पवित्र संस्था माना जाता है. आप वादा करते हैं 7 जन्मों का रिश्ता निभाएंगे. महिला के दिमाग में, खासकर, यह बात कूटकूट कर डाली जाती है कि ‘भला है, बुरा है, जैसा भी है, मेरा पति मेरा देवता है.’

पर सोचा है, अगर महिला सबकुछ न सह कर पति को अपना देवता न माने? क्या होता है जब शादी विफल हो जाती है? खासकर तब, जब आप न सिर्फ पतिपत्नी हों, बल्कि मातापिता भी बन चुके हों. बात आती है कि यदि अलग हो जाएं तो कहीं बच्चों पर बुरा असर तो नहीं पड़ेगा और यदि न पड़े तो क्या बच्चों के लिए एक लवलैस रिलेशनशिप में बंधे रहें?

हाल ही में नैटफ्लिक्स पर ‘डीकपल्ड’ नाम की एक वैब सीरीज आई. इस में लगभग मिडिल एज के हो चुके शादीशुदा कपल अब डीकपल्ड (विवाह विच्छेद) होने की राह पर हैं. वे एकदूसरे के साथ टौक्सिक रिलेशन से तंग आ चुके हैं, तलाक लेना चाहते हैं. उन्हें इस बात का न दुख है न किसी प्रकार की पीड़ा. वे खुशीखुशी अपने रिश्ते को पब्लिकली खत्म कर देना चाहते हैं. बस, दिक्कत है तो उन की टीनऐजर बेटी, जिस का उन्हें डर है कि वह अपने पेरैंट्स को इस तरह अलग होते देखेगी तो उस पर क्या बीतेगी.

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यह कई लोगों के लिए एक मुश्किल सवाल हो सकता है, खासकर ऐसे समाज में जहां हम बच्चों को हर चीज से अधिक प्राथमिकता देते हैं. जहां बच्चे हो जाने के बाद हम खुद को पहले मातापिता मानते हैं और फिर जीवनसाथी या व्यक्ति, जिस का एक अर्थ यह भी है कि बहुत से पुरुष और महिलाएं अपने बच्चों की खातिर टौक्सिक मैरिज रिलेशनशिप ?ोलते रहते हैं, ताकि उन्हें पारिवारिक दिशानिर्देशों का पालन करते हुए अच्छी परवरिश दी जा सके, जिस का तथाकथित सिर्फ एक तरीका है कि एक छत के नीचे रह कर अपने बच्चे की परवरिश की जाए.

माना कि मातापिता का तलाक होना बच्चों के लिए एक खराब अनुभव होता है. किसी भी बच्चे के लिए अपने मातापिता को अलग होते देखना पीड़ादायक होता है. जैसे एक शोध में पाया गया है कि अपने मातापिता के अलग होने के समय

7 से 14 साल की उम्र के नाबालिगों में 16 प्रतिशत इमोशनल प्रौब्लम्स की वृद्धि हुई, पर क्या एक खराब शादी में जिंदगीभर फंसना इस का समाधान है?

देहरादून की रहने वाली 40 वर्षीया आरती रावत (बदला नाम) अपने 3 टीनऐजर बच्चों के साथ पिछले 4 साल से अकेली रह रही है. शादी के कुछ सालों बाद ही आरती की अपने पति के साथ अनबन होने लगी. आरती का पति दारू और जुए की लत का ऐसा

आदी हुआ कि कभी उबर न पाया. चलताफिरता काम भी इस चक्कर में डूब गया. रोजरोज घर में ?ागड़ाफसाद, पति का नशा कर के गली में होहल्ला मचाना, आरती से मारपीट करना बरदाश्त के बाहर होने लगा. घरखर्च चलाने के लिए आरती को डोमैस्टिक वर्कर का काम करना पड़ा.

लेकिन ‘शादी संस्था की पवित्रता’ और बच्चों की खातिर आरती यह सब सहती रही. उन के रिश्ते में न तो

किसी प्रकार की इंटिमेसी रह गई थी, न विश्वास और न फीलिंग्स. बिस्तर दूरियां कम कर पाए, ऐसा भी माहौल एक समय के बाद बन नहीं पाया. सबकुछ बस, एक ढर्रे से चलता रहा. शादी बस, निभानाभर रह गई, पारिवारिक भाव खत्म हो गए. रोजरोज के ?ागड़ों ने उन के बच्चों पर बुरा असर डालना शुरू कर दिया. वे चिड़चिड़े होने लगे.

फिर एकाएक 4 साल पहले आरती का पति सबकुछ छोड़छाड़ पहले तो हरिद्वार चला गया, फिर वहां से कोटद्वार शहर चला गया. पति के छोड़ कर जाने के बावजूद आज भी आरती इसी बात से आश्वस्त है कि वह एक शादीशुदा जीवन में रह रही है. इस कारण न तो वह कोई दूसरी शादी कर पा रही है और न ही इस उम्र में सोच रही है.

जाहिर है कि जब एक जोड़ा खराब रिश्ते को निभाने का फैसला करता है तो वे वास्तव में व्यक्तिगत खुशी का त्याग करते हैं. वे लगातार एकदूसरे के प्रति दुश्मनी महसूस करते हैं. इस के अलावा, आप कल्पना करें कि एक बच्चा उन

2 लोगों को देख रहा है जो उसे सब से ज्यादा प्यार करते हैं, जो लगातार असंतुष्ट और एकदूसरे के साथ लगातार ?ागड़ रहे हैं. यह एक बच्चे को किस तरह प्रभावित कर सकता है, इस की गणना नहीं की जा सकती?

साथ ही क्या यह हकीकत नहीं कि अपने शुरुआती सालों में बच्चे अपने मातापिता को देख कर अपने एडल्ट रिलेशनशिप की समझ विकसित करते हैं. संभव है कि वे यह सम?ा सकते हैं कि शादीशुदा जोड़ों के लिए लगातार लड़ना या एकदूसरे के साथ संवाद नहीं करना या बिस्तर सा?ा नहीं करना सामान्य बात है. क्या यह सम?ा बच्चे को बड़े होने पर और भविष्य में उन की अपनी शादी को प्रभावित नहीं करेगी?

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इस के अलावा बच्चों की को-पेरैंटिंग का मतलब यह नहीं कि मातापिता के बीच यह अनुबंध है कि वे एकसाथ ही रहें. को-पेरैंटिंग का मतलब होता है कि अपने बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी सा?ा करना. इसे आप अलगअलग रह कर भी कर सकते हैं. अगर तलाक आप को मानसिक शांति व खुशी देता है तो भी यह आप को एक बेहतर मातापिता बना देगा? जाहिर है एक दुखी महिला या पुरुष पतिपत्नी रहने की जगह अलगअलग बढि़या अच्छे, सुखी मातापिता बन कर बच्चों को ज्यादा खुशी दे सकते हैं.

विवाहित जीवन, अच्छा घरपरिवार, बच्चे, यकीनन यह सब जीवन का हिस्सा हैं, मगर जरूरी नहीं हैं कि लाइफ में सबकुछ परफैक्ट है. यदि आप एक ऐसी शादी में हैं जो अनहैल्दी है या टौक्सिक है तो इस से छुटकारा पाना ही बेहतर है, क्योंकि मातापिता के आपसी संबंध यदि हैल्दी न हों तो बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है. लगभग 13 फीसदी बच्चे एंग्जाइटी के शिकार होते हैं यदि उन के आसपास का वातावरण अनहैल्दी हो. यदि ऐसी स्थिति बनती है तो ऐसे में यहां कुछ टिप्स हैं जो आप को टौक्सिक रिलेशन से निकलने में मदद करेंगे और बच्चे को स्वस्थ माहौल दे पाएंगे.

  • विवाह विच्छेद करना आसान नहीं है.
  • महिलाओं के लिए, यह काफी जटिल होता है.
  • जरूरी है कि महिला खुद को फिजिकली, मैंटली और फाइनैंशियली मजबूत बनाए. इस से उसे निर्णय लेने में आसानी रहेगी और वह अपने दम पर अपने बच्चों की परवरिश का जिम्मा उठा सकेगी.
  • जरूरी यह भी है कि बच्चे अगर टीनऐजर हैं और आप विवाह विच्छेद करना चाहते हैं तो उन्हें इस बारे में बताएं.
  • जरूरी नहीं कि पूरी डिटेल में बात की जाए लेकिन मूल जानकारी पता चल जाए.
  • इस के अलावा कोशिश करें कि बच्चों के हर संभव सवालों का उपयुक्त जवाब दें.
  • बच्चों को यह न लगे कि उन्हें इस बारे में कुछ नहीं पता.
  • बच्चों की परवरिश के बारे में होमवर्क करें.
  • कैसे इस स्थिति को मैनेज किया
  • जा सकता है, जानकारों से गाइडैंस अवश्य लें.
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