आप सबने चैट जीपीटी का नाम तो सुना ही होगा, बल्कि उम्मीद है कि अब तक एकाध बार इस्तेमाल भी कर लिया होगा.कोई रैसिपी पूछिए, कोई बुक की रिकमेंडेशन या फिर कहीं पर्यटन के लिए सुझाव मांगिए, तुरंत जवाब दे देगा. बढ़िया है न!
वाकई एकदो पंक्तियों वाले आसान से सवाल से लेकर देशदुनिया की तमाम बड़ी खबरों के बारे में विस्तार से जवाब देने में सक्षम है यह चैटबोट. इतना ही नहीं, चैटजीपीटी चैटबोट ने पिछले दिनों एमबीए, मैडिकल और लौके एग्जाम भी पास किए हैं. आलम यह रहा कि लौंच होने के 5 दिनों के भीतर ही चैट जीपीटी के 10 लाख यूजर्स बन गए थे और महज2 महीने में ही यह आंकड़ा 100 मिलियन तक पहुंच गया.
इसकी तुलना यदि इंस्टाग्राम और टिकटौक से करें जहां100 मिलियन यूजर्स बनाने में इन्हें क्रमशः ढाई साल और 9 महीने का वक्त लगा था, तब इसकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाना आसान होगा. आंकड़े बताते हैं, जनवरी महीने में हर दिन औसतन 13 मिलियन लोग इससे जुड़े थे.
सच कहें तो इसे लेकर इंटरनैट जगत में हंगामासा मचा है. इस टैक्नोलौजी की क्षमता से हर कोई प्रभावित है. सबके मन में सवालों और आशंकाओं की झड़ी भी लगी है. कोई इसे इंसानों के लिए उपयोगी बता रहा है तोकई हैं जिन्हें इसमें कुछ खास नहीं दिखरहा और कुछ लोग तो इसे मानव के लिए कई तरह के खतरों की घंटी मान रहे हैं. फिलहाल हम समझते हैं कि है क्या बला यह? आखिरक्योंखबरों में छाया है चैट जीपीटी?
चैट जीपीटी की कुछ खास बातें
चैट जीपीटी,दरअसल, एक आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस टूल है जो यूजर्स के सवालों का लिखित और लगभग सटीक जवाब देता है. चैट मतलब बातचीत और जीपीटी का फुलफौर्म है जेनरेटिव परट्रेंड ट्रांसफौर्मर. यानी, ऐसी मशीन जो प्रशिक्षित हैसवालों को सुनकर उन्हें मशीनी भाषा से आम बोलचाल की भाषा में प्रवर्तित करके जवाब देने के लिए.
मसलन, यह चैटबोट आपको जटिल लेकिन लजीज रैसिपी समझा सकता है. औरतोऔर, इसी रैसिपी का नया वर्जन भी तुरंत क्रिएट कर सकता है. बस इतना ही नहीं, यह चैटबोट आप की निजी समस्याओं पर भी सलाह दे सकता है, नौकरी ढूंढने में मदद कर सकता है, कविताएं, अकादमिक पेपर और यहां तक कि खास दोस्तों को खतलिखने में भी मदद कर सकता है.कोई गेम डैवलप करना हो, व्यापार के लिए मार्केटिंग प्लान बनाना हो,देशदुनिया से संबंधित जानकारी चाहिए,पलक झपकते ही सब हाजिर.
जवाब से संतुष्ट न हों या फिर इससे संबंधित कुछ और जिज्ञासाएं हैं तब, बस, सवाल पूछ डालिए, जवाब देने को तैयार है चैट जीपीटी.यह अपनी गलतियों को स्वीकारता भी है, अनुचित अनुरोधों का जवाब देने से बचता भी है. उदहारण के तौर पर, महिलाओं पर चुटकुले बनाने संबंधी सवाल पर पर उसका जवाब होता है, “माफ करिए, मैं ऐसे चुटकुले सुनाने में असमर्थ हूं जिन्हें आपत्तिजनक या अनुचित माना जा सकता है.क्या कोई और चीज है जिसमें मैं आपकी मदद कर सकता हूं?”
कुछ ही सैकंड में एक पूरा निबंध या कंप्यूटर कोड लिख देने वाली ऐसी जादुईसी चीज के असीम ज्ञान और रचनात्मक एवं तार्किक बातचीत करने में सक्षमता ने ही इसे बहुत ही कम समय में लोगों के मध्य लोकप्रिय बना दिया है.अभी हालिया रिलीज हुए नए वर्जन जीपीटी-4 इमेज इनपुट को भी प्रोसैस करने में सक्षम है, अर्थात किसी चित्र को दिखा कर भी सवाल के जवाब मांगने की सुविधा है और इसके पुराने मौडल जीपीटी-3.5 की तुलना में ज्यादा सटीक जानकारी देने वाला और यूजर्स के साथ लंबी बातचीत करने में सक्षम बताया गया है.निसंदेह अभी तक के इंटरनैट इतिहास में यह अपने अलग तरीके का ही ऐप है जिसे ओपन एआई नाम की कंपनी ने साल 2015 में विकसित किया था.
गूगल से कैसे है अलग
गूगल से हम सब परिचित हैं.उसमें किसी भी तरह के प्रश्न पूछे जाने पर हमें उस प्रश्न से संबंधितवैबसाइट की लिंक दिखाई जाती है,परंतु चैट जीपीटी वैबसाइट के लिंक के बजाय उन प्रश्नों का उत्तर आपको लिख कर विस्तारपूर्वक देता है. यदि आप उस उत्तर से संतुष्ट नहीं हैं तो पूछने पर वह लगातार अपने रिजल्ट अपडेट करके और अधिक विस्तारपूर्वक जानकारी देता है जिससे कि आप संतुष्ट हो सकें.
खतरे की घंटी
जब बात एआई की होती है तब जेहन में सबसे पहला डर आता है मानवों के रिप्लेसमैंट का, यानी नौकरियों के जाने का. चैट जीपीटी को लेकर भी ऐसी ही कई आशंकाएं हैं. अगर यह सबकुछ कर लेगा तब हमारी नौकरी का क्या होगा? चिकित्सा और शिक्षण में भी कुछ नौकरियां खतरे में हैं. कुछ एक्सपर्ट्स ने चिंता भी जताई है कि चैटजीपीटी से इंसानों की नौकरियां ख़त्म हो सकती हैं, खासकर उन नौकरियों में जिन में शब्दों और वाक्यों पर निर्भरता है, जैसे कि पत्रकारिता. अगर सिस्टम और बेहतर हुआ तो पत्रकारों की नौकरियां कम होंगी और संभवतया एक समय ऐसा भी आ सकता है जब उनकी जरूरत ही न पड़ेगी क्योंकि हर आर्टिकल चैटबोट ही लिख देगा.
चैटजीपीटी की कोड लिखने की क्षमता एक और सैक्टर पर सवाल खड़ा कर सकती है और वह सैक्टर है- कंप्यूटर प्रोग्रामिंग.अगर एआई प्रोग्रामर के 80 प्रतिशत काम कर सकता है, तो निसंदेह लोग अपने जौब को लेकर खतरा महसूस कर सकते हैं. एक और क्षेत्र जिसमें सर्वाधिक चिंता है, वह है शिक्षक.बच्चों द्वारा धड़ल्ले से इसका उपयोग असाइनमैंट पूरा करने में किए जाने के बाद इसे कई जगह बैन करने की नौबत आ गई.लोगों का कहना है कि बच्चों में नकल करने की आदत बढ़ सकती है और नई चीजें सीखने पर उनका जोर घट सकता है.
कुछ विशेषज्ञ विचारों के मशीनीकरण होने को लेकर भी आशंकित हैं. यह दुनिया को समझने के तरीके को पलट देने जैसा है. इतना सुविधाजनक टूल के आने के बाद क्या मानवों में क्रिएटिव होने की प्रवृत्ति कम नहीं होगी?
चैट जीपीटीजैसे एडवांस्ड एआई को लेकर कई नैतिक और कानूनी चिंताएं भी जताई जा रही हैं. साइबर क्राइम से लेकर अफवाहें फैलाने तक का रिस्क जताया जा रहा है.
चैट जीपीटी की खामियां
सवाल है कि क्या वास्तव में एआई बेस्ड टूल चैट जीपीटी द्वारा बताए गए नतीजों पर हम पूरी तरह भरोसा कर सकते हैं? आइए देखते हैंशोधकर्ताओं का इस संबंध में क्या कहना है:
*यह टूल अभी हर तरह के सवालों का जवाब देने के लिए सक्षम नहीं है, जैसे साल 2023 की किसी जानकारी के बारे में पूछने पर यह उसका उत्तर नहीं दे पाता है.
*अभी यह टूल हर प्रकार की इमेज या वीडियो नहीं बना सकता है.
* भाषापर अभी भी इस की कमजोर पकड़ है. यह टूल अभी हर भाषा में जवाब देने के लिए सक्षम नहीं है.
*इसके द्वारा दिया गया जवाब 100 प्रतिशत सटीक नहीं है. इसके द्वारा दिए गए जवाब पर निर्भर नहीं रहा जा सकता बल्कि इसके जवाबों को केवल सुझाव के तौर पर लेना ज्यादा अच्छा रहेगा.
*चैट जीपीटीने कई सवालों के गलत और निरर्थक जवाब भी दिए. विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें सुधार की बहुत गुंजाइश है.
*कई लोग इसकी आलोचना इस आधार पर भी करते हैं कि चैट जीपीटीका फोकस एल्गोरिदम का इस्तेमाल कर वाक्य को बेहतरीन तरीके से लिखने पर है. कुछ लोगों ने तो इसे ‘स्टोचैस्टिक तोता’ तक कहा है, यानी, बिना कुछ सोचेसमझे बोलने वाला प्राणी जो शब्दों को खास अंदाज में एकसाथ पिरोने से ज्यादा कुछ नहीं करता.
*शोधकर्ताओं ने पाया है कि चैट जीपीटीगणितीय गणनाओं के साथ भी संघर्षकरता है.
*फटाफट उत्तर पाने के लिए और नए वर्जन का उपयोग करने के लिए अच्छीखासी रकम का भुगतान भी करना होगा. मुफ्त वर्जन उपयोग करने पर आपको उत्तर के लिए इंतजार करना पड़ सकता है.
चैट जीपीटी के निर्माता सैम आल्टमैन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि यह काम जितना आसान दिखता है,उतना है नहीं. इसे हासिल करने में अभी और समय लगेगा. इंजीनियर दिनरात इसे स्मार्ट बनाने में लगे हुए हैं.
आप क्या सोच रहे हैं? क्या चैट जीपीटी वाकई खतरा है और आने वाले दिनों में क्या हम इसके गुलाम बनने वाले हैं या फिर इसके विपरीत आप इसे एक ऐसा उपकरण मान रहे हैं जो मानव की क्षमताओं को बढ़ाने में सहायता करेगा?शोधकर्ताओं के भी ऐसे ही भिन्नभिन्न मत हैं.
इसे खतरा मानने वाले वर्ग का कहना है कि इंसानों की काबिलीयत से होड़ करने वाले ये सिस्टम खतरनाक साबित हो सकते हैं. अभी हमारा समाज ऐसे बदलावों के लिए तैयार नहीं है. क्या गारंटी है कि इनका केवल पौजिटिव ही असर होगा और इनसे जो रिस्क हैं क्या उन्हें मैनेज करना हमारे लिए संभव है?
दूसरे वर्ग का कहना है कि एआई कोई नई चीज नहीं है. 90 के दशक से हम इससे परिचित हैं और ये मानवों की कार्यक्षमता को बढ़ाने में ही सहायक हुए हैं. यह सही है कि यह इंसानों से ज्यादा तेजी से सोच सकता है, रिऐक्टिव होता है और इंटैलीजैंट भी. पर सचाई यह है कि यह इंसानों द्वारा ही दिए गए इनपुट और सुधारों के बगैर बिना काम का है.
इसे कैलकुलेटर के उदहारण से समझा जा सकता है. जिस तरह कैलकुलेटर के आने से गणित पढ़ाने का तरीका बदला है,उसी तरह एआई से शिक्षक के क्षेत्र में भी नए सुधार की संभावना बनती है. साइंटिफिक रिसर्च जैसी फील्ड में शामिल कर शायद हम वह हासिल करें जो अभी नामुमकिन सा प्रतीत होता है. इसे बनाने वाली ओपन एआई कंपनी की वैबसाइट के मुताबिक भी इसका मिशन यह तय करना है कि आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस को पूरी मानवता के लिए फायदेमंद बनाया जाए, न कि इससे कोई क्षति हो.
निसंदेह अभी कुछ कहना जल्दबाजी है, पर हां, सरकारों और कंपनियों को इस दिशा में सोचसमझ कर कदम आगे बढ़ाने होंगे ताकि इस तकनीक का मानव जाति की सोचने की क्षमता,आजीविका आदि पर बुरा प्रभाव न पड़े.