8 साल का अंकुर हर चीज के लिए जिद कर बैठता और वही काम करता, जिस काम के लिए उसे मना किया जाता. स्कूल से भी आएदिन उस की शिकायतें आती रहतीं. कभी किसी बच्चे को मारता, तो कभी किसी बच्चे के लंचबौक्स से नाश्ता चुरा कर खा लेता.
सजा के तौर पर जब उसे क्लास से बाहर निकाल दिया जाता, तो अपनी गलती मानने के बजाय वह खेलने लग जाता. जब स्कूल में बुला कर प्रिंसिपल उस की शिकायत करतीं तब इस बात के लिए उस के मांपापा को काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी.
डांट कर, मार कर कई तरीकों से उसे समझाया गया, वह तो दिनप्रतिदिन और भी जिद्दी होता जा रहा था. जब उस पर और सख्ती की जाती, तो वह चीखनेचिल्लाने लगता. घर का सामान उठाउठा कर फेंकने लगता था. अब तो एक और बात सीख ली थी उस ने. चाकू उठा कर अपने हाथ की नसें काटने लगता जब उसे किसी काम को करने से रोका जाता या उस की जिद पूरी नहीं की जातीं तब. डराता था अपने मातापिता को कि वह आत्महत्या कर लेगा.
वहीं 6 साल के दक्ष का भी यही हाल है. उस की मां कहती है कि वह इतना ढीठ बन चुका है कि अब उस पर न तो बातों का और न ही मार का कोई असर होता है. उस के पापा दूसरे शहर में रहते हैं, इसलिए वह बेटे पर ज्यादा सख्ती नहीं बरतती और शायद इसीलिए वह इतना ढीठ और बदतमीज हो गया है.
यह सिर्फ अंकुर और दक्ष के मातापिता की समस्या नहीं है, बल्कि हर मातापिता को कभी न कभी अपने बच्चों के जिद्दी स्वभाव का सामना करना ही पड़ता है. जिद्दी बच्चे को संभालना पेरैंट्स के लिए सब से बड़ी चुनौती बन जाती है. ऐसे में कई मातापिता झुंझलाहट से भर उठते हैं और गुस्से में वे अपने बच्चे पर हाथ उठाते हैं, लेकिन इस से स्थिति और बिगड़ जाती है.
पेरैंट्स की गलतियां दिनप्रतिदिन भारी पड़ती चली जाती हैं और बच्चा पूरी तरह से मातापिता के नियंत्रण से बाहर हो जाता है.
बच्चों को नहीं समझते पेरैंट्स
एक शोध के अनुसार, 91 प्रतिशत पेरैंट्स अपने बच्चों को समझ नहीं पाते, जिस से उन के और बच्चों के बीच एक गैप आ जाता है और बच्चों का रवैया जिद्दी व उद्दंड होता चला जाता है. वे बदतमीज, दुखदाई बनने लगते हैं. यहां दोष मातापिता का भी है, क्योंकि वे अपने बच्चों की छोटीमोटी बातों को सुनतेसमझते नहीं, बल्कि बच्चा समझ कर उस की बातों की अनसुना कर देते हैं जिस से बच्चे को लगने लगता है मातापिता उस से प्यार नहीं करते. जिस तरह मातापिता बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल करते हैं, उसी तरह उन्हें उन की बातों, भावनाओं को समझना है. बच्चों की शैक्षणिक शिक्षा, सेहत की देखभाल के साथसाथ उन्हें नैतिक शिक्षा, अनुशासन, सही व्यवहार, सहीगलत में अंतर जैसे पहलुओं से अवगत कराना भी है.
आइए, जानते हैं कि जिद्दी बच्चों की परवरिश कैसे करें कि वे समझदार बन सकें.
तर्क सिखाइए : सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बच्चों को तर्क का महत्त्व सिखाना. हम कहते हैं इसलिए ऐसा करो की जगह ऐसा करना ही ठीक है, समझाइए. हमारे समाज में लकीरों को पीटने की शिक्षा दी जाती है और कोई कार्य क्यों किया जाए या न किया जाए, यह न जानने की कोशिश करते हैं, न समझने की, न ही समझाने की. बच्चों को सही राह दिखाने के लिए उन की तर्कशक्ति बढ़ाएं. वे क्यों का उत्तर देना सीखें.
शिष्टाचार : मातापिता को शिष्टाचार विशेषरूप से पहले खुद सीखने की जरूरत है, क्योंकि बच्चे जैसा अपने पेरैंट्स को करते देखते हैं वैसा ही वे दोहराते हैं. इसलिए बच्चों के सामने कभी कोई ऐसी बात न कहें जो शिष्टता से परे हो और बच्चों के सामने कभी अपना गुस्सा प्रदर्शित न करें.
दूर रखना : जहां तक हो अपने बच्चे को ऐसे इंसानों से दूर रखें, जिन्हें अपने गुस्से पर कंट्रोल नहीं रहता और जिन्हें बात करने का सलीका न आता हो. थोड़ीबहुत शरारत करना बच्चों का स्वभाव होता है. इस के लिए उन्हें किसी भी प्रकार का शारीरिक दंड न दें, नहीं तो वे और उद्दंड हो जाएंगे. मातापिता का अटैंशन पाने के लिए कभीकभार बच्चा झूठा गुस्सा दिखाने लगता है, तो उस के बदले व्यवहार को समझें और प्यार से उसे समझाएं.
गुस्सा : कोईकोई बच्चा बहुत जिद्दी और आक्रामक होता है. गुस्सा हर वक्त उस की नाक पर सवार होता है, तो ऐसे बच्चे को कंट्रोल कर के रखें, नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि वह किसी और को नुकसान पहुंचा दे. बच्चों के प्रति अपना प्यार दर्शाते रहें.
उन्हें सुनें, बहस न करें : अगर आप चाहते हैं कि आप का बच्चा आप को सुने, आप की बात माने, तो पहले खुद आप को उस की बात ध्यान से सुननी होगी. मजबूत इच्छाशक्ति वाले बच्चों की राय बहुत मजबूत होती है और कई बार वे अपने पेरैंट्स से बहस करने लगते हैं. अगर आप उन की बातें नहीं सुनेंगे तो वे और जिद्दी बन जाएंगे. अगर बच्चे को यह लगने लगता है कि उस की बातों को महत्त्व नहीं दिया जा रहा है, तो वह धीरेधीरे आप की हर बात को दरकिनार करना शुरू कर देगा.
जबरदस्ती न करें : जब आप बच्चों के साथ किसी भी चीज को ले कर जबरदस्ती करते हैं, तो वे स्वभाव से विद्रोही बनते जाते हैं. उस समय तो जबरदस्ती करने से आप को उस समस्या का अस्थायी समाधान मिल जाता है, लेकिन आगे के लिए खतरनाक होता चला जाता है. बच्चों के साथ जबदरस्ती करने से वे वही करते हैं जिस बात के लिए उन्हें रोका जाता है. जहां तक हो सके आप अपने बच्चों के साथ कनैक्ट होने की कोशिश करें. जब बच्चा टीवी देखने की जिद करे, तो उसे मना करने के बजाय इस चीज की दिलचस्पी दिखाएं और कहें कि चलो, साथ बैठ कर टीवी देखते हैं. जब आप बच्चों की चीजों में दिलचस्पी दिखाएंगे, तो वे आप के प्रति और ज्यादा जवाबदेह बनते जाएंगे.
बच्चे को विकल्प दीजिए : बच्चों का अपना दिमाग होता है और वे वही करते हैं जो उन का दिमाग उसे करने को कहता है. अगर आप बच्चे को कहेंगी कि वह 9 बजे तक बैड पर चला जाए, तो इस बात में कोई शक नहीं कि वह आप की बात को अनसुना कर खेलता या टीवी ही देखता रहे. इसलिए आदेश देने के बजाय, बच्चे को विकल्प दें. उन से पूछें कि आज वह कौन सी कहानी सुनना पसंद करेगा. अगर इस पर भी बच्चा रिऐक्ट न करे, तो धैर्य न खोएं, उसे प्यार से समझाएं, वह जरूर मान जाएगा.
शांत रहें : अगर आप हर बात पर अपने बच्चे पर चिलाएंगी, तो शायद डरने के बजाय वह पलटवार करे और वह भी आप से उसी अंदाज में बात करे. बच्चे को सुधारने से पहले अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखना सीखें. आप बड़े हैं, इसलिए बच्चों की तरह बरताव न करें. याद रखें कि प्यार से आप को जिद्दी बच्चे को सही राह पर लाना है, न कि खुद भी भटक जाना है.
बच्चों का सम्मान करें : अगर आप चाहते हैं कि आप के बच्चे आप के फैसले का सम्मान करें, तो आप को भी उन का सम्मान करना होगा. उन से सहयोग मांगें, न कि आदेश दें. बच्चों की भावनाओं और विचारों को सुनें, तुरंत खारिज न कर दें.
उन के साथ काम करें : यह भी सच है कि जिद्दी बच्चे या अडि़यल रवैए वाले बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं और वे इस बात को बहुत गहराई से महसूस करते हैं कि आप उन के साथ कैसा बरताव करते हैं. इसलिए अपनी टोन, बौडी लैंग्वेज, अपने शब्दों को ले कर खास सावधानी बरतें. जब बच्चों को मातापिता का व्यवहार अच्छा नहीं लगता, तो वे खुद को बचाने के लिए वैसी ही भाषा का उपयोग करने लगते हैं. मतलब, बच्चे विद्रोही हो जाते हैं. बच्चों से काम डांटडपट कर नहीं, बल्कि प्यार से, मजेदार तरीके से करवाएं. ऐसे तरीके कारगर साबित होते हैं.
बाजी : कई बार अपने बच्चों के साथ समझौता करना भी जरूरी होता है. जब बच्चों को अपने पसंद की चीजें नहीं मिलतीं, तो वे जिद करने लगते हैं वही चीज पाने को. लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि आप उन की हर मांग को मान लें. सूझबूझ और व्यावहारिक हल निकालें. उदाहरण के तौर पर, उस से कहें कि ठीक है तुम कुछ देर बाद सोना, थोड़ी देर और खेल सकते हो.
टीचर को दोष न दें : अकसर पेरैंट्स बच्चे के अडि़यल और ढीठ स्वभाव के लिए स्कूलटीचर को भी कठघरे में खड़ा कर देते हैं. इस बात को समझें कि बच्चे के ऐसे व्यवहार के लिए पूरी तरह से टीचर ही दोषी नहीं है, बल्कि आप भी जिम्मेदार हैं. अगर आप चाहें तो टीचर से मिल कर बच्चे को सुधारने के टिप्स ले सकते हैं. ऐसे बच्चे को फिजिकल ऐक्टिविटी व अन्य शार्पमाइंड गेम्स में डालें ताकि वह बिजी रहे और गलतसलत जिद न करे.
बच्चा जो कुछ सीखता है यहां ही, अपने परिवार, दोस्तों से सीखता है. इसलिए बच्चे की गलती पर, बिना कोई कठोर दंड दिए उसे प्यारे से सभ्य, शिष्ट, और अनुशासित बनाएं. यह मातापिता और शिक्षक पर निर्भर करता है कि वे बच्चे को कैसे शिष्ट बनाएं.
ऐसे में बाल मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि दृढ़ संकल्प और जिद्दीपन के बीच के अंतर को समझें. दृढ़ संकल्प का अर्थ उद्देश्य की दृढ़ता है. जिद्दीपन को कुछ करने या विशेष तरीके से कार्य करने के लिए एक दृढ़ संकल्प के रूप में परिभाषित किया जाता है. जिद्दीपन से किसी बाहरी दबाव के बावजूद किसी के विचार, व्यवहार या कार्यों को बदलने से इनकार कर दिया जाता है. बच्चों का जिद्दीपन आनुवंशिक भी हो सकता है.