आशीष और मधु के बेटे राहुल को 4 वर्ष की उम्र में ब्लड कैंसर डिटैक्ट हुआ. राहुल उन का इकलौता बेटा था, लिहाजा उस के इलाज में आशीष कोई कोताही नहीं बरतना चाहते थे. वे राहुल को अमेरिका ले गए जहां उस का लंबा उपचार चला. कीमोथेरैपी के जरिए ट्रीटमैंट हुआ और करीब 6 साल में राहुल कैंसर से पूरी तरह मुक्त हो गया. आशीष और मधु ने राहत की सांस ली और भारत वापस लौट आए.

आशीष का घर गुड़गांव में था. यहां राहुल का एक स्कूल में एडमिशन हो गया. कुछ ही महीने गुजरे होंगे कि राहुल को सांस लेने में कठिनाई होने लगी. वह अन्य बच्चों के साथ प्लेग्राउंड में खेलता तो उस की सांस चढ़ जाती थी. कभी आशीष उस को स्कूल से घर ला रहे होते और उन की कार जाम में फंस जाती तो उस वक्त राहुल की हालत बिगड़ जाती थी. वह बेचैन होने लगता था और जल्दी जाम से निकलने के लिए पिता से जिद करता था.

अमेरिका से लौटने के बाद राहुल के व्यवहार में यह परिवर्तन बहुत तेजी से हो रहे थे. वह बाहर सड़क पर साइक्लिंग नहीं करना चाहता था. सामने पार्क में खेलने नहीं जाना चाहता था. जबकि अमेरिका में वह अपने पिता के साथ साइक्लिंग करता था और दोस्तों के साथ खूब खेलता था.

आशीष और मधु अपने बेटे को ले कर डाक्टर के पास गए. विस्तार से सारे लक्षण उन्हें बताए. डाक्टर ने राहुल से भी कुछ सवाल किए और निष्कर्ष यह निकला कि गुड़गांव और दिल्ली की प्रदूषित हवा राहुल को रास नहीं आ रही है. वह अस्थमा यानी दमा का मरीज हो गया है. कुछ दवाइयां और इन्हेलर के इस्तेमाल की सलाह के साथ डाक्टर ने आशीष से कहा कि अगर आप अपने बच्चे की सलामती चाहते हैं तो किसी पहाड़ी क्षेत्र, जहां आबादी और प्रदूषण कम हो, में इस को ले जा कर रहें.

आशीष और मधु अपने बेटे के जीवन की खातिर अब अमेरिका में ही बसने का मन बना चुके हैं. आशीष कहते हैं, वहां राहुल का ट्रीटमैंट भी चल रहा था और वह एक स्कूल में पढ़ भी रहा था. वहां वह बिलकुल नौर्मल था. खेलता था. बच्चों के साथ पिकनिक पर जाता था. मेरे साथ वीकैंड पर साइक्लिंग किया करता था. उस को वहां सांस फूलने की तकलीफ कभी नहीं हुई. लेकिन इंडिया आने के बाद वह बहुत विचलित रहता है जैसे कोई उस को जकड़े हुए है.

आशीष अमीर परिवार से ताल्लुक रखते हैं, लिहाजा अपने बेटे को विदेश ले जा सकते हैं, एक अच्छा और साफ माहौल दे सकते हैं मगर भारत की 80 फीसदी जनता इसी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है. हर तरफ फैली गंदगी और बीमारी ही उस की नियति है.

आप को यह जान कर हैरानी होगी कि अस्थमा यानी दमा के कारण दुनियाभर में होने वाली मौतों में से 42 फीसदी मौतें भारत में होती हैं. इस की मुख्य वजह है प्रदूषित वायु जो सांस के जरिए हम निरंतर अपने फेफड़ों में भर रहे हैं. वायु प्रदूषण में फैक्टरी उत्सर्जन, गाड़ियों का धुंआ, पराली और जंगल की आग का धुआं, कूड़े के पहाड़ों और कचरे से उत्पन्न बदबू, नालियों और सीवर की सड़ांध और बहुतकुछ शामिल है. धूल-मिट्टी के महीन कण एलर्जी और अस्थमा के दौरे का कारण बनते हैं. वायु प्रदूषण से अस्थमा ही नहीं, बल्कि फेफड़ों की अन्य बीमारियां भी होती हैं, जिन में फेफड़े का कैंसर प्रमुख है. अस्थमा एक लंबी चलने वाली यानी क्रोनिक बीमारी है. यह सांस की नाली संकरी हो जाने, धुल, धुएं और ठंडी हवा के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाने के कारण उत्पन्न होती है.

वायु प्रदूषण का मुख्य कारण ट्रैफिक जाम भी है. दिल्ली और एनसीआर अर्थात – गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, गुरुग्राम की 3 करोड़ से अधिक आबादी के जीवन को ट्रैफिक जाम ने बहुत जटिल बना दिया है. हलकी सी बारिश हो जाए तो नोएडा और गुरुग्राम के रस्ते पर लोगों की गाड़ियां सातसात घंटे तक जाम में फंसी रहती हैं.

दिल्ली में प्रदूषण का हाल यह है कि केजरीवाल सरकार को बारबार औड एंड ईवन रूल लागू करना पड़ता है. धुल और धुंएं को दबाने के लिए आर्टिफिशियल बारिश करवानी पड़ती है. मगर यह प्रयोग असफल ही रहे हैं. इन से वायु की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं आया. सच तो यह है कि दिल्ली की हवा अब सांस लेने लायक बची ही नहीं है.

दिल्ली और उस के करीबी जिलों का वायु गुणवत्ता सूचकांक बेहद खतरनाक स्तर यानी 400 से पार ही रहता है. भारत सरकार के पृथ्वी मंत्रालय के अंतर्गत डीएसएस सिस्टम अर्थात ‘डिसीजन सपोर्ट सिस्टम फौर एयर क्वालिटी मैनेजमैंट इन दिल्ली’ ने स्पष्ट कह दिया है कि दिल्ली महानगर में वायु प्रदूषण का असली कारण गड़बड़ाया परिवहनतंत्र है. ग्रेप नीति के तहत प्रदूषण बढ़ने पर परिवहन में सुधार के जो उपाय किए जाने चाहिए, उन पर कभी ध्यान ही नहीं दिया गया.

समग्र दिल्ली अर्थात – गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, गुरुग्राम की 3 करोड़ से अधिक आबादी के जीवन को जटिल बना रहे वायु प्रदूषण का मूल कारण ट्रैफिक जाम है. इस में सड़क पर प्रबंधन का तो अभाव है ही, हाल के वर्षों में बने फ्लाईओवर, अंडरपास और सड़कें भी दूरगामी सोच के साथ नहीं बनी हैं. जगहजगह सड़कों के किनारे अतिक्रमण कर के रेहड़ी-पटरी वालों ने कब्जा जमा लिया है जो न सिर्फ गंदगी का अम्बार बनाते हैं बल्कि सड़कों को संकुचित कर ट्रैफिक को निकलने नहीं देते. जगहजगह सड़कों के किनारे बने इन अवैध बाजारों में लोग अचानक गाड़ियां, स्कूटर आदि रोक कर खरीदारी करने लगते हैं या अपने वाहन यहांवहां खड़ा कर देते हैं जिस से बुरी तरह ट्रैफिक जाम होता है और प्रदूषण बढ़ता है.

दिल्ली के 2 सब से बड़े अस्पताल एम्स और सफदरजंग अस्पताल के सामने रिंग रोड पर पूरे दिन वाहन रेंगते हैं. बारीकी से देखें तो वहां केवल सड़क का मोड़ गलत है और बसस्टौप के लिए उचित स्थान नहीं है. साथ ही, टैक्सी और तिपहिया वाहनों का बेतरतीब खड़ा होना ट्रैफिक जाम का कारण है. यहां वाहनों की गति पर ऐसा विराम लगाता है कि इन अस्पतालों में भरती मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता तक प्रभावित हो रही है. उन पर एंटीबायोटिक दवा का असर कम हो रहा है. इतनी गंभीर समस्या के निदान पर कभी कोई सोचता नहीं, जबकि इस जाम में हर दिन कईकई एम्बुलैंस भी फंसती हैं और मरीज अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं.

दिल्ली से मेरठ के एक्सप्रेसवे को देश का सब से चौड़ा और अत्याधुनिक मार्ग कहा जाता है. साल 1999 में इस की घोषणा संसद में हुई थी और फिर शिलान्यास 2015 में हुआ. इस सड़क की लागत 8, 346 करोड़ रुपए थी. मगर 6 लेन की इस सड़क पर हर शाम जाम मिलता है. दिल्ली के प्रगति मैदान में बनी सुरंग-सड़क को देश के वास्तु का उदाहरण कहा जाता है, इस की लागत करीब 923 करोड़ रुपए आई थी. इस को शुरू हुए ज्यादा वक्त नहीं हुआ है मगर इस में भी जाम लगना हर दिन की कहानी है.

वायु प्रदूषण की बचीखुची कसर जगहजगह चल रहे मैट्रो और आवासीय निर्माण कार्यों ने पूरी कर दी है. इस के कारण पूरा यातायात और सिस्टम हांफ रहा है. यह बेहद गंभीर चेतावनी है कि आने वाले दशक में दुनिया में वायु प्रदूषण के शिकार सब से ज्यादा लोग दिल्ली में होंगे. एक अंतर्राष्ट्रीय शोध रिपोर्ट की मानें तो दिल्ली में प्रदूषण स्तर को यदि काबू में नहीं किया गया तो साल 2025 के बाद दिल्ली में हर साल करीब 32,000 लोग जहरीली हवा के शिकार हो कर असामयिक मौत के मुंह में समा जाएंगे. सांसों में बढ़ता जहर लोगों को आर्थ्राइटिस जैसे रोगों का शिकार भी बना रहा है.

दिल्ली में वायु प्रदूषण का बड़ा कारण यहां बढ़ रहे वाहन, ट्रैफिक जाम और राजधानी से सटे जिलों में पर्यावरण के प्रति बरती जा रही कोताही है. हर दिन बाहर से आने वाले डीजल पर चलने वाले कोई 80 हजार ट्रक या बसें यहां के हालात को और गंभीर बना रहे हैं. भले ही दिल्ली सरकार कहती हो कि दिल्ली में ट्रक घुस ही नहीं रहे मगर गाजियाबाद से रिठाला जाने वाली मैट्रो पर सवार हो कर यदि राजेंद्रनगर से दिलशाद गार्डन तक महज 4 स्टेशनों के रास्ते को बाहर की देखें तो जहां तक आप की नजर जाएगी ट्रक ही ट्रक खड़े दिखेंगे.

एक सूचना के अनुसार ज्ञानी बौर्डर के नाम से मशहूर इस ट्रांसपोर्ट नगर में हर दिन 10 हजार तक ट्रक आते हैं. यहां कच्ची जमीन है और ट्रकों के चलने से यहां भयंकर धूल उड़ती है. यह पूरा स्थान दिल्ली की सीमा से शून्य किलोमीटर दूर है. यही हालत बहादुरगढ़, बदरपुर, बिजवासन, लोनी और अन्य दिल्ली की सीमाओं के ट्रांसपोर्ट नगरों की है.

दिल्ली के लोगों का जीवन बचाना है और बच्चों को स्वस्थ रखना है तो दिल्ली सरकार को कई मोरचों पर एकसाथ और बहुत गंभीरता से काम करना होगा. नए वाहनों का पंजीकरण स्लो करना होगा. डीजल वाहन जो धुआं उगलते हैं उन पर भारी जुर्माना लगा कर जब्त किया जाना चाहिए. सड़कों पर अवैध अतिक्रमण और हाट-बाजारों को हटाया जाना चाहिए ताकि ट्रैफिक को गुजरने में आसानी हो. बसों को बसस्टौप पर ही रोकने के सख्त आदेश होने चाहिए. अत्यधिक निर्माण कार्यों पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए. दिल्ली में अधिकांश स्कूलों के लगने और छुट्टी का वक्त लगभग समान है. जिस के कारण जबरदस्त ट्रैफिक जाम होता है. इन का टाइम अलगअलग किया जा सकता है. इस से कुछ राहत मिलेगी. यदि दिल्ली की हवा को वास्तव में निरापद रखना है तो यहां से भीड़ को भी कम करना ही होगा. साथ ही, कूड़े को जलाने, खासकर मैडिकल कचरे को जलाने से रोकने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे. दिल्ली में जगहजगह जो कूड़े के पहाड़ खड़े हैं उन को जलाने के बजाय मिट्टी में पाट कर उस का निस्तारण किया जाना चाहिए. निश्चित ही इस में लंबा वक्त लगेगा मगर इस ढेर को जलाने से तो दिल्ली-एनसीआर में लोग दम घुटने से मर जाएंगे.

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