जब से भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार ने बैंकों के नौन परफौर्मिंग एसेट यानी डूबा हुआ पैसा अपने टैक्स देने वाली जनता के 30 लाख करोड़ रुपयों से पूरा कर दिया. इस से बैंकों के खाते में मुनाफे बढ़ गए हैं. बैंकों ने कर्ई सालों तक ऐसे लोगों को भरभर कर कर्ज दिया था जिन के सरकार से अच्छे संबंध थे. इन लोगों ने सरकार को खूब समर्थन भी दिया था. इस दरियादिली से आम आदमी को कोई लाभ नहीं हुआ पर बैंकों की बैलेंस शीट सुधर गईं और वे मुनाफे दिखाने लगे हैं.
इस का अर्थ यह नहीं है कि देश में बैंकिंग व्यवस्था सुधर गई है. बैंक चूसने वाले साहूकार थे और आज भी वैसे ही हैं. वे कर्ज, क्रैडिट कार्ड, होम लोन, एजुकेशन लोन, ट्रैवल लोन लेने को लोगों को उकसाते हैं और फिर वसूली के लिए घरदुकान नीलाम करते हैं. बैंकों के नियम हर रोज बदलते है. बैंक आज तमाम सुविधाओं का लालच दे कर लोगों से फिक्स्ड डिपौजिट या अन्य खाता खुलवाने को लुभाते हैं और लोग खाता खुलवा भी लेते हैं. लेकिन उन्हें हक़ रहता है कि अगले किसी भी क्षण वे रिजर्व बैंक के आदेश का हवाला दे कर उन सुविधाओं को कम कर सकते हैं या बंद कर सकते हैं जिन से प्रभावित हो कर ग्राहकों ने खाते खुलवाए.

बैंकों के मुनाफे बढ़ रहे है क्योंकि बैंकिंग व्यवस्था आज हर नागरिक का हर खाता, वह चाहे किसी भी बैंक में हो, खंगाल सकती है. सिबिल प्रणाली से किसी को भी बैंकिंग व्यवस्था से बाहर कर के उसे कंगाल बनाया जा सकता है. केवाईसी का बहाना बना कर किसी का भी पैसा जब्त किया जा सकता है. जब बैंकों के पास सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक की शह पर हर तरह के हथियार होंगे तो सरकार की कैशलैस नीतियों और औनलाइन पेमैंट की व्यवस्था का लाभ उन्हें मिलेगा ही और फिर मुनाफा तो होगा ही.
बैंक कस्टमरफ्रैंडली होते हैं, यह सिर्फ कहने की बात है. बैंकों को ढंग से चलाने के नाम पर रिजर्व बैंक असल में बैंकों के ग्राहकों को शिकंजों में कसता है जिस से बैंकों का मुनाफा बढ़ रहा है पर आम ग्राहक पिस रहा है. सभी बैंकों ने मिल कर हर सुविधा की मोटी फीस लगानी शुरू कर दी है जो कभी भी बढ़ाई जा सकती है. केंद्र सरकार और उस के इशारे पर चलने वाला रिजर्व बैंक जनता को चूसने के नएनए तरीके अपना रहे हैं और यह पैसा सरकार के बहुत ही घनिष्ठ उन बड़े उद्योगपतियों के पास जा रहा है जो अरबोंखरबों के कर्ज में डूबे हैं लेकिन दुनिया के अमीरों में गिने जाते हैं.

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