आपने कई फिल्में जुड़वा बच्चों पर आधारित देखे होंगे जो अधिकतर कौमेडी फिल्में होती हैं. इन फिल्मों में बहुत ही अजीबोगरीब चीजें दिखाई जाती हैं जिसे आम जिंदगी में विश्वास कर पाना मुश्किल होता है, मसलन एक को मार पड़ती है तो दूसरे को चोट लगती है. एक बीमार होता है तो दूसरा भी बीमार हो जाता है.

सलमान खान की फिल्म जुड़वा ऐसी ही फिल्म है जिसे बौक्स औफिस पर काफी सफलता मिली, क्योंकि दर्शकों ने इस फिल्म को खूब एंजोय किया. इस के अलावा एक का किसी लड़की से प्यार होना तो उसी शक्ल सूरत का दूसरे का वहां पहुंच जाना, फिर न जाने कितने ही मजेदार चीजें उन की जिंदगी में घट जाना होता है.

गुलजार की 1982 की बनी फिल्म ‘अंगूर’ भी बौक्स औफिस पर हिट फिल्म रही. दर्शकों ने इसे खूब पसंद किया. इन फिल्मों की संख्या कई है मसलन अनहोनी (1952), हम दोनों (1961), राम और श्याम (1967), कलियां (1968), आराधना (1969), शर्मीली (1971), सीता और गीता (1972), डोन (1978), चालबाज (1989), संगीत (1992), जुड़वा 2 (2017) आदि. सालों से ऐसी फिल्में किसी न किसी रूप में बनाई जाती रही हैं और मनोरंजन की दृष्टि से इन फिल्मों को दर्शक अधिक पसंद भी करते हैं पर रियल लाइफ में जुड़वा बच्चों के साथ ऐसा नहीं होता, क्योंकि उन का जन्म और परवरिश दोनों ही बहुत अलग और कठिन होता है, आइए जानते हैं.

क्या  कहना है विज्ञान का

असल में जिन महिलाओं के जुड़वा बच्चे होते हैं उन पर जीन का प्रभाव रहता है. नीदरलैंड के व्रिजे यूनिवर्सिटी के बायोलौजिकल साइकोलौजिस्ट डोरेट बूमस्मा के मुताबिक यदि आप के वंश में किसी के जुड़वा बच्चे हुए हैं तो आप के भी हो सकते हैं. ये एक तरह की अनुवांशिक प्रक्रिया होती है.

अमेरिकन जर्नल औफ ह्यूमन जेनेटिक्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के तहत महिला और पुरुष के जीन एक साथ मिल कर कुछ विशेष क्रिया के होने से भी जुड़वा बच्चों का जन्म होता है, इस से शुक्राणु सक्रिय हो जाते हैं.

जुड़वा बच्चे भी दो प्रकार के होते हैं. पहला जिसे डायजाइगोटिक कहते हैं, इस में पैदा हुए बच्चे दो लड़के व दो लड़कियां व एक लड़का और एक लड़की हो सकते हैं, इन की आदतें तो काफी कुछ एक जैसी होती हैं, लेकिन इन की शख्ल में थोड़ा अंतर रहता है.

वहीं जुड़वा बच्चों का दूसरा प्रकार है मोनोजाइगोटिक. इस प्रक्रिया के तहत जन्म लेने वाले बच्चे हूबहू एक जैसे दिखते हैं, इन के नेचर से ले कर इन के लुक तक सब कुछ एक समान रहता है. इसलिए इन के बीच पहचान करना बहुत मुश्किल हो जाता है.

डायजाइगोटिक जुड़वा बच्चों का निर्माण तब होता है जब स्त्री पुरुष के शुक्राणु से दो अलग अंडकोशिका में शुक्राणुओं को निषेचित करती है. वहीं कई बार हार्मोनल इंबैलेंस की वजह से भी स्त्री के गर्भ में दो अंडे बनते हैं.

इन अंडों के बनने की प्रक्रिया स्त्री और पुरुष के एक बार संबंध बनाते ही सक्रिय हो जाते हैं. डायजाइगोटिक प्रक्रिया के तहत जन्म लेने वाले बच्चों का जन्म कुछ सैकेंड व मिनट के अंतराल पर होता है, क्योंकि दोनों बच्चे दो अलगअलग अंडों में होते हैं. इसलिए पहले एक बच्चे का जन्म होता है, इस के बाद दूसरे बच्चे का.

मोनोजाइगोटिक बच्चों के जन्म के तहत एक शुक्राणु दो हिस्सों में बंट जाता है. इस कारण इन की शक्ल, कदकाठी और व्यवहार एक जैसा ही होता है, ऐसे बच्चों का जन्म अनुवांशिक असर की वजह से होता है, अगर परिवार में किसी के ऐसे जुड़वा बच्चे हैं, तो आप के भी ऐसे होने की संभावना रहती है.

अमेरिकन कालेज औफ अब्स्टेट्रिक्स एंड गाइनोकोलौजी में छपी एक स्टडी के मुताबिक जिन महिलाओं का बीएमआई 30 या उस से ज्यादा होता है. उन के भी जुड़वा बच्चे होने की संभावना रहती है. इस के अलावा उम्र बढ़ने पर भी महिलाओं के जुड़वा बच्चे होने की आशंका रहती है.

इस के अलावा गर्भधारण रोकने के लिए महिलाएं गर्भ निरोधक गोलियां खाती हैं, लेकिन इन दवाइयों के सेवन से भी जुड़वा बच्चों का जन्म हो सकता है. दरअसल कुछ समय बाद इन दवाइयों को लेना बंद करने से कई बार हार्मोनल इंम्बैलेंस हो जाता है, जिस के चलते 2 बच्चे पैदा होते हैं.

मौडर्न तकनीक है जिम्मेदार

दुनिया भर में हर साल लगभग 1.6 मिलियन जुड़वां बच्चे पैदा होते हैं, हर 42 बच्चों में से एक जुड़वां पैदा होता है. विलंबित प्रसव, आईवीएफ, आईसीएसआई कृत्रिम गर्भाधान आदि जैसी चिकित्सा तकनीकों के कारण 1980 के दशक के बाद से जुड़वां बच्चों के जन्म की दर में एक तिहाई की वृद्धि देखी गई है.

ह्यूमन रिप्रोडक्शन जर्नल में एक वैश्विक अवलोकन के अनुसार 30 वर्षों में सभी क्षेत्रों में जुड़वा बच्चों की दर में बड़ी वृद्धि आज शिखर पर है. एशिया में 32 प्रतिशत की वृद्धि से ले कर उत्तरी अमेरिका में 71 प्रतिशत वृद्धि हुई है.

जुड़वा बच्चों का पालनपोषण नहीं आसान

इन बच्चों के पालनपोषण में भी कई समस्याएं मां और परिवार को आती है. मसलन रश्मि 6 साल के जुड़वा दो बेटियों की मां है, दोनों के चेहरे एक जैसे हैं, इसे रश्मि ही पहचान पाती है कि कौन काव्या और कौन नव्या है. वह जौब भी करती है और साथ में इन दोनों बेटियों की देखभाल भी करती है. उन्हें पूरा दिन इन बच्चों के पीछे गुजारना पड़ता है हालांकि इस में उन की मां और पति दोनों ही सहयोग देते हैं लेकिन दोनों बच्चों को पालते हुए घरपरिवार को संभालना उन के लिए आसान नहीं होता, उन्हे हर रात अगले दिन की प्लानिंग करनी पड़ती है, ताकि सुबह से सभी काम ठीक से हो जाए.

सुमन भी दो जुड़वा बेटों रुद्रान्स और रेयान्स की मां है. इन दोनों के चेहरे काफी अलग हैं, दोनों के स्वभाव में भी काफी अंतर है, एक बहुत अधिक जिद्दी तो दूसरा शांत है. इस के अलावा जुड़वा बच्चों के शारीरिक बनावट में भी अंतर आता है, एक थोड़ा कमजोर तो दूसरा मजबूत. इस वजह से दोनों के मानसिक स्तर भी अलग हो सकता है, रश्मि की बेटी नव्या पढ़ाई में कमजोर है तो दूसरी थोड़ी काव्या तेज है.

फिल्मों में जो दिखाया जाता है कि एक को चोट लगने पर दूसरे को उस की पीड़ा होती है, ऐसा रियल में कभी नहीं होता, क्योंकि 35 साल की लबीना और रुबीना दोनों जुड़वा है और दोनों अलगअलग शहरों में रहते हैं, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक को कुछ हुआ हो, तो दूसरे को भी उस का एहसास होता हो. दोनों बहने आम बहनों की तरह ही है, बचपन में जब दोनों छोटी थी, तब एकदूसरे के साथ रहने पर एक की बीमारी दूसरे को हो जाया करती थी, जो किसी भी छोटे भाईबहन के साथ हो सकता है.

जुड़वा बच्चों के पालनपोषण कैसे करें

वैसे तो जुड़वा बच्चे होने पर मातापिता की खुशी दुगुनी हो जाती है, लेकिन दोनों बच्चों का पालनपोषण में दोगुनी चुनौती और समस्याएं भी आती है, जिस का ख्याल पेरैंट्स को रखना पड़ता है, क्योंकि जुड़वा बच्चों के सीखने की क्षमता और आदतें अलगअलग हो सकती हैं, जिसे ले कर मातापिता परेशान रहते हैं. कुछ सुझाव निम्न हैं,

• जुड़वा बच्चों के पालनपोषण का महत्वपूर्ण हिस्सा अच्छी तरह से समय की प्लानिंग करना होता है, ताकि बच्चों की आदतें और शेड्यूल अलग होने पर भी आप उन्हें नियंत्रित कर सकें. इस में महत्वपूर्ण होता है, बच्चों के खाने और सोने का सही शेड्यूल करना, इस से बच्चे की ग्रोथ सही होता है और बच्चे स्वस्थ रहते हैं.

• अपने पेरैंट्स, दोस्तों और पड़ोसियों से बच्चों के पालनपोषण में सहायता के लिए पूछना बहुत स्वाभाविक है, क्योंकि वे कई बार अधिक अनुभवी होते हैं और जानते हैं कि अलगअलग समय पर बच्चों से कैसे व्यवहार करना है, ऐसा करने पर बच्चों के लालनपालन का सही तरीका आप को पता चलता है.

• माताओं के लिए, दोनों बच्चों को एक ही समय पर स्तनपान की आदत विकसित करना महत्वपूर्ण होता है, इस से आप को जुड़वा बच्चों को एक साथ ब्रेस्ट फीडिंग में मदद मिलेगी और आप की समस्या भी कम हो जाएगी. स्तनपान के बाद एक साथ दो बच्चों को डकार दिलवाना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है, इसलिए आसपास में रह रहे बड़े बुजुर्ग या पति की सहायता लें.

• जुड़वा बच्चों वाले मातापिता से जुड़ कर उन की मदद लें, क्योंकि कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं, जिन में केवल जुड़वा बच्चों के मातापिता ही आप की मदद कर सकते हैं. जिन मातापिता को जुड़वा बच्चों को संभालने का अनुभव है, वे आप को बता सकते हैं कि उन्हें अधिक कुशलता से कैसे संभाला जाए, उन के अनुभव को सुनें.

• मातापिता के लिए सब से कठिन चीजों में से एक है अपने बच्चों को रोते हुए देखना. जुड़वा बच्चों के साथ यह और भी मुश्किल हो सकता है क्योंकि अगर दोनों जुड़वा बच्चे एक साथ रोते हैं, तो उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है. विशेषज्ञ के अनुसार, जुड़वा बच्चों को कुछ देर रोने देना चाहिए और देखना चाहिए कि उन्हें वास्तव में क्या चाहिए. पहले साल में तो यह और भी मुश्किल हो सकता है, जब वे कुछ बोल नहीं पाते. चिंता करने की कोई जरूरत नहीं होती है, इस अवस्था में बच्चों का रोना सामान्य होता है.

• जुड़वा बच्चों का आपस में एक बंधन होता है. इसलिए ऐसे बच्चों के पालनपोषण में यह एक महत्वपूर्ण सबक, थोड़ी सख्त होने की होती है.

• बच्चों की सही परवरिश करने के लिए, मातापिता को यह समझने की जरूरत होती है कि उन की अपनी विशिष्ट पहचान है, जिस का उन्हें सम्मान करना और बनाए रखना आवश्यक है. कई मातापिता अपने बच्चों को एक जैसे कपड़े पहनाते हैं, उन्हें एक जैसे खिलौने देते हैं और एक जैसी गतिविधियां कराते हैं. इस से किसी एक जुड़वा बच्चे के विकास में बाधा आ सकती है, जो समस्याग्रस्त हो सकता है. इसलिए उन की मांगों और आदतों को समझें और उस के अनुसार पर्याप्त दिशा निर्देश दें.

• जुड़वा बच्चों के बीच तुलना करना कोई स्वस्थ आदत नहीं है. इस से उन के स्वास्थ्य और मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. जिन जुड़वा बच्चों की विकास प्रक्रिया के हर चरण पर तुलना की जाती है, उन में एकदूसरे के बारे में नकारात्मक विचार विकसित होते हैं जो उन के बंधन और स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकते हैं. कई जुड़वा बच्चे इस समस्या से पीड़ित होते हैं और लगातार तुलना के कारण उन में दूसरे जुड़वा से नफरत की भावना विकसित हो जाती है. इसलिए बच्चों की समझ को सुनें और उस के अनुसार उन्हें प्रोत्साहित करें.

• प्रत्येक जुड़वां बच्चे के साथ व्यक्तिगत रूप से कुछ समय बिताने से मातापिता को अपने बच्चों की अलग पहचान विकसित करने में मदद मिल सकती है. इस से उन्हें बच्चों को बेहतर ढंग से समझने में भी मदद मिलेगी. वैज्ञानिक शोध के अनुसार, कुछ गुणवत्तापूर्ण समय की योजना बनाना, बैठ कर किताबें पढ़ना, बाजार जाना, गेम खेलना बहुत सकारात्मक प्रभाव डालता है. इस से दोनों बच्चों को भी ध्यान और उपस्थिति का एहसास होता है. उन के जीवन के अनुभव भी उन के व्यक्तिगत अर्थों में विकसित होते हैं, जो बड़े होने पर उन्हें विशिष्ट पहचान बनाने में मदद करते हैं.

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