जिस तरह पेड़ पौधों की निरंतर उचित देखभाल कर माली उन्हें जीवंत बनाए रखता है, कुछ उसी तरह इंसान रिश्तों को समय और समझदारी से मधुर बनाए रख सकता है.
दुनिया रिश्तों पर चल रही है. खून के रिश्ते, दोस्ती के रिश्ते, सामाजिक रिश्ते और मानवता का नाता. इन 4 कैटेगरी में सारे रिश्ते आ जाते हैं और इन्हीं के इर्दगिर्द हम जीवन गुजार लेते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था, ‘‘अगर रिश्तेनाते निभाना आप की कमजोरी है तो आप इस दुनिया के सब से मजबूत इंसान हैं.’’ उन की बात सच है क्योंकि हर रिश्ता बनाने के बाद उसे निभाना पड़ता है वरना वह रिश्ता खत्म हो जाता है. भले ही खून के रिश्ते हमें जन्म से मिल जाते हों लेकिन उन्हें बनाए रखने के लिए निभाना पड़ता है. मतलब उस पर मेहनत करनी पड़ती है. मेहनत करने से आशय यह नहीं है कि किसी तरह की खुशामद करनी पड़ती हो बल्कि रिश्तों को निभाने के लिए समय और समझदारी की जरूरत होती है.
आज एकल परिवारों का चलन बढ़ रहा है. भाई व बहन अकेले हो रहे हैं. पहले की तरह परिवारों में 7-8 भाईबहन नहीं हैं. ऐसे में उन रिश्तों की अहमियत बढ़ जाती है जो खून के न हों, जैसे दोस्ती, व्यापारिक या आसपड़ोस के रिश्ते.
मुंबई की रंजना सिंह का कहना है कि उन के पिता के 5 भाई और 4 बहनें हैं. शादी या किसी पारिवारिक समारोह में उन लोगों के सपरिवार इकट्ठे होने पर ऐसा लगता है मानो अब किसी बाहर वाले की जरूरत ही नहीं. लेकिन मेरी ससुराल में बिलकुल उलटा है. मेरे पति की सिर्फ 1 बहन है. हमारे यहां तो दोस्तों, चचेरे, फुफेरे और ममेरे रिश्तेदारों से ही रौनक होती है.
दिल्ली की अनीता कहती हैं कि दिल्ली जैसे बड़े शहर में जब हम अपने रिश्तेदारोंपरिचितों से इतनी दूर रह रहे हैं तब आसपड़ोस में रिश्ते बनाना जरूरत बन जाता है. हम अलगथलग नहीं रह सकते. किसी भी तकलीफ में परिवार और रिश्तेदारों से पहले पड़ोसी ही पहुंचते हैं.
कुछ रिश्ते ऐसे भी बनाने पड़ते हैं जो समय की जरूरत होते हैं, जैसे व्यापारिक रिश्ते, आसपड़ोस से संबंध, क्लब या अन्य सामाजिक गठबंधन. ये रिश्ते बनते तो हमारी जरूरतों की वजह से हैं लेकिन अगर हम इन में स्नेह और अपनापन भी शामिल कर लें तो कोई हर्ज नहीं है. न जाने कब ये गहरा रूप ले लें और जीवनभर सार्थक साथ निभाएं.
जब बनाएं वैवाहिक संबंध
आजकल विवाह से पहले ही फोन पर बातें करना, मिलनाजुलना आम बात है. ऐसा कर के भावी जीवनसाथी एकदूसरे के बारे में जानने का प्रयास करते हैं. अपनी अपेक्षाएं और नए जीवन की योजनाएं बना कर अपने विचारों को सांझा करते हैं. इस दौरान दुनिया बहुत हसीन लगती है. प्यार के सब्जबाग खिले रहते हैं. सबकुछ बहुत अच्छा और दुनिया अचानक से बहुत खूबसूरत लगने लगती हैं. लेकिन हकीकत, खयालों और बातों की दुनिया से बहुत इतर होती है. जब तक इस का भान होता है तब विवाह के पहले के हसीन सपनों में किचन के मसालों की गंध आने लगती है क्योंकि तब तक प्रेम का इत्र उड़ चुका होता है. अपने साथी से चिढ़ होने लगती है. उस के वादे झूठे लगने लगते हैं और रिश्तों पर से भरोसा उठने लगता है.
यही वह समय है जब दिल की नहीं दिमाग की सुननी चाहिए. कुछ न समझ आए तो किसी काउंसलर से बात करनी चाहिए और सब से उपयोगी सलाह ‘समय’ देना चाहिए. नया रिश्ता है. नई जगह और नए लोग. जाहिर है कि किसी नई जगह जाने पर हम वहां के माहौल और लोगों को पहले औब्जर्व करते हैं न कि जाते ही अपने मन की करने लगते हैं. ठीक है कि वह नई जगह आप की ससुराल है जहां पर आप को अपना शेष जीवन बिताना है. जीवन सुखमय हो, खुशहाल हो, इस के लिए धीरज रखने की जरूरत है. नए घर में आप को कैसे जगह बनानी है, यह आप की समझदारी पर निर्भर होता है.
अगर सास से मां जैसे व्यवहार की उम्मीद करती हैं तो खुद भी बेटी जैसी बनिए. हर वक्त कमियों और खामियों का रोना ले कर न बैठें. जो है, जैसा है, उसे खुशी से स्वीकार करें. ननद आप से कभी कुछ मांगे तो मुंह सिकोड़ कर न कहने के बजाय उसे वह चीज दे दें. उसे यह एहसास दिलाएं कि इस्तेमाल करने के बाद वह उस चीज को सुरक्षित लौटाए.
पति की जिम्मेदारियों को समझें न कि ‘मेरा समय खराब है’, ‘मत मारी गई थी जो तुम से शादी कर ली’ जैसे ताने दें. किसी की तुलना खुद से कर के पति को नीचा न दिखाएं जैसे कि फलां के पास इतने जेवर हैं, या उन्होंने नई गाड़ी ली है वगैरह.
इन पर अमल कर पाना शुरूशुरू में भले ही मुश्किल हो लेकिन एक बार यह कला आप सीख लेती हैं तो समझो सारे रिश्ते आप की मुट्ठी में और इन को हैंडल करने की चाबी आप की कमर में.