होली के अवसर पर गुझिया की मिठास का आनंद लेने के बाद रंगपिचकारी के साथ होली खेलना, ढोल की थाप पर नाचना व एकदूसरे को गले लगाना, कुछ इस तरह सैलिबे्रट करते थे युवा होली को. लेकिन बदलते समय में यूथ के लिए फैस्टिवल्स की परिभाषाएं भी बदली हैं. उन्हें त्योहारों को मनाने के तौरतरीकों में आए बदलाव से लगता है कि त्योहार जो कभी उत्साह, माधुर्य, स्फूर्ति के परिचायक होते थे अब औपचारिकता मात्र रह गए हैं.
युवाओं का ऐसा मानना कि अब त्योहारों की रौनक फीकी पड़ गई है या फिर अब त्योहारों में वह बात नहीं जो पहले थी, गलत है. चाहे हम अपने परिवार के साथ रहें या फिर नौकरी या पढ़ाई के कारण घर से दूर, लेकिन फिर भी त्योहारों के लिए उत्साह कम नहीं होना चाहिए, क्योंकि अगर इस उम्र में आप जीभर कर नहीं जीए तो फिर आगे तो जिम्मेदारियों का बोझ ढोते हुए चाह कर भी त्योहारों का मजा नहीं ले पाएंगे. इसलिए खुशी के जो पल मिलें उन्हें अपने हाथ से न निकलने दें.
क्यों बढ़ी त्योहारों के प्रति दूरी
पहले युवा होली का त्योहार आने से कई दिन पहले ही एकदूसरे पर गुब्बारे फेंकने शुरू कर देते थे. यहां तक कि दोस्तों व रिश्तेदारों को आमंत्रित किया जाता था कि इस बार होली का त्योहार हमारे घर पर मनाया जाएगा. उन के चेहरे की रौनक साफ दर्शाती थी कि वे त्योहारों के प्रति कितने उत्साहित हैं, लेकिन अब तो स्थिति यह है कि कई दिन पहले क्या युवा जिस दिन त्योहार होता है उस दिन भी उसे सैलिबे्रट करने के मूड में नहीं रहते. उन्हें लगता है कि रिश्तेदारों व दोस्तों को बुलाने, उन के घर जाने या फिर उन्हें रंगगुलाल लगाने से अच्छा है कि छुट्टी का भरपूर मजा लिया जाए. जब चाहें सो कर उठें, जो चाहें मूवी देखें, आज कोई रोकनेटोकने व डिस्टर्ब करने वाला न हो.
ऐसे में अगर कोई उन्हें फोर्स भी करता है कि त्योहार सैलिबे्रट करने के लिए उस के महत्त्व को समझें तो वे यह कह कर टाल देते हैं कि हमें तो अपनी छुट्टी इस त्योहार के चक्कर में बरबाद नहीं करनी है अगर आप करना चाहें तो करें, लेकिन हमें इस के लिए फोर्स न करें.
घरों से दूरी ने घटाया उत्साह
आज के किशोरों व युवाओं पर पढ़ाई व कैरियर बनाने का इतना अधिक प्रैशर आ गया है कि उन्हें इन के लिए छोटी उम्र में ही घर से दूर जाना पड़ता है. वहां रह कर पढ़ाई व जौब के साथ अपनी सारी जिम्मेदारियां उठाने के चक्कर में उन में त्योहारों को ले कर कोई उत्साह नहीं रहता. उन्हें लगता है कि अकेले त्योहार मनाने से अच्छा है कि इन्हें मनाओ ही नहीं और इस दिन जो काम बाकी रह गए हैं उन्हें निबटाया जाए. अगर वे छुट्टी ले कर घर आ भी जाते हैं तो सोचते हैं कि फैस्टिवल को ऐंजौय करने से अच्छा है कि फैमिली के साथ कुछ वक्त बिताएं. अपने इस बिजी रूटीन में फंसे व उलझे होने के कारण उन में अब फैस्टिवल्स को मनाने का क्रेज खत्म होता जा रहा है.
परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ भी वजह
घर में अगर पापा या मम्मी का बहुत छोटी उम्र में देहांत हो गया हो और अभी बहुत सारी जिम्मेदारियां बाकी हों तो ऐसे में बड़े भाई या बड़ी बहन होने का फर्ज निभाना पड़ता है. उन की हर छोटीबड़ी जरूरत का ध्यान रखना पड़ता है. कभीकभी परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के कारण छोटी उम्र में ही जौब छोड़नी पड़ती है. इन जिम्मेदारियों के तले दबे होने के कारण वे त्योहारों को मनाने के बारे में सोचने की बात तो बहुत दूर, अपने बारे में भी नहीं सोच पाते. उन की इच्छाएं तक दब कर रह जाती हैं. यही वजह है कि वे त्योहारों से दूरी बना लेते हैं.
त्योहारों पर टैक्नोलौजी हावी
जैसेजैसे युवाओं को लुभाने के लिए नईनई टैक्नोलौजी आ रही हैं, वैसेवैसे उन का बाकी चीजों के प्रति उत्साह खत्म होता जा रहा है. अब वे सोचते हैं कि स्मार्टफोन पर उपलब्ध ऐप्स का ज्यादा से ज्यादा लाभ लिया जाए. अब उन्हें हर पल व्हाट्सऐप व फेसबुक पर डीपी अपडेट करने की चिंता रहती है. यदि एक बार डीपी अपडेट हो गई तो फिर उस के बाद लाइक्स के इंतजार में मोबाइल पर ही नजरें गड़ाए रखते हैं. ऐसे में उन के पास त्योहारों के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं रहता या यों कहें कि टैक्नोलौजी ने उन के लाइफस्टाइल को पूरी तरह बदल दिया है.
औनलाइन विश करने में ज्यादा रुचि
स्मार्टफोन के बढ़ते चलन ने अब फैस्टिवल्स को सैलिबे्रट करने के तरीके में भी बदलाव ला दिया है. अब युवा साथ मिल कर त्योहार सैलिबे्रट करने से बेहतर एसएमएस के जरिए एकदूसरे को बधाई दे देते हैं, लेकिन वे इस बात से अनजान हैं कि टैक्नोलौजी के प्रयोग से त्योहारों की मिठास भी फीकी होती जा रही है. जो मजा साथ बैठ कर खाने व एकदूसरे को गले मिल कर बधाई देने में आता था वह मजा टैक्नोलौजी के कारण खत्म हो रहा है.
एकल परिवारों से पड़ा उत्साह फीका
पहले संयुक्त परिवार अधिक होते थे, जहां दादादादी, चाचाचाची सब बच्चों को त्योहारों का महत्त्व बताते थे. घरों में कई दिन पहले से ही त्योहारों की तैयारियां शुरू हो जाती थीं. घर के माहौल को देख कर बच्चों में भी उत्साह रहता था, लेकिन एकल परिवारों के बढ़ते वर्चस्व ने त्योहारों की रौनक फीकी कर दी है. अब पेरैंट्स वर्किंग होने के कारण बच्चों को ज्यादा समय नहीं दे पाते. त्योहार वाले दिन भी वे घर पर खाना बनाने के बजाय बाहर से ही खाना मंगवा लेते हैं. इसलिए ऐसे माहौल में बच्चे समझ ही नहीं पाते कि त्योहार होते क्या हैं, जिस से उन में त्योहारों के प्रति रुचि घटती जा रही है.
स्किन कौंशियस ज्यादा
अब युवा अपनी फिगर व स्किन को ले कर ज्यादा कौंशियस हो गए हैं. उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने होली खेली तो रंगों में कैमिकल्स होने के कारण उन की स्किन खराब हो जाएगी, फिर सब उन्हें देख कर हंसेंगे. उस के बाद डाक्टरों के चक्कर लगाओ सो अलग. इस से अच्छा है कि आराम से अपने घर बैठो
त्योहारों को मनाने के फायदे
– एक जैसे रूटीन से बाहर निकलने का मौका मिलता है. इस बहाने आप परिवार के लोगों के साथ कुछ पल बिता सकते हैं. ये यादें कुछ पलों के लिए नहीं बल्कि जिंदगी भर के लिए होती हैं, जिन्हें याद कर आप मुश्किल परिस्थिति में भी खुद के चेहरे पर मुसकान ला सकते हैं.
– शौपिंग करने का मौका मिलता है. त्योहारों पर अगर आप ऐक्स्ट्रा शौपिंग भी कर लेंगे तब भी आप को डांटने वाला कोई नहीं होगा.
– सैल्फ ग्रूमिंग का मौका मिलता है.
– एकदूसरे के रीतिरिवाजों का भी पता चलता है.
– त्योहारों पर खुद को ज्यादा ऐनरजैटिक फील करते हैं.
– अपनों के साथ मेलजोल से प्रेम व भाईचारा बढ़ता है.
कैसे बरकरार रखें त्योहारों के प्रति उत्साह
– जो फ्रैंड्स फैस्टिवल्स को छुट्टी मात्र मानते हैं उन्हें त्योहारों का महत्त्व बताना बहुत जरूरी है.
– अगर आप पढ़ाई व नौकरी के कारण घर से दूर हैं तो त्योहार ही प्रिय बहाना है जिस के जरिए आप अपने फैमिली मैंबर्स से मिल पाएंगे.
– पार्टी अरेंज कर के फैस्टिवल मूड बनाएं.
– फैस्टिवल पर घर पर डिशेज बना कर अपने फैमिली मैंबर्स व फ्रैंड्स का दिल जीतें.
– आप का फैस्टिवल मनाने का तरीका जितना जिंदादिल व उत्साह भरा होगा और आप फैस्टिवल मनाने के नएनए तरीकों का इन्वैंशन करते रहेंगे तो यकीन मानिए आप के साथ हर कोई फैस्टिवल को सैलिबे्रट करने को उत्सुक रहेगा.