संगीता सुबह से लैपटौप पर लगी हुई थी. एक के बाद एक मेल का जवाब देते हुए जैसे ही वह लैपटौप बंद करने वाली थी कि माइक्रोसौफ्ट टीम पर मीटिंग का बुलावा आ गया था. आधे घंटे की मीटिंग खिंचतेखिंचते 2 घंटे की हो गई थी.

दोपहर को एक बज गए थे और जैसे ही संगीता रसोई की तरफ जाने लगी कि व्हाट्सऐप पर फैमिली ग्रुप में वीडियो कौल शुरू हो गई थी. एक घंटा वीडियो कौल में चला गया. फिर जैसेतैसे वीडियो कौल खत्म कर के संगीता ने छुट्टी वाले दिन भी खिचड़ी बना कर खाने का काम निबटा दिया था.

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अब जैसे ही संगीता आंखे बंद कर के सोने की कोशिश कर रही थी कि औफिस के ग्रुप पर कल की डैडलाइन पोस्ट होने लगीं. संगीता फिर से उठ कर लैपटौप खोल कर बैठ गई थी. उस को अब छुट्टी के नाम से डर लगने लगा था. कोरोना के कारण वर्क फ्रौम होम अब उसे एक सज़ा लगने लगा था. हर समय वह एक हड़बड़ाहट में रहती थी और रात को भी ठीक से सो नहीं पाती थी.

ऐसा ही कुछ हाल अभिषेक का भी है. वह न जाने कब से गहरी नींद नहीं सोया है. हर समय उस के कानों में मेल या व्हाट्सऐप मैसेज की अलर्ट टोन घूमती रहती है. रात में उठउठ कर वह अपना मोबाइल चैक करता रहता है. .कोई भी ऑफिस का कार्य यदि वह मेल या व्हाट्सऐप पर देख लेता है, तो फिर उस की रात काली हो जाती है. न वह रात को अपने कोई काम कर सकता है और न ही सो पाता हैं. पत्नी से अलग उस का इन सब बातों के कारण झगड़ा रहता है. जब से औफिस में औनलाइन कल्चर की घुसपैठ हुई है तब से एक अनकहा तनाव हर समय उस के सिर पर मंडराता रहता है.

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साक्षी को शुरुआत में अपनी उन सहेलियों से बहुत ईर्ष्या होती थी जिन के औफिस में वर्क फ्रौम होम का कल्चर था. साक्षी एक स्कूल में पढ़ाती थी, तो जाहिर हैं वर्क फ्रौम होम का प्रश्न ही नहीं उठता था. लेकिन कोरोनाकाल में अब स्कूल में भी औनलाइन क्लासेज चल रही हैं. आधेअधूरे रूप से कुछ प्रदेशों में स्कूल अवश्य खुल गए हैं लेकिन औनलाइन क्लासेज अभी भी जारी हैं. साक्षी के शब्दों में, ‘औफिस या स्कूल जा कर काम करना ज्यादा आसान है. घर पर रहते हुए भी आप कभी भी फ्री नहीं हो बल्कि अब आप मानसिकरूप से ज्यादा व्यस्त हो गए हो. पहले स्कूल का समय सुबह 7 बजे से दोपहर 2 बजे तक होता था, अब किसी भी समय और कभी भी मीटिंग शुरू हो जाती है.’

इस वर्चुअल माहौल में लंबे समय तक रहने के कारण 27 वर्ष की उम्र में भी साक्षी ड्राई आय और हाई ब्लडप्रैशर की चपेट में आ गई है. पहले हम लोग जिस तरह से व्रत इत्यादि को स्वास्थ्य के लिए जरूरी मानते थे, तकरीबन उसी तरह आजकल के माहौल में औनलाइन फास्टिंग हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है.

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अभी अगर हम कुछ साल पहले की बात कर्ण तो औनलाइन कल्चर ने बहुत ही धीरेधीरे और चुपके से हमारी जिंदगी में प्रवेश किया था. तब मेल, औरकुट इत्यादि प्लेटफौर्म बिलकुल नए थे और उन का मुख्य उद्देश्य था, हमारी जिंदगी को आसान बनाना.

समय बीतता गया. फेसबुक, ट्विटर, लिंक्डइन, व्हाट्सऐप और भी न जाने कितने ऐप हमारे जीवन का हिस्सा बन गए हैं. लेकिन अभी भी हम इस बात से अनभिज्ञ हैं कि क्यों स्ट्रैस, डिप्रैशन, हाइपरटेंशन के मामलों में भी तेजी से इज़ाफ़ा हुआ है.

जानेअनजाने इन सब औनलाइन ऐप्स के कारण हम तनाव में रहने लगे हैं. हर कोई इन सोशल प्लेटफौर्म पर अपनी खुशियों के इश्तिहार बेच रहा है. जब हम अपने रिश्तेदारों या दोस्तों के फेसबुक या इंस्टाग्राम अकाउंट पर तसवीरे देखते हैं तो जानेअनजाने उन से अपने जीवन की तुलना करने लगते हैं. एक अनकहा और अनव्यक्त तनाव हमारे इर्दगिर्द मंडराता रहता है.

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अगर बात करें दफ़्तरों की, तो उन का हाल और भी बुरा हो गया है. मेल भेजने का, व्हाट्सऐप ग्रुप पर मैसेज पोस्ट करने का या फिर औनलाइन मीटिंग करने का कोई समय नियत नहीं है. कर्मचारी का कोई निजी, पारिवारिक समय अब नहीं रहा है. अगर कंपनी का मालिक या बौस रात के 11 बजे खाली है तो तभी मीटिंग शुरू हो जाती है.

ये सारी बातें धीरेधीरे हमारे मानसिक स्वास्थ पर बहुत विपरीत प्रभाव डाल रही हैं. लेकिन अगर हम व्रत अपने स्वास्थ्य के लिए रख सकते हैं तो क्यों न हम लोग औनलाइन फास्टिंग कर के अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें.

शाम 7 बजे के बाद नो औनलाइन कौल : यदि आप दफ़्तर में कार्यरत हैं या खुद एक बौस हैं तो इस बात का अवश्य पालन करें कि शाम 7 बजे के बाद किसी भी प्रकार की सूचनाओं का आदानप्रदान न हो. अगर कोई बहुत जरूरी मीटिंग भी हो तो उसे शाम 7 बजे तक निबटा ले. शाम 7 बजे के पश्चात सब लोगों की प्रोडक्टिविटी जीरो हो चुकी होती है. ऐसे में अगर आप मीटिंग करते भी हैं तो कोई सकारात्मक कार्य नहीं हो पाएगा.

रविवार और त्योहार को रखें औनलाइन फ़्री ज़ोन : कोई भी कार्य कभी भी इतना आवश्यक नहीं होता कि उस की सूचना देने के लिए आप सोमवार की प्रतीक्षा न कर सकें. अगर बौस हैं तो ऐसा मत करें और यदि आप कर्मचारी हैं तो विनम्र शब्दों में बता दीजिए कि रविवार को आप औनलाइन फास्टिंग करते हैं. हर मेल या मैसेज का उत्तर आप सोमवार को ही दे पाएंगे.

एक दिन स्वयं के साथ : हफ़्ते में एक दिन स्वयं के साथ होना अवश्य होता है. यह आप को हफ़्ते के आगामी दिनों के लिए तैयार करेगा. स्वयं के साथ एक दिन बिताने के लिए आप को अपने औनलाइन वर्ल्ड से बाहर आना अवश्य पड़ेगा. औनलाइन फास्टिंग आप की क्रिएटिविटी को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है. एक दिन बिना नैट के बिताएं तो सही, आप खुद को बेहद तरोताजा महसूस करेंगे.

एकाग्रता बढ़ाने के लिए है जरूरी : मनन ने जैसे ही अपने पापा से बात करने के लिए फ़ोन उठाया था, वैसे ही व्हाट्सऐप के मैसेजेस की बौछारों के कारण उस का ध्यान बंट गया और वह मैसेजेस पढ़ने लगा. उधर मनन के पापा रविवार के कारण मनन के फ़ोन की प्रतीक्षा करते रह गए थे. दरअसल, यह बहुत होता हैं कि इस औनलाइन दुनिया के कारण हमारा ध्यान बहुत इधरउधर भटकता है. हम एकाग्रचित्त हो कर कुछ नहीं कर पाते हैं. इसलिए यह अवश्य करें कि रात 8 बजे से सुबह 6 बजे तक आप औफलाइन मोड में रहें. अगर किसी को बेहद आवश्यक काम होगा तो वह आप को अवश्य फ़ोन करेगा.

चिड़चिड़ाहट को कम करने के लिए ज़रूरी : औनलाइन फास्टिंग आप के मूड को तरोताज़ा रखने के साथसाथ आप की चिड़चिड़ाहट को कम करने में भी बहुत सहायक होती है. 24 घंटे अगर आप औनलाइन मोड में रहेंगी तो जानेअनजाने बहुत सारी इन्फ़ौर्मेशन प्राप्त करेंगी. इन में से 70 प्रतिशत ज्ञान की आप को कोई आवश्यकता नहीं होगी. यह ज्ञान आप को रैस्टलैस और इरिटेट ही करेगी.

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