Modern Lifestyle: "धनिया ने झल्लाकर कहा - ‘तुम्हें तो बस यही सुध रहती है कि लोग क्या कहेंगे! लोग तो जुबान के पक्के नहीं हैं, आज कहेंगे कुछ, कल कुछ. तुम्हारा घर जले या बचे, उन्हें क्या? लेकिन मैं अपने मन से क्यों जलूँ? तुम मर जाओ तो तुम्हारी आत्मा को कौन गोदान करेगा? गोदान बिना तो आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती, यह भी तो सुनो!’
होरी ने सिर झुकाकर कहा - ‘हाँ धनिया, यही तो चिंता है. मरने से क्या डर? लेकिन गोदान बिना मुक्ति कैसे मिलेगी?’
धनिया ने गंभीर स्वर में कहा - ‘मुक्ति कर्म से मिलती है, दान से नहीं. जिसने जीवन भर अन्याय नहीं किया, झूठ नहीं बोला, छल नहीं किया, वही मुक्त है. जिसके पास देने को कुछ नहीं, वह भी क्या नरक जाएगा?’"
यह अंश है हिंदी के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की महान कृति 'गोदान' का. धनिया और होरी के बीच यह संवाद ग्रामीण जीवन की गहराई, मजबूरी और गरीब पर दान दक्षिणा करने के लिए सवर्ण के दबावों को बखूबी दर्शाता है. किताब में कई स्थानों पर पति पत्नी के संवाद कई गंभीर सवाल पैदा करते हैं, जो पढ़ने वाले की अक्ल और संवेदना के दरवाजे भी खोलते हैं. एक जगह जहां होरी अपने बैल को बेचने की मजबूरी में कातर दृष्टि से उन्हें देख रहा है, वहीं उसका प्यारा बैल उससे मूक वार्ता करता दिखता है, उस अंश को पढ़ कर आँखें भीग जाती हैं.
होरी ने अपनी लाठी उठाई और बैल के पास जाकर खड़ा हो गया. बैल उसके सामने उदास-सा मुँह झुकाए खड़ा था, मानो समझ रहा हो कि अब उसका मालिक उसे बेचने जा रहा है.
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