आज की भागदौड़भरी जिंदगी और उस पर ढेरों जिम्मेदारियां इंसान को सुकून से जीने नहीं देतीं. रोटी, कपड़ा और मकान के साथ बच्चों के सुनहरे भविष्य की चिंता रिश्तों की मिठास को धीरेधीरे कड़वाहट में बदल देती है. ज्यादातर पतिपत्नी के रिश्तों में कुछ वर्षों बाद ही प्यारमनुहार की जगह तकरार ले लेती है, जिस से रिश्तों की ताजगी और मिठास कहीं गुम सी हो जाती है.
परंतु कुछ जोडि़यां इस का अपवाद हैं. इन जोडि़यों का प्यार उम्र के साथसाथ बढ़ता जा रहा है. आइए, कुछ ऐसे ही सदाबहार जोड़ों के जीवन के बारे में जानते हैं जिन की उम्र तो 60 पार हो चली है लेकिन जिंदगी में प्यार और जिंदादिली अभी भी कायम है…
मिथिलेश-ललित की जिंदादिली
इंदौर के शइनाई रैजीडैंसी में ललित कुमार और मिथिलेश लली त्रिवेदी अपने सब से छोटे बेटे के साथ रहते हैं. 60 की उम्र पार कर चुका यह जोड़ा बेहद जिंदादिल है और अपनी शादी की गोल्डन जुबली भी मना चुका है. इस उम्र में प्यार अधिक या तकरार, पूछने पर मिथिलेश मुसकरा कर बात शुरू करती हैं, ‘‘निसंदेह प्यार. देखिए, हमारे दौर में प्यार को आंखों के जरिए दिल में महसूस किया जाता था. उस वक्त प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए उपहारों के लेनदेन का प्रचलन नहीं था, और न ही साथ बिताने के लिए अधिक समय. हां, कभीकभार मेरी पसंद की कोई चीज ये ले आते थे, तो यही प्यार दर्शाने का तरीका था. पर बदलते दौर के साथ हम ने अपनी सोच में काफी परिवर्तन किया.
‘‘लिहाजा, अब मुझे भी अपने जन्मदिन और अन्य मौकों पर पति से खूबसूरत उपहार मिल जाते हैं. सच पूछिए तो इन का दिया एक छोटा सा तोहफा भी मेरे चेहरे और जीवन में मुसकान लाने के लिए काफी है.’’
इस उम्र में एकदूसरे का खयाल कौन ज्यादा रखता है, इस पर ललित का कहना था, ‘‘मैं शुरू से ही बड़ा मस्तमौला इंसान रहा. शतरंज, लौन टैनिस, टेबल टैनिस व बैटमिंटन आदि खेलों का मैं बेहद शौकीन हूं. कमा कर श्रीमतीजी के हाथ में पैसा रखने के अलावा मेरा घरगृहस्थी में ज्यादा योगदान नहीं था. उस वक्त इन्होंने घर और बच्चों को भलीभांति संभाला. आज ये शरीर से कुछ कमजोर हो चली हैं तो मैं इन का ध्यान रखता हूं और इस काम में मुझे बहुत खुशी मिलती है.’’
सिक्स्टीज की लवलाइफ के बारे में बताते हुए ललित का कहना था, ‘‘हमारे लिए यह समय वाकई सपने जैसा है. इस वक्त हम अपनी सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके हैं. आज ज्यादा से ज्यादा वक्त हम एकदूसरे के साथ बिताते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो, हम आज सिर्फ अपने लिए जी रहे हैं. दोनों मिल कर मनमुताबिक खाना बनाते हैं और अपने सभी शौक पूरे करते हैं. हम साथ बैठ कर टीवी देखते हैं. श्रीमतीजी थोड़ा ऊंचा सुनने लगी हैं, फिर भी मेरे साथ बैठ कर न्यूज, फिल्म वगैरह बड़े शौक से देखती हैं. सीनियर सिटीजन के लिए आयोजित सोसाइटी के सभी प्रोग्रामों में हम दोनों की शिरकत होती है. दोनों ही गाने सुनने के शौकीन हैं, तो आज भी एकदूसरे के लिए पुराने रोमांटिक गाने गा कर अपने प्यार का इजहार करते हैं. हम एकदूसरे को भावनात्मक सपोर्ट देते हैं.’’
एकदूजे के मानसी-दिलीप
कोलकाता के गडि़या इलाके में रहने वाले मानसी और दिलीप राय के व्यक्तित्व भिन्न होते हुए भी दोनों एकदूसरे के पूरक हैं. पत्नी मानसी एकदम सीधी, सरल, घरेलू महिला हैं तो दिलीप बहुमुखी प्रतिभा के धनी. निडर, निसंकोच, साफगोई से अपनी बात रखने वाले दिलीप का पहला प्यार साहित्य है, जिस के चलते वे आज भी लेखन और थिएटर से जुड़े रहना पसंद करते हैं. सामाजिक मुद्दों पर बनी उन की 2 डौक्यूमैंट्री फिल्में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुकी हैं.
इस उम्र में एकदूसरे के लिए क्या महसूस करते हैं, इस पर दिलीप का कहना था, ‘‘यह सवाल बेमानी है हमारे लिए चूंकि हमारा स्वभाव और आदतें एकदूसरे से बिलकुल भिन्न हैं. पहले तो आपस में तालमेल बैठाना ही बड़ा मुश्किल लगा. लेकिन जल्द ही हम ने एकदूसरे के स्वभाव को पहचान आपसी समझ से एकदूसरे को स्पेस दिया. फलस्वरूप, हमारी बौडिंग दिनोंदिन मजबूत होती चली गई.’’
बात को आगे बढ़ाते हुए मानसी का कहना था, ‘‘इन का गुस्सा दूध में आए उबाल जैसा होता है. जितनी जल्दी आता है उतनी ही जल्दी शांत भी हो जाता है. इन्हें मनाने का तरीका भी बहुत सरल है. इन्हें थोड़ी सी गुदगुदी कर दो, बस, कुछ ही देर में इन का सारा गुस्सा छूमंतर हो जाता है. अभी भी हमारे बीच थोड़ीबहुत नोकझोंक चलती रहती है पर सही माने में यही हमारी सेहत की खुराक है क्योंकि बिना इस के जिंदगी नीरस है.’’
एकलौती बेटी रायपुर में रहती है, वह रोजरोज हमें संभालने तो नहीं आ सकती. सो, हम दोनों ही एकदूसरे की देखभाल करते हैं और इसी में खुश हैं. हम ने अपनेअपने काम तय कर रखे हैं और उन्हीं कामों के बीच हंसतेगाते समय कब व्यतीत होता है, पता ही नहीं चलता. हमारे लिए सिक्स्टीज की उम्र एक नईर् पारी की शुरुआत है और हम दोनों की कोशिश है कि इस उम्र को भरपूर जिएं.
सुधा-दिवाकर की रोमांटिक लाइफ
फ्रीडीच एटैक्सिया (एक न्यूरोडिजनरेटिव डिस्और्डर) नामक बीमारी से जूझ रही अपनी बेटी का हौसला बने डा. दिवाकर और सुधा जिंदगी की तमाम उलझनों के बीच भी हंसतेमुसकराते हुए उम्र के इस पड़ाव को जी रहे हैं. इस दंपती ने अपनी भरपूर कोशिशों से बेटी को जोश से भर कर उसे अपनी बीमारी पर रिसर्च करने को तैयार किया. फलस्वरूप, आज वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सफलताएं अर्जित कर रही है.
सर एसजीएसआईटीएस, इंदौर के हैड औफ द डिपार्टमैंट पद से रिटायर दिवाकर खुद अपनी मैथमैटिक्स की रिसर्च में लगे रहते हैं. पत्नी सुधा वैष्णव पौलीटैक्निक कालेज में लैक्चरर रह चुकी हैं. वे पति का साथ देते हुए लगातार यह तय करती हैं कि पारिवारिक व सामाजिक उलझनें डा. साहब को कतई परेशान न करने पाएं, क्योंकि रिसर्च में मानसिक शांति बहुत जरूरी होती है.
वे उन्हें वही माहौल देने की कोशिश करती हैं. इस उम्र की समस्याएं और उन के हल करने पर सुधा का कहना है, ‘‘जिंदगी को हमेशा आज में जीना चाहिए. पिछली जिंदगी और उस पर आरोपप्रत्यारोप दिलों में दूरियां पैदा करते हैं. सो, पतिपत्नी द्वारा जो हो चुका है उसे भुला कर, जो मिला है उसे सहेजने की कोशिश करनी चाहिए.’’
क्लासिकल म्यूजिक की शौकीन सुधा ने हाल ही में इस की क्लास जौइन कर अपने शौक को दोबारा जीना शुरू किया है. उन का कहना है कि कुछ वक्त सिर्फ अपने लिए जीना उन्हें सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है, जिस से आने वाली चुनौतियों के लिए फिर से वे अपनेआप को तैयार पाती हैं.
इस उम्र में एकदूसरे को भावनात्मक सपोर्ट करना बहुत अहम है. इसलिए एकदूसरे की नाराजगी या उदासी दूर करने और अपनी मस्ती व रोमांच को बनाए रखने के लिए दिवाकर व सुधा आउटिंग पर जाना पसंद करते हैं, फिर चाहे वह पिक्चर देखना हो या फ्रैंड्स के साथ कहीं घूमने जाना.
खुशमिजाज कांति-सत्यप्रकाश
‘जिंदगी जिंदादिली का नाम है,’ ‘मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं’ उक्त कहावत पर अमल करती यह जोड़ी वाकई जिंदादिली की मिसाल है, क्योंकि वक्त की आंधियों के बीच आज भी इन के प्यार की सुरमई ज्योति ज्यों की त्यों जगमगा रही है. उम्र को दरकिनार कर अगर आज भी इन का रिश्ता एक ताजे फूल की तरह महक रहा है, तो उस के पीछे इन की एकदूजे के लिए बेपनाह मुहब्बत और परवा है. दिल्ली के बदरपुर इलाके में रहने वाले डा. सत्यप्रकाश पाठक व उन की पत्नी कांति पाठक से जो भी मिलता है, प्रभावित हुए बगैर नहीं रह पाता. दोनों ही बेहद खुशमिजाज और हरदिल अजीज इंसान हैं, जो प्यार और सिर्फ प्यार के सिद्धांत पर कार्य करते हैं.
नौकरी से रिटायर हो चुके डा. सत्यप्रकाश जानेमाने कवि भी हैं. समाज की ज्वलंत समस्याओं पर आधारित उन के काव्य संग्रह ‘मैं तो दहेज की मारी हूं’ का लोकार्पण वर्ष 1997 में देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकरदयाल शर्मा ने किया था. देशभक्ति पर आधारित उन की दूसरी किताब ‘मेरा देश बचा लो’ का विमोचन वर्ष 2003 में उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत द्वारा किया गया था. अभी फिलहाल वे अमर स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद के जीवन पर एक काव्य लिख रहे हैं.
कांति यों तो हाउसवाइफ हैं परंतु हर परिस्थिति में पति का साथ देने को तैयार रहती हैं. सिक्स्टीज की लवलाइफ के बारे में पूछने पर दोनों एकदूसरे की आंखों में देखते हुए कहते हैं कि हमारी नजरों में प्यार जिंदगी का दूसरा नाम है.
पत्नी के लिए लिखी कविताओं को सुनाते समय सत्यप्रकाश जहां आज भी रूमानी हो जाते हैं, वहीं कांति की आंखों में शर्म की लालिमा साफ नजर आती है. बच्चों व समाज के प्रति अपने सभी कर्तव्यों को वहन करते हुए सिक्स्टीज की लाइफ को ऐंजौय करता यह जोड़ा सच में बेमिसाल है.