दो दिनों पहले आए एक फोन ने मुझे चौंका दिया. मेरे दूर के एक बुजुर्ग रिश्तेदार का फोन था. उन्होंने कहा, ‘‘एक सरप्राइज पार्टी है कल. होटल अंश में तुम सब चले आना शाम 7 बजे तक और खाना मेरे संग खाना.’’
शाम तक पता चला कि शहर में रहने वाले अन्य रिश्तेदारों के पास भी उन का फोन आया है. अचानक भूलेबिसरे से हमारे ये बुजुर्ग चाचाजी हमारी चर्चा में आ गए. वर्षों पहले चाचीजी का निधन हो चुका था. चाचाजी पैंशन पाते थे और एक सामाजिक संस्थान से जुडे़ थे. पहले तो कई महीने चाचीजी के गम में बीमार ही पड़े रहे थे. बाद में उन के ही एक मित्र ने उन्हें उस संस्थान से जुड़ने को प्रेरित किया. धीरेधीरे वे उस संस्थान के क्रियाकलाप में व्यस्त रहने लगे थे.
नियत समय से कुछ पहले ही मैं होटल पहुंच गई थी, चाचाजी अकेले ही बैठे होटल मैनेजर से कुछ बातें करते दिखे. पता चला उन्होंने खुद ही अपना 80वां जन्मदिन मनाने का फैसला किया और सभी जीवित दोस्तों व रिश्तेदारों को आमंत्रित किया है. यहां तक कि दूसरे शहरों में रहने वाले उन के बच्चे भी मेहमान की ही तरह पहुंचे थे. उन्हें भी भनक नहीं लगने दी थी चाचाजी ने.
मैनेजर ने बताया कि अंकलजी 2-3 महीने से तैयारी कर रहे हैं. कभी कोई सुझाव देते हैं, कभी कोई बदलाव करते हैं.
सच, हम सब ने चाचाजी को बिसरा ही दिया था. पिछले साल मेरे बेटे की शादी में ही उन से मिलना हुआ था. मैं ने पूछा, ‘‘चाचाजी, आप के उस संस्थान में क्या और कैसी गतिविधियां चल रही हैं?’’ तो चाचाजी ने बताया, ‘‘मैं जिस सामाजिक संस्थान से जुड़ा हूं वह बेसहारा और गरीब बुजुर्गों के लिए कार्य करता है. उस से जुड़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि सच में मेरा गम बहुत कम है. दूसरों को देख मुझे महसूस हुआ कि मेरे पास जो मौजूद है वह खुश रहने के लिए काफी है.’’