धीरुभाई अंबानी बहुत ज्यादा कंजूस नहीं थे. लेकिन वे इतने फिजूलखर्च भी नहीं थे कि अपने बेटों मुकेश और अनिल की शादियों पर उतना पैसा फूंकना गवारा करते जितना कि उन के बड़े बेटे मुकेश ने अपने छोटे बेटे अनंत अंबानी की शादी पर फूंका. अगर पैसा खर्च करने और पैसा उड़ाने या फूंकने के बीच कोई लाइन नहीं खींची जा सकती तो यह तय कर पाना मुश्किल है कि मुकेश अंबानी ने अनंत अंबानी की शादी में पैसा खर्च किया है या फूंका है. अंदाजा है कि इस शाही शादी पर कोई 5 हजार करोड़ रूपए खर्च किए गए जो मुकेश अंबानी की अकूत दौलत का एक फीसदी हिस्सा भी नहीं है.

धीरुभाई अंबानी के बारे में हर कोई जानता है कि वे एक पेट्रोल पम्प पर 300 रूपए महीने की नौकरी करते थे और अपने कैरियर के शुरूआती दौर में बहुत छोटे लेबल पर मुंबई में मसालों का कारोबार करते थे. कभी उन्होंने मेलों ठेलों में पकोड़े भी बेचे थे. यानी वे एक गरीब और जमीन से जुड़े कारोबारी थे जिस के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह शख्स मिट्टी से भी पैसा बना लेता है. एक बार उन्होंने यमन के एक शेख को गुलाब उगाने के लिए उपजाऊ भारतीय मिट्टी बेची भी थी और इस से खासा मुनाफा कमाया था. आदमी जब धीरूभाई जितना बड़ा और कामयाब हो जाता है तो उस से जुड़े कई झूठे सच्चे किस्से कहानियां भी मार्किट में चलन में आ जाते हैं. जुझारू और मेहनती धीरुभाई इस के अपवाद नहीं रहे जिन का खड़ा किया आर्थिक साम्राज्य दिनों दिन बढ़ता गया और मुकेश अंबानी ने तो उसे शिखर पर पहुंचा दिया.

मुकेश अंबानी ने अपने बेटे की शादी पर जो भी खर्च किया उस के चर्चे विदेश में भी है. इस शाही शादी पर भारतीय मीडिया का रुख बेहद तटस्थ रहा क्योंकि कोई भी अपने सब से बड़े विज्ञापनदाता की नाराजी मोल नहीं लेना चाहता था. उलटे अपने इस क्लाइंट को खुश करने या यूं ही चटपटी खबरें परोसने का रिवाज निभाते लगभग सभी न्यूज़ चैनल्स ने राधिका मर्चेंट के लहंगे, नीता अम्बानी की ज्वैलरी और अनंत अम्बानी की ड्रैसेज कैसी थीं जैसे विषयों को हाई लाइट किया जो पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांतों ( अगर कहीं बचे हों तो ) से मेल न खाती एक तरह से फिजूल की बातें थी.

लेकिन विदेशी मीडिया ने भारत में पसरती आर्थिक असमानता को मुद्दा बनाते बेबाक हो कर अपनी राय रखी. सब से सख्त कमेंट कतर के मीडिया हाउस अल जजीरा ने यह लिखते किया कि इस शादी पर बेतहाशा पैसा खर्च किया गया. रिलायंस के एक अधिकारी के हवाले से अल जजीरा कहना यह रहा कि यह ग्लोबल स्टेज पर भारत के बढ़ते कद को दिखाने वाली शादी है. गौरतलब है कि अल जजीरा के चैनल्स को इजरायली संसद ने आतंकवादी करार देते कानून बना कर हर तरह के प्रसारण को प्रतिबंधित कर रखा है.

अपनी तरफ से राय देने से बचते इस अख़बार ने केरल के एक घोर मार्क्सवादी नेता डाक्टर थामस इसाक के हवाले से यह भी कहा कि भले ही यह उन का पैसा है लेकिन शादी पर किया गया खर्च गरीबों और धरती पर किया गया पाप है. फक्कड़ और पढ़ाकू कहे जाने वाले 71 वर्षीय थामस इसाक 2 बार केरल के वित्त मंत्री रह चुके हैं. जमीन जायदाद के नाम पर उन के पास केवल लगभग 10 लाख रूपए मूल्य की 20 हजार किताबें भर हैं.

मुमकिन है उन का यह बयान मार्क्सवादी संस्कारों की भड़ास हो जो पूंजी के असमान वितरण का रोना झींकना अपनी ड्यूटी समझता है. उलट इस के खुद मुकेश अंबानी और शादी में मौजूद धर्माचार्यों ने जम कर सनातनी संस्कारों का राग अलापा. देश के तमाम ब्रांडेड धर्माचार्य इस शादी में फ़िल्मी सितारों, खिलाड़ियों, राजनेताओं और दीगर क्षेत्र की हस्तियों की तरह हाजिरी लगाने आए थे. इन में प्रमुख थे जूना अखाड़ा के मुखिया अवधेशानंद गिरी, ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्रानंद, द्वारका शारदा पीठ के मुखिया सदानंद के अलावा मशहूर कथावाचक देवकी नंदन ठाकुर और रामभद्राचार्य सहित बागेश्वर बाबा यानी धीरेंद्र शास्त्री जो शादी के दिन आस्ट्रेलिया में कथा बांच रहे थे को तो खासतौर से हवाईजहाज भेज कर बुलाया गया था.

रामदेव और उन के बिजनेस पार्टनर आचार्य बालकृष्ण भी इस भज भज मंडली में थे. शादी के बाद वायरल हुए एक वीडियो में बड़े दिलचस्प तरीके से धर्म के ये अभिनेता फिल्मी अभिनेता अमिताभ बच्चन के सामने अर्दलियों जैसे सर झुकाते दिख रहे हैं. इस वीडियो में इन की बौड़ी लैंग्वेज देख तो लगता है कि दुनिया भर के भक्तों से पैर छुआने बाले ये संत महंत बाबा और मठाधीश कहीं अमिताभ बच्चन के पैर ही न छू लें. इस से इन संतों की तो नहीं बल्कि अमिताभ बच्चन की अहमियत और लोकप्रियता ही साबित हुई. साथ ही साबित हुई संतों की हीनता जो भक्तों की दक्षिणा पर शाही विलासी जिंदगी जीते हैं और एवज में अपना आशीर्वाद, मोक्ष और पाप मुक्ति बगैरह बांटा करते हैं. अमिताभ तो फिर भी एक्टिंग के जरिए लोगों का मनोरंजन करते हैं.

उपर बताई लिस्ट से स्पष्ट होता है कि वैष्णव और शैव दोनों सम्प्रदायों के संत फौरीतौर पर अपने मतभेद भुलाते हुए जियो वर्ल्ड में थे जिन में से शंकराचार्यों की मौजूदगी को ले कर जो खासा विवाद सनातनियों में मचा. उस से पहले मुकेश अंबानी की सनातनी स्पीच पर गौर करना जरुरी है जिन्होंने विवाह की व्याख्या करते हुए यह धार्मिक सा प्रवचन दिया –
हिंदू धर्म में वेद विवाह को मानवता के प्रति कर्तव्य मानते हैं. विवाह परिवार का आधार है, परिवार समुदाय का और समुदाय समाज का आधार है. विवाह मानव की एकजुटता कल्याण और प्रगति का गारंटर होता है. इसलिए अनंत और राधिका का विवाह समग्र रूप से मानवता के लिए प्रतिबद्ध है. मैं पूरी श्रद्धा से हमारे कुलदेवता, ग्राम देवता, इष्टदेवता और अंबानी और मर्चेंट परिवार के सभी बड़ों का आव्हान करता हूं. इस ख़ास दिन पर हम इकट्ठा होकर पंचतंत्र का आव्हान करते हैं जो पृकृति के पांच मूलभुत घटक हैं और धरती पर हर जीव का पालनपोषण करते हैं.

पूरा वातावरण आध्यत्मिक हो गया है. सभी देवीदेवता स्वर्ग से यहां उतर आए हैं सभी देवीदेवताओं, दोस्तों, रिश्तेदारों और सभी मेहमानों के आशीर्वाद के साथ शुभ विवाह समारोह की शुरुआत करते हैं जय श्री कृष्णा. इतना ही नहीं उन्होंने अनंत को विष्णु और राधिका को लक्ष्मी तक करार दे डाला.
उपर वाले देवीदेवता तो जियो वर्ल्ड सेंटर में किसी को नजर नहीं आए लेकिन नीचे वाले देवीदेवताओं को देश भर ने देखा. इस जमावड़े में हर क्षेत्र की हस्तियां थीं जिन्हें आज के दौर का देवीदेवता कहा जा सकता है. इन में कुछ गोरे विदेशी देवीदेवता भी आकर्षण का केंद्र बने हुए थे. देसी धर्म गुरुओं की मौजूदगी तो एहसास करा ही रही थी कि पौराणिक शादियां कैसी और कितनी भव्य होती थीं. यही इस युग के ऋषि मुनि हैं लेकिन उन के पास इतनी शक्ति नहीं थी कि उपर से फूल बरसा पाते, लिहाजा नीचे से ही पुष्प वर्षा और यजमानों और उन के खास मेहमानों के गले में भगवा गमछा ओढ़ातेआशीर्वाद उन्होंने दे दिए. सियासी देवीदेवताओं की लिस्ट भी बहुत लम्बी है इन में से कुछ ऐसे भी थे जिन्हें मुकेश अंबानी का धुर विरोधी कहा जाता है मसलन लालू यादव, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव वगैरह. नहीं थे तो बस गांधी परिवार के सदस्य खासतौर से राहुल गांधी जो इंडिया गठबंधन के दूसरे नेताओं की तरह नरेंद्र मोदी पर यह आरोप मढ़ते रहते हैं कि उन्होंने देश का सारा पैसा और संपत्तियां अम्बानी अडानी को बेच दी हैं या दे दी हैं.

इन तमाशे में 4 जून के नतीजों का भी असर साफसाफ देखा गया क्योंकि मुकेश अंबानी खुद सोनिया, राहुल गांधी को अनंत राधिका की शादी का इनविटेशन देने गए थे. लेकिन राहुल गांधी उन से नहीं मिले थे. तय है यह उन का स्वाभिमान और नरेंद्र मोदी का वह तंज था जिस में उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान बीती 8 मई को तेलंगाना के वेमुलवाडा की एक रैली में उन पर निशाना साधते कसा था कि वह यानी ‘राहुल गांधी अंबानी, अडानी का नाम इसलिए नहीं ले रहे क्योंकि कांग्रेस ने इन उद्योपतियों से तगड़ा पैसा लिया है. शहजादे बताएं कि कितना माल उठाया है. क्या टेम्पो भर कर नोट कांग्रेस के पास पहुंचे हैं?’
इस राजनीति से परे मुकेश अंबानी ने जरुर यह अंदाजा 4 जून के नतीजे देख लगा लिया लगता है कि भाजपा अब कमजोर हो रही है और आने वाला वक्त राहुल गांधी का भी हो सकता है. लिहाजा मैं क्यों किसी का लिहाज करूं. मुझे तो व्यापार करना है फिर सरकार चाहे एनडीए की हो या इंडिया गठबंधन की हो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या राहुल गांधी हों या कोई और हो.
जाहिर है अपने पिता की तरह मुकेश अम्बानी भी व्यावसायिक बुद्धि के धनी हैं. मुकेश अंबानी भले ही बेटे की शादी में व्यस्त रहे हों लेकिन दुनिया के बड़े उद्योपतियों में से एक होने के नाते उन की नजर ब्रिटेन, फ़्रांस और ईरान जैसे देशों के चुनावी नतीजों पर भी थी जो दक्षिणपंथियों की विदाई की स्क्रिप्ट लिख गए. देश में बाकी रही सही कसर विधानसभा उपचुनावों ने पूरी कर जिन में 13 में से 10 सीटें इंडिया गठबंधन ले गया और भाजपा के खाते में गिरते पड़ते 2 ही सीटें आईं.

बिलाशक यह यानी टेम्पो वाली भाषा प्रधानमंत्री स्तर की भाषा नहीं थी. इस पर राहुल खामोश नहीं रहे थे क्योंकि आरोप गंभीर था. इसलिए उन्होंने तुरंत पलट कर जबाब देते नरेंद्र मोदी की बोलती यह कह कर बंद कर दी थी कि ‘एक काम कीजिए सीबीआई, ईडी को इन के पास भेजिए, पूरी जांच कराइए, घबराइए मत. नौर्मली आप बंद कमरों में अडानीजी, अम्बानीजी से बात करते हो. पहली बार पब्लिक में दोनों का नाम बोला, क्या अडानी अम्बानी आप को टेम्पो में भर कर पैसा देते हैं. ये आप का पर्सनल एक्सपीरियंस है?’
इस बयानबाजी के चलते राहुल गांधी ने तो अंबानी के यहां जाना मुनासिब नहीं समझा. लेकिन नरेंद्र मोदी गए तो तरहतरह की चर्चाएं चौराहों से ले कर घरों के लिविंग रूम तक में हुईं. लेकिन सब से ज्यादा चर्चा जो मुद्दे की बात है इस बात पर हुई कि अंबानी परिवार संस्कारवान और सनातन प्रेमी है. सोशल मीडिया पर तो ऐसी पोस्टों की बाढ़ आ गई जिन में पैसे के फूहड़ और गैरजरूरी प्रदर्शन का तो जिक्र नहीं था. लेकिन यह बढ़ाचढ़ा कर बताया जा रहा था कि अंबानीज के पास क्यों इतना पैसा है.
अंबानी परिवार संस्कारित है, पूजापाठी है, आस्थावान है जैसी पोस्टों और वीडियोज से सोशल मीडिया भरा पड़ा है. शादी वाली जगह यानी वेन्यू पर भी धर्म साफसाफ दिख रहा था. जाहिर है मुकेश व नीता अंबानी खुद को सनातनी जताने का कोई मौका नहीं छोड़ते, उलटे नए नए मौके पैदा करते रहते हैं.

ऐसा ही एक चर्चित मौका नीता अंबानी ने आज से 5 साल पहले पैदा किया था. अगर आप इसे पढ़ना चाहते हैं तो इसी वेब साईट पर पढ़ सकते हैं. 15 मई 2019 को प्रकाशित इस लेख का शीर्षक है, ‘नीता अम्बानी ने तोड़े अंधविश्वासों और पाखंडों के वैदिक रिकार्ड.’   https://www.sarita.in/society/neeta-ambani       गूगल पर यह शीर्षक टाइप करते ही यह दिलचस्प लेख आप की स्क्रीन पर दिखने लगेगा.
जियो वर्ल्ड सेंटर को बनारस थीम पर बनाया और सजाया गया था. चारों तरफ देवीदेवताओं के फोटो और मूर्तियां देख हर किसी को मंदिर जैसी फीलिंग आ रही थी. मंत्रोच्चार लगातार होता रहा. रहीसही कसर अरबों के आसामी इस यजमान से करोड़ों की दक्षिणा की आस लिए आए धर्म गुरुओं ने कर दी. इनका अम्बानी परिवार ने वैदिक विधि विधान से पूजापाठ और सत्कार किया नरेंद्र मोदी भी बारीबारी सभी धर्म गुरुओं के चरणों में शीश नवाते दिखे. माहौल कुछ क्या पूरा ही वैसा था मानो किसी विष्णु अवतार के विवाह में चारों तरफ ऋषि मुनि विराजे हों. इन सभी के खासतौर से वर वधु अनंत और राधिका से पैर छुलाए गए.
शादी और आशीर्वाद समारोह के दूसरे दिन से ही सनातन धर्मियों ने यह प्रचार शुरू कर दिया था कि यूं ही कोई अम्बानी नहीं हो जाता. इस के लिए खूब धर्मकर्म दान पुण्य करना पड़ते हैं और पूर्वजों के पुण्यों और धर्मकर्म से भी पैसा मिलता है. दरअसल में मुकेश अम्बानी का भाजपा, भगवा और मोदी प्रेम किसी सबूत का कभी मोहताज नहीं रहा लिहाजा धर्म के ठेकेदारों और दुकानदारों में किसी किस्म के विरोध या एतराज जताने की न तो हिम्मत थी और न ही जरूरत थी. इसलिए इन्होने इस तमाशे को भी धर्म प्रचार का जरिया बना डाला.

मकसद हमेशा की तरह यह था कि ग्राहकी बढ़े, अमीर बनने के लालच में लोग और दिन दोगुनी रात चौगुनी दक्षिणा दें और अंधविश्वासी बनें. मैसेज सीधा सा यह भी था कि अम्बानी जैसी दौलत चाहते हो तो उन की तरह ही सनातन धर्म का पालन करो, ब्राह्मणों साधु संतों का आदर सत्कार करो और दान देने में कंजूसी मत करो.
धर्म के धंधे से जुड़े लोगों ने कैसेकैसे प्रचार कर लोगों का ब्रेनवाश करने की कोशिश की उस की एक बानगी एक वीडियो के जरिए समझाई गई. इस वीडियो में एक स्मार्ट सा युवक एक युवा संत से पूछ रहा है कि मेहनत और धर्मकर्म तो हर कोई करता है लेकिन इतना पैसा अंबानीके पास ही क्यों. इस युवक का नाम कुलदीप सिंघानिया है जो असफल टीवी आर्टिस्ट है. अब पैसे कमाने वह सोशल मीडिया पर टोनेटोटकों का प्रचार करने लगा है.

यह एक ऐसा सवाल है जो स्वभाविक तौर पर हर किसी के जेहन में है इस के जवाब में कुलदीप के सामने बैठा बाबा में जो गिनाता है वह बेहद डराने वाला भी है और दान धरम के लिए आतंक की हद तक उकसाने वाला भी कि आज लोग सनातन धर्म से यानी व्रत, तीज त्योहारों, संस्कृति और परंपराओं से विमुख होते जा रहे हैं. इसलिए हैरान परेशान और दरिद्र से हैं.
अम्बानी परिवार तबियत से धर्मकर्म करता है. गरीबों की मदद और सेवा करता है, मंदिरों में मंगला आरती करता और करवाता है जिस से उन्हें तमाम देवीदेवताओं का आशीर्वाद रोजरोज मिलता है और इन के पूर्वज भी यही करते थे. यह अथाह दौलत इन्ही पुण्यों की देन है. इस में पूर्व जन्मों के पुण्य भी शामिल हैं. मुकेश अंबानीऔर धीरू भाई अंबानी पूर्व जन्म के तपस्वी हैं जिस का फल अब उन्हें मिल रहा है, जैसी बकबास और चालाकी भरी बातें भला किसे न ललचाएंगी कि आज धर्म कर्म कर लो और फिर अगले जन्म में पैसे वाले बन कर मौज करो.

कुलदीप और उस का इंटरव्यू दाता बाबा शायद ही बता पाएं कि इस देश में धर्मकर्म के सिवाय और होता ही क्या है. लोग इतने भाग्यवादी होते जा रहे हैं कि उन का आत्मविश्वास डगमगाने लगा है इसलिए वे धर्म स्थलों और तीर्थ स्थलों की तरफ चमत्कार का दम भरने वाले बाबाओं की तरफ भाग रहे हैं. और धर्मकर्म पर 10 नहीं बल्कि 25 फीसदी से भी ज्यादा कमाई खर्च कर रहे हैं. इस के बाद भी वे हैरान परेशान और दुखी क्यों हैं.
जहां तक बात अंबानी परिवार और दूसरे रईसों की है तो ये दोनों और दूसरा कोई बता सकता है कि पूर्व जन्म में इन्होने कहां कितना धर्म और दान पुण्य किया था और क्या उस का कोई सबूत ये पेश कर सकते हैं. अगर नहीं तो कोरी सनातनी गपें और लफ्फाजी क्यों, कुछ पैसों के लिए ये भी समाज को गुमराह करने वालों के गिरोह में उस टैक्नोलौजी के जरिए क्यों शामिल हो रहे हैं जिसे बेच कर रिलायंस नाम का एम्पायर धीरूभाई अंबानी ने खड़ा किया और मुकेश ने उसे आसमान तक पहुंचाया.
इन दोनों ने कोई गौ मूत्र या गोबर नहीं बेचा और न ही मंदिरों का धंधा किया हां इन्हें प्रोत्साहन देने का गुनहगार जरुर इन्हें कहा जा सकता है. धीरू भाई ने अपने दौर में पेट्रोकैमिकल, संचार और बिजली के साथसाथ बेहतरीन क्वालिटी के पोलिएस्टर कपड़ों का व्यापार किया जो साइंस और टैक्नोलौजी के देन हैं. इन की खोज या अविष्कार धर्म स्थलों में नहीं हुआ था बल्कि प्रयोगशालाओं में हुआ था जहां वैज्ञानिक दिन रात मेहनत कर दुनिया को कुछ नया देते हैं और एवज में दक्षिणा नहीं बल्कि जीवन यापन के लिए मेहनताना लेते हैं जिसे सैलरी कहा जाता है.

इन की खोजों से जिंदगी आसान होती है उलट इस के धर्मस्थलों में विराजे धर्म गुरु सिर्फ सड़े गले उपदेश देते रहते हैं जिन से समाज का कोई भला नहीं होता लेकिन नुकसान इतने होते हैं कि आदमी की जिंदगी जटिल और जी का जंजाल बन कर रह जाती है. वह इन की लच्छेदार बातों में फंस कर द्वंद का शिकार हो जाता है और फिर चाह कर भी इन के बिछाए मकड़ी जैसे जाले से आजाद नहीं हो पाता. तरस तो इस बात पर भी आता है कि हर कोई दिन रात टैक्नोलाजी का इस्तेमाल करता है लेकिन श्रेय धर्म को देता है. इस के बाद भी जो चमकदमक दिख रही है वह संविधान और लोकतंत्र की वजह से है जो टैक्नोलौजी को प्रोत्साहित करते रहे हैं.

मुकेश अंबानी ने अनंत की शादी में पैसों की नुमाइश कर कोई बहुत बड़ी गलती नहीं की बल्कि उन की बड़ी गलती इस नुमाइश की आलोचना से बचने के लिए उस पर सनातन का मुल्लमा चढ़ाने की जरुर कर दी है.
उन्होंने कोई आदर्श या मिसाल स्थापित नहीं किए हैं. हां अगर चाहते तो बेटे की शादी सादगी से कर जरुर कर सकते थे. इस बाबत जरुर हर कोई उन की तारीफ कर रहा होता कि देखो देश के सब से बड़े रईस ने कितनी किफायत और सादगी से बेटे की शादी की तो क्यों न हम भी प्रेरणा ले कर ऐसा ही करें. लेकिन वे भी उस कुंठा और भ्रम के शिकार हैं सब कुछ ऊपर कहीं बैठा भगवान और नीचे बैठे उस के एजेंट करते हैं जो धर्म ग्रंथों के जरिए या साबित करते रहते हैं कि तुम्हारे पास जो कुछ भी है वह ईश्वर की कृपा है और अगर कुछ नहीं है तो वह ऊपर वाले की नाराजी है जिसे दूर करने हमे पैसे देते रहो.
अगर पूर्वजों के पुण्यों से पैसा मिलता है तो अनिल अंबानी, मुकेश अंबानी के मुकाबले कम पैसे वाले क्यों हैं. यह ठीक है कि धीरुभाई ने जीतेजी अपनी दौलत की वसीयत न करने की चूक की थी जिस के चलते दोनों भाइयों में विवाद और मतभेद हुए थे. लेकिन क्या धीरुभाई अपने पुण्यों की वसीयत कर गए थे और उस में भी ज्यादा हिस्सा मुकेश के नाम कर गए थे.
देश में करोड़ों लोग गरीब हैं. 80 करोड़ तो घोषित तौर पर वे हैं जो हर महीने मुफ्त का सरकारी अनाज लेते हैं और लगभग 40 करोड़ वे हैं जो गरीबी रेखा से थोड़े ही ऊपर हैं. तो क्या इन सौ करोड़ लोगों के पूर्वज पापी थे. आप यकीन माने धर्म के इन शातिर दुकानदारों और कारोबारियों से जबाब यही मिलेगा कि हां जो गरीब हैं, शूद्र हैं, दलित हैं ओबीसी वाले हैं, आदिवासी हैं वे हिंदू शास्त्रों और उन में भी मनु स्मृति के मुताबिक पूर्व जन्म के पापी ही हैं जो इस जन्म में उन की सजा भुगत रहे हैं. मुसलमान तो घोषित तौर पर विधर्मी हैं ही. इस से बचने के लिए उपाय वही हैं जो कुलदीप के सामने बैठा धूर्त बाबा बता रहा है और तमाम बाबा भी यही भाषा बोलते लोगों को डराते और बरगलाते रहते हैं.
धर्म का यह धंधा सभी कर रहे हैं मस्जिदों से निकलती पांचों वक्त की अजान और नमाज, मंदिरों में घंटों बजते घंटे घड़ियाल, चर्चों में भी पसरा नरक स्वर्ग का कारोबार और वहां भी रखी दान पेटियां, बौद्धों का मूर्ति पूजन और पाखंडों में डूबना, सिखों का धर्म के नाम पर अलग होने का उन्माद, जैन मंदिरों का लगातार देश भर में भव्य निर्माण और दान दक्षिणा की प्रवृति इस के कुछ बेहतर उदाहरण हैं.
रह गए दलित पिछड़े और आदिवासी तो उन के लिए भी मोक्ष और मुक्ति का इंतजाम करने का दावा करने बाले सूरज पाल उर्फ़ भोले बाबा जैसे सैकड़ों हजारों छोटे बड़े बाबा गलीगली में अपनी चमत्कारों की दुकान खोले बैठे हैं और मुफ्त का माल उड़ा रहे हैं.
हालिया लोकसभा चुनाव में मूल मुद्दा संविधान बनाम मनु स्मृति ही था इस के नतीजे कैसे और क्यों निकले यह आप सरिता के पिछले 10 अंकों में पढ़ चुके हैं और न पढ़े हों तो अब पढ़िए. बाजार में प्रिंट कापी न मिले तो इसी डिजिटल पर पढ़िए, जिस से आप को यह समझ आए कि बिकाऊ मीडिया का यह दौर कैसे कैसे आप का नुकसान कर रहा है और कोढ़ में खाज ये पंडे, पुजारी, पेशवा और नए दौर के मौडर्न ड्रैस वाले कुलदीप सरीखे नौजवान कैसे पैदा कर रहे हैं. सियासी तौर पर अफसोस तो तब होता है जब विपक्ष भी इस षड्यंत्रकारी मुहिम का हिस्सा जानेअनजाने में कभीकभी बन जाता है. लोकतंत्र और संविधान राजनेताओं से कम इन धर्म गुरुओं से ज्यादा खतरे में है जो आप से आप की आजादी सहजता और आनंद छीन रहा है.
इस के बाद भी सुख शांति बांटने वाले खुद इन धर्म गुरुओं के दिलोदिमाग में सुकून नहीं है. अनंत अंबानी की शादी के बहाने एक बार फिर शैवो और वैष्णवों का अहम और बैर उजागर हुआ. सोशल मीडिया पर वैष्णवों ने दोनों शंकराचार्यों को जम कर कोसा. एक वायरल हुई पोस्ट में कहा गया कि धन्यवाद अम्बानी जी जो आपने दोहरे चरित्र वाले बहुरूपियों को पूरे देश के सामने नंगा कर दिया.
इस में फिल्मी गानों पर कूल्हे और नितंब मटकाती कामुक अंदाज में नाचती प्रियंका चोपड़ा भी थी और इस अत्यंत पवित्र वातावरण में शादी की शोभा बढ़ाने के लिए द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती और ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद भी पहुंच गए थे. इन शंकराचार्यों ने 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भगवान राम के मंदिर में प्रभु राम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का सार्वजनिक बहिष्कार तिरस्कार बाकायदा मीडिया में बारबार यह बयान दे कर किया था कि यह आयोजन धर्म विरुद्ध तरीके से विधि विधान के अनुसार नहीं किया गया है.
इस लम्बीचौड़ी पोस्ट के आखिर में एक बार फिर अंबानी को धन्यवाद दिया गया है कि उन्होंने शैवों का दोहरा चरित्र बेटे की शादी में कर दिया. इस लड़ाई से अम्बानी का कोई लेनादेना नहीं है जिन्होंने पैसा फेंक कर तमाशा देखा और दुनिया को भी दिखाया. दरअसल में यह लड़ाई ग्राहकी और दानदक्षिणा की छीनाछपटी के साथसाथ धर्म गुरुओं के अहंकार और ठसक की है जिस का कोई आदि है न अंत होगा. क्योंकि धर्म के धंधे में मुफ्त के पैसे की लूट पर शैव और वैष्णव और बाकी संप्रदाय भी अपना हक जताते कब्जा जमाना चाहते हैं.
सरिता इन का यह चाल चरित्र और ठगी को 70 सालों से उजागर कर रही है और आगे भी करती रहेगी क्योंकि देश की एकता अखंडता और तरक्की की राह में रोड़े यही अटकाते हैं. नेताओं और पार्टियों के पर तो जनता वोट के जरिए जब चाहे कुतर सकती है लेकिन इन भस्मासुरों से छुटकारा मुश्किल है लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि इन के सामने घुटने टेक दिए जाएं. हकीकत समझते सभी लोग सामूहिक प्रयास करें तो जरुर देश विश्व गुरु बन सकता है क्योंकि तब टैक्नोलौजी में हम सब से आगे होंगे और हम इंडियंस की मेहनत सही दिशा में लगेगी.

 

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