लोहरदगा (झारखंड) की एक बिटिया ने गत 14 जून को स्वयं आगे बढ़ कर अपने विधुर पिता की शादी कराने का हौसला दिखाया. 42 साल के महावीर उरांव की पत्नी का निधन एक साल पहले हो चुका है. उन के 2 लड़के और 2 लड़कियां हैं. वहीं 45 वर्षीया, मनियारी उरांव भी अकेली थीं. उन के पति ने 7 साल पहले उन्हें छोड़ दिया था. उन की एक 27 वर्षीय पुत्री है, जिस की शादी हो चुकी है.

महावीर और मनियारी दोनों दिल ही दिल में एकदूसरे को पसंद करते थे और इस बात की जानकारी महावीर की 17 वर्षीया पुत्री प्रमिला टोप्पो को थी. उसी के प्रयासों से जीवनसाथी खो चुके 2 तनहा दिलों की उजड़ी वीरान जिंदगी फिर से संवर गई.

यह एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे बच्चे या परिवार वाले यदि चाहें तो अपने घर के विधवा/विधुर सदस्य की जिंदगी में फिर से उम्मीद और खुशी की लहर जगा सकते हैं.

भारत में ऐसे लोगों की कमी नहीं जिनका पार्टनर समय से पहले उन्हें छोड़ कर जा चुका हो. हाल में प्राप्त मैरिज डाटा 2011 के अनुसार, भारत में 4.6% यानी 121 करोड़ में से 5.6 करोड़ व्यक्ति अपना जीवनसाथी खो चुके हैं, और तन्हा जिंदगी जी रहे हैं. इन में महिलाओं की संख्या पुरुषों के देखे काफी ज्यादा है और इस की वजह है, उन की जीवन प्रत्याशा का अधिक होना. वर्ल्ड बैंक 2012 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा जहां 65 वर्ष है, वहीं स्त्रियों की 68 साल है.

विधवा/विधुर होना कोई अभिशाप नहीं. यह तो जमाना है जो उन के साथ अछूतों सा व्यवहार करने लगता है और इस का खामियाजा उन्हें ताउम्र भोगना पड़ता है.

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