हरियाणा के गुड़गांव में मानसिक रूप से कमजोर बच्चियों के लिए बने होम ‘सुपर्णा का आंगन’ के मामले ने हिला कर रख दिया. इस जानेमाने होम में एक बच्ची के गर्भवती होने की खबर ने होम के अंदर होने वाली घिनौनी कहानी को बयां कर दिया. फिर एक सिलसिला चल पड़ा. देश के कई हिस्सों में स्थित ऐसे दूसरे होम में भी रह रहे बच्चों के यौन शोषण की घटनाएं सामने आने लगीं. किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि चिराग तले इतना अंधेरा हो सकता है. समाज में से बहुत से लोग गुस्से और आवेश में सामने आए. प्रदर्शन किए गए, ऐसे होम के अधिकारियों पर प्रश्न उठाए गए और फिर शांति हो गई. सवाल है कि क्या बच्चे होम से ज्यादा घर में सुरक्षित हैं?

भारतीय समाज में मातापिता की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों की देखभाल करें. अगर बच्चे में किसी तरह की विकलांगता है तब उन की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. बच्चा अगर शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम है तब उस की विकलांगता उस के लिए तो दिक्कतें खड़ी करती ही है, मातापिता के लिए भी चिंतनीय होती है. ऐसे बच्चों के मातापिता को उन्हें पालने और संभालने में काफी सब्र से काम लेना पड़ता है. समाज से अकसर मिली उपेक्षा के कारण ऐसे परिवार समाज से कट जाते हैं.

सरिता की शादी होने के काफी समय बाद तक उस के कोई औलाद नहीं हुई. शादी के 10 साल के बाद संतान के रूप में माही मिली. वह बहुत खुश थी लेकिन उस की यह खुशी काफी दिन तक न रही. माही बड़ी हुई तो सरिता को पता चला कि वह मंदबुद्धि है. वह बहुत परेशान रहने लगी. तभी किसी ने ऐसे बच्चों के विशेष शिक्षा केंद्र के बारे में बताया. उस ने एक आटो से माही को वहां भेजना शुरू कर दिया. कुछ दिनों बाद उसे ऐसा लगने लगा जैसे माही कुछ डरीडरी रहने लगी है. एक दिन उस के कपड़े बदलते हुए उस ने देखा कि उस के बदन पर काटने के निशान हैं. उस से बारबार पूछने पर पता चला कि ये सब आटो ड्राइवर ने किया है.

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