पौराणिक उपन्यास महाभारत जिस में भाईभाई जमीनजायदाद के लिए युद्ध के मैदान में आ कर एकदूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं, में एक किशोर पात्र है अभिमन्यु, जो कौरवों के बनाए चक्रव्यूह में घिर जाता है और अपनी नासमझी के चलते मारा जाता है. जाहिर है वह वीर नहीं बल्कि बेवकूफ था, जिस ने अपने पिता अर्जुन और उस के भाइयों की लड़ाई लड़ी. कम उम्र के चलते अभिमन्यु में जोश तो था पर उसे यह मालूम नहीं था कि अपने से बड़ों से लड़ा कैसे जाना है. कथानक को दिलचस्प बनाने के लिए लेखक ने इस उपन्यास में एक ऐसे चक्रव्यूह की कल्पना की है, जिस में से निकलना असंभव था पर अभिमन्यु इस में गया और इस चक्रव्यूह भेदन में मारा गया.
आज का हर किशोर खुद को इसी तरह के किसी चक्रव्यूह में घिरा पाता है. जब उस के मम्मीपापा की लड़ाई किसी और से हो जाती है और अधिकांश किशोर स्वाभाविक बात है मांबाप का झगड़ा लड़ना अपनी जिम्मेदारी समझने लगते हैं.
भोपाल के 14 वर्षीय उत्कर्ष का किस्सा एक उदाहरण है कि बच्चों को मांबाप के बाहरी झगड़ों में क्यों नहीं पड़ना चाहिए. अब से एक साल पहले उत्कर्ष अपने मम्मीपापा के साथ पुरी घूमने जा रहा था. पुरी पहुंचने के लिए उन्हें बीना जंक्शन से ट्रेन बदलनी थी. बीना स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करतेकरते उत्कर्ष मन ही मन पुलकित हो रहा था कि पुरी और चिलका झील जो डौलफिन मछलियों के लिए जानी जाती है, घूमने में कितना मजा आएगा. वह भी तब जब पापा ने सारा टूर प्लान कर रखा है और भुवनेश्वर सहित ओडिसा के दूसरे पर्यटन स्थलों पर भी ठहरने के लिए होटल बुक करा रखे हैं.