हमारी पीढ़ी के 99 प्रतिशत लोगों ने घर के पिछवाडे़ वाले कमरे में दाई की मदद से पृथ्वी पर कदम रखा था जबकि हमारे 99 प्रतिशत बच्चे अस्पताल में आपरेशन के दौरान आंखें खोलते हैं. इस प्रकार ये बच्चे चाकूछुरी चलाने की तालीम जन्म से सीख कर आते हैं. खून से उन्हें डर नहीं लगता. हमारी महिला डाक्टर निडर रहने के संस्कार इन में जन्म से ही डाल देती हैं.
अस्पतालों में जन्म होने से राष्ट्र कई भावी समस्याओं से निश्चित रूप से मुक्ति पा लेता है. यहां पर एक ही स्थान पर महापुरुषों के अलावा चोर, उचक्के, डाकू, तस्कर आदि कोई भी जन्म ले सकता है. ऐसी परिस्थितियों में राष्ट्र, महापुरुषों के जन्मस्थान के स्मारक बनाने के झंझट से बच जाता है, देश में जन्मभूमि संबंधी विवाद भी उत्पन्न नहीं होंगे, क्योंकि एक ही स्थान पर हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई कोई भी व्यक्ति जन्म ले सकता है.
हमारे यहां जन्मपत्रिका का बहुत महत्त्व है. पहले बच्चा भगवान भरोसे कभी भी पैदा हो जाता था और उस का भविष्य भगवान के सहारे रहता था पर इस क्षेत्र में भी अब कुछ विद्वानों ने टांग घुसेड़ने की कोशिश की है. हमारे नगर के एक दूरदर्शी चिकित्सक जोडे़ ने समाज की इस समस्या को पहचाना और आदर्श जन्मस्थली का नया प्रयोग किया.
आदर्श जन्मस्थली में प्रसव जागरूकता और आधुनिकता का प्रतीक हो गया. मेरी बहू का प्रसवकाल समीप था. मैं बहू का प्रसव सरकारी अस्पताल में कराने के पक्ष में था पर श्रीमतीजी ने अल्टीमेटम दे दिया, ‘‘बच्चा आदर्श जन्मस्थली में ही पैदा होगा. हमें इस परिवार की ‘मास्टर’ पैदा करने की परंपरा को तोड़ना है.’’
हमेशा की तरह हम ने आत्मसमर्पण कर दिया और सपरिवार आदर्श जन्मस्थली की ओर प्रस्थान किया.
‘‘स्वागत है, श्रीमान. मैं आप की क्या सेवा कर सकती हूं?’’ स्वागत कक्ष में बैठी सुंदरी ने मुसकराते हुए पूछा.
सुंदरी की मुसकान कान के रास्ते दिल में उतर गई. ‘सेवा’ शब्द भी अपना प्रभाव दिखाने लगा. मैं ने भी जवाब में मुसकराने की कोशिश की. मेरी यह नितांत व्यक्तिगत गतिविधि श्रीमतीजी की खोजी निगाहों से बच नहीं सकी. उन की पैनी नजर ने मेरी प्राकृतिक प्रवृत्ति की तेरहवीं कर दी.
‘‘जी, डाक्टर को दिखाना है,’’ मैं अचकचा कर बोला.
‘‘किसे, आप को…’’ कह कर वह हंसते हुए बोली, ‘‘सर, यह मैटरनिटी होम है.’’
चोट गहरी थी, मैं कसमसा कर रह गया. श्रीमतीजी भी मेरी नादानी पर हंस पड़ीं और मेरा बचाव करते हुए बोलीं, ‘‘हटो जी, मैडम, इन को नहीं, बहू को दिखाना है.’’
‘‘अच्छा, अच्छा, किस डाक्टर ने भेजा है?’’ उस ने पूछा.
‘‘डा. गायकवाड़ ने यहां रैफर किया था,’’ मैं ने कहा.
‘‘अच्छा, पेशेंट का नाम बताइए, 21 नंबर में डा. सक्सेना से मिल लीजिए,’’ वह फाइल बना कर बहू को देते हुए गंभीर स्वर में बोली, ‘‘फाइव हंड्रेड.’’
बहू ने लड़के को, लड़के ने मां को और मां ने मुझे सवालिया नजरों से देखा.
मैं ने जेब से 500 रुपए निकाल कर अनमने भाव से उसे दिए.
‘‘थैंक्यू सर,’’ वह मुसकराते हुए बोली. अब गंभीर होने की मेरी बारी थी.
हम सब सहमे हुए आगे बढ़े. हम ने डा. सक्सेना की नेमप्लेट वाले दरवाजे पर हाथ रखा ही था कि एक आवाज खटाक से गूंजी, ‘‘नंबर से… वहां बैठिए,’’ स्टूल पर बैठे आदमी ने हमें घूरा.
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हम ने मुसकराने का प्रयास किया और सामने रखी बैंच पर बैठ गए. पहले से बैठे लोगों ने राहत की सांस ली. मैं सोच रहा था कि हमारे यहां के डाक्टर चिकित्सा शास्त्र के साथसाथ मनोविज्ञान का भी अध्ययन जरूर करते होंगे. पैसे वसूलने के लिए खूबसूरत युवती और डाक्टर के रूम के बाहर चिंपांजी टाइप आदमी. लटके और झटके का जानलेवा तालमेल.
तभी जेहन में एक पुराना किस्सा उभर आया. एक महिला के पेट का आपरेशन करते समय चिकित्सक महोदय अपनी घड़ी उस के पेट के अंदर भूल गए. आपरेशन के कुछ महीने बाद उस महिला ने एक पुत्र को जन्म दिया तो पुत्र घड़ी लिए हुए पैदा हुआ. खास बात यह थी कि घड़ी अब भी सही समय बता रही थी. आगे चल कर यह लड़का सफल घड़ीसाज बना. आज भी वह डाक्टर साहब की घड़ी बिना पैसा लिए मरम्मत करता है. इसे कहते हैं गलती करो और मजे करो.
विचार मन में आ रहे थे, जा रहे थे, तभी बेटे की आवाज ने ध्यान भंग किया, ‘‘पापा, अपना नंबर.’’
हम सब ने राहत की सांस ली. चलो, आज नंबर आ ही गया. हम उसी ठसक के साथ आगे बढे़, जैसे बराती सीना तान कर बढ़ते हैं.
चेंबर में चश्मा पहने मोटी सी महिला ने सवालिया नजरों से हमें देखा और कहा, ‘‘एक मरीज के साथ एक ही अटेंडेंट अलाउ है, आप 3 कैसे आ गए?’’
‘‘सौरी, मैडम…’’ हम से जवाब देते न बना.
‘‘ठीक है. आइंदा से ध्यान रखिए,’’ कह कर वह फाइल देखने लगी.
‘‘देखिए, आप कहां डिलीवरी चाहेंगे?’’ डाक्टर ने मुसकराते हुए एक सूची पकड़ाते हुए कहा, ‘‘यह कमरा नंबर 1, यहां प्रदेश के 2 मुख्यमंत्री पैदा हो चुके हैं. यह पैकेज 1 लाख रुपए का है. कमरा नंबर 10, यहां कई नेता पैदा हुए हैं, पैकेज 42 हजार रुपए. कमरा नंबर 4, फिल्मी कलाकार, पैकेज 50 हजार रुपए.’’
और हम लोग मंत्रमुग्ध हो कर सुन रहे थे.
‘‘कमरा नंबर 11, ब्यूरोक्रेट्स, पैकेज 40 हजार रुपए. कमरा नंबर 2, इंजीनियर, डाक्टर, पैकेज 25 हजार रुपए.’’
‘‘क्यों जी, 11 नंबर ठीक रहेगा? इंजीनियर और डाक्टर की तो अब इज्जत नहीं रही,’’ सूची लंबी थी, सरसरी नजर डालते हुए श्रीमतीजी ने फैसला सुनाया.
‘‘देखिए, निर्णय आप का है. बच्चा एक ही बार पैदा होता है. हम तो सुविधा देते हैं.’’
‘‘पर, डाक्टर, कमरों की सुविधाओं में कोई अंतर है क्या?’’ मैं ने जिज्ञासा जाहिर की.
‘‘देखिए, पैसे सुविधाओं के नहीं स्थान के हैं, दादाजी,’’ उस ने मेरी दुखती रग को छुआ. डाक्टर साहिबा ने स्वयं खिजाब लगा कर अपने बाल काले कर रखे थे और मुझे दादाजी कह कर अपनी उम्र कम बताने का प्रयास कर रही थीं.
‘‘नहीं, डाक्टर, मैं पूछ रहा था, आदमी भी कहीं पैदा होता है?’’
‘‘क्या बेहूदा सवाल पूछ रहे हैं आप. यह सरकारी अस्पताल नहीं है,’’ डाक्टर ने मुझे खा जाने वाली निगाहों से घूरते हुए कहा.
मैं सहम कर चुप हो गया. पत्नी ने मुझे समझाने की नजर से देखा. बहू के चेहरे पर मेरे नादानी भरे प्रश्न के कारण मुसकराहट तैर गई.
‘‘जी, डाक्टर, पापा पुरानी पीढ़ी के हैं, आगे बताइए,’’ बातचीत की कमान अब बेटे ने थाम ली.
‘‘यदि आप खास मुहूर्त में बच्चा चाहते हैं तो कमरा नंबर शून्य में बैठे पंडितजी से संपर्क करें. पैकेज के पैसे रिसेप्शन में जमा करा दें,’’ डाक्टर ने घंटी बजाई और कहा, ‘‘नेक्स्ट.’’
‘‘थैंक्यू, डाक्टर,’’ कहते हुए हम ससम्मान कमरे से बाहर आ गए. मेरे विरोध को नकारते हुए सभी कमरा नंबर शून्य की ओर बढ़ चले.
‘‘आइए, महोदय, कितनी शुभ घड़ी में आप ने प्रवेश किया है, अवश्य होनहार बच्चा होगा,’’ तख्त पर बैठे पंडितजी ने पंचांग पलटते हुए पूछा, ‘‘आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’
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‘‘बच्चे के लिए कोई अच्छा मुहूर्त बताइए, पंडितजी,’’ श्रीमतीजी हाथ जोड़ते हुए बोलीं.
‘‘अवश्य, बहनजी. कितना समय शेष है?’’ पंडितजी ने प्रश्न किया.
‘‘लगभग 5 दिन,’’ श्रीमतीजी ने जवाब दिया.
‘‘घोर अनर्थ, बच्चे के जन्म के समय ज्येष्ठा के मूल होंगे, जो घर के ज्येष्ठ व्यक्ति के लिए कष्टकर होंगे,’’ पंडितजी मेरी ओर देखते हुए बोले.
‘‘क्या कष्ट होगा, भुगत लूंगा,’’ मैं आशय समझते हुए बोला.
‘‘शांत वत्स, शांत. विश्वास करना सीखो, यजमान. गत माह यहां ज्येष्ठा नक्षत्र में एक बालक ने जन्म लिया. मेरी सलाह नहीं मानी, आप जैसे नादान थे. यहां बालक ने जन्म लिया, वहां बालक के दादाजी बाथरूम में फिसल गए. कमर की हड्डी टूट गई. अब बिस्तर पर पड़े हैं. मेरा जीवन इसी में व्यतीत हुआ है. यदि मेरी भविष्यवाणी मिथ्या साबित हो जाए तो मैं गणना करना छोड़ दूं,’’ पंडितजी ने अपना रूप दिखलाया.
‘‘नहीं पंडितजी, नहीं, इन की बात का बुरा न मानें. यह तो सठिया गए हैं. आप कुछ उपाय कीजिए न,’’ श्रीमतीजी ने आग्रह किया.
‘‘बहनजी, आप जैसी महिलाओं के कारण ही धरती पर धर्म बचा है. आप के लिए कुछ करना ही होगा,’’ पंडितजी पंचांग पलटते हुए गंभीर स्वर में बोले, ‘‘आज से चौथे दिन प्रात: 6 से 7 के बीच अच्छा मुहूर्त है. इस के लिए मुझे विशेष अनुष्ठान करने होंगे. चिकित्सक को अतिरिक्त प्रयास करने होंगे, लगभग 10 हजार का व्यय आएगा…’’ पंडितजी स्थिति स्पष्ट करते हुए बोले.
‘‘इस से कुछ कम,’’ श्रीमतीजी शरमाते हुए बोलीं.
‘‘नहीं, बहनजी, धर्म के कामों में हाथ न सिकोड़ें, धन क्या है, हाथ का मैल है. आताजाता रहता है. बालक ने अच्छे समय में जन्म लिया तो ईश्वर छप्पर फाड़ कर देगा. यदि खराब समय में पैदा हुआ तो घर का धन भी चला जाएगा. बहनजी, अधिक विचार मत कीजिए, शीघ्र निर्णय लीजिए,’’ पंडितजी ने समझाते हुए कहा.
‘‘ठीक है, पंडितजी, शेष ग्रह कैसे रहेंगे?’’ श्रीमतीजी ने पूछा.
‘‘3 ग्रह उच्च के रहेंगे, बच्चा राजयोग में होगा. हां, इस कार्य के लिए 5 हजार रुपए स्वागतकक्ष में अग्रिम जमा करा दीजिए, अगला यजमान प्रतीक्षा कर रहा है,’’ पंडितजी ने निर्देश दिए.
‘‘ठीक है, आप की कृपा बनी रहे. बहू, पंडितजी से आशीर्वाद तो ले लो,’’ श्रीमतीजी ने बहू से कहा.
‘‘सौभाग्यवती हो, यशस्वी पुत्र की मां बनो. हां, स्वागतकक्ष में राशि जमा कराना न भूलें,’’ पंडितजी ने आशीर्वाद दिया.
मेरे अलावा सभी ने प्रसन्नता के साथ आदर्श जन्मस्थली से विदाई ली. मेरे मस्तिष्क को एक प्रश्न अभी भी परेशान कर रहा था, सभी कार्य संपन्न हो गए, धन एवं समय दोनों व्यय हुए, सभी प्रसन्न हैं, पर बहू की डाक्टरी जांच अभी तक नहीं हुई थी.