कनछेदी लाल घर से निकले तो देखा राहुल भैया की दुकान के बाहर भीड़ लगी हुई है . उत्सुक भाव से कनछेदी लाल भीड़ में घुस गए .ऐसा मौका कनछेदीलाल कभी नहीं चूकते .जहां मजमा लगा हो, वह समझ जाते हैं कि कोई बे पैसे का तमाशा है, सो तमाशबीन बन पहली पंक्ति में आकर खड़ा हो जाना उनकी पैदाइशी फितरत है. सो कनछेदी लाल धक्का-मुक्की करते आगे पहुंच गए.
लोग उत्सुक भाव से खड़े हैं .राहुल चीख रहे हैं,- "मैं... मैं शटर गिरा रहा हूं . मैं शटर गिरा दुंगा... मै.. मै गिरा कर दिखाऊंगा ." राहुल चीख रहा है लोगों का हुजूम उसे घेरकर तमाशा बीन बना देख रहा है.
कनछेदी लाल आगे पहुंच राहुल भैया की बातें सुनता रहा.वह जानता है, यह दुकान राहुल भैया की पुश्तैनी दुकान है. आजकल की नहीं, दादा परदादा जमाने की .राहुल भैया को यह सजी सवांरी दुलहिन सी दुकान विरासत में मिली है . कनछेदी लाल को याद है जब वह बच्चा था तब राहुल की यह दुकान उसके पूर्वज चलाया करते थे क्या नाम था... हां जमाहिरलाल फिर जब कनछेदी लाल कुछ होश संभालने लगा तो देखा राहुल की दादी इस दुकान को चलाया करती थी. समय बदला आज पिता की धरोहर राहुल भैया के हाथों में है . दुकान बड़ी विशाल है,सैकड़ों तो नौकर चाकर है. शहर में ऐसी चलती दुकान और है ही कितनी ! और राहुल भैया चिल्ला रहे हैं दुकान बंद करूगा... क्या बात है .
कनछेदी लाल ने पास खड़े शख्स से पूछा,- "भाई! क्या हो गया है, राहुल भैया इतने गुस्से में क्यों है . क्या बात है."