पिछले हफ्ते मैं जब ब्रिटेन से घर लौटा तो मुझे महसूस हुआ जैसे मैं आधा अधूरा हो कर लौटा हूं. मन में कहीं यह अपराधबोध था कि मैं ने यौवन और सौंदर्य से भरपूर नारी के आमंत्रण को ठुकरा कर उस की भावनाओं को आहत किया था. इस में उस औरत का क्या दोष? हर किसी के भीतर स्थायी व संचारी भाव होते हैं. कभी कोई भाव इनसान पर हावी रहता है तो कभी कोई. उस समय उस के रति भाव का मुझे मान रखना चाहिए था.

ब्रिटेन के लंदन, बर्मिंघम, मैनचेस्टर, यार्कशायर, नाटिंघम आदि शहरों में स्थित यू.के. हिंदी समिति, गीतांजलि, हिंदी भाषा समिति, भारतीय भाषा संगम आदि संस्थाओं ने मुझे हिंदी दिवस के अवसर पर अलगअलग समारोहों के लिए आमंत्रित किया था.

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लंदन में मेरी मुलाकात मैगी से हुई थी. वह छरहरे बदन की युवती थी. समारोह समापन के बाद वह मेरे पास आई और बोली, ‘‘आप के व्याख्यान और व्यक्तित्व ने मुझे बेहद प्रभावित किया है. मैं आप के दिशानिर्देशन में एक पुस्तक लिखना चाहती हूं. मुझे हिंदी भाषा से बेहद लगाव है.’’

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एक अंगरेज लड़की के मुख से इतनी शुद्ध हिंदी सुन कर मैं भौचक रह गया. मुझे इस स्थिति में देख कर उस ने बताया था कि उस के पिता ब्रिटेन के हैं और मां भारत की. मैं मां के साथ भारत जाती रहती हूं. वह मुझ से हिंदी में ही बात करती हैं और सच कहूं तो हिंदी में बोलना मुझे अंगरेजी से ज्यादा सहज लगता है. आप भारत से आए हैं और हिंदी के प्रखर विद्वान हैं यह जान कर मैं खुद को आप से मिलने के लिए रोक न सकी.

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