World Multiple Sclerosis Day 2024 : मल्टीपल स्केलेरोसिस डिजीज हमारे ब्रेन और स्पाइनल कोर्ड को इफैक्ट करता है. साथ में औप्टिक नर्व को भी इंवौल्व करता है. यह एक औटोइम्यून डिसऔर्डर है. औटोइम्यून का मतलब होता है, बौडी अपनी ही बौडी के किसी पार्ट या सेल के अगेंस्ट काम करना शुरू कर देती है. हमारी न्युरौंस को आपस में कम्युनिकेट करने के लिए उन के ऊपर एक शीट होती हैं जिस को हम मायलिन शीट कहते हैं. यह शीट एकदूसरे न्यूरौन में सिग्नल भेजने और कम्युनिकेट करने में हैल्प करती हैं. इस इम्यून डिसऔर्डर में हमारी मायलिन शीट, जो हमारी नर्व के ऊपरवाला कवर है, डैमेज हो जाती है जिस से उन का कम्युनिकेशन लिंक टूट जाता हैं और इस बीमारी के लक्षण आने शुरू हो जाते हैं.
हमें कैसे पता चलेगा कि हमें यह समस्या है
यह बीमारी कौमन रूप से फीमेल में होती है खासकर 20 साल से ले कर 35 साल तक की महिलाओं में अकसर देखी जाती है. इस में लक्षण हमेशा पर्सन टू पर्सन या मेल टू फीमेल वैरी करते हैं.
कुछ कौमन लक्षण हैं. आंखों की रोशनी धुंधली पड़ जाना, वन हाफ बौडी का सुन्न हो जाना, शरीर का एक हिस्सा वीक हो जाना या बौडी में करंट वाली लहरें दौड़ना. गरदन को जब हम हिलाते हैं और पूरी बौडी में, खासकर गरदन के नीचे, करंट वाली लहरें दौड़ रहीं हैं तो उस का मतलब है कि इस बीमारी की शुरुआत हो चुकी है. इसी तरह जब आप को दोदो चीजें दिखने लग जाएं, एक साइड की बाजू, टांग, बेस सब सुन्न हो जाएं, चलें तो ऐसे लगे जैसे लड़खड़ा के चल रहे हैं तो समझिए इस बीमारी की चपेट में आ चुके हैं.
इलाज के औप्शन
इस संदर्भ में डाक्टर बीरिंदर सिंह पॉल, प्रोफैसर डिपार्टमैंट औफ न्यूरोलौजी, दयानंद मैडिकल कालेज एंड हौस्पिटल, लुधियाना, पंजाब कहते हैं कि इस बीमारी में पिछले 10-15 वर्षों में इतनी रिसर्च हो गई है कि अब हमारे पास इस के इलाज के बहुत सारे औप्शन्स हैं.
इस बीमारी के लिए मुख्य रूप से 2 तरह के ट्रीटमैंट हैं. दरअसल जब हमारे नस के ऊपर से कवर उतरता है तो हमारी आंखों की रोशनी चली जाती है. इस अवस्था को अटैक आना कहते हैं. जब यह बीमारी अटैक के रूप में आती है तो इमिजेटली इस का इलाज स्टिरौयड्स से होता है जिसे इंजैक्शन के फौर्म में देते हैं ताकि इस अटैक को रोका जाए. जो कवर उतर रहा है उस के अराउंड जो स्वेलिंग या इनफ्लोनेशन हो रही है उस को कम किया जाए. इस को कहते हैं एक्यूट ट्रीटमैंट.
आजकल इतनी रिसर्च के बाद कुछ खाने वाली दवाई आ गई हैं. कुछ इंजैक्शन भी अवेलेबल हैं जो डायरैक्टली हमारे इम्यून सिस्टम पर काम करती हैं ताकि बौडी में अगर इम्यून इन बैलेंस हो रहा है, इम्यून सिस्टम खराब या डैमेज हो रहा है, इम्यून सिस्टम में चेंजेस आने की वजह से नर्व डैमेज हो रही हैं तो उस को रोकने के लिए यह ट्रीटमैंट दे सकते हैं. इस ट्रीटमैंट का नाम है ‘डिजीज मोडिफाइ ट्रीटमैंट’. यह दोतीन फौर्म में अवेलेबल है. एक तो खाने वाली गोली आती है, एक आता है लगाने का इंजैक्शन जो हम हफ्ते में जैसे इंसुलिन का टीका लगता है वैसे लगाते हैं. अब इस में एक और रिसर्च हो गई है. अभी कुछ ऐसे इंजैक्शन भी अवेलेबल हैं जो महीने में 2 लगवाने हैं और इस का असर 6 महीने से साल तक रहता है. यह एडवांस ट्रीटमैंट अभी पिछले दिसंबर से इंडिया में अवेलेबल हो गया है. एडवांस ट्रीटमैंट को ‘सीडी ट्वेंटी मोनोक्लोनल एंटीबौडीज’ कहते हैं.
दरअसल हमारी बौडी में टी सेल और बी सेल होते हैं. किसी का गला खराब हो गया तो हमारी बौडी में इमिजेटली टी और बी सेल काम करते हैं. इस बीमारी में ये टी और बी सेल आउट औफ कंट्रोल हो जाती है. बौडी की बात नहीं सुनते. ये बी सेल जा कर हमारी नर्व को डैमेज करते हैं. वहां पे मायलिंग कवर को डैमेज करना शुरू कर देते हैं. सीडी ट्वेंटी मोनोक्लोनल एंटीबौडीज ऐसी दवा है जो इस बी सेल को कंट्रोल करती है.
भले ही इस बीमारी को जड़ से नहीं खत्म कर सकते मगर इतने इफैक्टिव ट्रीटमैंट आ रहे हैं जिस से बीमारी को डोरमैंट स्टेज में ले जाते हैं. तब कई साल तक कोई दोबारा ट्रीटमैंट की जरूरत नहीं पड़ती. यानी, यह 70 -80 परसेंट तक इफैक्टिव ट्रीटमैंट है.
जब सालों पहले इस बीमारी का ट्रीटमैंट शुरू हुआ था तो हमारे पास एक ही औप्शन था, रोज इंजैक्शन लगाओ. हमारे पास कोई गोली खाने वाली नहीं थी. फिर पिछले 10 सालो में 5-6 गोलियां अवेलेबल हो गईं. अब ऐसे इंजैक्शन भी आ रहे हैं जिन को साल में केवल 2 बार लगाना होता है. यह सारे साल काम करता है. वह इंजैक्शन जो आप रोज लगाते थे उस का इफैक्ट 35 से 50 फीसदी था, मतलब 50 फीसदी लोगों में ही वह इंजैक्शन काम करता था. मगर अब जो ट्रीटमैंट अवेलेबल है और जिस को हम हाई एफिकेसी ट्रीटमैंट कहते हैं, वह डिजीज को 70 से 80 परसैंट तक कंट्रोल करता है.
यानी, एक तो चेंज यह हुआ है कि नंबर औफ इंजैक्शन या नंबर औफ गोली जो हमें इस बीमारी में खानी होती थी वह कम हो गई है. दूसरा एफिकेसी बढ़ गई है. मतलब डिजीज कंट्रोल करने की क्षमता बहुत बढ़ गई है. औल मोस्ट डबल हो गई है. पहले इस के पेशेंट्स को हम कहते थे कि आप घर जा कर इस की केयर और फिजियोथेरैपी करो, हमारे पास ज्यादा इलाज नहीं है. अब उलटा हो गया है. हम पेशेंट को कहते हैं कि आप हमारे पास हौस्पिटल में आओ. हमें बताओ क्या डिजीज है. आप का इलाज 80 परसैंट पौसिबल है. 20 साल में यह चेंज हो गया.
मल्टीपल स्केलेरोसिस के प्रकार
एमएस के 3 मुख्य प्रकार हैं:
रिलैप्सिंग-रिमिटिंग एमएस (आरआरएमएस)- यह एमएस (मल्टीपल स्केलेरोसिस) का सब से आम प्रकार है. एमएस से पीड़ित लगभग 85 फीसदी लोगों में यह होता है. इस के साथ आप को रिलैप्स यानी अटैक से जूझना पड़ता जाता है. यदि आप को आरआरएमएस है तो अटैक के दौरान आप के लक्षण बिगड़ने की संभावना बहुत अधिक है.
प्राइमरी प्रोग्रैसिव एमएस (पीपीएमएस)- यदि आप को पीपीएमएस है तो आप के एमएस लक्षण धीरेधीरे खराब होने लगते हैं. लेकिन आप को बीमारी के दोबारा उभरने या ठीक होने की कोई खास अवधि नहीं मिलती.
सैकंडरी-प्रोग्रैसिव एमएस (एसपीएमएस)- एसपीएमएस के साथ आप के लक्षण समय के साथ लगातार बदतर होते जाते हैं.
मल्टीपल स्केलेरोसिस के कारण
• कुछ खास जीन वाले लोगों में इस के होने की संभावना ज्यादा हो सकती है.
• धूम्रपान करने से भी जोखिम बढ़ सकता है.
• कुछ लोगों को वायरल संक्रमण के बाद एमएस हो सकता है क्योंकि इस से उन की प्रतिरक्षा प्रणाली सामान्य रूप से काम करना बंद कर देती है.
• संक्रमण बीमारी को ट्रिगर कर सकता है या बीमारी को फिर से होने का कारण बन सकता है.
कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि विटामिन डी, जो आप को सूरज की रोशनी से मिल सकती है, आप की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत कर सकता है और आप को एमएस से बचा सकता है.
मल्टीपल स्केलेरोसिस जोखिम कारक
इस के होने की संभावना अधिक हो सकती है यदि आप-
• आप महिला हैं
• आप की उम्र 20, 30 या 40 के बीच है
• धूप में ज्यादा समय न बिताना
• अंधेरे वातावरण में रहना
• धुआं
• एमएस का पारिवारिक इतिहास होना
इस बीमारी का डायग्नोसिस कैसे होता है
डायग्नोसिस के लिए सब से पहले डाक्टर आप की हिस्ट्री को एनालाइज करता है. आप की हिस्ट्री को समझता है, फिर आप को एग्जामिन करता है. उस के बाद कुछ टैस्ट करता है जिन में ब्रेन का एमआरआई और एक होता है जिस को हम कहते हैं विजुअल इवोक पोटैंशियल. कई बार रीड़ की हड्डी के पानी, जिस को हम सीएसएफ एग्जामिनेशन कहते हैं, को भी टैस्ट करते हैं.
इस के इलाज में कितना खर्च आता है
डाक्टर वीरेंद्र सिंह पाल कहते हैं कि इलाज का खर्च इस बात पर डिपैंड करता है कि आप किस स्टेज से इलाज शुरू कर रहे हो, कौन सी डिजीज में कर रहे हो, जैसे पीपीएमएस डिसीज है, प्रोग्रैसिव है. इस में इलाज कई बार लाखों में भी चला जाता है, महंगा हो जाता है. बाकी दूसरा इलाज अगर हम देखें तो अगर साल में आप ने 1 या 2 बार ट्रीटमैंट लेना है तो वह इलाज इतना महंगा नहीं पड़ता. अगर हम एक साल का पीरियड काउंट करें तो कुछ हजार से लाखों रुपयों में होता है.