कोई बीमारी नहीं है. माहवारी महिलाओं को प्रकृति का एक अनमोल तोहफा है, जो महिलाओं को पूर्ण बनाता है. महिलाओं को माहवारी के दौरान शर्म की जगह गर्व महसूस करना चाहिए, क्योंकि वे पूर्ण हैं. लेकिन इस दौरान आपको कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए जो आपकी सेहत के लिएं बेहद जरुरी हैं.

1. जानकारी जरूरी

हर लड़की को माहवारी की समस्या से जूझना पड़ता है. लेकिन यह समस्या तब और बड़ी लगने लगती है जब बिना किसी जानकारी के इस से निबटना पड़े. अकसर लड़कियां झिझक के कारण किसी से माहवारी के विषय में बात नहीं करतीं. नतीजा यह होता है कि अचानक पीरियड्स शुरू हो जाते हैं और वे घबरा जाती हैं. इस घबराहट में वे अपनी तबीयत खराब कर लेती हैं. जबकि उन्हें पहले से ही माहवारी की जानकारी हो तो इस स्थिति से निबटना उन के लिए आसान हो जाता है.

सभी मांओं को अपनी बेटियों को उन के शरीर में होने वाले प्राकृतिक बदलावों के बारे में पहले से बताना चाहिए. ऐसा करने से मांएं अपनी बेटियों को बेवजह तनाव का शिकार बनने से रोक पाएंगी.

2. उपेक्षित महसूस न करें

पुरानी रीतियों और रिवाजों के तहत माहवारी के दौरान लड़कियों पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी जाती हैं. जैसे रसोई में न जाओ, बिस्तर में न बैठो, पेड़पौधों को न छुओ. इस तरह की टोकाटाकी से लड़कियां खुद को उपेक्षित महसूस करने लगती हैं. माहवारी के दिन आते ही वे खुद को अपराधी सा महसूस करने लगती हैं.

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कई लड़कियां तो माहवारी  के दिनों में अवसादग्रस्त हो जाती हैं. इस तरह के मानसिक बदलाव के कारण रक्तस्राव में फर्क पड़ता है. किसी को रक्तस्राव अधिक होने लगता है तो किसी को बहुत कम. लेकिन इस स्थिति में बिलकुल भी तनाव नहीं लेना चाहिए, क्योंकि माहवारी होना एक प्राकृतिक क्रिया है.

3. साफसफाई है जरूरी

कई महिलाओं को भ्रम होता है कि माहवारी के समय केशों को नहीं धोना चाहिए. इस से माहवारी ठीक से नहीं हो पाती और रक्तस्राव भी कम होता है. कुछ महिलाएं तो माहवारी के समय नहाने तक को सही नहीं समझतीं और जब तक रक्तस्राव होता है तब तक वे नहीं नहातीं. दरअसल, उन का मानना होता है कि नहाने से माहवारी के समय अधिक दर्द होता है. लेकिन यह सिर्फ भ्रम है. उलटे माहवारी के समय नहाना बेहद जरूरी है. इस समय तो शरीर की साफसफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए खासकर योनि व उस के आसपास की सफाई बेहद जरूरी है.

4. सैनिटरी नैपकिन का रखरखाव

कई महिलाएं सैनिटरी नैपकिन को कहीं भी रख देती हैं. जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए. खासतौर पर खुले और इस्तेमाल किए जाने वाले सैनिटरी नैपकिन को हमेशा साफसुथरे स्थान पर रखना चाहिए. यदि इस्तेमाल किए जा रहे नैपकिन को गंदे स्थान पर रखा जाए तो उस में कीटाणु पनपने लगते हैं, जिस से संक्रमण फैलने का खतरा रहता है.

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इतना ही नहीं इस्तेमाल किए जा चुके पैड को फेंकने में भी सावधानी बरतनी चाहिए. खुले स्थान पर पैड कभी नहीं फेंकना चाहिए. पैड को हमेशा कागज में लपेट कर कूड़े के ढेर में फेंकना चाहिए.

5. सैनिटरी नैपकिन का चुनाव

माहवारी की जानकारी तब तक अधूरी है जब तक आप सही सैनिटरी नैपकिन के चुनाव के बारे में नहीं जानतीं. आजकल मार्केट में कई साइजों और वैराइटी में सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध हैं. लेकिन आप को अपनी बेटी को कौटन लेयर वाले स्लिम सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करने की सलाह देनी चाहिए.

डाक्टरों और हाल ही में की गई स्टडीज के अनुसार माहवारी के दौरान हर 6 घंटे के अंतराल पर नैपकिन बदलते रहना चाहिए. फिर चाहे रक्तस्राव कम हो रहा हो या अधिक. इस के अतिरिक्त उसे यह भी बताएं कि वही सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करे, जो गीलेपन को अच्छी तरह सोख कर जैल में परिवर्तित कर दे.

6.अपनी परेशानी बेझिझक बताएं

कई बार मांएं बेटियों की बातों को यह कह कर अनसुनी कर देती हैं कि पीरियड्स में ऐसा तो होता ही है. लेकिन ऐसा करना गलत है, क्योंकि माहवारी की शुरुआत में लड़कियों को कई प्रकार की तकलीफें होती हैं, जिन्हें बताने में वे हिचकिचाहट महसूस करती हैं. जबकि अपनी मां को अपनी तकलीफ बता कर बेटी निश्चिंत हो जाती है.

इसलिए समयसमय पर मांओं को खुद भी बेटियों से पूछते रहना चाहिए कि उन्हें किस तरह की समस्या आ रही है. साथ ही बेटियों को भी बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी मांओं को अपनी परेशानी बतानी चाहिए ताकि समय रहते उस का इलाज करवाया जा सके.

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आज भी भारत में महिलाओं के बीच माहवारी के दौरान सैनिटरी नैपकिन की जगह कपड़ा इस्तेमाल करने से जुड़ी कई भ्रांतियां हैं. एक सर्वे के अनुसार भारत में केवल 12% महिलाएं ही माहवारी के दौरान साफसुथरे नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं. बाकी महिलाएं इन दिनों घर में पड़े पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं. कुछ महिलाएं कपड़े के अंदर रुई भर कर उसे पैडनुमा आकार दे कर इस्तेमाल करती हैं. जरूरत पड़ने पर दिन में 2-3 बार वे इसी तरह पैड बना कर उस का इस्तेमाल कर लेती हैं.

कई महिलाएं तो इतना भी नहीं करतीं. वे सिर्फ गंदे कपड़े को हटा कर उस की जगह साफ कपड़ा लगा लेती हैं. लेकिन ऐसा करना अपने  स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना है. महिलाएं ऐसा 2 वजहों से करती हैं. पहली वे महंगे सैनिटरी नैपकिन नहीं खरीदना चाहतीं, दूसरी उन में भ्रांति है कि नैपकिन का इस्तेमाल करने से रक्तस्राव ज्यादा होता है और संक्रमण फैलने का खतरा रहता है. जबकि ऐसा नहीं है.

सैनिटरी नैपकिन खरीदने में थोड़ा पैसा जरूर लगता है, लेकिन वे बेहद स्वच्छ होते हैं. उन के इस्तेमाल से किसी तरह का संक्रमण नहीं फैलता. वहीं कपड़े के इस्तेमाल से युरिन इन्फैक्शन, योनि के आसपास की त्वचा में खुजली आदि का खतरा हो जाता है. कपड़े औैर रुई के इस्तेमाल से त्वचा को औक्सीजन मिलने में दिक्कत होती है, जिस से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है. इस तरह के संक्रमण से बचने के लिए सैनिटरी नैपकिन से बेहतर कोई विकल्प नहीं है.

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