कहते हैं कि हमारे देश में दूध की नदियां बहती थीं यानी पुराने जमाने में भी दूध भरपूर होता था. दादीनानी खुश हो कर ‘दूधो नहाओ पूतो फलो’ का आशीर्वाद देती थीं. ‘दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है’ जैसे मुहावरे चलन में आम थे यानी दूध हमारे यहां जनजन से सीधे जुड़ा हुआ था.

कई तरह के कुदरती गुण होने से दूध सेहत के लिए फायदेमंद है. दूध कमजोरी दूर कर के ताकत देता है. दूध पशुपालकों की माली कमजोरी दूर कर के उन्हें ताकतवर भी बना सकता है, लेकिन ज्यादातर पशुपालक कच्चा व खुला दूध बेचते हैं, इसलिए उन्हें सही कीमत नहीं मिलती. वे यदि दूध की प्रोसेसिंग कर के उस की कीमत बढ़ा लें, तो डेरी के काम में ज्यादा कमाई की जा सकती है.

नए तरीके

दूध से दही, घी, मक्खन, छेना व खोया जैसी कई चीजें हमारे देश में सदियों से बनाई जाती रही हैं. फर्क इतना है कि पहले भट्टी, चूल्हे व कढ़ाव जैसे खुले व पुराने तरीके थे और अब ये सारे काम बंद मशीनों वाले नए प्लांटों में होते हैं. दूध सावधानी से न रखने पर जल्द खराब हो जाता है, लिहाजा बेहतर तरीके अपनाने जरूरी हैं.

डेरी का काम कर रहे ज्यादातर उद्यमी सदियों पुराने तरीकों से काम करने के आदी हैं, लिहाजा उत्पादन कम व घटिया होता है. बहुत से पशुपालक इस बात पर कोई ध्यान ही नहीं देते कि अब दूध व उस से बनी चीजों को बेहतर, महफूज, ताजा व ज्यादा टिकाऊ बनाने व उन की पैकेजिंग तक में कई सुधार व बदलाव हुए हैं. आज के दौर में उन्हें अपनाना बहुत जरूरी है.

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