दलहनी फसलों में मसूर की खेती किसानों के लिए नकदी फसल के रूप में उगाई जाती है. मसूर का इस्तेमाल न केवल दालों बल्कि नमकीन, अंकुरित अनाज व तमाम खाद्य पदार्थों में किया जाता है. मसूर की खेती में मेहनत व लागत दोनों कम लगती है. किसानों के लिए यह माली आमदनी का अच्छा जरीया माना जाता है. मसूर की खेती दोमट मिट्टी से ले कर भारी जमीन में आसानी से की जा सकती है. इस की खेती धान के खाली पड़े खेतों या परती जमीन में भी की जा सकती?है. मसूर की खेती के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से 2-3 बार जुताई कर के पाटा लगा देना चाहिए. अगर रोटावेटर या पावर हैरो से जुताई की जा रही है, तो 1 बार जुताई करना ही काफी होता है. इस की बोआई का सही समय अक्तूबर के दूसरे हफ्ते से नवंबर के दूसरे हफ्ते तक होता है. इस की बोआई जीरो टिल सीड ड्रिल से भी की जा सकती है. मसूर की समय से बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 40-60 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. बोआई समय से न करने की हालत में 65-80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है.

बीज को खेत में बोने से पहले उपचारित किया जाना जरूरी होता है. मसूर बीज का उपचार राइजोबियम कल्चर से किया जाना ज्यादा सही होता है. 10 किलोग्राम बीज के उपचार के लिए 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर की जरूरत पड़ती है. किसी खेत में मसूर की खेती पहली बार की जा रही हो, तो बीजोपचार से पहले बीज का रासायनिक उपचार भी किया जाना चाहिए. चूंकि मसूर की जड़ों में राइजोबियम गांठें होती हैं, इसलिए इस की फसल में ज्यादा उर्वरक की जरूरत नहीं पड़ती है. अगर सामान्य तरीके से खाली खेत में मसूर की बोआई की जा रही हो, तो प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए. अगर धान की कटाई के बाद खेत में मसूर की बोआई करनी है, तो 20 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से टापड्रेसिंग करना चाहिए. इस के बाद 30 किलोग्राम फास्फोरस का छिड़काव 2 बार फूल आने पर व फलियां बनते समय करना चाहिए.

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