देश भर में किसानों और गांवों को इंटरनेट और नई तकनीकों से लैस करने की योजनाएं अब रंग लाने लगी हैं. इंटरनेट को ले कर किसानों की बेरुखी और झिझक खत्म होने लगी है. कई किसान इंटरनेट, स्मार्ट फोन, लैपटौप, कंप्यूटर वगैरह नई तकनीकों की मदद से खेती और उत्पादन को बढ़ा रहे हैं. पंचायत भवनों, किसान भवनों और कृषि विज्ञान केंद्रों में इंटरनेट की सुविधा मिलने से पढ़ेलिखे किसानों को खेती की नई तकनीकों के बारे में जानकारी हासिल करना आसान हो गया है. कृषि वैज्ञानिक लगातार किसानों को इंटरनेट के फायदों के बारे में जागरूक कर रहे हैं. बिहार के शेखपुरा जिले के मैट्रिक पास किसान रामबालक सिंह सीना तान कर कहते हैं कि इंटरनेट के जरीए हर कोई शिक्षा, कारोबार, स्वास्थ्य, मौसम वगैरह से जुड़ी कई तरह की जानकारियां हासिल कर सकता है. इंटरनेट तो वाकई जानकारियों का खजाना है.

बिहटा गांव के किसान संजय मिश्र कहते हैं कि वे पढ़ेलिखे नहीं हैं, इसलिए उन्हें कंप्यूटर और इंटरनेट के बारे में कुछ भी पता नहीं है. वे अपने 10वीं क्लास में पढ़ने वाले बेटे की मदद से इंटरनेट से खेती की नई जानकारियां लेते हैं और उन्हें खेतों में आजमाते हैं. संजय बताते हैं कि बेटे की मदद से उन्होंने इंटरनेट का फायदा उठाना शुरू कर दिया है. खेत को बनाने से ले कर फसलों की सिंचाई और अनाज भंडारण तक के बारे में अब वे इंटरनेट से मिलने वाली सलाहों पर अमल कर रहे हैं. उन्हें सब से ज्यादा खुशी इस बात की है कि सिंचाई की नई तकनीक को अपनाने से सिंचाई का खर्च आधा रह गया है.बिहार जैसे पिछड़े राज्य में पंचायती राज के ठेठ गंवई प्रतिनिधियों को हाईटेक बनाने की कवायद शुरू की गई है. इफ्को का ‘किसान संचार लिमिटेड’ वायस मैसेज के जरीए पंचायत प्रतिनिधियों को खेती की तकनीकों और मौसम की जानकारी  देगा. इफ्को किसान संचार से जुड़े पंचायत प्रतिनिधियों को 20 रुपए में सिम कार्ड मिलेगा.

कृषि मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बताया कि सभी प्रतिनिधियों के मोबाइल फोनों पर एसएमएस के जरीए कृषि विकास बागबानी, पशुपालन, मछलीपालन और मौसम वगैरह की जानकारी दी जाएगी. पंचायती राज महकमे ने पंचायत प्रतिनिधियों और किसानों को संचार सेवा से जोड़ने का फैसला लिया है. जिला परिषद के सदस्य, पंचायत समितियों के सदस्य और प्रमुख, सभी मुखिया और सरपंच, वार्ड सदस्य और पंच, जिला और प्रखंड पंचायती राज पदाधिकारी, पंचायत सेवक, जनसेवक और बाकी पंचायत कर्मचारी इस सिम का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस से वे खेतीबारी, बाजार, सरकारी योजनाओं और मौसम के बारे में पूरी जानकारी रख सकेंगे. इस से पंचायत प्रतिनिधियों को सरकारी दफ्तरों और अफसरों के पास भागदौड़ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

नालंदा जिले के नूरसराय गांव के किसान कपिलदेव प्रसाद कहते हैं कि बिहार में पंचायत स्तर पर कृषि उत्पादों का डाटा बैंक बनाने की कवायद शुरू की गई है. इस से किसानों को आसानी से पता चल सकेगा कि किस गांव में किस तरह की फसलें लगाई जा सकती हैं, किस गांव की मिट्टी कैसी है, वहां कौन सी फसल लगाना फायदेमंद साबित होगा, मिट्टी का उपचार कैसे किया जाए. इस के अलावा दूसरी कई तरह की जानकारियां भी किसानों को मिल सकेंगी. इस के लिए वेब आधारित एमआईएस सिस्टम की मदद से सभी जानकारियों को इकट्ठा किया जाएगा. इसी तरह से बिहार के दुधारू पशुओं के बारे में ठोस आंकड़े हासिल करने के लिए गायों और भैंसों में इलेक्ट्रोनिक चिप (रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटीफिकेशन टैग) लगाने का काम भी चालू किया गया है. पशु और मत्स्य संसाधन विभाग द्वारा डेरी यूनियनों से जुड़े पशुपालकों  को पहले चरण में इस सिस्टम से जोड़ा जा रहा है. पशुओं की सही आबादी पता लगने से उन के रोगों की रोकथाम, टीकाकरण और बीमा योजनाओं की कामयाबी की गारंटी योजना बनाने और उसे अमल में लाने में आसानी होगी. साल 2007 के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 1 करोड़ 24 लाख गायें और 67 लाख भैंसें हैं, लेकिन इस में से ज्यादातर पशुओं का जुड़ाव दूध सोसाइटियों से नहीं है. कृषि रोड मैप के तहत सूबे में दूध उत्पादन को बढ़ाने और इस व्यवसाय में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने के लिए मवेशियों की संख्या का सही आंकड़ा जुटाना जरूरी है. लिहाजा विभाग की साइट पर मवेशियों का पूरा ब्योरा मुहैया कराया जाएगा.

हर साल धान की खरीद के समय किसानों को परेशानियों से बचाने के लिए भी इंटरनेट की मदद ली जा रही है. बिहार में धान खरीद से ले कर उस के पेमेंट को औनलाइन किया जाएगा. इस के लिए सभी पैक्सों (प्राथिमिकी कृषि साख समिति) को पूरी तरह से कंप्यूटराइज्ड किया जा रहा है. खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री श्याम रजक ने बताया कि धान खरीद को औनलाइन कर देने से गड़बड़ी की गुंजाइश पूरी तरह से खत्म हो जाएगी. सूबे के कुल 8463 पैक्सों को कंप्यूटराइज्ड करने के लिए डीपीआर बनाने की जिम्मेदारी बेलट्रौन को सौंपी गई है. हर प्रखंड में मिट्टी जांच प्रयोगशाला और कंप्यूटर, इंटरनेट, फोन वगैरह सुविधाओं से लैस ई किसान भवन बनाने का काम चल रहा है. इस से किसानों को अपने उत्पादों की नेशनल और इंटरनेशनल कीमतों का पता आसानी से चल सकेगा और अपनी समस्याओं के हल के लिए उन्हें सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे. साथ ही उन्हें खेती के लिए वैज्ञानिकों की सलाह भी मुफ्त में मिल सकेगी.

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