खेती में प्रति हेक्टेयर लागत दिनोंदिन बढ़ रही है. लिहाजा साथ में कोई और कामधंधा कर के आमदनी बढ़ाना लाजिम है. इस लिहाज से बतखपालन का काम किया जा सकता?है. हालांकि पोल्ट्री के धंधे में ज्यादातर लोग मुरगियां पालते हैं, लेकिन देश की कुल पोल्ट्री में करीब 10 फीसदी हिस्सा बतखों का है. यदि बेहतर तरीके से बतखें पाली जाएं तो फायदा ज्यादा हो सकता है. मुरगियों के मुकाबले बतखें पालना किफायती व फायदेमंद है, क्योंकि ये दड़बों के अंदर कम रहती हैं और मुरगियों के मुकाबले कम दाना खाती हैं. बतखों के चूजों को कम दिनों तक सेया जाता है. प्रति बतख अंडा देने की सालाना कूवत करीब 200 है, जो मुरगियों के मुकाबले करीब 2 गुनी है. साथ ही बतख के अंडे का वजन 70 ग्राम तक होता है, जबकि मुरगी का अंडा औसतन 55 ग्राम का होता है. लिहाजा बतखपालन से कम लागत में ज्यादा लाभ मिलता है.

सिर्फ चौथाई एकड़ के पोखर में 20-25 बतखें पाली जा सकती हैं. खुले में बतख पालने से उन्हें मनचाहा खाना ज्यादा मिलता है, लिहाजा अंडे भी ज्यादा मिलते हैं. बतखें 2 साल तक अंडे देती हैं. नए चूजों को अलग रख कर बतखों के समूह बनाए जा सकते हैं, ताकि हर 5-6 महीने पर अंडा व मीट देने वाली बतखें लगातार तैयार होती रहें.

फायदे का धंधा

जाहिर है कि बतखपालन में उन के रहने व खाने पर कम खर्च होता है. बतखें पानी में रहना ज्यादा पसंद करती हैं. लिहाजा गांव के तालाबों, धान व मक्के के खेतों या फिर घर के आसपास बनाए गए बनावटी तालाबों में बतखें पाली जा सकती हैं. बतखें गांव के तालाबों में, नालेनालियों के आसपास घूमघूम कर अपना भोजन खुद ढूंढ़ लेती हैं. उन्हें पोखरों व नालों वगैरह में पानी के पौधे, कीड़ेमकोड़े व घेंघे वगैरह खाने को मिल जाते हैं. बतखों की एक सब से बड़ी खासीयत यह है कि मुरगियों के मुकाबले उन में बीमारियों से लड़ने की कूवत ज्यादा होती है. लिहाजा वे जल्दी से बीमार नहीं होतीं. सर्दियों में पंछियों को होने वाला तेज बुखार व रानीखेत नाम की बीमारी बतखों में नहीं होती. लिहाजा छोटे किसानों को खेती व मछलीपालन करने के साथसाथ बतखपालन का धंधा जरूर करना चाहिए.

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