बढ़ती आबादी और नएनए खुलते उद्योगधंधों की वजह से खेती की जमीन का रकबा लगातार घटता जा रहा है. शहरी इलाकों के साथसाथ गंवई इलाकों में भी अंधाधुंध खुलते वेयरहाउस, पैट्रोल पंप, व्यावसायिक परिसरों के बन जाने के चलते खेतीलायक जमीन घट रही है.

मध्य प्रदेश के ज्यादातर गंवई इलाकों में चरनोई जमीन पर दबंगों का कब्जा है, जिस की वजह से गाय, बैल, भैंस, बकरी जैसे पालतू पशु किसानों के घर बंधे रहते हैं या फिर उन्हें आवारा सड़कों पर छोड़ दिया जाता है.

सरकार गायों के संरक्षण का ढिंढोरा भले ही पीटे, पर सरकार की तमाम योजनाओं का जमीनी लैवल पर सही ढंग से लागू न होने से प्रदेश में किसानों द्वारा पशुपालन में दिलचस्पी लेना कम कर दिया है.

गंवई इलाकों में चरनोई जमीन की व्यवस्था पुराने समय से रखने का नियम था. पशुओं को चराने के लिए चरनोई जमीन गांव में इसलिए छोड़े जाने का इंतजाम किया गया था कि गांव में पशुओं को चारा मिलता रहे.

शासनादेश में हर गांव में चरनोई जमीन रहना अनिवार्य थी, जो भूसंहिता में आरक्षित भी मानी जाती थी. अब चरनोई जमीन के माने बदले गए हैं. इस चरनोई जमीन को जिस मकसद से रिजर्व रखा गया?था, वह मकसद पूरी तरह से खत्म हो गया है.

आज भी कागजों में तो चरनोई जमीन हर गांव के राजस्व रिकौर्ड में दर्ज है, पर सच यही?है कि चरनोई जमीन कहीं दिखाई नहीं देती.

आज गंवई इलाकों में हालात ये हैं कि गांव में ऊंची जाति के दबंगों ने चरनोई जमीन पर कब्जा कर लिया?है और उस पर वे खेतीबारी कर रहे हैं, पर नीची जाति के पशुपालकों को अपने पशुओं को चराने के लिए किसी तरह की चरनोई जमीन नहीं है. दबंगों के डर से वे अपने मवेशी छुट्टा तक नहीं छोड़ पाते हैं.

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