भारत कृषि प्रधान देश है. यहां तकरीबन 65 फीसदी आबादी कृषि कार्यों में लगी है. देश के सभी राज्यों में किसानों की स्थिति काफी दयनीय है, जबकि किसान खेतों में रातदिन काम करते हैं. फिर चाहे सर्दियों की ठिठुरन भरी रात हो या मईजून की तपती धूप, हर मौसम में किसान कड़ी मेहनत करते हैं. देश के ज्यादातर हिस्सों में पुरुष किसानों के साथ ही महिलाएं भी बढ़चढ़ कर खेती के कामों में अपना योगदान दे रही हैं.
एक तरफ जहां पुरुष किसानों को खेतों में काम करने के बदले ज्यादा मजदूरी मिलती है, वहीं दूसरी तरफ महिलाओं को उन से काफी कम रुपयों में काम करना पड़ता है.
आज भी देश की महिला मजदूरों को अपनी मेहनत की वाजिब मजदूरी नहीं मिल पाती. आज 21वीं सदी में भी पुरुष और महिला में इतना बड़ा भेद है. इस के लिए हमारी पुरुषवादी सोच जिम्मेदार है. हम इस के आगे सोच नहीं पा रहे हैं.
आप देश के किसी कोने में खेतों में जा कर देखेंगे तो चाहे झुलसा देने वाली गरमी हो या फिर बदन को कंपकंपा देने वाली ठंड, हर मौसम में अपनी सेहत की परवाह किए बिना घंटों खेतों में काम करती औरतें मिल जाएंगी. देश की मौजूदा स्थिति यह है कि घरों के बाहर काम करने वाली तकरीबन 80 फीसदी महिलाएं खेतीबारी से जुड़े कामों में लगी हैं, इन सब के बावजूद जब भी किसानों की बात आती है, तो हम सब के जेहन
में जो तसवीर उभरती है, वह पुरुष किसानों की होती है. ऐसा नहीं है कि देश के कुछ राज्यों में ही यह स्थिति हो, सभी जगह ऐसा ही है. आप सब से ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश को देख लें, वहां भी महिला किसानों की यही दुर्दशा है.