हमारे देश में किसानों को अन्नदाता व देश की रीढ़ कहा जाता है, लेकिन यह सच नहीं है. फिर भी आबादी का आधे से ज्यादा हिस्सा खेतीकिसानी से जुड़ा है.

किसानों को राहत व खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकारों ने बहुत सी स्कीमें चलाईं व उन में पानी की तरह पैसा बहाया. खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र व राज्यों में मंत्रालय, महकमे, बहुत से रिसर्च सैंटर, कृषि विश्वविद्यालय व निगम आदि चल रहे हैं. इन के जरीए खर्च करने के लिए भारीभरकम बजट और अफसरों व मुलाजिमों की फौज है. इस के बावजूद हैरत की बात तो यह है कि देश में खेती का कुल रकबा, खास फसलों की पैदावार व औसत उपज लगातार घट रही है. आखिरकार यह कैसी तरक्की है

कहां है तरक्की

इश्तिहारों में तरक्की के ढोल पीटे जाते हैं. ओहदेदार अपनी पीठ ठोंक कर गाल बजाते हैं, लेकिन केंद्र सरकार के अधीन किसान कल्याण मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट असल हालात का खुलासा करती है. साल 2016-17 के सरकारी आंकड़े हमें चौंकाते हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2014 से 2017 के दौरान बीते 3 सालों में धान का रकबा 7 लाख, 48 हजार हेक्टेयर, गेहूं का रकबा 2 लाख, 46 हजार हेक्टेयर, दलहन का रकबा 57 हजार हेक्टेयर व तिलहन का 19 लाख 16 हजार हेक्टेयर कम हुआ है. आबादी व मांग में इजाफे के बावजूद यह गिरावट ठीक नहीं है.

बीते 3 सालों में मुख्य फसलों का रकबा घटने के अलावा कुल पैदावार भी गिरी है. धान की पैदावार में 233 लाख टन, गेहूं की पैदावार में 235 लाख टन, दलहन की पैदावार में 322 लाख टन व तिलहन की पैदावार में 744 लाख टन की कमी आई है.

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