- प्रो. एसएन सिंह, अध्यक्ष,

बकरीपालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिसे कम लागत व कम स्थान में छोटा, बड़ा व भूमिहीन किसान आसानी से कर सकता है, इसीलिए इसे गरीबों की गाय व एटीएम भी कहा जाता है.

बकरी के दूध की मांग दिनप्रतिदिन बढ़ रही है, क्योंकि इस में डेंगू रोग की प्रतिरोधक क्षमता है. बेरोजगार नौजवान और युवा लड़कियां, मजदूर, किसान और किसान महिलाएं बकरीपालन व्यवसाय को अपना कर अपनी माली हालत को सुधार सकते हैं.

पशुपालन विशेषज्ञ डा. डीके श्रीवास्तव ने जानकारी देते हुए कहा कि बकरीपालन को मुख्यत: मांस, दूध, बाल, खाल व खाद के लिए इस्तेमाल किया जाता है. जिले की जलवायु के अनुरूप बकरी की बरबरी, जमुनापारी, सिरोही व ब्लैक बंगाल उपयुक्त नस्लें हैं, जो दूध के साथ अच्छी क्वालिटी का मांस उपलब्ध कराती हैं और प्रत्येक ब्यांत में 2 बच्चे देती हैं.

बरबरी नस्ल की बकरियों में नर बच्चे ज्यादा पैदा होते हैं, जिन को मांस के लिए पाला जा सकता है. उन्होंने यह भी अवगत कराया कि बकरियों को चरना ज्यादा पसंद है, इसलिए इन्हें चराई के साथ ही साथ प्रतिदिन 250 ग्राम दाना मिश्रण भी खिलाना चाहिए. इस से बकरियों को आवश्यक पोषक तत्त्व जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज और विटामिन मिलते रहें और वे स्वस्थ रह कर कम अवधि में अधिक शरीर भार ग्रहण कर सकें.

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बकरियों में किसी प्रकार की बीमारी होने पर निकट के पशु चिकित्सक से सलाह लें और उन की दी गई सलाह से ही इलाज कराएं.

पौध रोग विशेषज्ञ डा. प्रेम शंकर ने बताया कि बकरियों की सब से घातक बीमारी पीपीआर है, जो बहुत तेजी से फैलती है. इस बीमारी के कारण बकरियों की मौत भी हो जाती है. इस के बचाव के लिए प्रत्येक बकरी को पीपीआर का टीका समय से अवश्य लगवा देना चाहिए.

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