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"माँ के पास"

"कल चली जाना,फ़िलहाल सफ़र की थकान तो उतार लो"

"दो तीन घंटे में आ जाऊँगी समीर,माँ की बहुत याद आ रही है"

उसने बच्चों की तरह मचल कर कहा तो समीर ने टैक्सी बुक कर दी.

दो घंटे की कह कर शर्मिला जब,रात तक वापस नहीं लौटी तो समीर ने फ़ोन घुमा दिया,

"कल शाम माँ और पापा मेरठ जा रहे हैं..उनके जाने से पहले लौटने की कोशिश करना"

"यों अचानक.."

"पापा के बॉस ने फ़ोन किया था इसीलिए अचानक प्रोग्राम बन गया.."

"तो पापा अकेले चले जायँ.."

"काफ़ी दिन हो गए माँ को भी घर छोड़े हुए..जाना ज़रूरी है..पता नहीं वहाँ भी घर किस हाल में होगा"

"कुछ दिन उनके साथ रह लेती तो अच्छा लगता.." उसने अतिरिक्त मीठे स्वर में समीर से कहा तभी ,पीछे से उसकी माँ,और बहनों का स्वर सुनाई दिया,

"इतनी ख़ुशामद करेगी तो सिर पर चढ़ कर बैठ जाएँगे तेरे घर वाले. जाती है तो जाए".

"ख़ुशामद करूँगी तभी तो समीर पल्लू से बँधा रहेगा"

समीर ने बिना कुछ कहे फ़ोन रख दिया.दो दिन बाद,शर्मिला वापस लौटी तो समीर का मूड उखड़ा हुआ था.शर्मिला ने बेपरवाही सेअपना सामान व्यवस्थित किया,मैले कपड़े बाहर आँगन में नल के पास रखे और रिमोट उठाकर टीवी का स्विच औन करके अपना मनपसंद सीरीयल देखने लगी.बाहर निकली तो पटरे पर धुलने के बाद निचुड़े हुए कपड़े रखे थे.उसने पैर से उन्हें नीचे गिरा दिया,

"ये क्या किया बहू,सुखाने के लिए पटरे पर कपड़े रखे थे"

"मैं सुखाने के लिए ही अपने कपड़े छाँट रही थी"शर्मिला ने ढ़ीठता से कहा और गंदे तरीक़े से ,नंदिनी मौसी की नाराज़गी की प्रतीक्षा करने लगी

"रहने दो बहू मैं तुम दोनों के कपड़े सुखा दूँगी"मौसी ने हंस कर कहा., तो शर्मिला ने शांत सरोवर में पत्थर फेंका,

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