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मन की पीड़ा
कल्याणी भी बहुत खुश थीं. बेटी अच्छा कमाने लगी थी. घर पहुंचते ही दूसरे दिन उसे अरमान से मिलना था.
भाग - 1
उस दिन भी इतवार था. अब न वह था न उस की मां, न उस के पिता न पंचम की मां और न ही पंचम के पिता. केवल थी तो पंचम.
भाग - 2
कल्याणीजी के लिए नाम और प्रसिद्धि एक चुनौती बन चुकी थी. उसे वे किसी भी तरह पाना चाहती थीं.
भाग - 3
पंचम ने कहा, ‘अब कुछ और बताती हूं. सुनो, अरमान, अगले महीने एक बहुत बड़ा समारोह है. कुछ दिन के लिए मुझे मुंबई जाना पड़ेगा.’
भाग - 4
सुबह नाश्ते के बाद पंचम और कल्याणी हितेश साहब के घर पहुंचे. वही हुआ जिस का संदेह था.
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