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पंचम के पापा ने कल्याणी की बातों को हवा में उड़ा दिया. उन्होंने भी आसान रास्ता अपनाया है. ऐसी स्थिति में बड़बड़ाते हुए वे घर से बाहर चले जाते हैं. रात का समय था. इस तानाकशी से बचने के लिए बाहर भी नहीं जा सकते थे. बिस्तर पर पड़ी पंचम उन की बातों का आनंद लेते मन ही मन में बड़बड़ा रही थी, ‘कोट की बात करती हो मां, नाप तो अपना ही दिया था. कपड़ा, रंग और स्टाइल भी खुद ही चुना था. सब से कहती हैं पंचम के लिए बनवाया है.’ यही सोचतेसोचते उस की आंख लग गई. सुबह होते ही हितेश साहब का टैलीफोन आया. आज रियाज नहीं होगा. आज पंचम को सुकून था. उस का मन शांत था. कितना हलकापन था दिल पर. वह खुश थी.

अपने तथा अरमान के लिए वह यह मनाती कि प्रकृति कुछ ऐसा हो जाए कि मंच से छुट्टी मिल जाए. एक इतवार की छुट्टी है तो क्या? सप्ताह के सभी दिनों से जल्दी आ टपकता है यह इतवार. शनिवार की रात होते ही वह तिलतिल मरने लगती थी. घर के सभी सदस्य चैन से सोए थे. मां खुश थीं. इतवार की तैयारी में लगी थीं. चुपके से मां ने पंचम के सिरहाने घड़ी रख दी. उस ने जरा सी आंख खोली, और सोचने लगी, फिर सुबह 4 बजे उठना पड़ेगा. हितेश साहब के घर जाने से पहले रियाज भी करना था. वह उलझन में थी क्योंकि कुछ दिन से मां मुझ पर बहुत स्नेह उड़ेल रही थीं. हितेश साहब ने मेरे साथ मां को भी बुलाया है. शायद किसी अनुबंध पर हस्ताक्षर करने होंगे. मां खुश तो ऐसे थीं जैसे स्वयं ही पार्श्व गायिका बन गई हों.

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