‘मैडम, पान...?’ उस ने पंचम से पूछा.
‘नहीं, शुक्रिया, ये मेमसाहब पान नहीं खातीं,’ हितेश साहब ने उचक कर कहा. फिर पंचम की ओर मुड़ कर बोले, ‘पंचम, भूले से भी किसी के हाथ से पान मत ले लेना. हजारों सज्जनों में दुश्मन भी छिपा होता है. ईर्ष्या से पान में ऐसी चीज मिला देते हैं जिस से गला सदा के लिए खत्म हो जाता है.’ पंचम ने स्वीकृति में सिर हिला दिया. हितेश साहब तो वहां से चले गए, थोड़ी देर बाद पान वाला फिर वहां आ धमका. ‘मैडम, बनारसी पान है, ले लीजिए.’ उस से पीछा छुड़ाने के लिए पंचम ने एक पान उठा कर पेपर नैपकिन में लपेट कर अपने पर्स में रख लिया. पार्टी समाप्त होतेहोते 2 बज चुके थे. पंचम सोचने लगी, शुक्र है कल दोपहर की वापसी है. कल्याणीजी बहुत उचक रही थीं. मानो हितेश साहब ने उन के हाथ में नोट छापने वाली मशीन थमा दी हो. उन्हें लखपति बनने का सपना पूरा होता दिखाई दे रहा था. दिल्ली पहुंचते ही पंचम ने चैन की सांस ली. परीक्षाएं सिर पर थीं. जब तक परीक्षाएं समाप्त नहीं हो जातीं तब तक कई इतवारों की छुट्टी. पंचम खुश थी कि अब तो अरमान भी घर बैठ अपनी परीक्षा की तैयारी कर सकता है.
परीक्षा समाप्त होते ही वह अरमान से मिलने लोधीटूम पहुंची. अरमान उसी पेड़ के नीचे प्रतीक्षा कर रहा था, जहां दोनों बचपन से बैठते आए थे. कुछ क्षण के लिए दोनों अपनेअपने बुलबुलों में बंद रहे. अरमान सिर झुकाए जमीन पर टेढ़ीमेढ़ी लकीरें खींचते हुए बुदबुदाया, ‘क्यों पंचम, बताने के काबिल नहीं समझा...क्यों?’
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