उस दिन रियाज के बाद जब हितेश साहब पंचम को घर छोड़ने आए तो उन्होंने मां से हिचकिचाते हुए पूछा, ‘कल्याणीजी, आप को पंचम को दिल्ली से बाहर भेजने में कोई आपत्ति तो नहीं?’ बात समाप्त करने से पहले उन्होंने अनुबंध उन के सामने रख दिया. कल्याणीजी ने बिजली की कौंध की तरह झट से अनुबंध पर हस्ताक्षर कर दिए. दिल्ली से बाहर फरीदकोट में पंचम का यह पहला समारोह था. नाम तक न सुना था कभी. बस, सांत्वना यही थी कि वहां किसी परिचित व्यक्ति के मिलने की संभावना नहीं थी. सालाना परीक्षा के कारण कुछ दिन स्कूल में छुट्टी थी. किंतु पंचम का हितेश साहब के यहां रियाज का सिलसिला जारी रहा. अब सप्ताह में 2 बार. मां की इन हरकतों पर गुस्सा आने पर अकसर पंचम कह देती, ‘मां, वहां हितेश साहब की लड़की बैठ कर परीक्षा की तैयारी करती है और मैं उस के पापा के साथ रियाज करती हूं, प्रेम गीत गाती हूं, मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता?’
‘बेटा पंचम, तुझ में जो हुनर है वह उस में थोड़े ही है. इस में तेरा भी भला है. पंचम सोचने लगी, मां नहीं जानती थीं कि उन के इस जनून में मेरा और अरमान का हरेक इतवार बरबाद होता है. मेरे वहां जाने से वह भी इतवार को परीक्षा की तैयारी नहीं कर सकता. मां यह अच्छी तरह जानती हैं कि अरमान की खिड़की से हितेश अंकल का घर साफसाफ दिखाई देता है. फिर क्यों? बचपन से अरमान और पंचम एक अटूट अनकहे प्रेमबंधन में बंधे थे. अरमान के घर वाले बहुत पुराने विचारों के थे, उन्हें पंचम के गानेबजाने से सख्त नफरत थी. पंचम का ‘स’ लगते ही अरमान जोर से खिड़की बंद कर देता. वह अकसर अपनी मां की जलीकटी बातों से बचने के लिए लोधी गार्डन के उस पेड़ के नीचे जा बैठता जहां वे दोनों जंगलजलेबियां बीनबीन कर खाते और घंटों बातें करते रहते थे. अरमान के कुछ न कहने पर भी पंचम उस की कहीअनकही बातें उस की आंखों में साफ पढ़ लेती.