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सबकुछ महसूस कर प्रिया को पहली बार उस घर में अपना अपमान सा लगा, वह भी अपनी ही छोटी बहन के कारण. वह सोचने लगी, ‘आखिर ऐसा क्या कर दिया है वीरा ने जो भाभी उस से इस कदर घुलमिल कर बातें कर रही हैं. मुझे तो याद नहीं कि भाभी ने कभी मुझ से भी इतनी अंतरंगता से बात की हो. आखिर मुझ में क्या कमी है. वीरा का पति अगर सफल व्यवसायी है तो प्रणव भी तो एक प्रतिष्ठित फर्म में उच्चाधिकारी हैं.’

प्रिया का मन उदास हो गया तो वह चुपचाप कमरे में आ कर लेट गई. प्रणव दफ्तर जा चुके थे और दिनेश भैया के साथ फैक्टरी चले गए. बच्चे बाहर खेल रहे थे. तनहाई उसे बहुत खल रही थी. पर इस से भी ज्यादा गम उसे इस बात का था कि उस की उपस्थिति से बेखबर वीरा और भाभी अपनी ही बातों में मशगूल हैं.

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‘‘अरे दीदी, तुम यहां लेटी हो और मैं तुम्हें सारे घर में ढूंढ़ढूंढ़ कर थक गई,’’ कुछ ही देर में वीरा ने कमरे में घुसते हुए कहा तो वह जानबूझ कर चुप रही. पर मन ही मन बड़बड़ाई, ‘हुंह, खाक मुझे ढूंढ़ रही थी, झूठी कहीं की.’

‘‘क्या बात है प्रिया, तबीयत तो ठीक है?’’ तब तक भाभी भी आ गईं. प्रिया के माथे पर हाथ रख उन्होंने बुखार का अंदाजा लगाना चाहा पर उस ने धीमे से उन का हाथ हटा दिया, ‘‘ठीक हूं, कोई खास बात नहीं है.’’

‘‘सिर में दर्द है क्या?’’ भाभी के स्वर में चिंता उभर आई तो वह गुस्से से भर गई. ‘ऊपर से कैसे दिखावा करती हैं,’ उस ने सोचा.

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