हालिया संपन्न हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस हारी है पर इतनी बुरी तरह नहीं कि उस का घाट पर ले जा कर अंतिम संस्कार कर दिया जाए. यह पक्का है कि भारतीय जनता पार्टी ने धीरेधीरे देशभर में वर्चस्व का स्थान बना सा लिया है जो पहले कांग्रेस का था. भाजपा कहीं भी किसी भी स्थानीय पार्टी की खरीदफरोख्त कर के अपने पैर फैला सकती है. तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में कांगे्रस से जिन पार्टियों ने समझौते किए वे हार गईं, हालांकि बिहार में कांगे्रस के साथ का प्रयोग सफल रहा था. असल में कांगे्रस और भारतीय जनता पार्टी की सोच में खासा अंतर नहीं है. सफेद खादी की पोशाक, टोपी, झोला लिए कांगे्रसियों की पहचान वैसी ही रही है जैसी भगवा जैकेट, भगवा मफलर, तिलक भाजपाइयों की निशानी हैं. 1947 से कई दशकों तक कांगे्रस पर ऊंची जातियों के नेताओं का वर्चस्व रहा, वैसा अब भारतीय जनता पार्टी में है. फर्क इतना है कि भाजपा अब भी पिछड़ों और दलितों को दूर रखती है जबकि कांग्रेस ने उन्हें जरा बराबरी की जगह दी जिस की वजह महात्मा गांधी की हरिजन उद्धार नीति थी.

1947 के बाद गांधी गए तो कांग्रेस के पास हरिजनों के लिए कुछ करने को नहीं बचा. इतने साल कांग्रेस ने राज किया तो इसलिए कि ऊंची जातियों ने उस पर कब्जा कर रखा था पर जैसेजैसे जमीनों से मिलती आय के कारण पिछड़े इस में आने लगे तो कांग्रेस के ऊंची जातियों के नेता व कार्यकर्ता भाजपा में जा खड़े हुए. भाजपा उन की वजह से मजबूत हुई है पर कांग्रेस इसी कारण कमजोर हुई हो, यह जरूरी नहीं. दिक्कत यह है कि कांग्रेस का नेतृत्व आज भी ऊंची जातियों के कब्जे में है. उत्तराखंड में जो लड़ाई चली थी वह जाति की थी जिस में विजय बहुगुणा श्रेष्ठ ब्राह्मण होने के कारण सत्ता को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मान रहे थे. वहां कांग्रेस को बचाया तो दलितों की बहुजन समाज पार्टी ने.कांग्रेस को जरूरत है कि वह दलितों और पिछड़ों को जगह दे. उन का खैरखयाल रखने वाली कोई पार्टी नहीं बची. कांग्रेस की सोनिया गांधी और राहुल गांधी खुद को भले ऊंचे कश्मीरी पंडित खून से जोड़ लें पर एक तरह से वे जातिविहीन, धर्मविहीन नेता  हैं. वे इस का लाभ 2004 व 2009 में उठा चुके हैं और फिर उठा सकते हैं. दक्षिण में तमिल पार्टियां जयललिता और करुणानिधि के इर्दगिर्द सीमित हैं. ओडिशा की पिछड़ी जातियों को नवीन पटनायक के अलावा कोई नहीं दिखता. उत्तर प्रदेश में हर जाति ने अपनी पार्टी बना रखी है और भाजपा उन में आसानी से सेंध लगा सकती है. कांग्रेस के पास आज भी अवसर हैं पर कांगे्रसी नेता आज जमीन पर जा कर काम करने को तैयार नहीं. लाइसैंस, कोटा, परमिट राज के 70 वर्षों ने कांग्रेसियों को पैसे वाला बना डाला और वे ऐशोआराम के आदी हो गए हैं.

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