‘वर्णव्यवस्था के अनुसार पिछड़े और शूद्र से आर्थिक तौर पर खासे संपन्न जाटों ने आरक्षण की मांग को ले कर जून में फिर आंदोलन की धमकी दी है. 4 माह पहले उन के आंदोलन ने हरियाणा को जला डाला था. सैकड़ों घर जलाए गए, हत्याएं की गई और हरियाणा से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग इतना खतरनाक हो गए थे जैसे खालिस्तान आंदोलन के दौरान पंजाब के राष्ट्रीय राजमार्ग खतरनाक हो गए थे. मांग चाहे खालिस्तान की हो, गुर्जरों की हो, यादवों की हो, कापुओं की हो या नक्सलियों की, इस की जड़ में वह ब्राह्मणवादी वर्णव्यवस्था है जो 1947 के बाद एक व्यक्ति एक वोट के सिद्धांत पर हुए बीसियों चुनावों की वर्षा से भी फीकी तक नहीं हुई. उलटे, यह और बढ़ गई है और हर राजनीतिक पार्टी चुनाव में उतरने से पहले आंकती है कि किस चुनावक्षेत्र में किस जाति के कितने लोग हैं

वर्णव्यवस्था हिंदू धर्म की जान है. यह नहीं रहेगी तो हिंदू धर्म का स्वरूप बदल जाएगा. फिर क्या होगा, यह तो नहीं कहा जा सकता पर मंदिरों का विनाश हो जाएगा और पाखंड की दुकानें फीकी हो जाएंगी. इसलिए आजादी के बाद से पहले कांगे्रस ने और अब भारतीय जनता पार्टी ने कई गुना ज्यादा बेताबी से जाति को बनाए रखने की कोशिश जारी रखी है. और इसीलिए जाट और पटेल आंदोलन जोर पकड़ रहे हैं. प्रारंभ में जब पिछड़ी जातियों को जमींदारों और रजवाड़ों से खेती की जमीन की मिल्कीयत मिली तो वे खुश हो गए कि अब वे सवर्णों के बराबर हो गए. पर जब उन्होंने ब्राह्मणों, क्षत्रियों व वैश्यों के साथ उठनेबैठने की कोशिश की तो उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें तो अभी भी शूद्र समझा जा रहा है. उन्होंने सवर्णों की नकल में तिलक लगाना शुरू किए, तीर्थों पर जाना शुरू किया, अपने स्थानीय देवीदेवताओं को छोड़ कर हिंदू पौराणिक अवतारों को पूजना शुरू किया. वे भारतीय जनता पार्टी के साथ भारी संख्या में जुड़े, उन के नेताओं ने मंदिरों में सिर टेके. पर लाभ ज्यादा न मिला.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...