इस बार के लोकसभा चुनाव खासे रोचक होंगे. भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह राम मंदिर बनाने के बावजूद ताबड़तोड़ ढंग से नीतीश कुमार के जदयू, चंद्रबाबू नायडू की तेलुगूदेशम पार्टी, जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल के अलावा 30-32 और पार्टियों से गठजोड़ किया है और दूसरी तरफ आधाअधूरा इंडिया ब्लौक घिसटघिसट कर बना है, लोगों को या तो नरेंद्र मोदी को वोट देना होगा या उन के खिलाफ. वोट बंटने की वजह से पहले जो प्रत्याशी 30-35 प्रतिशत वोट हासिल कर भी जीत जाते थे, वैसा इस बार कम होगा.

एक तरह से भारतीय जनता पार्टी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है कि 2014 की तरह 2024 का चुनाव भी भारत के इतिहास में मील का पत्थर साबित हो. जनता को हर तरह लुभाया गया है- धर्म के नाम पर, रेलों के नाम पर, हवाई अड्डों के नाम पर, सस्ती घरेलू गैस के नाम पर, भत्तों और आर्थिक सहायता के नाम पर. भाजपा ने यह साबित करने की कोशिश की है कि वही एक पार्टी है जो एकजुट है, जिसे लोग छोड़ते नहीं, जिस में मतभेद नहीं और वही भरोसे लायक है.

दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी ने अपने सीनियर नेता राहुल गांधी की पद यात्राओं से पैदा हुई जनता की रुचि को कैश करने और वोटों में बदलने की कोशिश में लगभग सभी राज्यों में विभिन्न दलों से सम?ाते कर लिए हैं. कांग्रेस का संगठन हजार मुश्किलें आने और बारबार कांग्रेस छोड़ने वालों की संख्या बढ़ने के बावजूद अभी भी दूसरे सभी दलों से बड़ा है, फिर भी उस की लीडरशिप ने बहुत उदारता दिखाई है.

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