राज्यसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के चुनाव मैनेजरों ने कमाल दिखाते हुए हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में एकएक सीट ज्यादा जीत ली. उन्होंने ‘रामभक्त’ विधायकों को ढूंढ़ा जो कांग्रेस या समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीत कर विधायक बन कर आए थे और उन्हें भाजपा उम्मीदवार को वोट देने को राजी कर लिया.

सांसदों, विधायकों, पार्षदों का आयाराम गयाराम खेल एंटी डिफैक्शन एक्ट 1985 व 2003 के बावजूद आज भी चल रहा है और पिछले सालों में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार आदि में सरकारें तक बदली हैं. भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा के मैनेजरों का कमाल है कि वे जनता के वोट पर उन के विरुद्ध जीत कर आए, चुने गए जनप्रतिनिधियों से बातचीत बंद नहीं करते और उन्हें भक्ति वाले खेमे में लाने के लिए लगातार कोशिशें करते रहते हैं.

दूसरी पार्टियों के पास आज धर्म की काट करने वाला कोई तर्क नहीं है. वोटर ने चाहे धर्म की राजनीति की जगह दूसरे मुद्दों पर वोट दिया हो, भाजपा मैनेजर चुप नहीं रहते और लगातार मेहनत करते रहते हैं कि धर्म की ‘तथाकथित रक्षा’ के लिए दलबदल का पाप करना गलत नहीं है. यह तो जाहिर ही है कि धर्म वाली पार्टी के साथ जाने पर परलोक सुधरने की ‘तथाकथित गारंटी’ होती है, हां, इहलोक फिलहाल जरूर सुधरता है.

धर्म के नाम पर जो लोग पार्टियां बदल लेते हैं उन्हें इहलोक में बहुत से दैत्यों के आक्रमणों से छुटकारा भी मिल जाता है. जब जातिगत श्रेष्ठता मिल रही हो, सुरक्षा मिल रही हो, तथाकथित स्वर्ग मरने से पहले मिल रहा हो व मरने के बाद भी मिलने की तथाकथित गारंटी हो तो ऐसे में आम जनता की कौन और क्यों चिंता करे, जय दलबदल.

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