यह तो होना ही था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब न्यायपालिका पर प्रहार करना शुरू कर दिया है क्योंकि मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के कुछ फैसले भारतीय जनता पार्टी के मनसूबों के खिलाफ हैं जिन में से सब से बड़ा इलैक्टोरल बौंड्स का है. प्रधानमंत्री को अब चिंता हो रही है कि सुप्रीम कोर्ट कहीं प्राइम मिनिस्टर केयर फंड को भी पब्लिक घोषित न कर दे और उस का हिसाबकिताब न मांग ले. मोदी सरकार की चिंता यह भी है कि वह जिस तरह जेल की धमकियों से विपक्षी पार्टियों के नेताओं को फोड़ रही है, वह सिलसिला कहीं बंद न हो जाए.

हरीश साल्वे एक जमाने में प्रतिष्ठित वकील माने जाते थे और अपनी तीव्र बुद्धि व तार्किक सोच के कारण नागरिक अधिकारों के रक्षक माने जाते थे, आजकल भाजपा के पहरेदार बने हुए हैं और गुजराती धर्म निभाते हुए सरकार के हर गलत फैसले पर कानूनी मोहर लगाने की कोशिश कर रहे हैं. उन की अगुआई में न्यायपालिका को गलत मोड़ देने की मुहिम चालू की गई है जिसे नरेंद्र मोदी का पूरा समर्थन है.

इलैक्टोरल बौंड्स ने राम मंदिर निर्माण की पूरी उपलब्धि को उसी तरह धूल में मिला दिया है जैसे 1992 में कारसेवकों ने अयोध्या में बाबरी मसजिद को धूल में मिला दिया था. चुनावी माहौल में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला विपक्ष के हाथों में गांडीव और सुदर्शन चक्र की तरह का सा है और विपक्ष महाभारत के पांडवों की तरह कौरवों के सामने खड़ा हो सका है. यह गांडीव, सुदर्शन चक्र, इंद्र के दिए कर्ण के अस्त्र सब ‘इंडिया’ गठबंधन को सुप्रीम कोर्ट की कृपा से मिले हैं और उस से सत्ता का नाराज होना स्वाभाविक ही है. इस महाभारत में पितामह भीष्म और धृतराष्ट्र के पुत्र जीतेंगे, यह स्पष्ट सा है.

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