USA : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका को फिर से गोरों का देश बनाने में लगे हैं जहां ब्राउन और काले हों तो लेकिन वे केवल गुलामी करने के लिए हों, वहां की बड़ी कंपनियों के सीईओ जैसे पद पर नहीं. उन का अगला टारगेट अमेरिका के वे विश्वविद्यालय हैं जो दुनियाभर के प्रभावशाली छात्रों को अपने यहां पढ़ने को आमंत्रित करते हैं. हर देश के बड़े उद्योगपतियों, नेताओं, वैज्ञानिकों, प्रशासकों, विचारकों, पत्रकारों में आज 5-7 बड़े विश्वविद्यालयों से निकले लोग मिल जाएंगे जिन के हाथों में अपनेअपने देश की कमान है. डोनाल्ड ट्रंप इस सौफ्ट पावर से खुश नहीं हैं, उन्हें तो कोई भी ब्राउन, ब्लैक, यैलो इन विश्वविद्यालयों में नहीं चाहिए.
दुनियाभर के देशों के लिए यह आधी अच्छी खबर है आधी बुरी. अच्छी इसलिए कि अब योग्य लोग अमेरिका में पढ़ने जाने के बहाने वहीं बसेंगे नहीं. ये लोग अमेरिका में बसते ही नहीं रहे, अपनेअपने देश के कट्टरपंथी विचारों की पोटली भी ले जाते रहे हैं. वे वहां मंदिर, मसजिदें, बौद्धमठ, गुरुद्वारे बनवा रहे हैं. ये लोग पढ़ने के बहाने वहां जा कर अब अपनी गंद वहां नहीं फैलाएंगे, यह अच्छी बात है.
बुरी इसलिए कि जो भी युवा इन विश्वविद्यालयों में प्रवेश पर जाते थे वे अपनेअपने देश के मकड़जालों से निकल जाते थे. ये युवा उन देशों से अमेरिका जाते हैं जहां रिश्वतखोरी, पाखंड, गंद, बदबू, भाईभतीजावाद, अस्थिरता का बोलबाला है.
इन में सब से ज्यादा विदेशी छात्र भारत से जा रहे हैं. पहले चीन नंबर एक पर था पर अब उस का अपना देश पश्चिमी देशों का मुकाबला कर रहा है. इन भारतीय, अफ्रीकी, पाकिस्तानी, बंगलादेशी, सीरियाई, ईरानी, लेबनानी युवाओं को नामी विश्वविद्यालयों में जगह नहीं मिलेगी तो देशों की विदेशी मुद्रा बचेगी. ब्रेन ड्रेन में वैसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि ये युवा अपनेअपने देश में निकम्मे साबित होते हैं. यह तो अमेरिका का समाज था जो कंकरों को हीरा बनाता था. अब डोनाल्ड ट्रंप हीरों को कंकड़ बना रहे हैं, चाहे वे गोरे ही क्यों न हों. सो, अमेरिका जा कर अब कोई क्या करेगा?
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